Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

इस 'तपस्वी' का नशा, घायलों को अस्पताल पहुंचाना!

इस 'तपस्वी' का नशा, घायलों को अस्पताल पहुंचाना!

Sunday July 29, 2018 , 5 min Read

आज के खुदगर्ज जमाने भी हमारे देश में ईमानदारी से सामाजिक सरोकार रखने वाले कर्मयोगियों की कमी नहीं है। ऐसे किसी कर्मयोगी ने अगर एम्बुलेंस से घायलों को अस्पताल पहुंचाने का ही बीड़ा उठा रखा हो, उसे 'तपस्वी' या 'धरती का भगवान' कहने में हर्ज क्या है। फतेहपुर के अशोक सिंह ऐसे ही कर्मयोगी हैं। लोग उन्हें 'तपस्वी' कहते हैं। अब तक वह लगभग एक हजार घायलों को अस्पताल पहुंचा चुके हैं।

अपनी प्राइवेट एंबुलेंस के साथ अशोक  सिंह

अपनी प्राइवेट एंबुलेंस के साथ अशोक  सिंह


ऐसे वक्त में फतेहपुर के एम्बुलेंस चालक अशोक सिंह जैसे लोग समाज के प्रेरणास्रोत बन जाते हैं। वह लंबे समय से घायलों के लिए 'भगवान' की तरह कहीं भी अवतरित-से हो जाते हैं। फोन पर सूचना मिली नहीं कि दौड़ पड़ते हैं एम्बुलेंस लेकर।

एक होते हैं कर्मयोगी, दूसरे कर्महीन। बाबा तुलसीदास भी कह गए हैं, कर्महीन हर वक्त रोता रहता है, उसे जीवन में कभी कोई बड़ी सफलता नहीं मिलती लेकिन कर्मयोगी, जो भी चाहता है, हासिल कर लेता है। सच्चे कर्मयोगी वे होते हैं, जो दूसरो के गाढ़े वक्त में काम आते हैं। उनका कर्मयोग है समाज सेवा, जिसे आज धंधा भी बना दिया गया है, फिर भी कई बार जब कोई ऐसा कर्मयोगी सुर्खियों में आता है, अपने मानवीय सरोकारों से पूरे समाज को आश्वस्त करता है। ऐसे ही कर्मयोगी हैं फतेहपुर (उ.प्र.) के अशोक सिंह, जिन्होंने गंभीर बीमारों और घायलों के लिए खुद की एम्बुलेंस खरीद ली। आज के खुदगर्ज जमाने में वह जो काम कर रहे हैं, उनकी तुलना में अस्पतालों की नौकरी कर रहे ज्यादातर वेतनभोगी एम्बुलेंस चालकों का आचरण किस तरह का है, वही जाने जो कभी उनके पल्ले पड़ा हो। ऐसे लोग आज के वक्त में एक झटके से दुनिया भर की सुर्खियों में आ जाते हैं।

अभी पिछले ही महीने चीन का ऐसा ही एक लू ह्यूचेंग नाम का डिलेवरी ब्वॉय समाचारों में छा गया था। लू ह्यूचेंग ने एक एम्बुलेंस को रास्ता दिखाकर एक आदमी की जिंदगी बचा ली थी। चार जून को जब एक गंभीर घायल को लेकर अस्पताल जा रही एम्बुलेंस रास्ता भटक गई, जीपीएस भी फेल, बीच रास्ते में खड़ी उस एम्बुलेंस को, खाने की डिलेवरी पर जाते हुए वहां से गुजर रहे लू ह्यूचेंग ने उसके आगे-आगे चलकर ड्राइवर को राह दिखाई। डॉक्टरों ने कहा कि एम्बुलेंस हॉस्पिटल पहुंचने में कुछ मिनट और देर कर देती तो घायल की जान चली जाती। हर कोई अशोक सिंह भले न बन सके, लू ह्यूचेंग का रोल तो अदा कर ही सकता है।

