बेटी को सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले छत्तीसगढ़ के कलेक्टर अवनीश शरण
2009 बैच के आईएएस ऑफिसर अवनीश शरण इन दिनों छत्तीसगढ़ के बलरामपुर के कलेक्टर हैं। उन्होंने अपनी बेटी का एडमिशन जिले में ही एक सरकारी स्कूल में कराया है। उनका मानना है कि हमें सरकारी संस्थाओं में यकीन करना चाहिए तभी उनकी हालत सुधर सकती है।
उन्होंने इसी साल जुलाई में अपनी बेटी वेदिका शरण का दाखिला जिला मुख्यालय में स्थित सरकारी स्कूल प्रज्ञा प्राथमिक विद्यालय में कराया था। इसके पहले उन्होंने वेदिका को आंगनबाड़ी भी भेजा था।
अवनीश का जीवन भी संघर्षों से भरा रहा है। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था कि उनके घर में बिजली की सुविधा नहीं थी इसलिए उन्हें लालटेन की रोशनी में पढ़ाई की थी।
सरकारी स्कूलों का नाम सुनते ही हमारे मन में एक बदहाल व्यवस्थाओं से घिरी इमारत की तस्वीर उभर कर सामने आती है। आमतौर पर गांव के सरकारी स्कूलों में वंचित तबके के बच्चे ही पढ़ने जाते हैं। जहां की शिक्षा व्यवस्था लगभग भगवान भरोसे ही रहती है। लेकिन छत्तीसगढ़ के कुछ बड़े इस धारणा को तोड़ते हुए अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए भेज रहे हैं। अभी हाल ही में एक ऐसे ही आईएएस अधिकारी की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जिसमें वे अपनी बेटी के साथ सरकारी स्कूल की बेंच पर मिड डे मील का आनंद लेते हुए नजर आ रहे हैं। इन अधिकारी का नाम है अवनीश शरण।
2009 बैच के आईएएस ऑफिसर अवनीश शरण इन दिनों छत्तीसगढ़ के बलरामपुर के कलेक्टर हैं। उन्होंने अपनी बेटी का एडमिशन जिले में ही एक सरकारी स्कूल में कराया है। उनका मानना है कि हमें सरकारी संस्थाओं में यकीन करना चाहिए तभी उनकी हालत सुधर सकती है। उन्होंने इसी साल जुलाई में अपनी बेटी वेदिका शरण का दाखिला जिला मुख्यालय में स्थित सरकारी स्कूल प्रज्ञा प्राथमिक विद्यालय में कराया था। इसके पहले उन्होंने वेदिका को आंगनबाड़ी भी भेजा था। इस स्कूल में काफी सुविधाएं भी हैं। यहां बच्चों को समझाने के लिए क्लासरूम में प्रोजेक्टर और एलईडी स्क्रीन भी लगाई गई हैं।
पूरे जिले में इस तरह के 6 स्कूल खोलने की योजना है। कलेक्टर अवनीश शरण शिक्षा के मामले में हमेशा सजग रहते हैं और हमेशा इस क्षेत्र में आने वाली समस्याओं का समाधान करते रहते हैं। बीते दिनों जब सरकारी स्कूल के अध्यापक हड़ताल पर चले गए थे तो उन्होंने कहा था कि इस हालत में गांव के पढ़े-लोगों को आगे आना चाहिए और स्कूलों में जाकर पढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि किसी भी हालत में स्कूल बंद नहीं होने चाहिए और पढ़े-लिखे लोग स्कूलों में जाकर कक्षाएं लें।
दरअससल अवनीश का जीवन भी संघर्षों से भरा रहा है। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था कि उनके घर में बिजली की सुविधा नहीं थी इसलिए उन्हें लालटेन की रोशनी में पढ़ाई की थी। गांव में और कॉलेज की पढ़ाई के दौरान कई मौकों पर आईएएस अधिकारियों को देखकर उनके मन में समाज के लिए काम करने के ख्वाब पलने लगते थे। मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिले के केवटा गांव के रहने वाले इन दिनों छत्तीसगढ़ में डीएम की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उनके पिता और दादाजी भी शिक्षक थे। इसलिए अच्छे माहौल में उनकी पढ़ाई हुई। हालांकि उनके पास सुविधाएं कम थीं लेकिन उन्होंने कभी इसे आड़े नहीं आने दिया।
अवनीश कहते हैं कि हमें एक जिंदगी मिलती है और जितना हो सके अच्छे काम करते रहने चाहिए। यही उनकी जिंदगी का मूलमंत्र है। मीडिया से दूरी बनाकर रखने वाले अवनीश अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में पढ़ाने के बारे में ज्यादा बात नहीं करते। वे इसे व्यक्तिगत मामला बताते हैं। हालांकि एक डीएम के तौर पर सार्वजनिक जिंदगी जीने वाले अवनीश के इस फैसले पर समाज पर काफी प्रभाव पड़ता है। सोशल मीडिया पर उनकी काफी तारीफ हो रही है। लोगों का कहना है कि कलेक्टर के बेटी को सरकारी स्कूल से व्यवस्थाएं अच्छी रहेंगी और अध्यापक सही से अपना काम करेंगे।
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