एक कानून जो प्रधानमंत्री तो बनने देता है लेकिन ग्राम प्रधान नहीं
जम्मू-कश्मीर हिन्दुस्तान की वो वाहिद रियासत है जहां पर कानून की रोशनी में अधिकार और कर्तव्य की हदबंदी कई हैरतंगेज मायने पैदा कर देती है। ऐसी ही एक हैरतंगेज बात यह है कि रियासत में लागू एक कानून ऐसा भी है जो राष्ट्र और राज्य की नागरिकता को अलग-अलग परिभाषित कर अधिकारों की चौहद्दी बांधता है।
दरअसल अनुच्छेद 35-ए से जम्मू-कश्मीर विधान सभा को स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार देता है। इसका मतलब है कि राज्य सरकार को ये अधिकार है कि वो तय करें की बंटवारे के बाद दूसरी जगहों से आए शरणार्थियों को जम्मू-कश्मीर में किस तरह की सुविधाएं दे। इस हिसाब से ये सभी लोग भारत के नागरिक तो हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य इन्हें अपना नागरिक नहीं मानता।
हास्यपद तर्क दिया जाता है कि ये लोग देश के प्रधानमंत्री तो बन सकते हैं लेकिन ग्राम प्रधान या विधान सभा के चुनावों से वंचित हैं। गौरतलब है कि 1947 में हुए बंटवारे के बाद लाखों लोग शरणार्थी बनकर आए थे जो देश के अलग-अलग हिस्सों में घुल-मिल गए हैं और संवैधानिक तौर पर नागरिक होने का आधिकार पाते हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर एक ऐसा हिस्सा है जहां आज भी लोग शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर हिन्दुस्तान की वो वाहिद रियासत है जहां पर कानून की रोशनी में अधिकार और कर्तव्य की हदबंदी कई हैरतंगेज मायने पैदा कर देती है। ऐसी ही एक हैरतंगेज बात यह है कि रियासत में लागू एक कानून ऐसा भी है जो राष्ट्र और राज्य की नागरिकता को अलग-अलग परिभाषित कर अधिकारों की चौहद्दी बांधता है। दरअसल अनुच्छेद 35-ए से जम्मू-कश्मीर विधान सभा को स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार देता है। इसका मतलब है कि राज्य सरकार को ये अधिकार है कि वो तय करें की बंटवारे के बाद दूसरी जगहों से आए शरणार्थियों को जम्मू-कश्मीर में किस तरह की सुविधाएं दे। इस हिसाब से ये सभी लोग भारत के नागरिक तो हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य इन्हें अपना नागरिक नहीं मानता। इसलिए ये लोग लोकसभा के चुनावों में तो वोट डाल सकते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर में पंचायत से लेकर विधान सभा तक किसी भी चुनाव में इन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं।
इस लिहाज से जम्मू कश्मीर इन्हें अपना नहींं मानता। इसलिए ये हास्यपद तर्क दिया जाता है कि ये लोग देश के प्रधानमंत्री तो बन सकते हैं लेकिन ग्राम प्रधान या विधान सभा के चुनावों से वंचित हैं। गौरतलब है कि 1947 में हुए बंटवारे के बाद लाखों लोग शरणार्थी बनकर आए थे जो देश के अलग-अलग हिस्सों में घुल-मिल गए हैं और संवैधानिक तौर पर नागरिक होने का आधिकार पाते हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर एक ऐसा हिस्सा है जहां आज भी लोग शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं। यहां आज भी कई दशक पहले बसे लोगों की कई पीढिय़ां शरणार्थी ही कहलाती हैं और तमाम मौलिक अधिकारों से वंचित है। इनकी आज भी प्रदेश में संवैधानिक हिस्सेदारी पर आर्टिकल 35-ए काल बनकर बैठा है।
दीगर है कि जब भी कश्मीर की बात होती है तब-तब अनुच्छेद 35-ए का जिक्र होता है और अलगाववादी संगठन और पार्टियां इसे भुनाने में लग जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर के स्थाई निवासियों को विशेषाधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 35-ए के खिलाफ दायर 4 याचिकाएं पर सुनवाई चल रही है।
यहां यह बताना दिलचस्प होगा कि भारतीय संविधान में आज तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सबका जिक्र संविधान की किताबों में होता है। लेकिन 35-ए कहीं भी नजर नहीं आता। दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट में शामिल किया गया है। इसके पीछे तर्क ये दिया जाता है कि यह चालाकी इसलिए की गई ताकि लोगों को इसकी कम से कम जानकारी हो। 14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश पारित किया गया था। इस आदेश के जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35-ए जोड़ दिया गया। यही अनुच्छेद आज इन लाखों लोगों के जम्मू कश्मीर में हाशिए पर धकेलता है।
अब देखना ये हैं कोर्ट क्या फैसला देता है? वहीं बता दें कि जम्मू कश्मीर के तीन अलगाववादी नेताओं ने अनुच्छेद 35-ए को रद्द करने पर पक्ष घाटी के लोगों से जन आंदोलन शुरू करने की बात कही है। वहीं एक संयुक्त बयान में अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और मोहम्मद यासीन मलिक ने कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट राज्य के लोगों के हितों और आकांक्षा के खिलाफ कोई फैसला देता है, तो वे लोग एक जनआंदोलन शुरू करेंगे।
क्या कहता है कानून?
1. 1956 में जम्मू कश्मीर का संविधान बनाया गया था। इसमें स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया है।
2. इस संविधान के मुताबिक स्थायी नागरिक वो व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो। साथ ही उसने वहां संपत्ति हासिल की हो।
3. इस धारा की वजह से कोई भी दूसरे राज्य का नागरिक जम्मू-कश्मीर में ना तो संपत्ति खरीद सकता है और ना ही वहां का सरकारी नौकरियों और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले का हक देता है।
4. साथ ही अनुच्छेद 35-ए के मुताबिक अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर लेती है तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं। साथ ही उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं। इस अनुच्छेद की वजह से जम्मू कश्मीर की लड़कियों के अधिकारों को लेकर लंबी बहस जारी है।
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