बनारस के आसपास के इलाकों के लिए 'जी.वी.मेडिटेक' बनी जीवनदायिनी
गाजीपुर की रहने वाली प्रसूती विशेषज्ञ डा. इंदु सिंह कर रही हैं ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की चिकित्सा संबंधी सेवा....
माइक्रो क्लीनिक खोलकर और गांवों में कैंप लगाकर बीते 20 वर्षों से मरीजों इलाज कर रही है यह संस्था....
इनकी 65 डाॅक्टरों की टीम उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों, पश्चिमी बिहार और झारखंड में करती है काम.....
ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करवाना है लक्ष्य....
सपनों के सच होने वाली स्थिति
बढ़ते हुए शहरीकरण के चलते प्रवास करना एक सामान्य घटना का रूप लेता जा रहा है और अब इसका असरबनारस जैसे शहर के आसपास के ग्रामरंम इलाकों में भी देखा जा सकता है। वर्तमान में एक अच्छे भविष्य की तलाश में अधिक से अधिक युवा अपने गांवों को छोड़कर शहरों का रुख कर रहे हैं। युवाओं के घर छोड़कर चले जाने के बाद आज स्थिति यह है कि इस ग्रामीण इलाकों में अब सिर्फ महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे ही रह गए हैं और चिकित्सा संबंधी किसी विशेष या आक्समिक स्थिति में उन्हें शहरों तक ले जाने के लिये भी कोई मौजूद नहीं है।
गाजीपुर के निकट के एक गांव में रहने वाली मीना शर्मा को अपनी गर्भावस्था के अंतिम चरण के दौरान बेहद जानलेवा स्थितियों से निबटना पड़ा। शुक्र है कि गाजीपुर जैसी छोटी सी जगह में टेलीमेडिसन की सुविधा उपलब्ध थी जिसके चलते उनके तमाम परीक्षण समय पर संभव हो सके और चिकित्सक तुरंत ही स्थिति पर नियंत्रण पाने में सफल रहे। मात्र दो घंटों के अंतराल के भीतर ही डाॅक्टर बनारस से उनके पास तक पहुंच गए। इसके अलावा एक रक्तदाता का भी इंतजाम कर लिया गया जिसके चलते माँ और समय से पहले पैदा हुए बच्चो दोनों की जान बचा ली गई।
अंतर को पाटता जी.वी. मेडीटेक
बनारस के निकटवर्ती इलाके गाजीपुर की रहने वाली डा. इंदु सिंह एक जानी-मानी प्रसूतिशास्त्री (गायनेकोलाॅजिस्ट) हैं और उन्हें अपने काम के सिलसिले में पूरी दुनिया घूमने और चिकित्सा विज्ञान से जुड़े अन्य चिकित्सकों से मिलने के बहुत मौके मिले। अपने इन्हीं अनुभवों ने उन्हें देश के इस हिस्से में रहने वाले लोगों को एक अच्छा चिकित्सा संबंधी ढांचा उपलब्ध करवाने के लिये प्रेरित किया।
वर्ष 1992 में डा. इंदु सिंह ने बनारस में एक छोटे से प्रसूति एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल इकाई के रूप में उस इलाके में रहने वाले लोगों को बेहद जरूरी चिकित्सा का बुनियादी ढांचा उपलब्ध करवाने के लिये जी.वी. मेडीटेक की स्थापना की। जी.वी. मेडीटेक की संस्थापक डा. इंदु सिंह कहती हैं, ‘‘मैं और मेरे पति गाजीपुर और मिर्जापुर के आसपास के ग्रामीण इलाकों के लोगों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हहैं क्योंकि हम दोनों ही इस इलाके के रहने वाले हैं। हनमे इन दोनों ही जगहों पर अपने छोटे-छोटे केंद्र प्रारंभ किये ताकि वहां के लोगों को किसी आपात स्थिति में अनावश्यक रूप से लंबी दूरी न तय करनी पड़े। सबसे बड़ी दिक्कत यह थी इन इलाकों के गांवों में सिर्फ बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे ही रह गए थे और किसी आपात स्थिति में उन्हें बनारस तक लाने के लिये गांवों में एक भी व्यक्ति मौजूद नहीं था।’’
आईसीटी और टेलीमेडिसन सुविधाएं
