गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली लड़की को कैसे मिली नासा की इंटर्नशिप
किसान की बेटी करेगी नासा में इंटर्नशिप...
केरल के एक किसान की बेटी ने सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए वह करिश्मा किया है जिसकी उम्मीद मंहगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों से की जाती है। कोझिकोड जिले के कोडुवल्ली गांव की रहने वाली अश्ना सुधाकर अब रिसर्च स्कॉलर बन गई है।
इस प्रोग्राम के तहत युवा वैज्ञानिकों और स्नातकों को सोलर भौतिकि लैब्स के बारे में जानकारी दी जाती है। आश्ना का रिसर्च सूर्य के जिओ इफेक्टिवनेस पर आधारित था और उन्हें यह स्कॉलरशिप मिलने की ज्यादा उम्मीद नहीं थी क्योंकि एक साल में सिर्फ चार लोगों को ही यह स्कॉलरशिप मिलती है।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति का एक बहुत प्रसिद्ध कथन है कि "सितारों को अपनी आंखों पर रखिए और पैर जमीन पर।" इस कथन को एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली लड़की ने सच साबित कर दिखाया है। केरल के एक किसान की बेटी ने सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए वह करिश्मा किया है जिसकी उम्मीद मंहगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों से की जाती है। कोझिकोड जिले के कोडुवल्ली गांव की रहने वाली अश्ना सुधाकर अब रिसर्च स्कॉलर बन गई है। उन्होंने अमेरिकी अंतरिश्र एजेंसी नासा में तीन महीने की इंटर्नशिप की है।
अश्ना ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव के ही सरकारी स्कूल से की थी। वह नासा को गोडार्ड स्पेस फाइटिंग स्पेस सेंटर में इंटर्नशिप कर चुकी हैं। डेक्कन क्रॉनिकल से बात करते हुए आश्ना ने कहा, 'मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे नासा में इंटर्नशिप करने का मौका मिलेगा। मुझे लगता था कि मैं इसरो या फिर विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में काम करूंगी।' आश्ना ने यह भी बताया कि वह कभी पढ़ाकू स्टूडेंट नहीं रहीं। वह कहती हैं, 'मुझे उपन्यास, कहानियां और कविताएं पढ़ने का खूब शौक है। मेरी मैथ तो काफी कमजोर थी। मुझे 8वीं तक यह भी नहीं पता था कि अंतरिक्ष भौतिकी जैसी भी कोई चीज होती है।'
लेकिन 9वीं कक्षा में पहुंचने के बाद आश्ना को सौर प्रणाली के बारे में जानने का मौका मिला तो उनकी दिलचस्पी बढ़ती गई। यह वो साल था जब अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला की कोलंबिया स्पेस शटल दुर्घटना में मौत हो गई थी। आश्ना ने कल्पना चावला को अपना रोल मॉडल मान लिया। उन्होंने उनके बारे में जितना हो सकता था रिसर्च किया और जानकारी हासिल की। आश्ना हमेशा अपने पास कल्पना चावला की तस्वीर रखती थीं। जब वह दसवीं कक्षा मं थीं तो उस वक्त भारत के मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम ने कोझिकोड का दौरा किया था और प्रेरणादायक भाषण दिया। दर्शक दीर्घा में आश्ना भी मौजूद थीं जिन्होंने उनकी बातों को गांठ बांध लिया।
आश्ना को जिंदगी में दूसरा आइडियल इंसान मिल गया था। स्कूल खत्म होने के बाद उन्होंने फिजिक्स में ग्रैजुएशन किया औऱ फिर तिरुचिरापल्ली से पोस्ट ग्रैजुएशन। एमएससी इंटर्नशिप के लिए सभी स्टूडेंट्स को अपनी थीसिस सबमिट करनी थी। सबने किसी तरह अपना प्रॉजेक्ट किया, लेकिन आश्ना ने पूरे मन से तैयारी की और घंटों लाइब्रेरी में बिताने के बाद अपना प्रॉजेक्ट तैयार किया। आश्ना ने विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में इंटर्नशिप के लिए आवेदन किया, लेकिन उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया। इससे आश्ना को बुरा लगा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपना धैर्य बरकरार रखा।
आश्ना की मेहनत रंग लाई और उन्हें आखिरकार विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में गुरुत्वाकर्षण और आयनस्पेयर फिजिक्स के क्षेत्र में इंटर्नशिप करने का मौका मिला। वह कहती हैं, 'मैंने अपनी एमफिल थीसिस इंटर्नशिप के लिए 100 साल पुरानी कोडइनकल फिजिक्स ऑब्जर्वेटरी में आवेदन किया। वहां पर 4-5 स्टाफ थे औऱ सभी पुरुष थे।' वहां पर आश्ना का इंटरव्यू अनुभव अच्छा नहीं रहा। बाद में उन्होंने नैनीताल स्थित आर्यभट्ट रिसर्च सेंटर में भी आवेदन किया। इस दौरान आश्ना ने पूरे भारत में अंतरिक्ष से जुड़े कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया। वह 15 दिन के लिए महाराष्ट्र में थीं। वहां पर उन्होंने नासा की SCOSTEP विजिटिंग स्कॉलरशिप के बारे में जानकारी हासिल की।
इस प्रोग्राम के तहत युवा वैज्ञानिकों और स्नातकों को सोलर भौतिकि लैब्स के बारे में जानकारी दी जाती है। आश्ना का रिसर्च सूर्य के जिओ इफेक्टिवनेस पर आधारित था और उन्हें यह स्कॉलरशिप मिलने की ज्यादा उम्मीद नहीं थी क्योंकि एक साल में सिर्फ चार लोगों को ही यह स्कॉलरशिप मिलती है। दिलचस्प बात है कि आश्ना को अपनी शादी के दिन ही नासा की तरफ से मेल मिला कि उन्हें गोडार्ड स्पेस फ्लाइट स्पेस सेंटर में इंटर्नशिप मिल गई है। आश्ना को रिसर्च प्रपोजल सबमिट करने के लिए दस दिन का समय भी मिला। उनके पति उमेश पर्यावरण ऑफिसर हैं जिन्होंने आश्ना का पूरा सपोर्ट किया।
इस इंटर्नशिप के तहत आश्ना को स्कॉलरशिप के तौर पर 7 लाख रुपये ट्रैवल व बाकी के खर्च के लिए मिले। एक छोटे से कस्बे की लड़की को दुनिया की सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी में काम करके इतनी खुशी मिली कि वह बयां नहीं कर पातीं। वह कहती हैं, 'नासा में पहुंचने के बाद मेरा काम सोलर रेडियो बर्स्ट पर था। मुझे सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक रिसर्च करना होता था। सेंटर 24 घंटे खुला रहता था। मैं हर डिपार्टमेंट और वर्कशॉप में जाकर घूमती थी। यह सफर यादगार था।' अब आश्ना और उमेश का एक बच्चा भी है, लेकिन वह कहती हैं कि बच्चे कभी उनके सपनों में अड़चन नहीं बनेंगे।
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