बिना झंझट, बिना कमीशन दूसरे शहर में ‘GrabHouse’ दिलाएगा मकान
3 दोस्तों ने मिलकर शुरू किया ‘GrabHouse’फिलहाल मुंबई में है ‘GrabHouse’10 लाख रुपये से शुरू किया ‘GrabHouse’
छोटे शहरों और कस्बों से मेट्रो शहरों में आने वाले लोगों को अक्सर सबसे बड़ी चुनौती रहने के लिए अच्छी जगह हासिल करना होती है। हालांकि ज्यादातर ये काम एस्टेट एजेंट ही करते हैं और अगर किस्मत थोड़ी मेहरबान हुई तो मेट्रो शहरों में रहने वाले किसी के रिश्तेदार जगह ढूंढने में मदद कर देते हैं, लेकिन इन दिनों इस क्षेत्र में ऑनलाइन पोर्टल महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ठीक इसी तरह जब पंखुड़ी श्रीवास्तव ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद टेक इंडिया फेलोशिप के लिए मुंबई आई तो उनको भी अच्छा घर पाने के लिये ऐसी ही अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा। तब दूसरे उद्यमियों की तरह पंखुड़ी ने ‘GrabHouse’ के दूसरे सह-संस्थापकों प्रतीक शुक्ला और अंकित सिंघल के साथ मिलकर इस समस्या का हल निकालने का फैसला लिया।
पंखुड़ी की प्रतीक से मुलाकात मुंबई में हुई थी तब दोनों की बातचीत का केंद्र, रहने के लिए अच्छे घर की तलाश मुख्य रहता था। पंखुड़ी का कहना है कि उस वक्त वो देखते थे कि कई सारे वेब पोर्टल घर की तलाश पूरी करने में मदद तो करते हैं लेकिन वो घर रहने लायक नहीं होते। ऐसे में लोगों को ब्रोकर के पास जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं दिखता। जिसके बाद उन्होने फैसला लिया कि वो इस समस्या का हल निकालेंगी जिसके बाद उन्होने ‘GrabHouse’ की स्थापना करने का फैसला लिया। इस काम में प्रतीक ने अपने बचपन के एक दोस्त अंकित को भी शामिल कर लिया।
अंकित आईआईटी दिल्ली का पूर्व छात्र था और ‘GrabHouse’ में जुड़ने से पहले वो बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी कर रहा था, जबकि प्रतीक आईआईटी कानपुर का पूर्व छात्र था और ‘Bluegape’ कंपनी की कोर टीम का हिस्सा था। इस साल जुलाई में शुरू हुआ ‘GrabHouse’ कमरे की तलाश करने वाले को कमरा देने वाले से मिलाने का काम करता है। इसके लिए अगर किसी के पास कमरा है और उसको साथी की तलाश है ताकि वो अपना अकेलापन दूर कर सके और साथ ही साथ उसके कुछ पैसे भी बच जाएं तो वो व्यक्ति वेबसाइट में जाकर अपनी जरूरत, पसंद और नापसंद के बारे में बता सकता है। इसी तरह जिस किसी को कमरे की तलाश है वो अपना नाम वेबसाइट में जाकर रजिस्टर्ड करा सकता है।
इंटरनेट के संसार में यूं तो ढेर सारी वेबसाइट इस तरह का काम कर रही हैं लेकिन ‘GrabHouse’ का काम इन सभी से थोड़ा अलग है। ये बिना ब्रोकरेज के अपनी सेवाएं देते हैं। ये ना कमरा लेने वाले से और ना कमरा देने वाले से ब्रोकरेज लेते हैं। जबकि रियल एस्टेट से जुड़े व्यवसायियों के लिए ब्रोकरेज ही आय का मुख्य स्रोत्र होता है। पंखुड़ी का मानना है कि उनके लिए ऐसा करना बड़ी चुनौती है लेकिन वो दूसरों से अलग और ग्राहकों की मदद करने के इरादे से इस मॉडल पर काम कर रहे हैं। इन लोगों की आय का मुख्य स्रोत विज्ञापन और पेड लिस्टिंग है।
‘GrabHouse’ की योजना जल्द ही मोबाइल ऐप लाने की भी है। ये लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल ना सिर्फ मार्केटिंग के लिए बल्कि लोगों को अपने साथ जोड़ने के लिए भी करते हैं। इनकी वेबसाइट में लोग संदेश के माध्यम से भी एक दूसरे साथ जुड़ सकते हैं। जब भी सिस्टम उनके ग्रहकों को आपस में जोड़ता है तो वो उपलब्धता के बारे में सूचित करता है। साथ ही संभावित रूममेट की पसंद, नापंसद और व्यवहार के बारे में जानकारी देता है जो ‘GrabHouse’ पास किसी को रजिस्टर्ड करते वक्त देनी होती है। कारोबार की दृष्टि से प्रतीक का कहना है कि नवी मुंबई काफी मुफीद जगह है जहां पर कई सारी कंपनियां आ रही हैं और यहां का बाजार धीरे धीरे बढ़ रहा है।
‘GrabHouse’ का चुनाव जीएसएफ ऐक्सेलरेटर के लिए भी हुआ है। इस बेवसाइट में 750 से ज्यादा लोग रजिस्टर्ड यूजर हैं और 65 ऐसे प्रोफाइल हैं जो मुंबई में अपने लिये रूम पार्टनर या कमरा चाहते हैं। ‘GrabHouse’ की सफलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसने अपने लांच के 15 दिनों के भीतर ही 10 लोगों को घर ढूंढने में मदद कर करीब 96 हजार रुपये बचाये। इस उद्यम की शुरूआत 10 लाख रुपये की गई थी इसके लिए इन लोगों ने परिवार और दोस्तों की मदद ली। मुंबई के बाद इन लोगों की योजना देश के दूसरों हिस्सो में भी कदम रखने की है और आने वाले सालों में इनकी योजना 50 लाख रुपये की पूंजी जुटाने की है।