एक सफर, जिसमें आदि और अंत दोनों है 'पादुक्स'
ईको-फ्रेंडली और कंफर्टेबल स्लिपर्स
बड़े-बुजुर्ग कह गए, जहां चाह है, वहां राह है... बस मंजिल का पता होना चाहिए, रास्ते, जरिए खुद-बखुद बनते चले जाते हैं. गोया, कायनात ने आप की खातिर खुद को सहेज रखा हो. ऐसे ही एक सफर की दास्तां है Paaduks..
प्रेरणा कहीं से भी मिल सकती है, किसी भी रूप में मिल सकती है। मगर कभी-कभार ही ऐसा होता है कि आप प्रेरणा पाकर उसी के अनुरुप व्यावहारिक धरातल पर कुछ ठोस कर पाते हैं। जे और ज्योत्सना रेज ने एक अमेरिकी शख्स के बारे में एक बार आर्टिकल पढ़ा जो इंडोनेशिया से कबाड़ टायर खरीदकर उसे सैंडल बनाने में इस्तेमाल करता है। दोनों उस अमेरिकी शख्स से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने ‘पादुक्स’ नाम से स्लिपर बनाने का फैसला कर लिया। उनकी ये कोशिश सामाजिक परिवर्तन और पर्यावरण सुरक्षा पर आधारित थी। उनका लक्ष्य ना सिर्फ ईको-फ्रेंडली स्लिपर बनाना था बल्कि स्लिपर बनाने वाले कामगारों यानी मोचियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव भी लाना था।
दिल से निकली आवाज
जे और ज्योत्सना पहले से ही शिक्षा और करियर के क्षेत्र में छात्रों की मदद के लिए एक संस्थान चला रहे हैं। वो दूसरे वेंचर के बारे में सोच ही रहे थे कि तभी उनकी निगाह उस आर्टिकल पर पड़ी थी। उन्होंने स्लिपर बनाने का मन बना लिया। हालांकि, दोनों में से किसी को भी फुटवियर उद्योग के बारे में रत्ती भर भी जानकारी नहीं थी। फिर भी उन्होंने ‘पादुक्स’ के रूप में एक साहसिक फैसला लिया।
उन्हें पता चला कि मुंबई के गोवंदी में कुछ मोची पहले से ही पुराने टायरों का सोल बनाते हैं, जिन्हें महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में भेजा जाता है। जे और ज्योत्सना को ये भी पता चला कि पुराने टायरों से बने फुटवियर ना सिर्फ ईको-फ्रेंडली होते हैं, बल्कि इनके सोल ज्यादा टिकाऊ और आरामदेह होते हैं जिससे पैरों में घाव होने की आशंका न के बराबर होती है। गोवंदी के मोची पादुक्स के लिए सोल बनाने को राजी हो गए।
शोषण के खिलाफ
जे और ज्योत्सना रेज रिसर्च के उद्देश्य से मुंबई के थक्कर बप्पा कॉलोनी पहुंचे। इस इलाके में बड़ी तादाद में मोची रहते हैं। यहां उन्हें मोचियों की हालत का अंदाजा हुआ। जे रोज बताते हैं, “जब हमने मोचियों के साथ काम करना शुरू किया तो पता चला कि मोची और उनके परिवार कई तरह के आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। इसलिए हमने फैसला किया कि हमें जो भी प्रॉफिट होगा उसका इस्तेमाल मोचियों और उनके परिवारों का जीवन-स्तर सुधारने में करेंगे। इसका ख्याल रखेंगे कि उनके परिवार को अच्छी हेल्थकेयर सुविधा मिले और बच्चों को अच्छी शिक्षा।” जे और ज्योत्सना मोचियों के शोषण को रोकना चाहते थे। इस शोषण की मुख्य वजह मोचियों की गरीबी और अशिक्षा थी जिस वजह से वो कम पैसों पर भी काम करने को राजी हो जाते थे। जे बताते हैं कि उनके साथ काम करने वाले मोची अब अपने परिवार की सेहत और शिक्षा का अच्छे से ख्याल रख रहे हैं। उन्हें अब पहले के मुकाबले दोगुना-तिगुना मेहनताना मिल रहा है।
चुनौतियां और उनसे पार पाना
चुनौतियों के जिक्र पर जे बताते हैं कि कस्टमर आपके प्रोडक्ट में वैल्यू खोजता है। उनमें से ज्यादातर को इस बात की परवाह नहीं होती कि सोल किससे बना है और आप अपने फायदे को किस तरह खर्च कर रहे हैं। आखिरकार डिजाइन और लुक ही वो फैक्टर हैं, जिनके आधार पर कस्टमर कोई प्रोडक्ट खरीदने का फैसला करता है। बाजार में उपलब्ध सैंडलों से प्रतिस्पर्धा बड़ी चुनौती थी। इसके लिए जरूरी था कि पादुक्स के प्रोडक्ट औरों से अलग हटकर हों।
‘उन लिमिटेड इंडिया’ के साथ जुड़ना दोनों उद्यमियों के लिए एक अहम अनुभव था। दोनों ने उससे बहुत कुछ सीखा। जे बताते हैं कि ‘उन लिमिटेड’ ने चुनौतियों से पार पाने, उनका समाधान ढूढ़ने में काफी मदद की। दोनों का कहना है कि समाजसेवा के मकसद से किसी उद्यम को शुरू करने वाले लोगों को उन लिमिटेड इंडिया के साथ जरूर जुड़ना चाहिए। ये एक बेहतर प्लेटफार्म मुहैया कराता है।
नए मॉडल्स और डिजाइन पर जोर
पादुक्स कई तरह के सैंडल उपलब्ध कराता है। उनका मानना है कि हर मॉडल को पहले से बेहतर बनाया जा सकता है। इसलिए मॉडल और डिजाइन में सुधार की निरंतर कोशिश चलती रहती है। अपने प्रोडक्ट को ईको-फ्रेंडली बनाने के लिए वो केवल पुराने टायरों पर ही निर्भर नहीं हैं बल्कि दूसरे विकल्पों के बारे में भी रिसर्च किया है। उदाहरण के तौर पर सोल के अलावा सैंडल के दूसरे हिस्सों के निर्माण में कॉर्क और जूट के इस्तेमाल पर भी रिसर्च हुआ है।
जे और ज्योत्सना अब पादुक्स की मार्केंटिंग और एक ठोस मैनुफैक्चरिंग सेट अप के बारे में योजना बना रहे हैं। फिलहाल सैंडल बनाने वाले अपने-अपने घरों से ही काम कर रहे हैं, लेकिन अब वो चाहते हैं कि पादुक्स की मैनुफैक्चरिंग यूनिट बनाई जाए जहां आकर वर्कर काम कर सकें। इसके अलावा पहले से ज्यादा टिकाऊ और आकर्षक मॉडल पर भी काम करने की योजना है।
पैसा बनाने के लिए नहीं है पादुक्स
जे बताते हैं- पादुक्स पैसा बनाने के लिए नहीं है बल्कि इसका मकसद दूसरों की जिंदगी में बदलाव लाना है। क्या दो सामाजिक उद्यमों को एक साथ चलाने में मुश्किल नहीं आती, इस सवाल पर जे कहते हैं कि ये चुनौतीपूर्ण तो है मगर इच्छाशक्ति से सब कुछ मुमकिन है।