जंगली पौधों पर बैगन और टमाटर उगाकर तकदीर बदल रहे मध्य प्रदेश के मिश्रीलाल
ग्रॉफ्टिंग तकनीक से भोपाल के मिश्रीलाल कर रहे हैं क्रांतिकारी तरीके से सब्जियों की खेती...
अमेरिका के प्रोफेसर वॉन और भारत की लक्ष्मी एन मेनन सेन की तरह ग्राफ्टिंग विधि से मध्य प्रदेश के मिश्रीलाल एक-एक जंगली पौधे से तीन-तीन तरह की सब्जियां उगा रहे। जंगल की जमीन मुफ्त, पौधे मुफ्त, सूखा हो या बाढ़, उन सब्जियों की फसल की प्रतिरोधक क्षमता जंगली पेड़-पौधों जैसी और जैविक खेती के नाते स्वाद भी लाजवाब। तो इससे आम लोगों के साथ ही कृषि वैज्ञानिकों के भी आश्चर्य मिश्रित खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि ग्राफ्टिंग तकनीक में मदर प्लांट जंगली और तने में सब्जी के पौधे की ग्राफ्टिंग कर एक ही तने से कई तरह की सब्जियां प्राप्त की जा सकती हैं। जंगली नस्ल की होने से इनकी प्रतिरोधक क्षमता खेत की सामान्य सब्जियों से कई गुना अधिक होती है।
क्या जमाना आ गया है कि पुराने जमाने की बड़ी बड़ी कहावतें झूठी पड़ने लगी हैं। मध्य प्रदेश के कृषक मिश्रीलाल ने जो अनहोनी कर दिखाई है, निकट भविष्य में कटहल के पेड़ पर नीबू और आम के पेड़ पर टमाटर फलने लगें तो अचरज नहीं होगा। फिर तो वह कहावत भी हमे भूल जानी होगी कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय। और कहां से, यहीं से, अपने ही खेत-बगीचों, जंगलों से। अब तो वह दिन भी जैसे दूर नहीं कि बबूल की कटीली डालियों पर अमरूद लकटते दिख जाएं। मिश्रीलाल कैसा अचरज भरा कारनामा कर गुजरे हैं, उनकी दास्तान बाद में। पहले, आइए जान लेते हैं कि उनके सुखद कारनामे की राह किधर से निकली है।
कलम बांधना (ग्राफ्टिंग) उद्यानिकी की एक तकनीक है, जिसमें एक पौधे के ऊतक दूसरे पौधे के ऊतकों में प्रविष्ट कराए जाते हैं, जिससे दोनों के वाहिका ऊतक आपस में मिल जाते हैं। इस प्रकार इस विधि से अलैंगिक प्रजनन द्वारा नई नस्ल का पौधा पैदा कर दिया जाता है। ग्राफ्टिंग तकनीकि का सर्दियों के दिनों में ज्यादा असरदार होती है। कभी ऐसा ही कर गुजरते हुए न्यूयॉर्क (अमेरिका) की सेराक्यूज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वॉन के करतब पर दुनियाभर के वनस्पति विज्ञानियों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था। वह वाकया कोई ज्यादा पुराना नहीं, मई 2016 का है।
वॉन ने एक पेड़ पर चालीस अलग-अलग प्रकार के फल पैदा कर दिए, जो किसी चमत्कार से कम न था। तो वॉन ने आखिर किया क्या था, जिससे एक ही वृक्ष की शाखाओं पर चेरी भी, बेर भी और खुबानी भी लटकने लगे? दरअसल, वॉन को शुरू से ही वनस्पतियों से अथाह लगाव रहा था। एक दिन प्रोफेसर वॉन ने ग्राफ्टिंग की तकनीक का प्रयोग किया। उन्होंने विविध प्रकार के फलदार पेड़ों की टहनियों को काटकर एक पेड़ की टहनियों से जोड़ दिया। इससे पहले जुड़ने वाले हिस्सों में चीरा लगाने जैसा सुराख कर डाला था।
