सुसाइड करने वालों की चौकीदारी कर रहा है एक संगीतकार
जब किसी जंगल में जाकर आत्महत्या करने वालों की तादाद बढ़ती जा रही हो और कोई अपने रॉक, हिप हॉप म्यूजिक के माध्यम से उनका मन बदलने की कोशिश करे, उसके इस अभियान पर पूरी दुनिया खुशी से चौंक जाती है। गौरतलब है कि हमारे देश में हर साल डिप्रेशन के शिकार हजारों युवा और छात्र खुदकुशी कर ले रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 आते आते डिप्रेशन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बीमारी हो जाएगी। कॉरपोरेट क्षेत्र में काम के दबाव और टारगेट आधारित वेतन भत्तों के कारण बयालीस फीसीदी युवा डिप्रेशन की चपेट में हैं।
अपने रॉक, हिप हॉप म्यूजिक के माध्यम से जब साठ साल का कोई जापानी संगीतकार क्योची वातानाबे जैसा शख्स 'सुसाइड फॉरेस्ट' संगीत से जंगल में जाकर आत्महत्या के लिए उत्तेजित लोगों के मन को बदलने की कोशिश करता है और कहता है- 'यह प्रकृति का जंगल है, धर्म का जंगल है, यह वैसी जगह नहीं है, क्या लोग इस जंगल को जहन्नुम बनाना चाहते हैं? मैं यहां जन्मा हूं। मुझे इसकी रक्षा करनी है। मैं यहां का चौकीदार हूं। मुझे लगता है कि यह मेरा कर्तव्य है।' तो स्वाभाविक रूप से इस तरह की इंसानी कोशिश पर पूरी दुनिया खुशी से चौंक जाती है। आज पूरी दुनिया में तेजी से आत्महत्याओं का ग्राफ बढ़ रहा है। पूरे-के-पूरे परिवार के सामूहिक आत्महत्या के आंकड़ों में भी वृद्धि हो रही है। दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में विकास के चमचमाते मॉल मॉडल' के बीच बढ़ती आत्महत्याओं ने लोगो झिझोड़कर रख दिया है। जैसे-जैसे खेत खलिहान औद्योगिक प्रतिष्ठानों का रूप लेते जा रहे हैं, आत्महत्याएं बढ़ती जा रही हैं।
आज दुनिया में जब प्रति वर्ष आठ लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या करते हैं, तो उसमें अकेले भारत का हिस्सा करीब डेढ़ लाख है। ऐसा करने वालों में 15 से 29 साल के युवाओं की संख्या ज्यादा है। आश्चर्य इस बात का है कि आत्महत्या करने वालों में 80 प्रतिशत साक्षर-शिक्षित हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या कर लेता है। आत्महत्या की घटनाएं प्रति एक लाख व्यक्तियों पर 7.9 से बढ़कर 10.3 हो गई हैं। देश में करीब 50 हजार लोग हर साल पारिवारिक दिक्कतों से तंग आकर खुदकुशी कर रहे हैं, लगभग 20 हजार लोग दांपत्य अथवा प्रेम संबंधों की कड़वाहट से जान दे रहे हैं और करीब 50 हजार लोग अपने असाध्य रोगों से मुक्ति पाने के लिए मौत को गले लगा रहे हैं। इनमें तीन-चार हजार लोग हर साल गरीबी-बेरोजगारी से त्रस्त होकर मौत का रास्ता चुन ले रहे हैं।
जापानी संगीतकार क्योची वातानाबे को उम्मीद है कि संगीत कुछ लोगों का मन बदल सकता है। वातानाबे ने बीते आठ वर्षों से यह अभियान छेड़ रखा है। उनका मकसद उन लोगों की जान बचाना है, जो जिंदगी से बेजार होकर आओकिगाहारा के जंगल में खुदकुशी करने पहुंच जाते हैं। उन्होने इस जंगल के पास ही पैदा होकर अपना ज्यादातर जीवन बिताया है। आओकिगाहारा का मतलब होता है, 'नीले पेड़ों का मैदान'। जैसे ही रात घिरती है वातानाबे अपने घर को रॉक और हिप हॉप म्यूजिक से गुंजा देते हैं। वह कभी गिटार बजा कर माइक्रोफोन पर अपनी पसंद के गीत गाते हैं तो कभी जोर जोर से सिर्फ संगीत बजाते रहते हैं। यहां के लोग पेड़ों की पूजा करते हैं और इलाके को पवित्र मानते हैं लेकिन यहां के जंगलों में हर साल करीब 20 हजार लोग खुदकुशी कर लेते हैं। जंगल के प्रवेश द्वार पर लिखा है- 'जिंदगी अनमोल है जो आपके मां बाप ने आपको दी है। एक बार फिर शांत हो कर अपने मां बाप, भाई बहनों और बच्चों के बारे में सोचिए। अकेले परेशान मत होइए। पहले हमसे बात करिए।'
आज दुनिया में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि इंग्लैंड में खुदकुशी रोकने के लिए अलग से मंत्रालय बनाया गया है। यह शायद पहली बार हो रहा है कि किसी देश में आत्महत्या रोकने को लेकर अलग से मंत्रालय बनाया गया है। इंग्लैंड की यह पहल इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति खासतौर से युवाओं में तेजी से बढ़ रही है। मजे की बात यह है कि भारत में राजनीतिक दलों व प्रतिक्रियावादियों द्वारा आत्महत्याओं को राजनीतिक रोटियां सेंकने के हथियार के रूप में काम में लिया जा रहा है। एक मोटे अनुमान के तौर पर इंग्लैंड में प्रतिवर्ष साढ़े चार हजार लोग मौत को गले लगा लेते हैं। इनमें भी अधिकांश युवा होते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 आते आते डिप्रेशन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बीमारी हो जाएगी। कॉरपोरेट क्षेत्र में काम के दबाव और टारगेट आधारित वेतन भत्तों के कारण बयालीस फीसीदी युवा डिप्रेशन की चपेट में हैं। सबसे ज्यादा डिप्रेशन के शिकार मीडिया, दूरसंचार, आईटी, केपीओ, बीपीओ और मार्केटिंग से जुड़े युवा हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के तमाम देशों में हर साल लगभग आठ लाख लोग आत्महत्या कर ले रहे हैं, जिनमें से लगभग 21 फीसदी आत्महत्याएं भारत में हो रही हैं। यानी दुनिया के किसी भी एक देश से ज्यादा है।
भारत में कानून की किताबों में आत्महत्या को अपराध मानने वाली धारा का प्रावधान यह सोचकर रखा गया था कि मनुष्य जीवन अनमोल है और उसे यों ही खत्म करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती है। और अगर कोई व्यक्ति ऐसा करने का प्रयास करता है तो उसके लिए राज्य की ओर से कोई दंडात्मक व्यवस्था होनी चाहिए ताकि उससे सबक लेकर कोई अन्य व्यक्ति इस तरह की आत्महंता कोशिश न कर सके, जबकि देश में राज्य स्तर पर आत्महत्या से जुड़े एनसीआरबी के आंकड़े देखने से पता चलता है कि दक्षिण भारत के केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के साथ ही पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों मे आत्महत्या की कुल घटनाओं का 56.2 फीसदी रिकार्ड किया गया है।
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