Brands
YSTV
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory
search

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

Videos

ADVERTISEMENT

आर्थिक तंगी के चलते जिसे बीच में ही छोड़नी पड़ी थी पढ़ाई, वो चिकनकारी निर्यात से कर रहा है 3 करोड़ का सालाना व्यापार

आर्थिक तंगी के चलते जिसे बीच में ही छोड़नी पड़ी थी पढ़ाई, वो चिकनकारी निर्यात से कर रहा है 3 करोड़ का सालाना व्यापार

Thursday November 22, 2018 , 7 min Read

लखनऊ में त्रिवेणी चिकन आर्ट्स की स्थापना करके 400 वर्ष पुरानी लखनवी चिकनकारी की कला को पारखियों तक पहुंचा रहे हैं 32 वर्षीय नितेश।

image


नितेश ने वर्ष 2005 में सिर्फ 19 वर्ष की आयु में लखनऊ के कुछ स्थानीय निर्यातकों के लिये उत्पादों का निर्माण शुरू करके अनौपचारिक रूप से अपना व्यवसाय शुरू किया और उन्होंने अपनी विश्वसनीयता को अपने फायदे के लिये इस्तेमाल किया

लखनऊ अपनी चिकन की काश्तकारी के लिये पूरी दुनिया में जाना जाता है। मान्यता है कि इस कला को मुगलों द्वारा 17वीं शताब्दी में सबसे पहले पेश किया गया था और इस शहर को अब भी चिकनकारी उद्योग का प्रमुख स्थल माना जाता है। आर्थिक कठिनाईयों से दो-चार मध्यम श्रेणी के एक परिवार से ताल्लुक रचाने वाले लखनऊ निवासी नितेश अग्रवाल ने सिर्फ 19 वर्ष की आयु में चिकनकारी के व्यवसाय में कदम रखने का फैसला किया। वे बताते हैं कि उन्होंने सिर्फ दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई की और आर्थिक तंगी के चलते उन्हें अपनी शिक्षा बीच में छोड़नी पड़ी।

अपनी जीविका चलाने के लिये नितेश ने वर्ष 2011 में लखनऊ में त्रिवेणी चिकन आर्ट्स की स्थापना की। इस 32 वर्षीय युवक का कहना है कि उनका मकसद 400 वर्ष पुरानी लखनवी चिकनकारी की कला को दुनियाभर के बेहतरीन कढ़ाई उत्पादों के पारखियों तक पहुंचाना है।उनकी कंपनी हाथ से कढ़े हुए चिकनकारी के कुर्तों, ट्यूनिक्स, साड़ियों, पुरुषों के कुर्तों, महिलाओं के सूटों, लहंगों और अन्य हस्तशिल्प और परिधानों के निर्माण और निर्यात का काम करती है। नितेश बताते हैं कि उन्होंने इस कारोबार को सिर्फ 13,000 रुपये के मामूली निवेश के साथ शुरू किया था और आज उनका सालाना कारोबार करीब 3 करोड़ रुपये का है।

वर्तमान में त्रिवेणी चिकन आर्ट्स स्थानीय और विदेशी, दोनों ही बाजारों को सेवाएं उपलब्ध करवा रहा है। यह अपने उत्पादों को अफ्रीका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, सिंगापुर, इंडोनेशिया, बर्मा, अमरीका, यूके इत्यादि जैसे विदेशी बाजारों को निर्यात करता है।

शुरुआती दौर

नितेश ने वर्ष 2005 में सिर्फ 19 वर्ष की आयु में लखनऊ के कुछ स्थानीय निर्यातकों के लिये उत्पादों का निर्माण शुरू करके अनौपचारिक रूप से अपना व्यवसाय शुरू किया और उन्होंने अपनी विश्वसनीयता को अपने फायदे के लिये इस्तेमाल किया क्योंकि बाजार में हरकोई उन्हें अच्छे से जानता था और इसी के चलते उन्हें वह सामान मिल जाता था जो बिकता नहीं था। नितेश उस न बिके हुए उत्पादों को मुंबई सहित अन्य शहरों के चिकन निर्यातकों के अलावा बुटीक वालों को बेचना शुरू किया।

थोड़ा अनुभव हासिल करने और कुछ पूंजी की व्यवस्था करने के बाद उन्होंने लखनऊ डीसीएच में पंजीकरण करवाया जहां उन्हें निर्यात व्यवसाय से जुड़ी जानकारियों का ज्ञान प्राप्त हुआ। वे बताते हैं कि इसके अलावा उन्हें सिंगापुर में अपने उत्पादों का प्रदर्शन करने का मौका भी मिला जहां वे लोगों से मिले और उनसे संपर्क भी स्थापित हुआ। वे बताते हैं कि लखनऊ स्थित निर्यात संवर्धन परिषद ने उन्हें वैश्विक स्तर पर व्यापार को बढ़ावा देने में मदद करने के अलावा अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने में भी मदद की। नितेश कहते हैं, ‘आज हमारे पास 15 लोगों की एक पूरी टीम है जो पूर्णकालिक रूप से हमारे साथ काम कर रही है और इनमें से चार सदस्य तो मेरे अपने परिवार के हैं।’