टहनियों को जोड़ने के बाद वॉन ने उन पर पोषक तत्वों का घोल लगाकर उन्हें बांध दिया। एक दिन उन्होंने देखा कि एक बागीचे में बेर और खुबानी के सैकड़ों फलदार पेड़ मिठास भरे फलों से लदे-फदे हैं। तुरत-फुरत में उन्होंने पूरे बगीचे को किराए पर ले लिया और आगे की कारस्तानी में जुट गए। न्यूयॉर्क स्टेट एग्रीकल्चर एक्सपेरीमेंट के सहयोग से वह अपने प्रोजेक्ट को अंजाम तक पहुंचाने में जुट गए। और दिन उन्होंने एक ऐसे फलदार पेड़ को जन्म दिया, जिस पर चालीस प्रकार के फल लगे हुए थे।
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चलो, मान लिया कि प्रोफेसर वॉन ने सचमुच एक हैरतअंगेज कामयाबी से दुनिया का दिल जीत लिया, लेकिन भारतीय ऑर्टिस्ट लक्ष्मी एन मेनन सेन के कलमी-क्रिया-कलाप ने भी उसी वर्ष कुछ कम बड़ी कामयाबी नहीं हासिल कर डाली। और तो और, उनकी वैज्ञानिक सफलता में बच्चों के साथ एक मानवीय सरोकार भी जुड़ा हुआ था। बात जुलाई 2016 की है। 'प्योर लिविंग' की संस्थापिका एवं पेपर क्राफ्ट विशेषज्ञ लक्ष्मी एन मेनन सेन फ्रांसिस्को की ऑर्ट गैलरी में आर्टिस्ट थीं। वह अनाथालय के बच्चों को ऑर्ट और क्रॉफ्ट पढ़ाती थीं।
एक दिन अचानक उनको पेपर पेन के बारे में जानकारी मिली। उसके काफी वक्त बाद जब भारत लौटीं, प्लास्टिक उत्पादों और उससे पैदा हो रहे भीषण कचरे ढेरों ने विचलित कर दिया। उसी वक्त उनके मन में यह मानवीय विचार दौड़ता रहा था कि वह अनाथ बच्चों की आखिर किस तरह मदद करें। एक दिन उन्होंने पढ़ाते समय बच्चों से कहा कि पेन पर कागज लपेटो। बच्चों ने पेन पर कागज लपेट दिए। उसके बाद उनके दिमाग में एक बड़ी कामयाबी कौंध उठी। उन्होंने सोचा कि इस तरह के पेन बाजार में बेचकर इन बच्चों की मदद की जा सकती है।
उसी वक्त उनकी खोज में एक कड़ी और जुड़ गई। उन्होंने सोचा कि पेन में बीजारोपण भी किया जा सकता है बशर्ते उसमें कैप की जगह कुछ और रोपा जा सके। उन्होंने गौर किया कि पेन के लगभग बीस-पचीस फीसदी कैप कचरे में फेंक दिए जाते हैं। जब वह भारत में थीं, केरल में ऑर्गेनिक लिविंग के एक कैम्पेन में बीजों के इस्तेमाल का विचार उनके मन में पैदा हुआ। इसके साथ ही उन्होंने एक ऐसे पेन की खोज पूरी कर डाली, जिसके लीफलेट में अगस्त्य पेड़ का बीज रोप दिया गया। गौरतलब है कि यह बीज आकार में काफी छोटा होता है। उन्होंने कलम को ‘विस्डम पेन’ नाम दिया। पेन पर मशहूर लोगों के कोट्स भी। अब इस तरह कलमी तरीके से तैयार बारह रुपए के पेन को बेचकर जो पैसा आता है, वह उन अनाथ बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर दिया जाता है।
