इतनी गरीबी कि सुअर तक पाले, कभी सोचा न था पक्का मकान बनेगा

गरीब हीराबाई का मकान बना और गृहप्रवेश खुद सीएम ने कराया

इतनी गरीबी कि सुअर तक पाले, कभी सोचा न था पक्का मकान बनेगा

Wednesday September 12, 2018,

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यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...

29 दिसंबर 2017 का दिन हीराबाई के लिए किसी सपने से कम न था। खुद छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह उनके घर पहुंचे और उन्हें गृहप्रवेश कराया। मुख्यमंत्री ने हीरा बाई व उसके परिवार के सदस्यों से बातचीत की।

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 एक ओर जहां सरकारी मदद से अपना पक्का मकान बन गया, वहीं दूसरी ओर मकान बनाने के लिए लगने वाले श्रम के काम में हीराबाई को 95 दिनों का रोजगार मिला और 15865 रुपए मजदूरी के रूप में मिल गए। 

बरबसपुर पंचायत की गरीब ग्रामीण महिला हीराबाई, जिसने कभी सोचा भी न रहा होगा, कि उसका अपना खुद का पक्का मकान बन पाएगा। मिट्‌टी और खपरैल की टूटी-फूटी झोपड़ी से उसे कभी मुक्ति मिल पाएगी। नरेन्द्र मोदी सरकार की जनकल्याणकारी योजना और रमन सिंह सरकार के इस दिशा में बढ़ाए गए सकारात्मक कदम का ही परिणाम है कि आज हीराबाई का खुद का पक्का मकान है। 29 दिसंबर 2017 का दिन हीराबाई के लिए किसी सपने से कम न था। खुद छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह उनके घर पहुंचे और उन्हें गृहप्रवेश कराया। मुख्यमंत्री ने हीरा बाई व उसके परिवार के सदस्यों से बातचीत की। हीरा बाई ने बताया कि अब उसे खुशी है कि उसका एक अपना पक्का मकान मिला है।

जनपद पंचायत कवर्धा के ग्राम पंचायत बरबसपुर की रहने वाली श्रीमती हीराबाई पति स्वर्गीय बाबूलाल अनुसूचित जनजाति वर्ग से आती हैं। पति की अचानक 18 वर्ष पूर्व मृत्यु हो जाने के कारण दो पुत्र व एक पुत्री के परवरिश की पूरी जिम्मेदारी इस महिला पर आ गई। गुजर-बसर करना बहुत कठिन हो गया। खुद की शिक्षा-दीक्षा नहीं होने व पैसों के अभाव के कारण जैसे-तैसे चार पैसे जोड़कर सुअर पालन का काम करने लगी। मनरेगा का काम शुरु होने के बाद इस योजना के तहत काम मिलने से उसे कुछ मदद हो जाती थी। लेकिन आर्थिक परिस्थिति इतनी कमजोर थी, कि वह बच्चों को शिक्षित भी न कर सके। ऐसी स्थिति में अपनी झोपड़ी की जगह पक्का मकान बनाना मानो सपना ही था।

भारत सरकार की सामाजिक-आर्थिक व जातिगत जनगणना 2011 में श्रीमती हीराबाई का नाम पात्रता की सूची में शामिल था। आर्थिक स्थिति को देखकर ग्राम सभा ने इनके नाम पर प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के लिए सहमति दे दी। पहले किस्त के रूप में इन्हें 52000 रुपए मिले। जैसे ही काम आगे बढ़ा, अगले किस्त के रूप में 52000 फिर इनके खाते में आ गए। घर का काम जैसे ही पूरा हुआ बचे हुए 26000 रुपए मिल गए। एक ओर जहां सरकारी मदद से अपना पक्का मकान बन गया, वहीं दूसरी ओर मकान बनाने के लिए लगने वाले श्रम के काम में हीराबाई को 95 दिनों का रोजगार मिला और 15865 रुपए मजदूरी के रूप में मिल गए। पक्के मकान के साथ स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण योजना अंतर्गत 12000 की लागत से एक शौचालय भी बनवाया गया। हीराबाई सच्चे मन से कहती हैं कि ‘मैं कभू नइ सोचे रहे हव, कि मोर पति के नइ रहे के बाद भी, मोर जीवन ह अतका अच्छा हो जाही। मोर जइसे अनपढ़ महिला बर अपन लइका-बच्चा मन ल पालना अड़बड़ मुश्किल रहिस। अइसन में धन्य हो हमर सरकार ल, जेन मोला अतका बढ़िया मकान बना के दिस।’

प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरुआत 1 अप्रैल 2016 से हुई। प्रधानमंत्री आवास योजना की यह विशेषता है कि 2022 तक 2.95 करोड़ लोगों को उनका पक्का आवास दिया जाएगा। 2016-17 से 2018-19 तक कच्चे मकानों में रहने वाले 1 करोड़ परिवारों का आवास निर्माण किया जाना है। कबीरधाम जिले में 2016-17 में 14803 व 2017-18 में 7635 गरीबों के आवास बनाए गए हैं।

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