पशु-पक्षियों के लिए ममता, वात्सल्य और प्यार की देवी हैं गीता रानी
एक मासूम बच्ची दुनिया और दुनियादारी नहीं जानती थी, वह अपनों के प्यार की भूखी थी। उसे जब अपने माँ-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी, दूसरे रिश्तेदारों और इंसानों से प्यार नहीं मिला तो वो पशु-पक्षिओं से प्यार कर बैठी। ये प्यार एक तरफ़ा नहीं था, लड़की को हमेशा प्यार के बदले प्यार मिला। उन्हीं की तरह जानवर और पक्षी भी उनसे बेइंतेहा प्यार करने लगे। एक कुत्ते ने तो उनकी जान बचाते हुए अपनी जान ही दे दी। पशु-पक्षियों के इस निस्वार्थ प्यार के बदले प्यार देने और अपना जीवन पशु-पक्षियों को समर्पित करने वाली गीता रानी की कहानी बहुत ही अनोखी है। यह कहानी एक इंसान को इंसानों से मिली नफ़रत और जानवरों से मिले प्यार की कहानी है। गीता ने पशु-पक्षियों के साथ एक अपना नया जहान बसाया, जिस पर आज दुनिया रश्क करती है।
वैसे तो जानवरों और पक्षियों से इंसान का प्यार कोई नयी बात नहीं है। युगों से इंसान पशु-पक्षियों से प्यार करता रहा है। दुनिया में कई सारे लोग हैं, जो पक्षियों और जानवरों से बेहद प्यार करते हैं। कई लोगों ने कुत्ता, बिल्ली जैसे जानवरों को ऐसे अपना लिया है कि वे उन्हें अपने घर-परिवार का बेहद अहम हिस्सा मानते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो जानवरों को अपने बच्चे मानते हैं और वे उनका पालन-पोषण वैसे ही करते हैं, जैसे कि इंसानी बच्चों का किया जाता है। पशु-पक्षियों से इंसान के बेइंतेहा प्यार के कई सारे दिलचस्प किस्से भी हैं, लेकिन गीता रानी का पशु-पक्षियों से प्यार बहुत अनूठा है, बेहद निराला है। वो कई पशु-पक्षियों की देखभाल उनकी “माँ” की तरह करती हैं। उनके पास एक, दो, तीन या फिर दर्जन-भर कुत्ते नहीं, बल्कि तीन सौ से ज्यादा कुत्ते हैं। 75 बिल्लियाँ हैं। चिड़िया, मोर, तोता-मैना, कव्वे उनके घर को अपना घर समझते हैं। दिन-रात, सुबह-शाम, उठते-बैठते गीता सिर्फ और सिर्फ इन्हीं जानवरों और पक्षियों के बारे में सोचती हैं और उन्हीं के लिए काम करती हैं। वे ये कहने से ज़रा-सा भी नहीं झिझकती कि ये सारे जानवर और पक्षी उनके बच्चे हैं और वे इन सब की ‘माँ’हैं । पशु-पक्षियों के प्रति गीता की ममता, उनका प्यार-दुलार, त्याग और वात्सल्य कई लोगों के लिए कल्पना से परे है, लेकिन जीवन में गीता को दुःख और पीड़ा काफी मिली। इंसानों से प्यार नहीं, नफ़रत मिली और यही बड़ी वजह भी रही कि उन्होंने पशु-पक्षियों से प्यार किया, उन्हीं के लिए अपना जीवन भी समर्पित किया। बड़ी बात ये भी है कि पैदाइश से ही इंसानों के प्यार से वंचित रहीं गीता ने होश संभालते ही पशु-पक्षियों में प्यार ढूँढना शुरू कर दिया था।
गीता की कहानी केरल के वायनाड से शुरू होती हैं। गीता के पिता विजयन केरल के वायनाड के रहने वाले थे और उनकी मातृ भाषा मलयालम थी। विजयन पिल्लई जाति के थे और उनके पिता यानी गीता के दादा के पास करोड़ों रुपयों की ज़मीन-जायदाद थी। 100 एकड़ से ज्यादा ज़मीन के मालिक थे। बड़ा कॉफ़ी एस्टेट भी था उनके पास। गीता की माँ मल्लिगा तमिलनाडु के शिवकाशी की थी और उनकी मातृ भाषा तमिल थी। मल्लिगा नाडार जाति की थीं और उनके माता-पिता भी खूब रईस और रसूक़दार थे।
