सुखदा बच्चों को सिखा रही हैं खेल खेल में काम की बातें
मुंबई के मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लेने वाली सुखदा तेंदुलकर के माता पिता ने जो सपने उनके लिए देखे थे, वो उन्होंने पूरे किये। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले एक प्रतिष्ठित कॉलेज से एमबीए किया और उसके बाद एक्सेस बैंक में नौकरी की। उनकी जिंदगी में हर चीज योजना के मुताबिक चल रही थी। हालांकि सुखदा का मानना था कि ये सब उसकी तकदीर से नहीं, बल्कि मेहनत से संभव हुआ है। इस बात का अहसास उनको अपने नास्तिक होने की वजह से हुआ था। इसलिए जब वो विश्वास के साथ उड़ान भरना चाहती थी तो उनके बचपन की खट्टी मीठी यादों से उनको काफी मदद मिली।
शिरसा लैब्स की सीईओ 31 साल की सुखदा का कहना है,
“मैं देखती थी कि जिस तरह 15 साल पहले मैं अपनी मां से उलझती थी ठीक उसी तरह आज दूसरे बच्चे भी अपने माता पिता के साथ उलझते थे। तब मैं टीवी देखने के लिए अपनी मां से लड़ाई करती थी, लेकिन आज के बच्चे इंटरनेट में वक्त गुज़ारने के लिए लड़ते हैं। हालांकि चिंता और नखरे पहले की ही तरह हैं बस माध्यम बदल गया है।”
इस तरह उन्होंने एक आइडिया पर काम करना शुरू किया। जिसके मुताबिक बच्चों के ना सिर्फ साक्षरता में सुधार आये, बल्कि उनमें किसी चीज़ को सीखने की चाहत बढ़े। इस तरह शिरसा लैब्स इस समस्या का तोड़ था। इसके ज़रिए डिजिटल दुनिया के सिमुलेशन की तरह बच्चों को वर्चुअल टूर के ज़रिए विविध अवधारणाओं से परिचित करना था।
“हम बच्चों के लिए अच्छी गुणवत्ता वाला एक डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाना चाहता थे। जिसका इस्तेमाल 5 साल से लेकर 15 साल तक के बच्चे कर सकें। इस प्लेटफॉर्म में बच्चे ना सिर्फ खेल सकें बल्कि अंजाने में मनोरंजन के साथ-साथ वो कुछ काम की बातें भी सीखें।”
असल में ये स्टार्टअप 21वीं सदी के बच्चों को ध्यान में रखते हुए नये तरीके के ईको सिस्टम पर अपने उत्पाद विकसित कर रहा है। इसका लक्ष्य हर बच्चे को गुणवत्ता वाली शिक्षा सामग्री मुहैया कराना है।
सम्मानित परिवार से आने वाली सुखदा के माता—पिता को सदैव विश्वास था कि उनकी बेटी अपनी रूचि के मुताबिक कुछ बेहतर करेंगी इसलिए उन्होंने उनके हर काम में साथ दिया। बावजूद इसके उनके लिए समझना मुश्किल था कि उनकी बेटी कार्पोरेट को छोड़ स्टार्टअप की शुरूआत करेगी। सुखदा कहती हैं,
“मेरे परिवार और मेरे जानने वालों में दूर दूर तक कोई भी कारोबार जगत में नहीं है। इसलिए उनमें एक डर बना रहता है। वो ये सोचते हैं कि मैं स्कूलों का दौरा कर बच्चों के लिए वर्कशॉप का आयोजन करती हूं। जो काम अक्सर महिलाओं से जुड़ा समझा जाता है। मेरे लिए या काफी मुश्किल है कि मैं उनको ये समझा पाऊँ कि असलियत में मैं करती क्या हूं।”
इन हालात के बावजूद वो आगे बढ़ीं और उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए टीम बनाना शुरू किया। सबसे पहले मंदर देसाई सह-संस्थापक और सीएफओ की हैसियत से उनके साथ जुड़े। जबकि उनके सीओओ कुणाल अम्बाश्ट भी कुछ वक्त बाद इनके साथ जुड़े। कुणाल और मंदर पहले से ही एक दूसरे को जानते थे और इससे पहले वो दोनों बोस्टन विश्वविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई के दौरान एक साथ कई दूसरे प्रोजेक्ट में भी काम कर चुके थे। जबकि सुखदा की कुणाल से मुलाकात ‘टेक फॉर इंडिया’ के कार्यक्रम में सात साल पहले हुई थी। जिसके बाद वो कुणाल के ज़रिए मंदर से मिलीं। इन तीनों की एक चीज़ पर समान राय थी और वो थी कि किसी चीज़ को लेकर शिक्षित होने से अच्छा है कि उसे सीखा जाय। सुखदा का कहना है कि “हमें पता था कि हम इस क्षेत्र में तभी बने रह सकते हैं, जब हम सर्वश्रेष्ठ काम करें और इसके लिए शैक्षणिक डिग्री की नहीं, बल्कि कौशल की ज्यादा ज़रूरत थी। हमारा एक ही उद्देश्य था कि युवाओं की मदद कर उनको उनकी ताकत का एहसास करना है और उनके कौशल में निखार लाना है और हम इसे पूरा करने के प्रतिबद्ध हैं।”
‘प्लेनेट ऑफ जीयूआई’ सुखदा का पहला उत्पाद था। ये वर्चुअल दुनिया में बच्चों को एक लक्ष्य देता है। इस वीडियो गेम की ज़रिए बच्चे वर्कशीट, ईबुक, विज्ञान से जुड़े तजुर्बे और कई पहलियों का हल ढूंढते हैं। सुखदा का कहना है,
