गरीब किसानों के लिए मशरूम बना आय का साधन
- लगातार बढ़ रही है मशरूम की मांग। - सन 2004 में प्रांजल बरूह ने 'मशरूम डेवलपमेंंट फाउंडेशन' की नीव रखी। - फाउंडेशन का मकसद मशरूम की खेती द्वारा गरीब व छोटे किसानों की आय बढ़ाना है।
पिछले कुछ वर्षों में एकाएक मशरूम की खेती में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। दुनिया के हर कोने में मशरूम खाने वालों की संख्या में भी लगातार बढ़ रही है। मशरूम के साथ सबसे बड़ी खासियत यह है कि मशरूम को कई सब्जियों के साथ मिलाकर कई प्रकार के व्यंजन तैयार किए जा सकते हैं। मशरूम जहां स्टार्टर के कई व्यंजनों में इस्तेमाल किया जाता है वहीं मेन कोर्स में भी यह अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। कई ऐसे व्यंजन हैं जिनमें मशरूम डालकर आप उस व्यंजन का जायका और बढ़ा सकते हैं। मशरूम प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। मोटापा कम करने के लिए अधिकांश लोग प्रोटीन डाइट लेते हैं उनके लिए मशरूम काफी लाभदायक रहता है। यह एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक है जोकि कई तरह से शरीर को फायदा पहुंचाता है। मशरूम में विटामिन, मिनरल और फाइबर होता है। इसमें फैट, कार्बोहाइड्रेट और शुगर नहीं होता इसलिए मधुमेह के मरीज़ों के लिए भी यह लाभकारी है। अपने गुणों की वजह से मशरूम एक गुणकारी खाद्य है। यह भारत के कई गरीब किसानों की आय का भी मुख्य स्त्रोत है और भारत के नॉर्थ ईस्ट में रहने वाले किसानों के रोजगार का यह बहुत बढिय़ा जरिया है।
भारत में मशरूम की मांग 25 प्रतिशत के हिसाब से प्रतिवर्ष बढ़ रही है और इस तेजी से बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सन 1994 में प्रांजल बरूह ने मशरूम की खेती करनी शुरू की और धीरे धीरे उनकी आय बढऩे लगी लेकिन मांग लगातार बढ़ती जा रही थी। इतनी कि अकेले उनके द्वारा इस मांग की पूर्ति संभव नज़र नहीं आ रही थी। तब उन्होंने सोचा क्यों न वे बाकी गरीब किसानों को भी मशरूम की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे उन्हें मुनाफा भी होगा और सभी की जिंदगी में सुधार आएगा।
सन 2004 में प्रांजल बरूह ने 'मशरूम डेवलपमेंंट फाउंडेशन' की नीव रखी। फाउंडेशन का मकसद मशरूम की खेती द्वारा गरीब व छोटे किसानों की आय बढ़ाना था और उन्हें इस काम में साथ लाना था। खेती द्वारा किसान थोड़ा बहुत ही मुनाफा कमा पा रहे थे और वो भी सुनिश्चित नहीं था क्योंकि बाजार के भाव पर और मांग पर किसानों की मर्जी नहीं थी इसलिए उनकी आय का भी भरोसा नहीं था। कभी वे अच्छा कमाते तो कभी उन्हें नुक्सान हो जाता। यह किसान इतने गरीब थे कि नुक्सान को भी नहीं झेल पा रहे थे। इसलिए जरूरी था कि इन्हें ऐसे काम में लगाया जाए जिस उत्पाद की मांग लगातार बढ़ रही हो।
ऐसे में मशरूम की खेती के बाद इनकी आय का एक स्रोत तो पक्का हो ही गया। लेकिन मशरूम की खेती अन्य खेती से अलग है। मशरूम की खेती पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। इसके लिए थोड़ा बहुत तकनीकी ज्ञान होना भी जरूरी है। एमडीएफ किसानों को मशरूम की खेती करने की ट्रेनिंग देता है साथ ही अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मिजोरम में भी मशरूम की खेती में लगी संस्थाओं और एंटरप्रन्योर्स की मदद करता है। इसके अलावा प्रांजल इन इलाकों के किसानों को मशरूम की खेती करने के लिए जागरूक भी करते हैं और उन्हें इसके फायदे के बारे में बताते हैं कि किस प्रकार मशरूम के द्वारा वे लोग अपनी जिंदगी को बेहतर बना सकते हैं। विडियो फिल्म के द्वारा भी किसानों को जागरूक किया जाता है।
प्रांजल ने प्रोटीन फूड नाम की एक लैबोरट्री भी खोली है जहां मशरूम पर शोध कार्य होता है। मशरूम उत्पादन के बेहतरीन मॉडल्स पर काम किया जाता है। लैब में 1000 पैकट स्पॉन्स भी प्रतिदिन बनाया जाता है और यहां एक सीजन में स्पॉन्स के 4 लाख पैकेट बनाने की क्षमता है। इसके अलावा यहां मशरूम की विभिन्न वैराइटीज पर काम किया जाता है ताकि उत्पादन आसान और अधिक हो। एमडीएफ ने शुरूआत से लेकर अभी तक कभी पीछे नहीं देखा यह लगातार आगे की ओर बढ़ती जा रही है। प्रांजल बताते हैं कि वे अभी तक 37 जिलों और 800 गांवों में काम करके 20 हजार से ज्यादा किसानों को मशरूम की खेती के लिए तैयार कर चुके हैं। साथ ही हजारों किसानों की आय भी मशरूम की खेती से लगभग दोगुना कर चुके हैं। क्योंकि अब सब जान गए हैं कि आने वाले समय में मशरूम की मांग और बढ़ेगी। इसलिए अब ज्यादा से ज्यादा किसान प्रांजल के साथ जुडऩा चाहते हैं ताकि मशरूम की खेती को और बढ़ा सकें।