विजयन और मल्लिगा की मुलाकात चेन्नई में हुई थी, जहाँ दोनों बीकॉम पढ़ने अपने-अपने शहर से आये थे। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान विजयन और मल्लिगा को एक दूसरे से प्यार हो गया और दोनों से शादी करने का फैसला किया, लेकिन दोनों के परिवारवाले शादी के लिए राज़ी नहीं हुए। दोनों परिवार अंतर-जातीय विवाह के खिलाफ थे। दोनों परिवारों के रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज में बहुत फर्क था। विजयन और मल्लिगा की लाख कोशिशों के बावजूद दोनों के परिवारवाले शादी के लिए राज़ी नहीं हुए, लेकिन विजयन और मल्लिगा का प्यार इतना गहरा था कि दोनों ने अपने-अपने परिवारों की मर्ज़ी के खिलाफ़ शादी कर ली।
शादी के बाद विजयन और मल्लिगा पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। उनके सारे सपनों और उम्मीदों पर पानी फिर गया। चूँकि सभी इस शादी के खिलाफ़ थे, दोनों परिवारों ने विजयन और मल्लिगा को अपने घर में जगह नहीं दी। उन्हें घर-परिवार से बेदख़ल कर दिया गया। विजयन और मल्लिगा ने अपने-अपने माता-पिता और भाई-बहनों से दूर जाकर तमिलनाडु के पोल्लाची टाउन में अपना घर बसाया। गीता विजयन और मल्लिगा की पहली संतान थीं। गीता के जन्म के बाद विजयन और मल्लिगा को लगा कि संतान की वजह से उनके माता-पिता का गुस्सा ठंडा पड़ जाएगा और वे उन्हें वापस अपना लेंगे। गीता के जन्म के बाद विजयन और मल्लिगा का अपने-अपने माता-पिता के घर आना-जाना तो शुरू हुआ, लेकिन वे अपने परिवारवालों की नाराज़गी को दूर नहीं कर पाए। इस नाराज़गी का शिकार गीता भी हुईं। जब कभी गीता अपने दादा-दादी के यहाँ जातीं, कोई भी उससे प्यार नहीं करता। सभी उससे नफरत करते। दूसरे बच्चों को भी गीता के साथ खेलने के लिए सख़्त मनाही थी। मार के डर से कोई भी लड़का या लड़की गीता के साथ खेलने तो तैयार नहीं होते। प्यार करना तो दूर, दादा-दादी और दूसरे रिश्तेदार जैसे ही उन्हें देखते, डांटना और फटकारना शुरू कर देते। नन्ही गीता ये समझ ही नहीं पातीं कि आखिर उन्हीं के साथ ऐसा दुर्व्यवहार क्यों किया जा रहा है।
दादा-दादी के फार्म-हौज़ में 12 कुत्ते थे। चूँकि साथ में खेलने-कूदने वाला कोई नहीं था और जब इनसान दोस्त नहीं नहीं रहे तो गीता ने इन्हीं कुत्तों से दोस्ती कर ली। दोस्ती दिन-ब-दिन पक्की और गहरी और मज़बूत होती गयी। दोस्ती ऐसी कि कुत्ते गीता की हर बात मानते, उनके इशारों पर उछलते-कूदते। ये कुत्ते बाकी सभी लोगों को देखकर भौंकते और उन पर झपटे मारते, लेकिन गीता के साथ उनका प्यार और दुलार देखने लायक होता। गीता ने घर के उन कुत्तों के अलावा जंगल के जानवरों और पक्षियों से भी दोस्ती कर ली। दादा के मकान से कुछ दूर पर ही एक जंगल था। गीता को अपने दादा-दादी के घर में रहना पसंद नहीं था। इसी वजह से सुबह उठते ही वे अकेले जंगल की ओर चली जातीं। गीता ने जंगल में जानवरों और पक्षियों