अटपटे ऑटोग्राफ और नींबू-पानी-परचून वाले अश्क जी

साहित्यकार उपेंद्रनाथ अश्क की पुण्यतिथि पर विशेष...

अटपटे ऑटोग्राफ और नींबू-पानी-परचून वाले अश्क जी

Friday January 19, 2018,

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 प्रेमचंदोत्तर कथा-साहित्य के अमिट हस्ताक्षर उपेन्द्रनाथ अश्क की आज (19 जनवरी) पुण्यतिथि है। उनका जन्म तो जालंधर में हुआ था लेकिन कालांतर में वह जीवन पर्यंत के लिए इलाहाबाद के होकर रह गए। उनके लेखन के दौर में रह-रहकर अटपटे शोशे भी पत्रकारिता की तर्जनी से फूटते रहे, मसलन परचून वाले अश्क जी, नींबू-पानी वाले अश्क जी, लेकिन वह तनिक विचलित न होते हुए अनवरत साहित्य साधना में डूबे रहे, तभी तो इतना प्रचुर हिंदी साहित्य दे पाए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के समय वे प्रायः बीस वर्ष के नवयुवक थे...

उपेंद्र नाथ अश्क (फाइल फोटो)

उपेंद्र नाथ अश्क (फाइल फोटो)


उपेंद्रनाथ अश्क की पहचान, बहुविधावादी रचनाकार होने के बावजूद, कथाकार के रूप में रही। राष्ट्रीय आंदोलन के बेहद उथलपुथल से भरे दौर में उनका रचनात्मक विकास हुआ, जलियांवाला बाग जैसी नृशंस घटनाओं का उनके बाल मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनका गंभीर और व्यवस्थित लेखन प्रगतिशील आंदोलन के दौर में शुरू हुआ।

हिन्दी-उर्दू में प्रेमचंदोत्तर कथा-साहित्य में उपेन्द्रनाथ अश्क का योगदान मील के पत्थर की तरह माना जाता है। उन्होंने मुंशी प्रेमचंद की ही हिदायत पर हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। शुरू-शुरू में वह साप्ताहिक 'गुरु घण्टाल' के लिए हर सप्ताह एक रुपये में एक कहानी लिखकर देते थे। पहली पत्नी के देहान्त के बाद उनके जीवन ने नया मोड़ लिया। उन्होंने दूसरा शादी रचाई। फ़िल्मों में लिखने लगे। फिर यक्ष्मा से बचकर इलाहाबाद लौट गए। कहानी, उपन्यास, निबन्ध, लेख, संस्मरण, आलोचना, नाटक, एकांकी, कविताएं लिखने लगे।

उनका जन्म तो जालंधर में हुआ था लेकिन कालांतर में इलाहाबाद के होकर रह गए। उनके बचपन और युवावस्था का बड़ा हिस्सा लाहौर और जालंधर में बीता था। अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय उनकी आयु नौ वर्ष की थी। जलियांवाला बाग जैसी नृशंस घटना का उनके बाल मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के समय वे प्रायः बीस वर्ष के नवयुवक थे। इसी अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में, कांग्रेस के पूर्ण स्वराज्य का नारा दिया था। भगत सिंह और उनके सहयोगियों की क्रांतिकारी गतिविधियों की दृष्टि से भी वह बेहद उत्तेजना-भरा दौर था। इस काल के लाहौर का सफर और वहां की प्रामणिक कथाएं उनके पांच खंड़ों वाली उपन्यास श्रृखंला 'गिरती दीवारें' से 'इतिनियति' तक में कई जगह मिलती हैं।

अश्क जी के रचना संसार से ही नहीं, उनके जीवन से भी कई मजेदार बातें जुड़ी हैं। इलाहाबाद की घटना है। एक छात्रा ने उपेन्द्रनाथ अश्क से ऑटोग्राफ बही पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा। अश्क जी अपनी पुस्तकों की बिक्री में खुद रुचि लेते थे। ऑटोग्राफ बुक में लिखा- 'पुस्तकें ख़रीद कर पढ़ों-अश्क'। इसके बाद छात्र ने धर्मवीर भारती को ऑटोग्राफ देने के लिए कहा तो उन्होंने लिखा- पुस्तक ख़रीदने का पता- नीलाभ प्रकाशन, खुसरो बाग, इलाहाबाद यह पता अश्क जी के प्रकाशन संस्थान का था। अश्क जी ने इलाहाबाद में परचून की दुकान खोली।

मीडिया ने इसे उनके किसी किस्म के असंतोष या मोहभंग से जोड़ते हुए फैला दिया। परचून तक तो बात ठीक थी मगर मीडिया ने इसमें सिर्फ चूना देखा और बात चूने की दुकान तक गई। कुछ लोगों को यह चूना सचमुच लाइम नज़र आया और कुछ को नींबू। इसमें पानी और जोड़ कर फैला दिया गया कि अश्क जी इलाहाबाद में नींबू पानी बेच रहे हैं। अश्क जी को 'सोवियत लैन्ड नेहरू पुरस्कार' एवं संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित किया गया था।

