स्टार्टअप की दुनिया में धमाल मचा रही हैं बाप-बेटी की जोड़ियाँ
कभी आपने सोचा कि किसी लड़की का अपने पिता से रिश्ता एक सीमित दायरे में इसलिए होता है, क्योंकि एक पिता के लिए उसकी बेटी तब तक छोटी बच्ची रहती है, जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती। वहीं दूसरी ओर पिता पुत्र के रिश्तों के बारे में ऐसा नहीं सोचा जाता। आम धारणा के मुताबिक पिता-बेटी का रिश्ता एक जिम्मेदारी वाला होता है, जहाँ पर समान भागीदारी की बात नहीं होती, लेकिन वक्त बदल रहा है, अब पिता-पुत्री का बंधन सफल व्यवसायिक गठबंधनों में भी बदल रहा है। हम आपको ऐसे ही तीन पिता-पुत्री की जोड़ियों के बारे में बताने जा रहे हैं जो सफलतापूर्वक कारोबार कर रहे हैं।
एक दूसरे से सीखा है बहुत कुछ
भैरवी मधुसूदन, आइडिया कल्टिवेटर, और ए मधुसूदन, चीफ फार्मर, बैक टू बेसिक्स (Back2Basics)
पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय में इंटरनेशनल स्टडीज और व्यापार में हंट्समैन कार्यक्रम की पूर्व छात्र और व्हार्टन स्कूल ऑफ बिजनेस की डिग्री हासिल करने वाली भैरवी मधुसूदन ने कई मल्टीनेशनल कंपनियों के लिये प्रबंधन और रणनीतिक सलाहकार के रूप में काम किया। जब वो भारत आई तो उससे पहले वो फ्रैंकफर्ट में एक प्राइवेट इक्विटी फर्म में काम कर रही थीं। उस वक्त देश में आंत्रप्रेन्योरशिप की शुरूआत हो रही थी। उनके उनके पिता ने आर्गेनिक उत्पाद से जुड़ा कारोबार शुरू ही किया था। ये कृषि के क्षेत्र का अपने आप में पहला ऐसा उद्यम था। इसके शुरूआती स्तर में Back2Basics ने अपना ज्यादातर ध्यान केवल बी2बी की तरफ लगाया। इससे उसके मुनाफे पर असर पड़ा। तब भैरवी ने देखा कि उनके पिता परेशानी में हैं तो उन्होंने तय किया कि ऐसे वक्त में वो अपने पिता का साथ देंगी और वो उनके छोटे से प्रोजेक्ट के साथ जुड़ गईं। इसके बाद उन्होंने कारोबार में वित्तीय स्थिरता लाने के लिये काम करना शुरू कर दिया। भैरवी ने एक खास तरह का एल्गोरिथम तैयार किया जिससे उनको नये तरीके से मूल्यसंरचना तय करने में मदद मिली। इस तरह आश्चर्यजनक तरीके से जो कंपनी नुकसान की ओर जा रही थी वो मुनाफे में बदल गई और 16 दिनों के अंदर ही कंपनी का मुनाफा 54 प्रतिशत तक पहुंच गया।
भैरवी इससे पहले जहाँ काम कर रही थीं वो जूनियर स्तर पर काम कर रही थीं। जहां पर वरिष्ठ विश्लेषक रिपोर्ट पेश करते थे, जिनको उन्होंने बड़ी मेहनत से तैयार किया होता था। इस तरह वो भैरवी के काम का क्रेडिट खुद हासिल कर लेते थे। ये जानने के बावजूद उनको अपना ये काम रोमांचक लगता था।
जब उन्होंने अपने पिता की मदद करने के बारे में सोचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी ?