तमाम डाटा के कंप्यूटरीकरण के अलावा आईसीटी फार्म जी.वी. मेडीटेक द्वारा अपनाई गई टेलीमेडिसन पद्धति की कार्यप्रणाली का मुख्य केंद्र हैं। लाइव टेलीमेडिसन समाधान की सहायता से विशेष रूप से तैयार किये गए उपकरणों के साथ, जिन्हें गाजीपुर में किसी भी मरीज के साथ जोड़कर, बनारस में बैठे डाॅक्टर मरीज का ब्लड प्रेशर, ईसीजी इत्यादि की जानकारी लेने में कामयाब हो रहे थे। अगर ऐसा लगता कि स्थिति गंभीर है तो मरीज बनारस में बैठे डाॅक्टरों से मोबाइल फोन से संचालित टेलीमेडिसन सविधाओं के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं।
अपने इस प्रकार के केंद्रों के अलावा जी.वी. मेडीटेक बीते 10 वर्षों में 150 से भी अधिक कैंपों का भी सफल आयोजन कर चुका है। डा. इंदु बताती हैं, ‘‘इन चिकित्सा कैंपों के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि इनके माध्यम से हमें लोगों तक अपनी पहुंच बनाने का मौका मिलता है जिसके चलते वे भविष्य में होने वाली किसी भी दिक्कत के समय हमें संपर्क करने में संकोच महसूस नहीं करते हैं।’’ जी.वी. मेडीटेक ग्रामीणों द्वारा आमंत्रिम करने पर भी मेडिकल कैंपों का आयोजन करता है। गावों में रहने वाले परिवार इनके लिये खाना पकाकर अपनी ओर से इनका सहयोग करती हैं और इसके अलावा स्थानीय स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियां और वहां की शिक्षिकाएं स्वयंसेवकों के रूप में इनका हाथ बंटाती हैं। ये लोग अपने प्रत्येक कैंप में 3 हजार से 4 हजार तक लोगों की जांच करके उन्हें नुस्खे और निःशुल्क दवाएं इत्यादि उपलब करवाते हैं।
इसके अलावा जी.वी. मेडिटेक एक मोबाइल रेल अस्पताल ‘जीवन रेखा एक्सप्रेस’ को भी संचालित करती है जो सप्ताह में तीन दिनों के लिये बनारस और तीन दिन गाजीपुर में आती है। इनके द्वारा 28 हजार मरीजों कर इलाज किया जा चुका है जिसमें 450 लोगों की आंखों की सर्जरी करने के अलावा 50 व्यक्तियों की क्लेफ्ट लिप सर्जरी की गई।
चुनौतियों के बीच भविष्य का सफर
दुर्भाग्य की बात यह है कि आज भी चिकित्सा सहायता के जरूरतमंद कई लोग पैसे की कमी के चलते सर्जरी करवाने से वंचित रह जाते हैं। डा. इंदु कहती हैं, ‘‘डाॅक्टरों को प्रेरित करना और धन की व्यवस्था करना सबसे चुनौतीपूर्ण काम हैं। लोग सूक्ष्म वित्त संस्थानों इत्यादि की मदद करने को तो आतुर हैं लेकिन स्वास्थ्य सेवा को नहीं। इस कार्य के लिये बहुत धैर्यवान निवेशकों की आवश्यकता है क्योंकि बेहतर परिणाम लाने में कम से कम तीन वर्षों से भी अधिक का समय लगेगा।’’
इन तमाम चुनौतियों के बावजूद जी.वी. मेडीटेक बीते 20 वर्षों से भी अधिक समय से बनारस और उसके आसपास के 15 जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों, पश्चिमी बिहार और झारखंड में अपनी 65 डाॅक्टरों की टीम की सहायता से 7.1 मिलियन से भी अधिक मरीजों का इलाज कर चुका है। ये प्रतिवर्ष लगभग 1 मलियन मरीजों को देखने के अलावा 25552 बच्चों का जन्म करवाते हैं, 32452 सर्जरी करते हैं और करीब 64000 हजार नुस्खे बांटते हैं।
डा. इंदू कहती हैं, ‘‘मैं गाजीपुर और उसके आसपास की बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए वहां 4 और केंद्र खोलने पर विचार कर रही हूँ। हमारा इरादा इन्हें एक चिकित्सा सहायक से लैस माइक्रो क्लीनिक का दर्जा देने का है जहां रोगियों को चिकित्सा संबंधी जागरुकता और शिक्षा प्रदान करने के अलावा खून की जांच इत्यादि जैसे काम हो सकें। हमारा इरादा सिर्फ इतना ही है कि किसी भी व्यक्ति की मौत चिकित्सा सुविधाओं की कमी या उनके विषय में अज्ञानता के कारण न हो पाए।’’ इसके अलावा वे स्थानीय युवाओं को अपने इन माइक्रो क्लीनिकों पर काम करने के लिये प्रशिक्षित करने का भी है।
क्या आप भी इन प्रयासों मे जी.वी. मेडीटेक का सहयोग करना चाहते हैं? इनकी वेबसाइट पर एक नजर डालें।