अहमदाबाद का एक स्टार्टअप पानी के साथ कर रहा है पैसे और वक्त की भी बचत
विदेश में प्रॉजक्ट मैनेजर की नौकरी छोड़ अभिषेक ने शुरू किया पानी बचाने का स्टार्टअप
पैसे और पानी की बचत करने के लिए अहमदाबाद के एक स्टार्टअप ने नई तकनीक का अविष्कार किया है जिससे लगभग 80 प्रतिशत पानी की बचत होती है। यह ग्रीन वेंचर अभिषेक मंडालिया द्वारा 2016 में स्थापित किया गया था। तराई (भवन निर्माण) के कामों में परंपरागत तकनीक द्वारा लगभग 1,000 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है, वहीं अभिषेक की नई तकनीक में सिर्फ एक बाल्टी पानी के जरिए ही उतनी नमीं प्राप्त कर ली जाती है।
अहमदाबाद के अभिषेक मंडालिया ने एक ऐसा स्टार्टअप शुरू किया है, जिसकी मदद से पानी और श्रम के साथ-साथ पैसों की भी बचत की जा सकती है।
अपना स्टार्टअप शुरू करने से पहले अभिषेक विदेश में प्रॉजेक्ट मैनेजर के तौर पर काम कर रहे थे। उन्होंने काफी लंबे समय तक नोटिस किया भवन निर्माण में पानी की बर्बादी बड़ी मात्रा में की जाती है और ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं होता, बल्कि मिडल ईस्ट और अफ्रीका के कई देशों में भी यही विधि अपनाई जाती है, जबकि वहां भी पानी की भारी किल्लत है।
भारत में आमतौर पर मकान या किसी अन्य निर्माण या फिर कहें तो बिल्डिंग बनाने के लिए के वक्त आधुनिक तकनीक के बजाय परंपरागत विधियों का सहारा लिया जाता है। इस वजह से हमें पानी, श्रम और पैसों की भी हानि होती है। हमारे देश में छत या मंजिल निर्माण के लिए सबसे आम तकनीक एक प्रबलित सीमेंट बजरी आरसीसी की पट्टीयों की ढलाई का उपयोग किया जाता है, जिसे अधिक से अधिक मजबूत बनाने के लिए कुछ समय तक नमी की जरूरत होती है। जितनी नमी आरसीसी को दी जाएगी निर्माण उतना ही मजबूत होगा। दरअसल आरसीसी की पट्टियां काफी मजबूत मानी जाती हैं, जो कि सीमेंट और बजरी से बनी होती हैं। इन पट्टियों के अंदर लोहे या सरिया की छड़ के सांचे होते हैं। बजरी के जल्द ही ठोस हो जाने की प्रक्रिया के कारण यह एक ठोस पिंड का रूप ले लेता है। इन पट्टियों को मजबूत बनाने के लिए इनकी पानी से तराई की जाती है और तराई के लिए परंपरागत विधियां ही इस्तेमाल में लाई जाती हैं। आमतौर पर किसी पाइप के सहारे फुहार बनाते हुए तराई की जाती है या फिर जूट की बोरियां बांधकर उनमें पानी का छिड़काव किया जाता है। इस तरह से तराई करने पर श्रम और पैसे के साथ-साथ पानी काफी मात्रा में बरबाद होता है।
इस समस्या से निपटने यानी पैसे और पानी की बचत करने के लिए अहमदाबाद के एक स्टार्टअप ने नई तकनीक का अविष्कार किया है जिससे लगभग 80 प्रतिशत पानी की बचत होती है। यह ग्रीन वेंचर अभिषेक मंडालिया द्वारा 2016 में स्थापित किया गया। अभिषेक के ईजाद किए गए मेथड के हिसाब से तराई करने में धीरे-धीरे कुछ बूंद-बूंद पानी आरसीसी की पट्टियों पर टपकाया जाता है। यह पानी नियमित तौर पर गिरता रहता है। पेशे से सिविल इंजिनियर अभिषेक बताते हैं, 'ड्रिप इरिगेशन तकनीक से मैंने इसकी प्रेरणा ली जो कि आमतौर पर खेतों में सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पानी का बहाव नियंत्रित रहता है इसलिए सिर्फ जरूरत भर का पानी ही इसमें इस्तेमाल होता है। इससे भारी मात्रा में पानी और पैसों की बचत की जा सकती है।'
"1000 लीटर के टैंक को पानी से भरने के लिए लगभग आधे घंटे लगते हैं और इसके बावजूद लंबे समय तक कंक्रीट पर पानी की तराई की जाती है। यह प्रक्रिया दिन में कई बार दोहराई जाती है। इससे रोजाना हजारों लीटर पानी का नुकसान होता है।"
अभिषेक इससे पहले विदेश में प्रॉजेक्ट मैनेजर के तौर पर काम कर रहे थे। उन्होंने काफी लंबे समय तक नोटिस किया कि तराई में काफी पानी की बर्बादी की जाती है और ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं होता बल्कि मिडल ईस्ट और अफ्रीका के कई देशों में भी एकदम यही विधि अपनाई जाती है। हैरानी की बात यह है कि इन देशों में पानी की भारी किल्लत है। अभिषेक बताते हैं, कि 1000 लीटर के टैंक को पानी से भरने के लिए लगभग आधे घंटे लगते हैं और इसके बावजूद लंबे समय तक कंक्रीट पर पानी की तराई की जाती है। यह प्रक्रिया दिन में कई बार दोहराई जाती है। इससे रोजाना हजारों लीटर पानी का नुकसान होता है। अभिषेक ने एक साल की मेहनत के बाद अपने एक दोस्त जितेंद्र केडिया की मदद से यह तकनीक ईजाद की।
इस तकनीक में एक मल्टी लेयर शीट के जरिए पानी डाला जाता है। इन शीट्स में वॉटर पॉकेट्स लगे होते हैं, जिनमें थोड़ा-थोड़ा पानी इकट्ठा हो जाता है और उससे पट्टियों को भी नमी मिलती रहती है। इससे पट्टियों का तापमान नियंत्रित रहता है। जहां परंपरागत तकनीक में लगभग 1,000 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है वहीं इस तकनीक में सिर्फ एक बाल्टी पानी के जरिए उतनी ही नमीं प्राप्त कर ली जाती है। इन शीट्स को बड़ी आसानी से कंक्रीट के तल पर वायर या बेल्ट के जरिए बांध दिया जाता है। जब ये शीट्स पानी से भर जाती हैं तो अपने आप पट्टियों में नमीं पहुंचने लगती है। इतना ही नहीं इसके साथ ही बिजली की भी बचत होती है क्योंकि वैसे पानी का छिड़काव करने के लिए मोटर भी चलानी पड़ती है।
अभिषेक की टीम भारत के साथ-साथ मिडल ईस्ट के देशों में इस तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए लोगों से संपर्क कर रही है। अभिषेक कहते हैं, 'मुझे उम्मीद है कि आने वाले समय में भारत में इससे पानी की काफी बचत होगी और उनके आइडिया को भी सम्मान मिलेगा।'