से दोस्ती कर ली। वे दिन-भर जंगल में बंदरों, तोता-मैना, चिड़िया, कव्वों, गिलहरियों, तितलियों, खरगोशों के साथ खेलतीं। ख़ास बात तो ये है कि गीता को जंगली जानवरों से ख़तरों के बारे में मालूम नहीं था और वो जंगल में जिस किसी जानवर या पक्षी को देखतीं, उससे दोस्ती करने की सोचतीं। इसी फितरत के कारण उन्होंने सापों को भी अपना दोस्त बना लिया था। दिन-भर जंगल में अपने दोस्तों के साथ खेलने के बाद शाम को वे घर लौट आतीं।
छोटी-सी उम्र में ही गीता को जानवरों और पक्षियों से प्यार हो गया। वे कहती हैं, “किसी ने भी मुझे प्यार नहीं किया। सभी रिश्तेदार मुझसे नफरत करते थे। माता-पिता ने भी मुझे कभी वो प्यार नहीं दिया जो कि एक बेटी के नाते मुझे मिलना चाहिए था। इंसानों से जो प्यार मुझे नहीं मिला, वो प्यार मुझे जानवरों और पक्षियों से मिला। इसी वजह से मैंने भी उन्हीं से प्यार किया।”
माता-पिता की बेरुख़ी और नफरत की वजह ये थी कि गीता की वजह से भी परिवारवालों से दोनों से संबंध सुधर नहीं पाए थे। विजयन और मल्लिगा को अपनी बेटी से ये उम्मीद थी कि वह परिवारवालों का गुस्सा और नाराज़गी दूर करेगी, लेकिन सब कुछ उम्मीद के उलट हुआ। गीता के जन्म के बाद दोनों के परिवार वाले विजयन और मल्लिगा से और भी नफ़रत करने लगे। इतना ही नहीं, शादी के बाद विजयन और मल्लिगा का रिश्ता भी पहले जैसा नहीं रहा। दोनों में अक्सर छोटी-छोटी बातों को लेकर झगड़े होने लगे। बुरे हालात के लिए विजयन और मल्लिगा एक दूसरे को दोष देते और आपस में लड़ते-झगड़ते। इस लड़ाई-झगड़े में गीता प्यार से वंचित रह गयीं, लेकिन गीता ने जानवरों में ही अपना प्यार ढूँढा। चूँकि जंगल पास नहीं था, गीता ने शहरों के जानवरों और पक्षियों से दोस्ती की। अब आवारा कुत्ते, बिल्लियाँ, मुर्गा-मुर्गी, चिड़िया, कव्वे ये सभी उनके दोस्त थे। गीता अपना ज्यादातर समय इन्हीं जानवरों और पक्षियों के साथ बितातीं।
गीता अपने घर से खाना ले जाकर बीमार और घायल कुत्तों-बिल्लियों को भी खिलातीं। माता-पिता को गीता का जानवरों और पक्षियों से ये प्यार बहुत विचित्र लगता, लेकिन वे अपनी परेशानियों में ही इतने ज्यादा उलझे रहते कि उन्हें इस प्यार का कारण जानने की फ़ुरसत ही नहीं मिली।
गीता ने घर में डाशहण्ड नस्ल का एक कुत्ता घर में भी पाल लिया था। गीता इस कुत्ते को प्यार से ‘ब्लेकी’ बुलाती थीं। एक दिन पिता को ये पता चला कि गीता घर से खाना ले जाकर कुत्तों और बिल्लियों को खिला रही हैं, तब उन्होंने गुस्से में गीता को पीटना शुरू किया। ये देखकर ब्लेकी गीता का बीच-बचाव करने चला आया। अपने पिता के हाथों बेल्ट से मार खा रहीं गीता से ब्लेकी लिपट गया। ब्लेकी को भी बेल्ट से खूब मार पड़ी। इस मार की वजह से ब्लेकी इतना ज़ख़्मी हुआ कि अगले दिन उसने दम तोड़ दिया। ब्लेकी ने जिस तरह से बचाने की कोशिश की थी, उसे देखकर गीता को लगा कि सच्चा प्यार जानवर ही करते हैं। उन्होंने ठान ली कि वे जानवरों से ही प्यार करेंगी और चाहे कुछ भी हो जाए वो जानवरों की मदद करती रहेंगी।