“इस प्लेटफॉर्म में कई दिलचस्प फीचर्स हैं। यहां पर बच्चे अपने कमरे को सजा सकते हैं। दोस्तों को बुला सकते हैं और काफी कुछ कर सकते हैं।”
इसके अलावा ये प्लेटफॉर्म व्यक्तिगत और उम्र के मुताबिक बच्चों को सामग्री उपलब्ध कराता है। ये उपयोगकर्ता के मुताबिक काम करता है। ये प्लेटफॉर्म पूरी तरह खेल पर आधारित है। किसी भी तरह की सामग्री खरीदने पर बच्चों को गेको और रिवॉर्ड प्वांइट उपहार के तौर पर मिलते हैं। गेको को बच्चे वर्चुअल सामान, विभिन्न फीचर को अनलॉक करने और मुफ्त उपहार के बदले रिडीम करा सकते हैं। इसके अलावा बच्चों को ‘न्यूज पिक’ नाम से डिजिटल अखबार भी पढ़ने को मिलता है। विभिन्न तरह के लेख, विभिन्न घटनाओं के बारे में, क्विज़ और कई अन्य जानकारियाँ दी जाती हैं। सुखदा के मुताबिक “ये युवा दिमाग को उनकी उम्र के मुताबिक ज्ञान देता है।” बच्चे खबरें पढ़ने के बदले रिवार्ड प्वांइट हासिल कर सकते हैं। जिनको प्लेनेट ऑफ जीयूआई में रिडिम कराया जा सकता है।
शिरसा लैब्स बी2बी उत्पाद के ज़रिए स्कूलों के पाठ्यक्रम को रचनात्मकता प्रदान करता है। इसके लिए वो हर छात्र से साल भर के लिये 400 रुपये शुल्क लेता है। सुखदा के मुताबिक “हम बिना किसी रोकटोक के लोगों के अनुभवों को साझा करते हैं। हमें काफी सारे अभिभावकों से जो जानकारी और सुझाव मिलते हैं वो हमारे लिये काफी मददगार साबित होते हैं।”
फिलहाल ये स्टार्टअप उन लोगों पर खास ध्यान दे रहा है जो टीयर1 टीयर2 शहरों में रहते हैं और जिनके पास इंटरनेट की सुविधा है। सुखदा के मुताबिक “हम फिलहाल वार्षिक सब्सक्रिप्शन पर ध्यान दे रहे हैं हालांकि हमारी कोशिश विभिन्न उत्पादों के लिए ‘पे - यूज’ आधारित मॉडल पर भी काम करने की है। इस तरह हम तीन तरीके से राजस्व हासिल कर रहे हैं। ये हैं प्रत्यक्ष सदस्य से, बच्चों के ब्रांड से और स्कूलों से।” फिलहाल इस स्टार्टअप के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल 1.45 लाख लोग कर रहे हैं। इनमें से 75 प्रतिशत एक्टिव यूज़र हैं जबकि 25 हजार उपयोगकर्ता भुगतान आधारित मॉडल से जुड़े हैं। साल 2013 में ये स्टार्टअप तीन लोगों के साथ शुरू हुआ था और बी2बी मॉडल के ज़रिए 4 लाख रुपये का राजस्व हासिल कर रहा था, लेकिन 2014—15 में ये राजस्व 18 गुणा बढ़कर 73 लाख रुपये हो गया। जहां तक एक्टिव यूज़र की बात है तो यह संख्या पिछले 8 महीनों के दौरान 70 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ी है।
इतना सब करने के बावजूद एक महिला होने के नाते सुखदा को भी कई बार लिंगभेद का सामना करना पड़ा। उनके मुताबिक
“महिला सीईओ होने के नाते जब शुरूआत में मैने लोगों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की तो काफी बाधाओं का सामना करना पड़ा। खासतौर से तकनीक के क्षेत्र में। इस क्षेत्र में महिलाओं को काबिल नहीं समझा जाता।”
जहां तक बाजार में मिलने वाले मौकों का सवाल है उसके अनुसार देश में 5-16 साल की उम्र के 15 करोड़ बच्चे हैं। और शिरसा ऐसी पहली कंपनी है, जो इस उम्र के बच्चों को ध्यान में रखते हुए उनकी जरूरत के मुताबिक कंटेंट मुहैया करा रही है। सुखदा का कहना है, “कई सारे प्रकाशकों ने, जिसमें प्रिंट मीडिया के बड़े दिग्गज भी शामिल हैं, इस तरह के मिलते जुलते प्लेटफॉर्म को खड़ा करने की कोशिश की है, लेकिन उनके उत्पादों की एक सीमा है। वहीं दूसरी ओर शिरसा कई प्रकाशकों की सामग्री को एक जगह उपलब्ध कराता है। इस वजह से उपयोगकर्ताओं के के लिए यहाँ पर ज्यादा विकल्प मिलते हैं।”
शिरसा की शुरूआत 30 लाख रुपये के निवेश के साथ हुई थी। अक्टूबर, 2014 में इसमें 50 हजार डॉलर का निवेश किया गया। इसके बाद नवंबर 2015 में ढ़ाई लाख डॉलर का निवेश किया गया। सुखदा का कहना है कि “हम तेजी से विकास करना चाहते हैं, इसलिए हमारी योजना साल 2018 तक अपनी टीम को बढ़ाकर 50 सदस्यों तक करने की है। पिछले साल हमारा राजस्व सौ प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ा और इस साल हमें उम्मीद है कि ये 300 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा।”
मूल- बिंजल शाह
अनुवाद- गीता बिष्ट
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