जहां तक सामाजिक सरोकारों अथवा अपनी ड्यूटी निभाने की बात हो, इसी साल अप्रैल महीने का आगरा का एक वाकया याद आता है। एक ओर तो यूपी के हेल्थ मिनिस्टर चकाचक चिकित्सा व्यवस्था के दावे करते रहते हैं, दूसरी तरफ वहां के एसएन मेडिकल कॉलेज में बीमार मां अंगूरी देवी का इलाज कराने के लिए उसका बेटा अपने कंधे पर ऑक्सिजन सिलिंडर लादे एम्बुलेंस का इंतजार करता रहा। मेडिकल कॉलेज के ट्रॉमा सेंटर में रुनकता निवासी अंगूरी देवी को सांस फूलने पर भर्ती किया गया था। उन्हे ऑक्सिजन लगाने के बाद वॉर्ड में शिफ्ट करने के लिए कह दिया गया। ट्रॉमा सेंटर से वॉर्ड काफी दूर है। ऐम्बुलेंस की जरूरत पड़ी।

मां-बेटे ट्रॉमा सेंटर से बाहर धूप में देर तक एम्बुलेंस के इंतजार में खड़े रहे। तब तक बेटा कंधे पर सिलिंडर लादे रहा। सिलिंडर का कनेक्शन मां के मास्क से लगा हुआ था। ऐम्बुलेंस लापता थी। अब एसएन मेडिकल कॉलेज प्रशासन मामले की जांच करा रहा है। चिकित्सा के पेशे में ऐसी हद दर्जे की लापरवाहियां तो अब आम हो चली हैं। सड़क हादसे में घायल हुए एक युवक को इलाज के लिए झांसी मेडिकल कॉलेज के इमर्जेंसी वॉर्ड में ले जाया गया। इलाज के दौरान डॉक्टरों ने तकिया के रूप में युवक के सिर के नीचे उसी का कटा हुआ पैर रख दिया।

ऐसे वक्त में फतेहपुर के एम्बुलेंस चालक अशोक सिंह जैसे लोग समाज के प्रेरणास्रोत बन जाते हैं। वह लंबे समय से घायलों के लिए 'भगवान' की तरह कहीं भी अवतरित-से हो जाते हैं। फोन पर सूचना मिली नहीं कि दौड़ पड़ते हैं एम्बुलेंस लेकर। इसीलिए उनको लोग ‘तपस्वी’ कह कर पुकारते हैं। वह अब तक करीब एक हजार घायलों का आकस्मिक वक्त में इलाज करा चुके हैं। इतना ही नहीं, वह लगभग साढ़े तीन सौ शवों को पोस्टमॉर्टम हाउस भी पहुंचा चुके हैं। हैरत तो इस बात की है कि यह सब वह अपना पैसा खर्च कर करते हैं। आज से सात साल पहले जब फतेहपुर जिले के मलवां रेलवे स्टेशन के निकट भीषण ट्रेन हादसा हुआ था, अशोक सिंह लगातार चौबीस घंटे तक घायल यात्रियों को अस्पताल पहुंचाने में जुटे रहे।

मूलतः फतेहपुर के ही रहने वाले अशोक सिंह को ये प्रेरणा अपने पिता रामेश्वर सिंह से मिली है। रामेश्वर की समाज सेवा में भी गहरी दिलचस्पी थी। कारोबारी पिता के साथ रहते हुए उनकी पढ़ाई-लिखाई पुणे में हुई। बाद में फतेहपुर लौट गए। सन् 2007 की बात है। वह कार से कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक घायल महिला को देख उसे उन्होंने तुरंत अपनी गाड़ी से अस्पताल पहुंचाया। बाद में उन्होंने खुद की ऐम्बुलेंस खरीद ली। उस पर अपना मोबाइल नंबर लिखवा दिया ताकि कोई भी जरूरतमंद इमेरजेंसी में उनसे सीधे संपर्क कर सके। अब तो ये नंबर (108 की तरह) जिले के लोगों की जुबान पर रहता है। लोग 108 पर बाद में डॉयल करते हैं, पहले उनकी एम्बुलेंस का नंबर मिलाते हैं। अशोक सिंह बताते हैं कि जब कभी सफर के दौरान उनको कोई घायल दिख जाता है, वह आगे की यात्रा छोड़ सबसे पहले वह उसे अस्पताल पहुंचाने में जुट जाते हैं। इसके लिए वह हमेशा अपने साथ प्लास्टिक शीट और दस्ताने लेकर चलते हैं।

यह भी पढ़ें: पांच लाख रुपयों से बनाई देश की सबसे बड़ी फर्नीचर कंपनी