ब्लेकी की मौत के बाद कई दिनों तक गीता ने किसी जानवर या पक्षी को अपने घर नहीं लाया, लेकिन वे घर के बाहर जानवरों और पक्षियों से मिलती रहीं, उनकी सेवा करती रहीं। गीता जहाँ कहीं किसी जानवर या पक्षी को ज़ख़्मी और बुरी हालात में देखतीं तो वे उसकी मदद करतीं और सुरक्षित जगह पहुँचाकर ही अपने घर लौटतीं।
गीता की ज़िंदगी में दुःख और पीड़ा देने वाली घटनाएँ बहुत हैं। परिवार में कभी सुख-शान्ति नहीं रही। घर में हमेशा रुपयों की किल्लत बनी रही। माँ-बाप के झगड़े कभी ख़त्म नहीं हुए। गीता के बाद विजयन और मल्लिका को तीन और बच्चे हुए – दो लड़कियाँ और एक लड़का। विजयन और मल्लिका – दोनों के काम करने के बावजूद कमाई इतनी नहीं हो पाती कि घर-परिवार की सारी ज़रूरतें पूरी की जा सके। विजयन और मल्लिका को सबसे बड़ा सदमा उस समय पहुंचा जब उनका एकलौता बेटा एक दुर्घटना का शिकार हो गया। विजयन और मल्लिगा को अपने बेटे से बहुत उम्मीदें थीं। दोनों को लगता था कि बेटा बड़ा होकर खूब कमाएगा और घर-परिवार की सारी समस्याओं को हमेशा के लिए दूर करेगा, लेकिन जब उनका बेटा कमाने के लिए तैयार हुआ ही था कि उसकी एक दुर्घटना में मौत हो गयी। दुर्घटना के समय विजयन और मल्लिका के बेटे की उम्र महज़ 21 साल थी।
गीता ने तरह-तरह की मुसीबतों और परेशानियों के बीच किसी तरह अपनी दसवीं और बारहवीं की पढ़ाई पूरी कर ली थी। उन्होंने कोयम्बतूर के होम साइंस कॉलेज में बीकॉम कोर्स में दाख़िला भी ले लिए था, लेकिन घर के हालात इतने बुरे हो गए कि उन्हें डिग्री की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर नौकरी करनी पड़ी। गीता ने बतौर टेलीफोन ऑपरेटर काम करना शुरू किया। गीता की तनख्वाह से भी घर-परिवार की परेशानियाँ दूर नहीं हुईं।
इसी बीच उनकी शादी मनोहर से हुई, जोकि एक मामूली नौकरी करते थे। शादी के बाद जब मनोहर को अपनी पत्नी गीता के जानवरों और पक्षियों से प्रेम के बारे में पता चला तो वे भी दंग रह गए। उन्हें ये जानकर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि उनकी पत्नी कुत्तों, बिल्लियों, कव्वों जैसे जानवरों के साथ खेलती-कूदती हैं और उन्हें हर रोज़ खाना देती हैं। पति ने गीता को ये सब बंद करने और अपने दफ्तर और घर-परिवार के काम पर ध्यान देने को कहा, लेकिन गीता का प्यार कुछ इस तरह परवान चढ़ चुका था कि वे अगर जानवरों और पक्षियों को छोड़ भी देतीं तो जानवर-पक्षी उनका साथ छोड़ने को तैयार नहीं थे।
पति के आश्चर्य की सीमाएँ उस समय हदें पार गयीं जब दो बच्चों की माँ बनने के बाद भी गीता का जानवरों और पक्षियों से प्यार बिलकुल कम नहीं हुआ। इतना ही नहीं अब कई जानवर और पक्षी गीता के घर भी आने लगे और गीता उन्हें अपने साथ ही रखने लगीं। गीता इन जानवरों और पक्षियों को उसी तरह से प्यार-दुलार करतीं जिस तरह वे अपने दो बच्चों का करतीं। ये सब पति से देखा नहीं जा रहा था और दिन-बी-दिन घर में लगातार बढ़ती जानवरों और पक्षियों की संख्या से उनकी बेचैनी और परेशानी भी बढ़ रही थी। उन्होंने गीता से ये सब प्यार-मोहब्बत बंद करने और जानवरों और पक्षियों को घर-परिवार से दूर रखने की सख़्त हिदायत दी। जब इस हिदायत का गीता पर कोई असर नहीं हुआ तो उन्होंने घर छोड़कर चले जाने की भी धमकी दी। गीता ने अपने पति को अपने प्यार के बार के समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने और एक दिन हमेशा के लिए घर छोड़कर चले गए।