“उन्होंने मुझे केवल चेतावनी दी और कहा कि वो मुझे वहन करने में सक्षम नहीं हैं।”
बावजूद इसके, भैरवी के लिए अपने पिता के साथ काम करना एक बेहतर तजुर्बा था। 23 साल की भैरवी का कहना है,
“मैं और मेरे पिता की सोच एक जैसी है, हालांकि मैं अपनी माँ के बेहद करीब हूं, लेकिन किसी समस्या से निपटने में मैं और मेरे पिता एक ही तरीके से काम करना पसंद करते हैं। अब तक मैंने जो भी फैसले लिये उसमें उन्होंने मेरा पूरा साथ दिया है। मेरे लिये पिता के साथ काम करना हजारों प्रोफेसरों के साथ काम करने के बराबर है।”
आज बाप बेटी की ये जोड़ी सफलतापूर्वक कारोबार कर रही हैं। वहीं दूसरी ओर भैरवी का मानना है कि परिवार के किसी सदस्य के साथ कारोबार करना हर दिन नई चुनौती से कम भी नहीं है। उनका दावा है कि “ज्यादातर लोग ये मानते हैं कि किसी भी पिता के कारोबार में उनकी बेटी केवल एक हिस्सा भर है जो शुरूआत में मेरे लिए काफी बड़ा झटका था, बावजूद इसके आज भी मैं ऐसे हालात का सामना करती हूं।”
आंत्रप्रेन्योर महिला के तौर पर उनको भी उन्ही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो किसी दूसरे आंत्रप्रेन्योर को करनी पड़ती हैं, लेकिन भैरवी अपने संघर्ष और कारोबारी कौशल की वजह से उन चुनौतियों का हल निकाल ही लेती है। इसमें उनके पिता का भी काफी साथ होता है।
Back2Basics बेंगलुरू की अनूठी कंपनी है जो स्थानीय स्तर पर लोगों को उनके दरवाज़े तक आर्गेनिक फूड पहुंचाने का काम करती है। कंपनी की खासियत है कि ये करीब 200 एकड़ इलाके में कैमिकल मुक्तखेती करती है, जहाँ पर 90 से ज्यादा मौसमी किस्मों का उत्पादन किया जाता है। इनमें फल, सब्जी, अनाज और इग्ज़ाटिक शामिल है। इनके ग्राहकों में बड़ी संख्या में कार्पोरेट, रिटेल चेन से जुड़े लोगों के साथ आम लोग भी हैं, जिनको कंपनी आर्गेनिक उत्पाद सप्लाई करती है।
मिलकर बढ़ाए क़दम
माइल्स (Myles) की संस्थापक साक्षी विज और कारज़ोनरेंट Carzonrent प्राइवेट लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक राजीव विज
31 साल की साक्षी विज ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र की डिग्री पूरी करने के बाद एसपी जैन मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट से एमबीए की पढ़ाई पूरी की। आंत्रप्रेन्योर बनने और पिता के साथ जुड़ने से पहले वो वित्तीय सलाहकार के रूप में एक फर्म के साथ काम कर चुकी हैं। उनके पिता Carzonrent नाम से किराये पर कार देने का कारोबार करते हैं। अकेली बेटी होने के कारण साक्षी का काफी हद तक झुकाव अपने पिता के कारोबार पर था, लेकिन उनका इस ओर रूझान तब बढ़ा, जब उनके सामने पिता की कंपनी को एक ब्रांड के तौर पर स्थापित करने की चुनौती आई। साक्षी ने जब यह काम करना शुरू किया तो वो परिवहन के क्षेत्र को लेकर खासी उत्साहित थीं। यही वजह है कि उन्होंने Carzonrent की एक सहायक कंपनी Myles की स्थापना की। जो कार मालिकों के साथ आने वाली पारंपरिक परेशानियों का समाधान करती थी।
साक्षी ने पिता के साथ कारोबारी साझेदार बनने का फैसला आपसी बातचीत में किया।
“पिता की निगरानी में मैंने कारोबार की बारीकियां सीखीं। मैं चीजों को जल्द सीखती गई। पिता के दिशा निर्देश पर मैंने हर चीज़ सीखी। हम दोनों के संबंध बहुत ही तार्किक हैं। यही वजह है कि हम हर विषय पर खुलेपन से बातचीत करते हैं। मेरे पिता ने हर वक्त मुझे इस बात के मौके दिये कि मैं नई चीजें सीखूँ और उनको जारी रखूँ। वो ना सिर्फ एक अच्छे दोस्त हैं, बल्कि मेरे मेंटोर भी हैं।”
Carzonrent (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड आम लोगों को किराये पर कार लेने के लिये विभिन्न तरह के विकल्प मुहैया कराता है। देश भर में कंपनी के बेड़े में 6500 कारें हैं।
परिवर्तन की लहर पर सवार होना कैसा लगता है?
