हमें प्रॉडक्ट और ग्राहक की सफलता पर खुश होना चाहिए, फंडिंग पर नहीं: वाणी कोला
सिर्फ फंडिंग मिल जाना स्टार्टअप की सफलता का पैमाना नहीं हो सकता। कुछ लोग तो यही सोच लेते हैं कि जिसको जितनी फंडिंग मिल गई वह उतना ही सफल हो गया, लेकिन दरअसल हकीकत यह नहीं होती।
2006 में वाणी कोला अमेरिका से जब वापस लौटकर भारत आईं तो उन्होंने महसूस किया कि इंडियन स्टार्टअप इकॉसिस्टम का वर्चुअल तौर पर कोई अस्तित्व ही नहीं है।
2006 से लेकर 2015 तक लगभग 45,900 स्टार्टअप की लिस्ट्स है। लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि इनमें से सिर्फ 8.94 प्रतिशत ऐसे स्टार्ट अप हैं जिन्हें किसी बाहरी सोर्स से फंडिंग मिली है।
उद्यम के क्षेत्र में 22 साल का अनुभव, इतने लंबे समय तक कई सारी कंपनियों में काम और एक दशक से भी ज्यादा भारत में वेंचर कैपिटलिस्ट के तौर पर काम करने वाली वाणी कोला कालारी कैपिटल की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। उन्हें स्टार्ट अप की दुनिया की अच्छी जानकारी है। योरस्टोरी के कार्यक्रम टेकस्पार्क्स-2017 में बोलते हुए कालारी ने कहा कि कभी-कभी आगे देखने से पहले पीछे देख लेना जरूरी हैता है। उन्होंने कहा कि इस फील्ड में इतने लंबे समय तक काम कर लेने की वजह से उन्हें लोग स्टार्टअप के जन्म के बारे में बोलने के लिए ही बुलाते हैं। उन्हें स्टार्टअप इकॉसिस्टम को अच्छे से समझाने के लिए जाना जाता है।
2006 में वाणी कोला अमेरिका से जब वापस लौटकर भारत आईं तो उन्होंने महसूस किया कि इंडियन स्टार्टअप इकॉसिस्टम का वर्चुअल तौर पर कोई अस्तित्व ही नहीं है। 2017 के मुकाबले उस वक्त नाम मात्र के स्टार्टअप हुआ करते थे और वर्चुअल स्टार्ट अप तो थे ही नहीं। उन्होंने स्टार्ट अप के विभिन्न पहलुओं के बारे में भी बात की। उन्होंने बताया कि 2006 से लेकर 2015 तक लगभग 45,900 स्टार्टअप की लिस्ट्स है। लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि इनमें से सिर्फ 8.94 प्रतिशत ऐसे स्टार्ट अप हैं जिन्हें किसी बाहरी सोर्स से फंडिंग मिली है। उन्होंने एक्सटर्नल फंडिंग पर जोर दिया और उसकी अहमियत के बारे में बताया।
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ फंडिंग मिल जाना स्टार्टअप की सफलता का पैमाना नहीं हो सकता। कुछ लोग तो यही सोच लेते हैं कि जिसको जितनी फंडिंग मिल गई वह उतना ही सफल हो गया, लेकिन दरअसल हकीकत यह नहीं होती। उन्होंने कहा, मैं नहीं मानती कि यह कोई सफलता वाली चीज है। लोगों को कस्टमर सक्सेस और प्रोडक्ट को सेलिब्रेट करना चाहिए। कुछ स्टार्ट अप तो ऐसे भी होते हैं जिन्हें सफल होने के लिए कभी एक्सटर्नल फंडिंग की जरूरत ही नहीं होती है। मार्केट में कई सारे ऐसे स्टार्टअप भी हैं जिन्होंने बाद के स्टेज पर फंडिंग जुटाई। और कई सारे स्टार्टअप तो ऐसे भी हैं जिन्हें, फंडिंग तो खूब मिली, लेकिन सफलता नहीं देखने को मिली।
भारतीय स्टार्ट अप संस्थापकों के बीच में एक और ट्रेंड के बारे में ऑब्जर्व करते हुए वाणी ने बताया कि यहां के लोग सोचते हैं कि, हम किसी के लिए ऊबर हैं, या किसी के लिए कुछ। उन्होंने कहा कि ऐसे ख्याली पुलावों से काम नहीं चलेगा। इसलिए स्टार्टअप्स के फाउंडर्स को अपना माइंडसेट्स बदलने की जरूरत है। उन्हें कुछ अच्छे प्रेरणादायी विचारों की जरूरत है। किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि वह किसकी तरह है, बल्कि उसे इस मुकाम तक पहुंचना चाहिए कि लोग उसके जैसे बनने के बारे में सोचें। वाणी ने इंडियन स्टार्टअप्स के बारे में अच्छी रिसर्च की है।
उन्होंने आंकड़ों के जरिए इसे समझाने की भी कोशिश की। लैंगिक भेदभाव के बारे में बात करते हुए उन्होंने जानकारी दी कि 95 फीसदी से ज्यादा स्टार्टअप में पुरुषों का कब्जा है। सिर्फ 5 प्रतिशत स्टार्ट अप ही ऐसे हैं जिनमें महिलाएं फाउंडर या को फाउंडर के रूप में जुड़ी हुई हैं। वाणी ने बताया कि उन्हें इस बात का गर्व भी है। उन्होंने बताया कि इंडियन स्टार्टअप मार्केट ने अच्छी प्रोग्रेस की है। और पिछले कुछ सालों में इसमें काफी विकास भी हुआ है। कई सारे वेंचर्स ने काफी फंडिंग इकट्ठा की है और कई सारे स्टार्टअप्स ने तो अच्छी सफलता भी अर्जित की है। वाणी ने बताया कि भारत एक चमकता हुआ इन्वेस्टर बेस बन रहा है।
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