इसके बाद अपने बेटे प्रवीन कुमार और बेटी स्वप्ना के पालन-पोषण और पढ़ाई-लिखाई की सारी ज़िम्मेदारी गीता के कन्धों पर आ गयी। गीता ने नौकरी की और माता-पिता दोनों की भूमिका और जिम्मेदारियाँ खूब ही निभायी।
गीता ने जानवरों और पक्षियों से अपना प्यार, दोस्ती बनाये रखते हुए अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया और आगे बढ़ाया। घर पर उनके हमेशा कुत्तों, बिल्लियों, मुर्गा-मुर्गियों का जमावड़ा रहता। आते-जाते रास्ते में वे जहाँ-कहीं किसी जानवर को घायल या फिर बुरी हालात में देखतीं तो उसे अपने घर ले आतीं और उसका इलाज करवातीं। जानवरों और पक्षियों को वे उसी प्यार-दुलार से पालतीं जैसा वे अपने दोनों बच्चों को पाल रहीं थी। आस-पड़ोस के लोग भी जानवरों-पक्षियों और गीता का आपस में प्यार देखकर हैरान-परेशान रहते।
आगे चलकर गीता ने जब अपने बच्चों की शादी कर दी तब वे उनका घर-परिवार छोड़कर चली गयीं। उन्होंने कोयम्बतूर के रक्किपाल्यम इलाके में बीमार, ज़ख़्मी और भूखे जानवरों के लिए एक शेल्टर/पनाहगाह बनाया। चूँकि ये पनाहगाह रिहायशी इल्लाके में था और कुत्तों की दिन-रात की भौ-भौ और बिल्लियों की मियाऊँ-मियाऊँ से आसपड़ोस के लोग परेशान होने लगे थे, गीता को नया ठिकाना ढूँढना पड़ा।
गीता ने कोयम्बतूर से करीब बीस किलोमीटर दूर पेरियामड्डमपालेम इलाके में एक पहाड़ी के नीचे जानवरों का आशियाना बसाया, लेकिन एक दिन आयी भयानक आंधी से जानवरों के झोपड़े उजड़ गये। गीता को अहसास हो गया कि पहाड़ी के नीचे की जगह जानवरों के लिए महफूज़ नहीं है। उन्होंने जानवरों के लिए एक बढ़िया और सुरक्षित जगह ढूँढनी शुरू कर दी। खोज-बीन चल ही रही थी कि एक पशु-प्रेमी गीता की मदद करने के लिए आगे आये। उन्होंने पेरियामड्डमपालेम इलाके में ही अपना बंगला गीता को किराए पर दे दिया। इसी बंगले में गीता पिछले 12 सालों से ‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ नाम से जानवरों और पक्षियों का पनाहगाह चला रही हैं।
‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ में इस समय 300 से ज्यादा कुत्ते और 75 बिल्लियाँ हैं। ‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ में हर दिन कई सारे पक्षी – मोर, चिड़ियाँ, तोता-मैना भी आते-जाते रहते हैं। गीता इनका भी ख्याल रखती हैं। दिलचस्प बात ये है कि सभी जानवरों और पक्षियों के भोजन का समय निर्धारित है। शाम होते ही आसपास के सभी कव्वे ‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ आ जाते हैं। पेट-भर अपना खाना खाने के बाद ये कव्वे चले जाते हैं। इसी तरह मोर और चिड़ियों का भी अपना तय समय है। गीता ने बताया,‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ में जानवरों और पक्षियों के लिए हर दिन 80 किलो का चावल पकाया जाता है। इसके अलावा मुर्गी के करीब 300 अंडों, ब्रेड, बिस्कुट का भी इस्तेमाल होता है।
‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ में हर दिन जानवरों और पक्षियों के खान-पान के लिए दो से तीन हज़ार रुपयों का खर्च आता है। यानी महीने भर का क़रीब एक लाख रुपया। बीमार और ज़ख़्मी जानवरों के इलाज के लिए डाक्टर बुलाये जाते हैं। खबर मिलने पर गीता ‘एम्बुलेंस’ ले जाकर अलग-अलग जगहों से बीमार, ज़ख़्मी, भूखे, लावारिस और आवारा कुत्तों और दूसरे जानवरों को अपने यहाँ ले आती हैं। कई लोग अपने बीमार कुत्तों को भी यहाँ इलाज और देखभाल के लिए छोड़ जाते हैं। जानवरों और पक्षियों के लिए ज़रूरी चावल गीता सरकारी राशन की दुकान से पांच रुपये प्रति किलो के हिसाब से ख़रीदीती हैं।
ये पूछे जाने पर कि जानवरों और पक्षियों की देखभाल के लिए वे इतनी बड़ी रकम कहाँ से जुटा पाती हैं, गीता ने कहा,“मेरे दादा और नानी दोनों बहुत ही रईस थे। भले ही उन लोगों ने मेरे माता-पिता को नहीं अपनाया, लेकिन जब उनकी संपत्ति का बंटवारा हुआ तब मेरे माता-पिता के हिस्से में आयी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा मुझे भी मिला। मेरे हिस्से में जो संपत्ति आयी वो भी बहुत बड़ी है और इसी संपत्ति से मिलने वाले ब्याज़ से मैं ये शेल्टर चला रही हूँ। कई एनिमल लवर भी मुझे रुपये और सामान देकर जाते हैं। मुझे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं हुई।” एक बड़ी बात गीता ने ये भी बताई कि उनके हिस्से की अच्छी ख़ासी ज़मीन-जायदाद है।
‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ शुरू करने के बाद भी दुःख और पीड़ा ने गीता का साथ नहीं छोड़ा। जानवरों-पक्षियों को ही अपनी संतान मानकर जीना शुरू करने वाली गीता के बेटे प्रवीण की जवानी में ही मौत हो गयी। ये मौत भी उस समय हुई जब एक फोटोग्राफर के तौर पर प्रवीण अपना कारोबार जमा चुके थे। प्रवीण पीलिया का शिकार हुए। बेटे की मौत के बाद बहु और दो पोतों की ज़िम्मेदारी गीता पर आ गयी। गीता ने बहु और दोनों पोतों की ज़िम्मेदारी ली और उन्हें अच्छे से बसाया और जमाया। गीता ने अपनी बेटी स्वप्ना की शादी भी अच्छे घर-परिवार में करवाई। बेटी और बहु दोनों अब मज़े में हैं।
बहु और बेटी दोनों गीता से उनके यहाँ आकर रहने की गुज़ारिश करते रहते हैं, लेकिन गीता जानवरों और पक्षियों को छोड़कर कहीं जाने के लिए तैयार ही नहीं होतीं। वे कहती हैं, “मैं जानती हूँ कि वे मुझे अपने पास क्यों बुलाती हैं। वे जानती हैं कि मेरे पास कितनी धन-दौलत है। उनके पास जाऊँगी तो वे बस इसी दौलत की मांग करेंगी। मैं उनसे कहती हूँ कि मेरे लिए ये जानवर ही अच्छे हैं, जो सिर्फ प्यार मांगते हैं।” गीता ने ये भी कहा, “मुझे कभी भी किसी भी इंसान से प्यार नहीं मिला। न मेरे दादा-दादी ने मुझसे प्यार किया न नाना-नानी ने। माता-पिता हमेशा लड़ते-झगड़ते ही रहे। भाई-बहन भी वैसे ही रहे। बेटा-बेटी को मेरी दौलत से प्यार था। मुझे जानवरों और पक्षियों ने बिना किसी चाह और उम्मीद से प्यार किया। मैंने भी उनके प्यार के बदले प्यार दिया। ये जानवर और पक्षी ही मेरे लिए मेरी संतान हैं।”
