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जंगल बचाने के लिए जान दांव पर लगाने वाली 'लेडी टार्जन' जमुना टुडू

2013 में जमुना को 'फिलिप्स ब्रेवरी अवाॅर्ड' से सम्मानित किया गया था और दिल्ली की एक टीम उन पर डॉक्यूमेंट्री भी बना चुकी है।

जंगल बचाने के लिए जान दांव पर लगाने वाली 'लेडी टार्जन' जमुना टुडू

Tuesday June 06, 2017 , 6 min Read

हरियाली बचाने के लिए देश में लोग कई तरह के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन क्या आप उन जमुना टुडू के बारे में जानते हैं, जिन्होंने जंगल बचाने के लिए अपनी जान तक दांव पर लगा दी...

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फोटो साभार: Gaonconnectiona12bc34de56fgmedium"/>

जमुना टुडू को लोग 'लेडी टार्जन' नाम से भी बुलाते हैं। जमुना जमशेदपुर, चाकुलिया में रहतीं हैं। वे रोज़ सुबह मुंह अंधेरे ही उठ जाती हैं और अपने साथ गांव की चार छः महिलाओं को लेकर निकल पड़ती हैं जंगल की ओर। हाथ में पानी की बोतल और मजबूत डंडे लेकर ये टीम जंगल के अंदर पहुंच जाती है। जमुना और उनकी ये टीम दोपहर तक जंगल के अंदर ही रूकती है। वे मुस्तैदी से सारे जंगल पर नज़र रखते हैं, कि कहीं कोई जंगल की अवैध कटाई तो नहीं कर रहा है।

जमुना जंगल माफियाओं से सिर्फ एक डंडे के ज़ोर पर भिड़ जाती हैं। ये औरतें बहुत बार आमने-सामने की लड़ाई में 'जंगल माफिया' से उलझीं है और लहू लुहान होकर वापस अपने गांव पहुंची हैं। फिर भी न इनके हौसले पस्त होते हैं, न ही वनों के प्रति इनकी श्रद्धा में कमी आती है। एक टीम सुबह से दोपहर तक जंगल की रखवाली करती है, तो दूसरी टीम दोपहर से रात तक और तीसरी रात से सुबह तक... जमुना और उनकी टीम अपनी जान पर खेल कर जंगल की रक्षा करती है और जंगल की अवैध कटाई पर अपने बल-बूते लगाम लगाई।

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"जमुना के गांव में बेटी पैदा होने पर 18 'साल' वृक्षों का रोपण किया जाता है और बेटी के ब्याह के वक्त 10 'साल' वृक्ष परिवार को दिए जाते हैं। रक्षाबंधन पर सारे गांव के लोग सामूहिक रूप से जंगल के वृक्षों को राखी बांधते हुए वृक्षों की रक्षा करने की शपथ लेते हैं।"

जमुना ने वन विभाग को अपने गांव से जोड़ा और वन विभाग ने सारे गांव को हाथों-हाथ लिया। वन विभाग ने गांव में स्कूल खुलवाया और पक्की सड़कों का निर्माण करवाया। जमुना ने स्कूलनलकूप के लिए अपनी ज़मीन भी दान में दे दी । 2013 में जमुना को 'फिलिप्स ब्रेवरी अवाॅर्ड' से सम्मानित किया गया। दिल्ली की एक टीम उन पर डॉक्यूमेंट्री बना चुकी है। 2014 में उनको स्त्री शक्ति अवाॅर्ड दिया गया। 2016 में उनको राष्ट्रपति द्वारा भारत की प्रथम 100 महिलाओं में चुना गया और राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया गया।

