बच्चों की कहानियों के प्रकाशन का एक प्लेटफॉर्म है ‘लुक इट्स मी’
बच्चों के लिए कहानी गढ़ने की नई कला7 अलग-अलग तरह की कहानियांँ2 बिलियन डॉलर का भारतीय प्रकाशन उद्योग
कहानी कहने का फन हर किसी के पास नहीं होता, यही वजह है कि आज के दौर में ये कला धीरे धीरे खत्म हो रही है। जब हम किताब पढ़ते हैं तो हम उस कहानी के जरिये कल्पना की उड़ान में खो जाते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए शिवानी नारायण चंद्रन ‘लुक इट्स मी’ को सबके सामने लेकर आई हैं। ये बच्चों की कहानियों के प्रकाशन का एक प्लेटफॉर्म है। जहां कहानियों में बच्चे ही अलग अलग तरह के पात्र की भूमिका निभाते हैं। ऐसा करने से बच्चों में कहानियों की पढ़ने की आदत बचपन से ही शुरू हो जाती है।
शिवानी के मुताबिक “मैं अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए उत्सकु रहती थी। मैं किसी के लिए काम करने की जगह कोई कोर्स शुरू कर सकती थी। एक दिन मेरे एक दोस्त की बेटी हुई तो मैं उसके लिए उपहार देखने लगी, इसके लिए मैंने अपनी दोस्त शिवानी को फोन किया तो उसने सलाह दी कि कोई ऐसा उपहार दो जो व्यक्तिगत हो। मुझे उसकी ये राय पसंद आई क्योंकि तभी उस उपहार का सही इस्तेमाल हो सकेगा साथ ही उपहार प्राप्त करने वाले को भी खुशी होगी।”
शिवानी ने अपने विचारों को मूर्त रूप देने का फैसला दो साल पहले किया जब उनकी मुलाकात शीतल पारख और शिरीन वाटवानी से हुई। ये चेन्नई में ग्रॉफिक डिजाइनर फर्म की मालिक थी। इस दौरान इनकी कई बार चाय पर बैठके हुईँ। फिर जल्द ही दोनों ने शिवानी के विचारों को हकीकत में बदलने का काम शुरू कर दिया। ‘लुक इट्स मी’ दरअसल शीतल ने दिया था। शिवानी के मुताबिक ये सभी लोग शीतल के घर सोफे में बैठकर इस मसले पर ना सिर्फ चर्चा कर रहे थे बल्कि चाय की चुस्कियों का मजा भी ले रहे थे। गंभीरता से चल रही इस बातचीत में शीतल ने कहा कि लुक इट्स मी ? बस यहीं से ये नाम हम लोगों ने उठा लिया। हम लोगों ने विचार किया कि अगर कोई बच्चा किताब देखे तो वो उसे देखते ही बोले की हे लुक इट्स मी।
‘लुक इट्स मी’ के पास बच्चों की कई किताबों का संग्रह है ये ऐसी किताबें हैं जिनमें पात्रों को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। जैसे ही कोई ग्राहक वेबसाइट पर आता है उसे किताब के साथ बच्चे का नाम देकर उसके चरित्र का भी चयन करना होता है। साथ ही उसे नाम और दूसरी जानकारियाँ जैसे बच्चे का लिंग और जन्म तारीख भी बतानी होती है। इसके बाद किताब को प्रिटिंग के लिए भेज दिया जाता है जहां से उसे ग्राहक तक पहुंचाने के लिए कोरियर की मदद ली जाती है। अब तक इन लोगों के पास 7 तरह की शानदार कहानियां हैं जिनको ये औसतन 1150 रुपये प्रति किताब के हिसाब से बेचते हैं।
फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले के मुताबिक भारतीय प्रकाशन उद्योग करीब 2 बिलियन डॉलर का है। इनमें से 600 मिलियन डॉलर का बाजार बच्चों की किताबों का है। भारतीय प्रकाशन उद्योग में बच्चों की कहानियों की किताबों का ये कारोबार हर साल 20 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ रहा है। ब्रिटेन में छह साल से कम उम्र के बच्चों के पास औसतन छह किताबें होती हैं जबकि भारत में सौ बच्चों के पास केवल तीन किताबें ही होती हैं। इस तरह ये करीब 19900 प्रतिशत का अंतर है।
भारत में बच्चों की किताबों का बाजार काफी बड़ा है। इन लोगों का मानना है कि ‘लुक इट्स मी’ के पास इस बढ़ते बाजार को भुनाने के काफी मौके हैं। इन लोगों के मुताबिक आगे बढ़ने के लिए काफी मौके होते हैं लेकिन बाधाएँ भी उतनी होती है। यही वजह है कि हर समस्या का समाधान संभव है अगर कोई दिक्कत हो तो हमें एक मार्ग पर चलना चाहिए अगर काम ना बने तो दूसरे का इस्तेमाल करना चाहिए और अगर इस रास्ते में भी दिक्कत हो तो तीसरा रास्ता लेना चाहिए। ऐसा करने से आप मंज़िल तक पहुंच ही जाएंगे। इस दौरान चलते चलते काफी सारे लोग ऐसे मिलेंगे जिनके पास ऐसी जानकारियाँ होंगी, जिनको आप ढूंढ रहे हैं।
मूल-आदित्य भूषण द्विवेदी