जानवरों और पक्षियों से इस अनूठे प्यार से कुछ लोग इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने गीता पर शार्ट-फिल्म और डाक्यूमेंट्री भी बनाई। शार्ट-फिल्म और डाक्यूमेंट्री की वजह से गीता काफी लोकप्रिय और प्रसिद्ध भी हुईं । उनके सेवा-कार्य को पहचान मिली। पशु-संरक्षण संस्थाओं के अलावा कई अन्य संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया, अवार्ड दिए।
एक सवाल के जवाब में गीता ने कहा, “मैं इस बात की वजह नहीं जानती कि मुझे प्यार करने वाला इंसान क्यों नहीं मिला। ना जाने क्यों मुझे ये भी लगता है कि ज्यादातर इंसान किसी चीज़ की उम्मीद में ही दूसरे से प्यार करते हैं। बिना किसी चाह के कोई किसी से प्यार नहीं करता। मैं ऐसा नहीं कहती कि सभी लोग ऐसे ही हैं, लेकिन मुझे लगता है कि ज्यादातर लोग ऐसे ही हैं। अगर जानवरों की बात करें, तो मैं गारंटी के साथ कह सकती हूँ कि जानवरों और पक्षियों का प्यार सच्चा प्यार है। उनका प्यार निस्वार्थ है। जानवर और पक्षी बहुत भावुक, आज्ञाकारी उदार और वफ़ादार होते हैं। इतने अच्छे गुण एक इंसान में कम ही देखने को मिलते हैं।”
दिलचस्प बात ये है कि 300 से ज्यादा कुत्तों और 75 बिल्लियाँ होने के बावजूद गीता सभी का नाम जानती हैं। इनमें से ज्यादातर को गीता ने ही नाम दिया है। वे कहती हैं, “ये मेरे बच्चे हैं, कोई माँ अपने बच्चों का नाम थोड़े ही भूल सकती है।” गीता ने ये भी बताया कि उन्होंने कई कुत्तों और बिल्लियों का नाम उस जगह के नाम पर रखा है जहाँ से उन्हें लाया गया है। उदाहरण देते हुए उन्होंने इस कुत्ते की ओर इशारा करते हुए कहा “ये कुत्ता हमें ज़ख़्मी हालत में तूटीयल्लूर नाम की जगह से मिला था, इसी वजह से मैंने इसका नाम तूटीयल्लूर रख दिया। इतने सारे लावारिस कुत्ते मेरे पास आते हैं कि उनके लिए नाम ढूँढने में मुझे मुश्किल होती है। अपनी सहूलियत के लिए मैंने ये नया तरीका इजाद किया । अगर जानवर का पहले से कोई नाम नहीं है तब जिस जगह का जानवर है उसी का नाम उस जानवर दो दिया जाएगा।”
गीता ने ‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ में ऐसी महिलाओं को काम पर रखा जिनका कोई इस दुनिया में नहीं है। गीता ने बड़ी बेरहमी से समाज द्वारा बेदख़ल कर दी गयी एचआईवी का शिकार एक महिला को भी अपने ‘स्नेहालय’ में पनाह दी है।
‘स्नेहालय’ का माहौल और नज़ारा भी गज़ब का होता है। अलग-अलग नस्लों के तरह-तरह के कुत्ते खेलते-कूदते,भौंकते नज़र आयेंगे। इस ही जगह तरह-तरह की 75 बिल्लियाँ को देखने का अनुभव भी अनोखा ही होता है। सबसे दिलचस्प नज़ारा वो होता है जब गीता इन जानवरों और पक्षियों से बात कर रही होती हैं। लोगों के लिए ये समझना बेहद मुश्किल होता है कि इंसानी ज़ुबान को न बोलने और जानने वाले जानवर और पक्षी आखिर किस तरह गीता की बातों और इशारों को समझ जाते हैं। बड़े ही उद्दंड और गुस्सैल जानवार भी गीता के सामने चुप्पी साधे रहते हैं। शायद यही प्यार है।