आम धारणा होती है कि पिता का कारोबार बेटा संभालता है, लेकिन साक्षी इस बात को लेकर परेशान नहीं होती। वक्त के साथ चीजें बदल रही हैं। उनका मानना है, “आपका काम ही बोलता है, इसलिए आपको किसी से कुछ कहने की ज़रूरत नहीं होती और यही काम लैंगिक रेखा को भी हल्का कर देता है।”
दोनों बने एक दूसरे की ताकत
मोडस्पेस (ModSpace.in) के संस्थापक दृश पॉल और सह-संस्थापक पल्लवी पी
आंत्रप्रेन्योर दृश पॉल कई कारोबारों में अपना हाथ अजमा चुके हैं, लेकिन साल 2015 में अपनी बेटी के साथ मिलकर शुरू की गई ऑनलाइन फर्नीचर कंपनी मोड स्पेस डॉट इन (ModSpace.in) उनके लिए खास है। 33 साल की उनकी बेटी पल्लवी ने अर्थशास्त्र और संचार में बोस्टन के टफ्ट्स विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल करने के बाद आंत्रप्रेन्योरशिप के क्षेत्र में कदम रखा। दृश के मुताबिक “मेरी बेटी के पास विश्लेषणात्मक सोच तो थी हीसाथ ही उसे इंटरनेट के ज़रिए कैसे ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाया जा सकता है अच्छी तरह मालूम है और मैं उसकी इस बात के लिए सराहना करता हूं।”
इतना ही नहीं दृश पॉल बताते हैं, “मैं अपनी बेटी को विफल होने के लिए प्रोत्साहित करता हूं, क्योंकि विफल हुए बिना आप कुछ नया नहीं सीख सकते। साथ ही मैं इस बात का ध्यान रखता हूं कि वो अपने ऊपर काम का ज्यादा दबाव ना ले। मेरा बेटा भी मेरे साथ काम करता है, लेकिन मेरी बेटी ही है जिसे में प्यार से ‘जान’ बुलाता हूं। छुट्टी के वक्त हम लोग काफी घूमते फिरते हैं, हम दोनों विभिन्न खेलों को देखना पसंद करते हैं। क्योंकि हम दोनों को बाहर घूमना अच्छा लगता है। वास्तव में ये खुशी की बात है कि ज्यादा से ज्यादा बेटियाँ अपने पिता के कारोबार से जुड़ रही हैं और मुझे उम्मीद है कि ये प्रवृति आगे भी बनी रहेगी।”
ModSpace.in आधुनिक तकनीक से तैयार फर्नीचर बेचने वाली कंपनी है। ये अपने ग्राहकों को नये डिजाइन के फर्नीचर उनके अपने बजट के मुताबिक उपलब्ध कराती है। ये किचन, वार्डरोब और घर में इस्तेमाल होने वाला लकड़ी का सामान बेचती है।
इस तरह ये प्रतीक है नये कारोबारी साझेदारी का। देश में पिता-बेटी के संबंधों ने एक लंबा सफर तय किया है। क्या हम भविष्य में उम्मीद कर सकते हैं कि किसी पिता के कारोबार को उसकी बेटी के साथ जोड़कर देखा जाये? इसके लिए अभी हमें थोड़ा इंतजार करना होगा।
लेखिका – प्रतिक्षा नायक
अनुवाद – गीता बिष्ट