'Gypsy Shack' का साथ, जिंदगी भर नहीं भूलेंगे घुमने का मजा आप
90 टूर ऑपरेटर के साथ गठबंधनGypsy Shack के 65 प्रतिशत ग्राहक 25 साल से कम उम्र के2013 में Gypsy Shack की स्थापना
दुनिया में करीब 45 फीसदी लोग यात्रा को एक गतिविधि के तौर पर देखते हैं, जबकि भारत में इस तरह का दृष्टिकोण रखने वाले 1 प्रतिशत से भी कम हैं। वन्य जीवों के प्रति उत्साही एक इंसान ने इस आंकड़े को बदलने का फैसला लिया है। वो इंसान हैं जसप्रीत पबला। जब उनको प्रशांत महासागर में छलांग लगाकर समुद्री सांप, जेली फीस और दूसरे कई जीव जन्तुओं को पहली बार देखने का मौका मिला। तब उनको महसूस हुआ कि यात्रा को लेकर उनका नजरिया गलत था जिसके बाद उन्होने तय किया कि वो ऐसी ही सोच रखने वाले दूसरे लोगों को भी बदलेंगे। अपनी सोच को हकीकत में बदलने के लिए उन्होने स्थापना की GypsyShack.com की। ये यात्रा से जुड़ा एक उद्यम है।
Gypsy Shack भोपाल से संचालित होता है। इसने अपने साथ 90 टूर ऑपरेटर को जोड़ा है। ये उद्यम ना सिर्फ अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के मौके बढ़ा रहा है बल्कि लोगों को असली भारत से परिचय कराने का काम भी कर रहा है। जगप्रीत के मुताबिक ज्यादातर भारतीय यात्रा के लिए या तो मंदिरों में जाते हैं, या फिर पर्यटन स्थलों में घुमते हैं। लीक से हटकर काम करने का दावा करने वाली कई ट्रैवल कंपनियां भी कुछ ऐसा ही करती है। Gypsy Shack का दावा है कि वो इन सब से काफी अलग है। यही वजह है कि 65 प्रतिशत Gypsy Shack के सैलानी 25 साल से भी कम उम्र के हैं।
Gypsy Shack ने यात्रा की नई अवधारणा शुरू की है। ये लोग सैलानियों को मनाली और शिलांग जैसी जगहों में दूर दराज के इलाकों में ले जाते हैं। जहां पर वो विभिन्न तरह की गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं जैसे काइकिंग और आदिवासी और स्थानीय लोगों से मुलाकात करते हैं। इनके ज्यादातर टूर ऑपरेटर स्थानीय होते हैं। जो कि स्थानीय गतिविधियों को लेकर जुनून होता है। उदाहरण के लिए Gypsy Shack अपने ग्राहकों को भोपाल के पास एक आदिवासी इलाके खाटोटिया घुमाने ले जाते हैं और उनको वहां के लोकसाहित्य से परिचित कराते हैं।
इसका मतलब ये भी नहीं है कि ये लोग सैलानियों की आधुनिक सुख सुविधा का ध्यान नहीं रखते। आईटी प्रोफेशनल रवीश श्रीवास्तव के मुताबिक जब वो अल्मोड़ा से 30 किलोमीटर दूर बिंसर गये थे तो उनके साथ दो गाइड थे। ट्रैकिंग के दौरान दोनों गाइड ने चिड़ियों से जुड़ी किताबों को अपने साथ रखा था और जब कोई नई प्रजाति की चिड़िया दिखती तो दोनों गाइड किताब में दी उस प्रजाति से जुड़ी जानकारी के बारे में बताते। इतना ही नहीं जहां पर रहने का इंतजाम किया गया था वो खेतों की बीच एक जगह थी। जहां पर खेत की ताजी ताजी सब्जियां परोसी जाती और जरूरत पड़ने पर इंटरनेट की सुविधा भी थी।
जगप्रीत के पिता फॉरेस्ट ऑफिसर थे और वो उनको घुमाने के लिए अक्सर दूर दराज के जंगलों में ले जाते थे। वहीं जब वो बड़े होकर दक्षिण पूर्व एशिया में नौकरी के सिलसिले में गये उन्होने वहां के पब, बीच और दूसरे पर्यटन स्थल देखे। जब उन्होने दक्षिण चीन सागर में डुबकी लगाई तो उनको लगा कि वो एक नया संसार देख रहे हैं तब उन्होने कोशिश की कि वो थाईलैंड के कोह ताओ प्रांत से स्कूबा डाइविंग का लाइसेंस लेगें। लेकिन फिर उन्होने घर लौटने का फैसला लिया और खुद का उद्यम शुरू करने के बारे में सोचा। जिसके बाद वो नौकरी छोड़ फ्रांस चले गये यहां से वो बिजनेस डिग्री लेकर वापस लौटे और साल 2013 में Gypsy Shack की स्थापना की।
Gypsy Shack की स्थापना के बाद जगप्रीत ने अपने यहां पहली नौकरी केपीएमजी की सलाहकार और श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स की पूर्व छात्र चैताली भाटिया को दी बाद में वो कंपनी के बोर्ड में सह संस्थापक के तौर पर जुड़ गई। चैताली के मुताबिक उनकी टीम काफी मेहनत करती है लोगों को ऑपरेटर के साथ जोड़ती है। उनका कहना है कि हमारा देश प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक सौंदर्य वाले स्थान हैं और उनको पिछड़े राज्यों में देखने की जरूरत है। खास बात ये है कि Gypsy Shack का अपना कोई मुख्यालय नहीं है क्योंकि जसप्रीत जहां भोपाल से काम करते हैं वही चैताली दिल्ली से काम करती हैं। जबकि चार दूसरे सदस्यों का काम कंटेंट लिखना, मार्केटिंग, प्रोग्रामिंग और दूसरे कई काम हैं।