बापू की जान बचाकर हीरो हो गए भीकू दाजी भिलारे
गांधी जी की जान बचाने वाले स्वतंत्रा सेनानी का निधन...
सन 1944 के उस खूनी वाकये को भीखू दाजी भिलारे कुछ इस तरह बता गए- 'पंचगनी में महात्मा गांधी की प्रार्थना सभा में सभी को भाग लेने की अनुमति दी गई थी। उस दिन, उनके सहयोगी उषा मेहता, प्यारेलाल, अरुणा असफ अली और अन्य भी प्रार्थना सभा के लिए उपस्थित थे। गोडसे ने हाथ में चाकू लिए हुए गांधीजी से कहा कि उन्हें कुछ सवाल पूछना है, लेकिन मैंने उसे रोक दिया। अपना हाथ बढ़ाकर चाकू छीन लिया, लेकिन गांधीजी ने गोडसे को जाने दिया।'
भीकू दाजी भिलारे को लोग 'गुरुजी' नाम से भी याद करते हैं। भीकू दाजी भिलारे का जन्म 26 नवंबर 1919 को हुआ था। वह सातारा जिले में क्रांतिकारी नाना पाटिल और अन्य लोगों के नेतृत्व में 'समानांतर सरकार' आंदोलन में भी सक्रिय रहे। साथ ही देश आजाद होने के बाद तीन सत्रों तक प्रदेश की विधानसभा में जवली निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया।
अमर स्वतंत्रता सेनानी भीकू दाजी भिलारे नहीं रहे। वर्ष 1944 में पद्मभूरी में नाथूराम गोडसे के हाथ से चाकू छीनकर उन्होंने महात्मा गांधी की जान बचाई थी। यद्यपि उस घटनाक्रम के बारे में जब मनीशंकर पुरोहित को जांच आयोग के सामने प्रस्तुत किया था तो उन्होंने बताया था कि वह घटना 1944 में नहीं, जुलाई 1947 में हुई। पुणे (महाराष्ट्र) के भिलार हिल स्टेशन के पास 98 साल की उम्र में निधन के बाद गत बुधवार को भिलारे के अंतिम संस्कार के समय राजनेताओं समेत बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया।
भीकू दाजी भिलारे को लोग 'गुरुजी' नाम से भी याद करते हैं। भीकू दाजी भीलारे का जन्म 26 नवंबर 1919 को हुआ था। वह सातारा जिले में क्रांतिकारी नाना पाटिल और अन्य लोगों के नेतृत्व में 'समानांतर सरकार' आंदोलन में भी सक्रिय रहे। साथ ही देश आजाद होने के बाद तीन सत्रों तक प्रदेश की विधानसभा में जवली निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया।
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की साजिश की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के जज जेके कपूर को 22 मार्च 1965 को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया था। आगा खान पैलेस में बापू को 1944 में जेल में रखा गया था। वहां से रिहाई के बाद उनको मलेरिया हो गया था। उसके बाद स्वास्थ्य लाभ के लिए बापू पंचगनी चले गए थे। वहीं पर एक दिन नाथूराम गोडसे ने बापू पर चाकू से हमला कर जान लेने की कोशिश की थी लेकिन ऐन मौके पर भिलारे ने उसके हाथ से चाकू छीनकर उसके इरादों पर पानी फेर दिया था।
महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी ने भी इस बात को माना है कि भिलारे और मणिशंकर पुरोहित ने गोडसे को उसकी योजना में सफल नहीं होने दिया था। कपूर कमीशन का इस मामले में कहना है कि 1944 की घटना की पुष्टि नहीं की जा सकती है, इस बात पर भी सवाल है कि इस तरह की कोई घटना हुई भी था या नहीं।
उस घटना के बाद पूरा सतारा क्षेत्र युवाओं के मन में भिलारे की छवि एक नायक जैसी हो गई थी। बन गए थे। युवाओं का समूह उनसे मिलने जाया करता था। भिलारे जीवन भर साधारण वेश-भूषा में गांधीवादी सिद्धांतों पर चलते रहे। सिक्किम के गवर्नर और सातारा के पूर्व पूर्व सांसद श्रीनिवास पाटिल भिलारे के करीबी थे।
मुंबई स्थित मणि भवन गांधी संग्रहालय के अध्यक्ष धीरूभाई मेहता का कहना है कि 1944 में गोडसे के एक भाई ने पंचगनी में गांधीजी पर हमले की कोशिश की थी, लेकिन इस हमले को एक युवा ने टाल दिया था। इस बात की उल्लेख गाँधीजी के करीबी प्यारेलाल ने भी अपने संस्मरण में किया है।