अंधविश्वासों के खिलाफ अंत तक अड़े-लड़े दाभोलकर
कुछ वर्ष पहले अंधविश्वासों के खिलाफ लड़ते हुए पुणे (महाराष्ट्र) के तर्कवादी डॉक्टर नरेन्द्र अच्युत दाभोलकर मॉर्निंग वॉक के दौरान मार दिए गए थे। उस महान शख्सियत डॉ दाभोलकर की याद में इन दिनो देश में 38 सामाजिक संगठन 'वैज्ञानिक चेतना दिवस' मना रहे हैं।
सन् 1982 से वह अंधविश्वास निर्मूलन आंदोलन के पूर्णकालिक कार्यकर्ता हो गए और एक दशक के भीतर उन्होंने किसी भी तरह के सरकारी अथवा विदेशी सहायता के बिना महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की स्थापना कर ली। आज महाराष्ट्र में उसकी दो सौ से अधिक शाखाएं हैं।
बात पांच साल पहले, 20 अगस्त, 2013 की है। अंधविश्वास के खिलाफ लड़ते हुए पुणे (महाराष्ट्र) के तर्कवादी वैज्ञानिक डॉक्टर नरेन्द्र अच्युत दाभोलकर की मॉर्निंग वॉक के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। भारतीय समाज में धार्मिक और जातीय अंधविश्वास फैलाकर आम लोगों को दूसरे से बांटने की मानवता विरोधी कोशिशों में जुटी ताकतों के संरक्षण में कुछ मुट्ठीभर ताकतें इससे पहले डॉक्टर एमएम कलबुर्गी, गोविंद पानसरे आदि की जिंदगियां भी ठिकाने लगा चुकी हैं। डॉ नरेन्द्र अच्युत दाभोलकर अंधविश्वास उन्मूलन के लिए गठित 'महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति' के संस्थापक अध्यक्ष थे। वर्ष 2014 में उनको मरणोपरांत 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया। डॉ दाभोलकर की याद में इन दिनो हमारे देश में 'ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क' की पहल पर उससे जुड़े 38 सामाजिक संगठन 'वैज्ञानिक चेतना दिवस' मना रहे हैं।
इसी क्रम में 19 अगस्त, दिल्ली की एक शाम। ‘अंधविश्वास विरोधी मंच’ की ओर से कान्स्टीट्यूशन क्लब में ‘तर्कशीलता और वैज्ञानिकता के पक्ष में अंधविश्वास, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मीडिया की भूमिका’ विषय पर दाभोलकर की याद में एक गोष्ठी आयोजित की जाती है जिसे जेएनयू की प्रोफेसर मृदुला मुखर्जी, सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश, डीयू के पैट्रिक दासगुप्ता, गौहर रजा, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति महाराष्ट्र की डॉ सविता शेटे, डीयू के प्रोफेसर अपूर्वानंद, पूर्व राजदूत अनूप मुदगल, लेखक सिद्धार्थ, प्रेमपाल शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता विक्रम प्रताप, डॉ. रघुनंदन, प्रो. शम्सुल इस्लाम, वैज्ञानिक सुरजीत, पत्रकार अजय प्रकाश, एके अरुण, राजीव रंजन आदि सम्बोधित करने के लिए उपस्थित होते हैं। इस अवसर पर ‘अस्मिता थिएटर’ की नाट्य मंडली अंधविश्वास के खिलाफ एक नाटक प्रस्तुत करती है और प्रो. शम्सुल इस्लाम का 'निशांत ग्रुप' गीत सुनाता है।
राजधानी दिल्ली में कार्यक्रमों का यह सिलसिला अगले दिनो में भी जारी रहता है। अगली कड़ी में अंधविश्वास विरोधी मंच दिल्ली विश्वविद्यालय के शाहदरा स्थित श्यामलाल कॉलेज पहुंचता है, जिसमें छात्रों के बीच तांत्रिकों, बाबाओं, सफेदपोशों के धत्कर्मों, टोने-टोटकों, अपराधों के खिलाफ लोगों को जगाया जाता है। लोगों को बताया जाता है कि गोलबंद ढोंगी धार्मिक आस्था, अंधविश्वास की आड़ में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई समुदायों के गरीबों, वंचित समुदायों का खुलेआम शोषण कर रहे हैं। आज 21वीं सदी में भी दिल्ली जैसे शहर में इन गोलबंद ढोंगियों के धत्कर्मों से लोगों का सिर शर्म से झुक जाता है। उन जैसों के ही उकसावे पर दिल्ली में एक साथ एक ही परिवार के ग्यारह लोग आत्महत्या कर लेते हैं। दाभोलकर इसीलिए मार दिए गए कि वह इन ढोंगियों के खिलाफ समाज को जगा रहे थे।