अश्क का रचना-संसार अपार है। उन्होंने 'दीप जलेगा', 'चाँदनी रात और अजगर', 'बरगर की बेटी' आदि (काव्य ग्रन्थ), 'मण्टो मेरा दुश्मन', 'निबन्ध, लेख, पत्र, डायरी और विचार ग्रन्थ-'ज़्यादा अपनी कम परायी', 'रेखाएँ और चित्र' आदि संस्मरण भी लिखे। उनके दूसरे कहानी संग्रह 'औरत की फितरत' की भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने ही लिखी थी। अश्क ने इससे पहले भी बहुत कुछ लिखा था। उर्दू में 'नव-रत्न' और 'औरत की फ़ितरत' उनके दो कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके थे। प्रथम हिन्दी संग्रह 'जुदाई की शाम का गीत' की अधिकांश कहानियाँ उर्दू में छप चुकी थीं। जैसा कि अश्क जी ने स्वंय लिखा है, शुरू में उनकी कृतियाँ उतनी अच्छी नहीं लिखी जा सकी थीं। बाद में उनकी कृतियों में अदभुत रंग भरता चला गया।

'उर्दू काव्य की एक नई धारा' (आलोचक ग्रन्थ), 'जय पराजय' (ऐतिहासिक नाटक), 'पापी', 'वेश्या', 'अधिकार का रक्षक', 'लक्ष्मी का स्वागत', 'जोंक', 'पहेली' और 'आपस का समझौता', 'स्वर्ग की झलक' के अलावा कहानी संग्रह 'पिंजरा' की सभी कहानियाँ, 'छींटें' की कुछ कहानियाँ और 'प्रात प्रदीप' (कविता संग्रह) की सभी कविताएँ उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद मात्र दो ढाई साल के भीतर सृजित हुईं। उनके नाटक 'अलग अलग रास्ते' में विवाह, प्रेम, और सामाजिक प्रतिष्ठा की समस्या को प्रस्तुत किया गया है।

अश्क की पहचान, बहुविधावादी रचनाकार होने के बावजूद, कथाकार के रूप में रही। राष्ट्रीय आंदोलन के बेहद उथलपुथल से भरे दौर में उनका रचनात्मक विकास हुआ, जलियांवाला बाग जैसी नृशंस घटनाओं का उनके बाल मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनका गंभीर और व्यवस्थित लेखन प्रगतिशील आंदोलन के दौर में शुरू हुआ। उसकी आधारभूत मान्यताओं का समर्थन करने के बावजूद उन्होंने अपने को उस आंदोलन से बांधकर नहीं रखा। यद्यपि जीवन से उनके सघन जुड़ाव और परिवर्तनकामी मूल्य-चेतना के प्रति झुकाव, उस आंदोलन की ही देन थी। साहित्य में व्यक्तिवादी-कलावादी रुझानों से बचकर जीवन की समझ का शऊर और सलीका उन्होंने इसी आंदोलन से अर्जित किया।

उन्होंने रूस के प्रसिद्ध कहानीकार ऐंतन चेखव के लघु उपन्यास का 'रंग साज' नाम से, स्टीन बैंक के प्रसिद्ध उपन्यास 'आव माइस एण्ड मैन' का 'ये आदमी ये चूहे' नाम से, अमर कथाकार दॉस्त्यॉवस्की के लघु उपन्यास 'डर्टी स्टोरी' आदि का अनुवाद किया। अश्क की रचनात्मक ख्याति मुख्यत: नाटक, उपन्यास और कहानी स्थापित हुई। 'गिरती दीवार' और 'गर्म राख' हिन्दी उपन्यास के क्षेत्र में यथार्थवादी परम्परा के उपन्यास हैं। सम्पूर्ण नाटकों में 'छठा बेटा', 'अंजोदीदी' और 'क़ैद' अश्क जी की नाट्यकला के सफलतम उदाहरण हैं।

'छठा बेटा' के शिल्प में हास्य और व्यंग, 'अंजोदीदी' के स्थापत्य में व्यावहारिक रंगमंच के सफलतम तत्त्व और शिल्प का अनूठापन तथा 'क़ैद' में स्त्री का हृदयस्पर्शी चरित्र चित्रण तथा उसके रचना विधान में आधुनिक नाट्यतत्त्व की जैसी अभिव्यक्ति हुई है, उससे अश्क जी की नाट्य कला और रंगमंच के परिचय का संकेत मिलता है। एकांकी नाटकों में 'भँवर', 'चरवाहे', 'चिलमन', 'तौलिए' और 'सूखी डाली' आदि उल्लेखनीय हैं। 

उनकी प्रतिनिधि कहानियाँ हैं - अंकुर, नासुर, चट्टान, डाची, पिंजरा, गोखरू, बैगन का पौधा, मेमने, दालिये, काले साहब, बच्चे, उबाल, केप्टन रशीद आदि। उनकी कहानियां मानवीय नियति के प्रश्नों, जीवनगत विडंबनाओं, मध्यवर्गीय मनुष्य के दैनंदिन जीवन की गुत्थियों के चित्रण के कारण; नागरिक जीवन के हर पहलू संबद्ध रहने के कारण सामान्य पाठकों को अपनापे से भरी लगती हैं, उनमें राजनीतिक प्रखरता और उग्रता के अभाव से किसी तरह का खालीपन नहीं होता है।

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