1998 में शादी कर जब जमुना ससुराल पहुंची, तो घर से 200 मीटर की दूरी पर वीरान पहाड़ देखा। 'साल' के कुछ पौधे तो थे पर उसे भी काटने के लिए लोग हर रोज जाया करते। बगल का जंगल बहुमूल्य 'साल' के पेड़ों से भरा हुआ था जिसकी अवैध कटाई जारी थी। जमुना हर दिन देखती थीं, कि कैसे सैकड़ों टन बहुमूल्य लकड़ियां वन माफिया चुराकर ले जा रहे हैं। वन विभाग तक इसकी सूचना भी नहीं पहुंच पाती थी और इक्का दुक्का मामले ही प्रकाश में आ पाते थे। जमुना ने मन में ठान लिया की वे इस तरह से वनों को नष्ट नहीं होने देंगी। जमुना एक बेहद गरीब गांव में रहती थीं, जहां बमुश्किल 20-25 घर ही थे। रहवासी बेहद गरीब और डरे हुए थे। जमुना ने लोगो को इकट्ठा किया और वनों की उपयोगिता और उनके बचाव से होने वाले लाभों से अवगत कराया। जमुना ने लोगो से कहा की उन सबको मिलकर जंगलों को कटने से रोकना होगा। हम इसकी रक्षा करेंगे। इससे हरियाली तो आएगी भविष्य में जलावन की लकड़ी में कोई कमी नहीं होगी। जमुना ने लोगों से कहा कि सबको मिलकर जंगलों को कटने से रोकना होगा। गांव के किसी भी पुरुष ने उनका साथ देने से इंकार कर दिया, लेकिन औरतें आगे आईं।

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"2004 में केवल 4 महिलाओं के साथ मिलकर जमुना ने जंगलों में पेट्रोलिंग का काम शुरू किया। धीरे-धीरे ये संख्या बढ़कर 60 तक जा पहुंची। उन्होंने 'महिला वन रक्षक समिति’ का गठन किया। ये समिति वनों को कटने से बचाने के साथ नए पौधे लगाकर वनों को सघन बनने में भी योगदान देने लगीं।"

आगे चलकर पुरुषों ने भी जमुना का साथ देना शुरू कर दिया। अवैध कटाई करने वालों से मुकाबले में कई बार जान पर बन आई, लेकिन आज जमुना के गांव में हर कोई जंगलों को बचाने में लगा है। अब ये समिति न सिर्फ वनों को कटने से बचाती है, बल्कि नए पौधों को लगाकर वनों को सघन बनने में भी योगदान देती है। जमुना और उनकी सखियों ने वनों में गश्त के दौरान सूखी लकड़ियां और पत्ते इकट्ठे करने शुरू कर दिए, जिसे वे ईंधन के रूप में आज भी इस्तेमाल करती हैं।

जमुना 20 साल पहले एक साधारण मजदूर हुआ करती थी। लेकिन, पिता से विरासत में मिले प्रकृति प्रेम ने न सिर्फ राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा बल्कि उसकी पहचान पूरे देश में करा दी। जंगल को बचाने तथा बढ़ाने में जमुना ने जो योगदान दिया इससे उसे वनदेवी कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। जमुना के इस रौद्र रूप से उसकी पहचान लेडी टार्जन के रूप में विख्यात हो गई। उसके प्रयास का यह नतीजा निकला कि मुटुरखाम का बंजर पहाड़ साल के हरे-भरे पेड़ों से लहलहा उठा। अब वह देश की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं।

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"जमुना ने जब पेड़ बचाने की पहल की तो लकड़ी माफियाओं में खलबली मच गई। जमुना पर जानलेवा हमले हुए। घर में डकैती पड़वाई गई, लेकिन जमुना के कदम रुकने के लिए नहीं बढ़ने के लिए चले थे और कदम बढ़ते गए।"

अब जमुना वन प्रबंधन सह संरक्षण महासमिति बनाकर पूरे कोल्हान में जंगल बचाने के क्षेत्र में काम कर रही है। 2009-10 में तत्कालीन रेंजर एके सिंह ने उन्हें काफी सहयोग दिया। उनके गांव में न तो सड़क थी और न पीने का पानी। बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल तक नहीं थे। जमुना ने अपनी जमीन दान में दी। फिर उस जमीन पर रेंजर एके सिंह ने विभाग द्वारा स्कूल बनवाया। गांव के लोग खाल का पानी पीते थे। उन्होंने पेयजल के लिए बोरिंग कराई। गांव तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क भी बनवायी।

जंगल बचाने के क्षेत्र में योगदान के कारण जमुना टुडू को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा फिल्मी जगत की हस्तियों और राज्य के मुख्यमंत्री के हाथों भी जमुना सम्मानित की जा चुकी हैं। जमुना आज भी अपने उसी छोटे से गांव में रहती हैं और वनों की जड़ी बूटियों और अन्य वन सम्पदा को बचाने तत्पर हैं। एक कम पढ़ी लिखी महिला आज शिक्षित वर्ग के बीच अपने दृढ़ संकल्प के कारण प्रेरणा व सच्चे ज्ञान की मिसाल बन चुकी है।

-प्रज्ञा श्रीवास्तव

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