BITS पिलानी ग्रेजुएट्स ने एक ग्रामीण स्कूल का किया कायाकल्प
'स्कूल चले हम' अभियान के तहत BITS पिलानी ग्रेजुएट्स ने उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले में एक ग्रामीण स्कूल को पुनर्स्थापित करने का उठाया बीड़ा।
नेल्सन मंडेला का कहना था, कि "शिक्षा वो शक्तिशाली हथियार है, जिससे दुनिया को बदला जा सकता है..." लेकिन, यदि शिक्षा का मूल आधार 'स्कूल' गंभीर दुर्दशा झेल रहा हो, तो ऐसे में क्या किया जाये? इसी बात को ध्यान में रखते हुए BITS पिलानी के कुछ ग्रेजुएट् ने आजमगढ़ के एक ग्रामीण स्कूल का चेहरा बदल दिया।
जब राजेश यादव उत्तर प्रदेश के अम्बारी गांव के हेडमास्टर के रूप में नियुक्त किए गए, तो उन्होंने अपने स्कूल को बेहद अव्यवस्थित स्थिति में पाया। स्कूल के बच्चे स्कूल की मूल आधारभूत ज़रूरतों से भी वंचित थे। राजेश ने इस समस्या को हल करने और स्कूल में कई नये बदलाव लाने के लिए BITS, पिलानी ग्रेजुएट्स की तलाश की। जल्द ही प्रांजल दीप (उनके भतीजे) और नवकरण सिंह ने इस स्कूल की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए स्कूल की बेहतरी की ओर कदम बढ़ा दिया। स्कूल की बेहतरी के लिए आर्थिक मजबूती सबसे ज्यादा आवश्यक थी और इसके लिए दोनों दोस्तों ने क्राउडफंडिंग की व्यवस्था की।
आज के समय में स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के लड़कियां अपने भविष्य को निखारने के सपने देखते हैं। दौर कॉम्पटिशन है। लोग गांव से शहरों की ओर भाग रहे हैं, शहरों से महानगरों की और महानगरों से विदेशों की ओर, ऐसे में प्रांजल और नवकरण का एक पिछड़े गांव में जाकर वहां के खतम हो चुके स्कूल को फिर से शुरू करने के प्रयास ने युवाओं के सामने एक बड़ा उदाहरण पेश किया है।
अंबारी के प्राथमिक विद्यालय की मदद करने की योजना प्रांजल और नवकरण के दिमाग में उस समय आई, जब वे दोनों इस स्कूल को लेकर आपस में चर्चा कर रहे थे, कि 'वे कितने सौभाग्यशाली थे, कि उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ने का मौका मिला।' यह तब हुआ, जब प्रांजल उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में अपने पैतृक गांव अम्बारी के स्कूल की दुर्दशा के बारे में बात कर रहे थी, कि कैसे इस विद्यालय के छात्रों को डेस्क और बेंच जैसी बुनियादी सुविधाएं भी प्राप्त नहीं हैं। स्कूल की स्थिति को रेखांकित करते हुए, नवकरण ने बताया, 'जब 2013 में नये हेडमास्टर स्कूल में आये, तो इस स्कूल में छात्रों की कुल संख्या 30 थी। स्कूल में कोई चहारदीवारी नही थी। दिन में ये स्कूल जानवरों के चरने का मैदान था और रात में स्थानीय आवारा लोगों के लिए शराब पीने का अड्डा।' अनुचित रखरखाव और धन की कमी के कारण स्कूल की दशा पूरी तरह से बरबाद हो चुकी थी।
लगभग सौ साल पुराना इस ग्रामीण स्कूल को भूतपूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव और सांसदों, विधायक जैसे रामकृष्ण यादव, बालीहारी बाबू, रामकांत यादव और ओबेदुल्लाह आज़मी जैसे प्रमुख पूर्व छात्रों को शिक्षा देने का गौरव हासिल है।
जिस स्कूल से इतने काबिल छात्र निकले हों उस स्कूल की खोई हुई महिमा को बहाल करने के प्रयास में नए नियुक्त हेडमास्टर ने हालात को बेहतर तरीके से बदलने का निश्चय किया। राजेश ने स्कूल की बाहरी दीवार बनाने, बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने और स्कूल को दो ब्लॉक्स का निर्माण स्कूल के शिक्षकों की आर्थिक मदद से किया। हालांकि बुनियादी रखरखाव के लिए सरकार 5000 रुपये की वार्षिक राशि प्रदान करती है, लेकिन स्कूल की स्थिति को देखते हुए और रखरखाव की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यह राशि पर्याप्त नहीं है।