इसके अलावा 200 के करीब महिलाएं और कुछ पुरुष अप्रत्यक्ष रूप से इस टीम के साथ काम कर रहे हैं। ये कारीगर हाथ से कढ़ाई का काम, हस्तनिर्मित तमगों की बुनाई, बटन लगाना साज-सलावट का काम और कटिया-जाली का काम करने के अलावा विभिन्न प्रकार की कढ़ाई का काम करने में भी विशेषज्ञ हैं। नितेश कहते हैं, ‘अभी तक बड़े उद्योग उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं पहुंच पाए हैं। हमारे साथ काम करने वाली महिलाएं अपने कौशल का इस्तेमाल करके अपनी आजीविका चला रही हैं। यह उन्हें आत्म-निर्भर बनाने की दिशा में उठाया गया एक छोटा सा कदम है।

अपने उत्पादों की विशेषताओं के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, ‘हमारे उत्पाद औरों से बिल्कुल जुदा हैं क्योंकि वे पूरी तरह प्रमाणिक होने के अलावा पूरी तरह से हस्तनिर्मित हैं और लखनऊ में ही तैयार किये हुए हैं। आपको हमारे उत्पादों में सबसे नाजुक और नफासत के साथ की गई कढ़ाई देखने को मिलेगी।’

राह में आई प्रमुख बाधाएं

चिकनकारी का काम एक बेहद लंबी और कठिन प्रक्रिया है जिसके लिये बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है। नितेश के अनुसार, उनके उत्पादों को ब्रांडेड स्टोरों में उपलब्ध रेडीमेड कपड़ों की तुलना में वांछित मूल्य नहीं मिलता है। उनका कहना है कि अगर सरकार स्थानीय कारीगरों के पक्ष में उत्पादों का विज्ञापन करने में मदद करती है तो इससे उन्हें चिकन की कढ़ाई की प्रक्रिया में शामिल कारीगरों के सामने आने वाली कठिनाइयों के बारे में जागरुकता फैलाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा ऐसा करने से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिला कारीगरों को मिलने वाली मजदूरी में भी सुधार किया जा सकता है।

साथ ही नितेश ये भी कहते हैं, कि नोटबंदी ने भी उनके निर्यात के काम को काफी प्रभावित किया क्योंकि इसके चलते देश के कई बाजार बंद हो गए थे और सूरत में स्थित प्रमुख निर्यात केंद्र भी दो महीने से अधिक के समय तक निष्क्रिय रहे थे। जिसकी वजह से मांग में काफी गिरावट देखने को मिली और विदेशी खरीददारों ने दीपावली और नए साल पर भारत आने से दूरी बनाई। इसके अलावा सरकार द्वारा लागू किये गए जीएसटी ने भी हस्तशिल्प के उद्योग को खासा प्रभावित किया है क्योंकि इसके चलते कपड़ों में कीमतों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है और वे पहले की तुलना में अधिक महंगे हो गए हैं। साथ ही सरकार ने चिकन से जुड़े व्यवसायों पर अधिक टैक्स भी थोप दिये हैं। 

नितेश कहते हैं, ‘हमारे लिये बाजार में अपना वजूद बनाए रखना काफी मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि बाजार में चीन के बने उत्पादों के चलते पहले से ही काफी प्रतिस्पर्धा है।’ उनका कहना है कि राज्य सरकार ने भी परंपरागत अवधी संस्कृति की विरासत का एक अभिन्न हिस्सा माने जाने वाले चिकनकारी के कामों पर करों को हटाने का कोई प्रयास नहीं किया है। दूसरी तरफ भारत के कई दूसरे राज्यों में संबंधित राज्य सरकारों ने परंपरागत हस्तशिल्प वस्तुओं से कर हटा दिये हैं।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए नितेश कहते हैं, ‘सरकार को चाहिये की वह निर्यातकों के जीएसटी रिटर्न का भुगतान तत्काल सुनिश्चित करे या फिर निर्याताकों को जीएसटी के दायरे से ही बाहर लाया जाना चाहिये। इसके अलावा सरकार को हमें नए कारखाने खोलने और अपने काम का विस्तार करने के लिये पर्याप्त स्थान भी उपलब्ध करवाना चाहिये और शहर में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एक ऐसा प्रमाणित गुणवत्ता नियंत्रण विभाग होना चाहिये जो हल्की गुणवत्ता वाले और नकली चिकन उत्पादों की आपूर्ती रोकने का काम करे।’

भविष्य की योजनाएं

नितेश की योजना अपने उत्पादों को 15 देशों में निर्यात करने और आने वाले सालों में त्रिवेणी चिकन्स को एक अंर्तराष्ट्रीय ब्रांड के रूप में स्थापित करने की है। वे कहते हैं, ‘हम कुछ विविध और दूसरों से बिल्कुल अलग उत्पादों को तैयार करने के लिये नए विचारों की उम्मीद कर रहे हैं और इसके अलावा अपनी मदद के लिये कुछ उत्साही और रचनात्मक लोगों के इंतज़ार में भी हैं।’ चिकनकारी के क्षेत्र में आने का सपना देख रहे नए उद्यमियों को नितेश सिर्फ इतनी ही सलाह देना चाहते हैं कि वे ईमानदार रहें और स्वयं के और अपने प्रति सच्चा रहते हुए व्यापार में टीमवर्क की भूमिका को किसी भी सूरत में कम न समझें।

ये भी पढ़ें: 42 देशों में दस्तक दे रहा दुनिया को बेहतर बनाने का अभियान