आज उनकी वैचारिक विरासत को भारत के अलग-अलग क्षेत्रों के एक्सपर्ट, वैज्ञानिक, पत्रकार, डॉक्टर, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद आगे बढ़ा रहे हैं। उनमें आईपीएस विकास नारायण राय, पत्रकार पीयूष पंत, प्रेमपाल शर्मा, सुरजीत, अनूप मुद्गल, पीवीएस कुमार, उपन्यासकार संजीव, वैज्ञानिक सुबोध मोहंती, शम्सुल इस्लाम, विष्णु शर्मा आदि आगे बढ़ा रहे हैं। उनका कहना है कि वैज्ञानिक मिजाज पर चौतरफा हमलों के प्रतिरोध के तौर पर वैज्ञानिक चेतना के प्रचार प्रसार का काम और तेज होना चाहिए। अंधविश्वास के अलावा, सांप्रदायिकता, मॉब लिंचिंग और असहिष्णुता जैसी भयावहताओं से भी लड़ना जरूरी है, जिनका हाल के वर्षों में चिंताजनक उभार देखा गया है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 ए (एच) ‘साइंटिफिक टेंपर' के विकास और जरूरत को नागरिकों के बुनियादी कर्तव्य के रूप में रेखांकित करता है। आज जो देश में हालात हम देख रहे हैं और जो ऐसा नहीं है कि कहीं से टपके हैं या तत्काल प्रकट हुए हैं, उनके पीछे एक पूरी तैयारी और मनोवृत्ति का एक पूरा इतिहास परिलक्षित होता है।
डॉ. नरेन्द्र अच्युत दाभोलकर का जन्म 01 नवंबर 1945 को महाराष्ट्र के सतारा ज़िले में हुआ था। उनके बड़े भाई डॉ. देवदत्त दाभोलकर पुणे विश्वविद्यालय के पूर्व कुलगुरू थे जबकि दूसरे भाई डॉ. दत्तप्रसाद दाभोलकर वरिष्ठ वैज्ञानिक और विचारक हैं। दाभोलकर की पत्नी शैला भी सामाजिक कार्यों में उनके साथ रहीं। बेटा हमीद दाभोलकर डॉक्टर हैं और दाभोलकर की एक पुस्तक 'प्रश्न मनाचे' के सह-लेखक भी, जो काला जादू, टोना-टोटका के लिए उकसाने वालों को मानसिक रोगी करार देते हैं। दाभोलकर की बेटी मुक्ता पेशे से वकील हैं। अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ दाभोलकर चिकित्सा की बजाए सामाजिक कार्यों में जुट गए। सन् 1982 से वह अंधविश्वास निर्मूलन आंदोलन के पूर्णकालिक कार्यकर्ता हो गए और एक दशक के भीतर उन्होंने किसी भी तरह के सरकारी अथवा विदेशी सहायता के बिना महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की स्थापना कर ली। आज महाराष्ट्र में उसकी दो सौ से अधिक शाखाएं हैं।
डॉ. दाभोलकर ने पोंगा पंडितों के खिलाफ 'ऐसे कैसे झाले भोंदू', 'अंधश्रद्धा विनाशाय', 'अंधश्रद्धा: प्रश्नचिन्ह आणि पूर्णविराम', 'भ्रम आणि निरास', 'प्रश्न मनाचे' आदि कई पुस्तकें लिखीं। तथाकथित चमत्कारों के पीछे छिपीं वैज्ञानिक सच्चाइयों को उजागर किया। इसके साथ ही उन्होंने जाने-माने साहित्यकार साने गुरुजी के ‘साधना’ साप्ताहिक का संपादन भी बारह वर्षों तक किया। वह कहते थे कि मुझे मजबूरीवश आस्था रखनेवालों से कोई आपत्ति नहीं है। मेरी आपत्ति है दूसरों की मजबूरियों का ग़लत फ़ायदा उठानेवालों से। मुझे कुछ नहीं कहना है उन लोगों के बारे में जिन्हें संकट के समय ईश्वर की ज़रूरत होती है लेकिन हमें ऐसे लोग नहीं चाहिए, जो काम-धाम छोड़कर धर्म का महिमा मंडन करें और मनुष्य को अकर्मण्य बनाएं। डॉ दाभोलकर ने ही अपने मुहिम में गणेश विसर्जन से जल प्रदूषण और दिवाली में ध्वनि प्रदूषण के ख़िलाफ़ विकल्प सुझाए थे, जिसे महाराष्ट्र के हर महानगर निगम ने अब स्वीकार किया है। वह स्कूलों में जाकर छात्र-छात्राओं से प्रतिज्ञा करवाते थे कि वे पटाख़ों पर ख़र्च करने की बजाय पैसा बचाकर सामाजिक संस्थाओं को दान कर दिया करें। वह वर्षों तक अंतरजातीय विवाह को लेकर भी सक्रिय रहे।
'महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति' की आज महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक के बेलगामा और गोवा में भी तीन सौ से ज्यादा इकाइयां सक्रिय हैं। वर्तमान में इन सबकी कमान अविनाश पाटिल के हाथों में हैं। गौरतलब है कि हाल के वर्षों में जाली खबरों, अफवाहों और शांति भंग करने वाली धूर्ततापूर्ण हरकतों के बीच जातीय और धार्मिक विद्वेष ने भी नये-नये औजार गढ़ लिए हैं। अभी अभी केरल की बाढ़ पर आरबीआई बोर्ड के नये सदस्य और स्वदेशी जागरण मंच के नेता एस गुरूमूर्ति की बयान उसी अंधश्रद्धा को हवा देता है, जिसका दाभोलकर विरोध करते रहे हैं। गुरूमूर्ति ने कहा है कि सबरीमाला मंदिर में प्रवेश को लेकर महिलाओं की सुप्रीम कोर्ट में अर्जी से भगवान कुपित हो गये और केरल को अतिवृष्टि में डुबो दिया। डायन कहकर लड़कियों और औरतों को मार देना, या उनकी बीमारी ठीक करने के नाम पर उनका बलात्कार कर देना- अंधविश्वासों के चलते ही ऐसे अत्याचार थम नहीं रहे हैं। अपनी मूल जीवन-संस्कृति को विरूप करना, अवैज्ञानिक मान्यताओं को बनाए रखना, लोक परंपराओं को धार्मिक जकड़ में फंसा लेना भी उसी तरह की कोशिशें हैं। ऐसे में डॉ दाभोलकर का मिशन भारतीय समाज के लिए एक वरदान बन कर आता है।
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