सरकार से सहायता की मांग करते हुए स्कूल की समस्याओं को उजागर करते हुए नवकरण कहते हैं, कि 'पिछले दो वर्षों में, स्कूल की तरफ से सरकार से अतिरिक्त सहायता मांगी गयी थी, लेकिन उनके इस प्रस्ताव का कोई जवाब नहीं आया। इसलिए स्कूल के हेडमास्टर और शिक्षकों ने स्कूल के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने और रखरखाव के लिए आपस में आर्थिक सहयोग किया। वास्तव में अधिकारियों द्वारा धन मुहैया कराने का इंतजार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इन सबके बीच में स्कूल के बच्चे और उनकी शिक्षा प्रभावित होती है।'
यह एक बेहद खुशी की बात है, कि शिक्षक, कर्मचारियों और पिलानी ग्रेजुएट्स की कड़ी मेहनत रंग लाई और उनका प्रयास व्यर्थ नहीं गया, क्योंकि स्कूल के कायाकल्प के बाद स्कूल में बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ी है। जिस स्कूल में पहले सिर्फ 30 बच्चे हुआ करते थे, उस स्कूल में अब 220 बच्चे पढ़ने आते हैं।
BITS पिलानी के 'स्कूल चले हम' ग्रेजुएट्स ने इस स्कूल के आलावा कई दूसरे संस्थानों और बच्चों की भी मदद की है। नवकरण कहते हैं, कि 'ऐसा पहली बार नहीं है, कि हमारे समूह ने शिक्षा क्षेत्र में विकास के लिए सफलतापूर्वक कोष संग्रह किया हो। हम ये काम लंबे समय से करते चले आ रहे हैं।' इससे पहले इस समूह ने पिलानी के एक ऑटो ड्राइवर की बेटी की पढ़ाई के लिए 1.5 लाख रूपये इकट्ठे किये थे। उन्होंने हैदराबाद में एक झुग्गी बस्ती में स्थित स्कूल के लिए पावर बैकअप का भी सहयोग किया था, और सुरथकल में मछवारा समुदाय के छात्रों को सौर लैंप प्रदान करने के लिए 50,000 रुपये भी जुटाए थे।
इन्हीं सबके बीच पिलानी ग्रेजुएट्स ने एक बेहतरी अभियान 'स्कूल चले हम' शुरू किया है। यह अभियान स्कूल को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराता है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य हर क्लास में डेस्क और बेंच मुहैय्या करना है। स्कूल में बच्चों लिए डेस्क या बेंच नहीं थी और बच्चों को पढ़ने के लिए फर्श पर बैठना पड़ता था। BITS पिलानी की चिन्मयी भामबुरक कहती हैं, कि "सर्दियों में, फर्श बहुत ठंडा हो जाता है, जिससे बच्चों को बैठने में बहुत दिक्कत होती है, ऐसे में डेस्क और बेंच प्रदान करना हमारी प्राथमिक चिंता बन जाती है।" चिन्मयी हाल ही में अभियान 'स्कूल चले हम' में शामिल हुई हैं।
इसके अलावा, स्कूल में कोई पुस्तकालय और उचित शिक्षण उपकरण भी नहीं है। स्कूल की बेहतरी के रास्ते में एक बड़ी बाधा धन की कमी है। इस कमी को दूर करने के लिए, BITS पिलानी ग्रेजुएट्स ने जनसमूह से क्राउडफंडिंग का एक अभियान चलाया है, जिसकी मदद से ये छात्र तीन लाख रूपये जमा करेंगे। BITS पिलानी के 'स्कूल चले हम' ग्रेजुएट्स ने इस स्कूल के आलावा कई दूसरे संस्थानों और बच्चों की भी मदद की है। नवकरण कहते हैं, कि 'ऐसा पहली बार नहीं है, कि हमारे समूह ने शिक्षा क्षेत्र में विकास के लिए सफलतापूर्वक कोष संग्रह किया हो। हम ये काम लंबे समय से करते चले आ रहे हैं।' इससे पहले इस समूह ने पिलानी के एक ऑटो ड्राइवर की बेटी की पढ़ाई के लिए 1.5 लाख रूपये इकट्ठे किये थे। उन्होंने हैदराबाद में एक झुग्गी बस्ती में स्थित स्कूल के लिए पावर बैकअप का भी सहयोग किया था, और सुरथकल में मछवारा समुदाय के छात्रों को सौर लैंप प्रदान करने के लिए 50,000 रुपये भी जुटाए थे।
BITS पिलानी के उत्साही युवाओं के इस समूह ने अंबारी गाँव के बच्चों के जीवन स्तर में व्यापक सुधार किया है। नवकरण कहते हैं, कि 'स्थिति सिर्फ इस स्कूल की नहीं, बल्कि हमारे देश में ऐसे कई स्कूल हैं जो इन मूलभूत परेशानियों से जूझ रहे हैं। हमारे आसपास इस तरह के स्कूल बिखरे पड़े हैं, जिनमें बदलाव की ढेर सारी संभावनाएं मौजूद हैं।'
BITS पिलानी के इन जागरुक ग्रेजुएट्स ने देश में शिक्षा की दुर्दशा पर एक गंभीर प्रकाश डाला है, जिसे समझने की ज़रूरत है और इसके सुधार में हर नागरिक के सहयोग की आवश्यकता है।