तो, ये तो रही, प्रोफेसर वॉन और लक्ष्मी एन मेनन सेन के करिश्मों की दास्तान, अब जानते हैं, ग्रॉफ्टिंग तकनीक से भोपाल (म.प्र.) के मिश्रीलाल के सब्जियों की खेती में सुखद एवं क्रांतिकारी कारनामे को। पूरा नाम मिश्रीलाल राजपूत। महानगर के खजूरीकला इलाके में रहते हैं। ग्रॉफ्टिंग तकनीक की उन्हें थोड़ी-बहुत जानकारी थी। उन्होंने एक दिन सोचा कि क्यों न जंगल की बेकार मानी जाने वाली वनस्पतियों को जैविक तरीके से सब्जियां देने वाली खेती में तब्दील कर दिया जाए। वैसे भी जंगली पेड़-पौधे लोगों के लिए आमतौर से अनुपयोगी रहते हैं और उनकी सेहत पर मौसम का भी कोई खास असर नहीं होता है, जैसाकि आम फसलों पर प्रकृति का प्रकोप होता रहता है।
अपना यह कृषि-चिंतन उन्होंने सबसे पहले कृषि वैज्ञानिकों से बातचीत के अंदाज में साझा किया ताकि विस्तार से बाकी बातें सीखी जा सकें। जान-सीख कर यानी मामूली प्रशिक्षण लेने के बाद मिश्रीलाल ने एक दिन एक जंगली पेड़ के तने पर ग्रॉफ्टिंग से टमाटर का तना काटकर रोप दिया। फिर बैगन और मिर्च के तने अन्य जंगली पेड़ों के तनों से साध-बांध डाले। एक-दूसरे के आसपास ही एक ट्रे में जंगली पौधा, दूसरे में टमाटर, मिर्च, बैगन। जब जंगली पौधे लगभग पांच-छह इंच के हो जाते, और टमाटर, मिर्च बैगन के पौधे पंद्रह-सोलह दिन के, उनके साथ मिश्रीलाल एक-दूसरे में ग्राफ्टिंग करने में जुट जाते। इसके बाद वह ग्रॉफ्ट पौधों को लगभग दो सप्ताह तक छाया में रख देते। फिर उन्हें अन्य जहां चाहें, रोप डालते।
उन्होंने देखा कि रोपे गए ऐसे प्रति सैकड़ा पौधों में पचपन-साठ ऐसे निकल आए, जिनके एक एक पेड़ तीन-तीन तरह की सब्जियां देने लगे। इनमें बैगन और मिर्च का प्रयोग सर्वाधिक सफल रहा। कृषि वैज्ञानिकों ने जब मिश्रीलाल के करतब का अवलोकन किया तो वह भी खुशी से झूम उठे। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि ग्राफ्टिंग तकनीक में मदर प्लांट जंगली और तने में सब्जी के पौधे की ग्राफ्टिंग कर एक ही तने से कई तरह की सब्जियां प्राप्त की जा सकती हैं। जंगली नस्ल की होने से इनकी प्रतिरोधक क्षमता खेत की सामान्य सब्जियों से कई गुना अधिक होती है। साथ ही, जैविक विधि से उगने के कारण उनसे ज्यादा स्वादिष्ट भी होती हैं।
जिस तरह जंगली पौधे सूखा, ठंड, जलप्लावन, सब झेल जाते हैं, वैसे ही ताकतवर होते हैं इस विधि से पैदा की जा रही सब्जियों के तने। तो इस तरह आजकल मिश्रीलाल बैगन, टमाटर और मिर्च की एक साथ जैविक सब्जियों की खेती कर इनसे मन माफिक कमाई भी कर रहे हैं। इससे पहले वह जंगल में मूसली के बीज छिड़क कर भूल जाते कि कहीं कुछ बोया है, जिसे काटना भी है। फसल तैयार हो जाती, मूसली तैयार, जिसकी बाजार में भारी डिमांड। इसने ही उन्हें प्रयोगवादी प्रगतिशील किसान बना दिया।
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