ज़िदगी की दौड़ में ज़रा दिल संभाल के
अब दिल की बीमारियां 50 की उम्र के बाद नहीं होतीं, बल्कि धड़कन कभी भी रुक सकती है, इसलिए ज़रूरी है भागदौड़ भरे इस माहौल में युवाओं की सेहतमंद जीवनशैली, समय पर रोगों का पता लगाना और उचित देखभाल। और अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के के अग्रवाल का लेख...
"विश्व स्वास्थय संगठन के मुताबिक युवाओं में नाॅन-कम्युनिकेबल या जीवनशैली से जुड़े रोग पूरी दुनिया में महामारी का रूप ले चुके हैं। भारत में भी यह चलन तेज़ी से देखा जा रहा है। इसमें 10 से 24 साल के युवा शामिल हैं, जो देश की कुल आबादी का 30.9 प्रतिशत हैं और यह तेज़ी से जीवनशैली के रोगों से पीड़ित हो रहे हैं।"
"दुनिया में दिल के रोगों से होने वाली मृत्युदर में भारत की हिस्सेदारी 40 से 49 प्रतिशत है। यंग स्ट्रोक कहा जाने वाला नई किस्म का स्ट्रोक 20 से 40 वर्ष के युवाओं में पाया जा रहा है। इसके अलावा डायबिटीज़, अस्थमा, मोटापा और हाईपरटेंशन जैसे रोग युवाओं में रोगों की एक नई लहर पैदा कर रहे हैं।"
"मेडिकल की भाषा में कहें तो जीवनशैली का कोई रोग पकड़ बनाने में 20 साल लगाता है। इसलिए सेहतमंद जीवनशैली और रोकथाम के उपाय किशोरावस्था में ही शुरू कर देने चाहिए।"
आज का युवा जितना आधुनिक हुआ है, उतना ही लापरवाह भी और सबसे बड़ी लापरवाही वह अपने शरीर के साथ ही कर रहा है। खानपान के गलत शौक उसके शरीर को धीरे-धीरे खतम करने का काम कर रहे हैं। युवा कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं, जिसमें सबसे अधिक कॉमन बीमारियां दिल से जुड़ी हुई हैं। इन लंबी चलने वाली बीमारियों का प्रमुख और प्राथमिक कारण हैं तंबाकू और शराब का सेवन, आलसी जीवनशैली और ख़राब पौष्टिकता। यह चीज़ें किशोरावस्था और बचपन के शुरूआती सालों में ही अपना असर दिखाने लगती हैं और आगे चल कर लंबी बीमारियों का कारण बन जाती हैं।
इन बीमारियों की एक और महत्वपूर्ण वजह है तनाव। नौकरी या पढ़ाई में तेज़ी से आगे बढ़ने की दौड़, अनियिमित काम करने की लापरवाह आदतें और नींद का कम लेना लगातार तनाव को बनाए रखता है, जो हाईपरटेंशन, दिल के रोगों और अवसाद का प्रमुख कारण बनता है।
10 में से 1 व्यक्ति के भारत में अवसाद से ग्रस्त होने की वजह से तनाव भी अगली महामारी बनने की कगार पर है। आलसी जीवनशैली और तनाव मिल कर एक अस्वस्थ माहौल पैदा कर देते हैं, जो जीवनशैली के रोगों को प्रोत्साहित करने की उपजाऊ ज़मीन बन जाता है। इसलिए अब वक्त आ गया है, कि जब इस भ्रांति को तोड़ जाए कि लंबी बीमारियां केवल 50 साल की उम्र के बाद ही होती हैं। युवाओं को सेहतमंद जीवनशैली, समय पर रोगों का पता लगाने और उचित देखभाल करने के बारे में स्कूल के दिनों से ही शिक्षित करना बेहद आवश्यक हो गया है।
यहां मैं आपको 80 के वे सुनहरे सूत्र बता रहा हूं, जिसे फॉलो करते हुए आप 99 प्रतिशत तक दिल के रोगों से खुद को दूर रखते हुए ज़िंदगी को सकारात्मक तरीके से जी सकते हैं,
अपना ब्लड प्रेशर, खाली पेट शूगर, पेट का घेरा, आराम की हालत में दिल की धड़कन, बुरा कोलेस्ट्रॉल सभी को 80 से कम रखें।
दिन में 80 मिनट सैर करें।
सप्ताह में 80 मिनट चुस्त सैर करें, जिसमें एक मिनट में 80 कदम की गति से चलें।
एक आहार में 80 ग्राम से ज़्यादा कैलोरीज़ वाला आहार ना लें।
साल में 80 दिन रिफाईन्ड सीरियल्ज़ ना खायें।
साल में 80 दिन धूप के ज़रिये विटामिन डी लें।
शराब का सेवन ना करें और अगर करें तो एक दिन में 80 एमएल से ज़्यादा ना पीयें।
दिल की धड़कन 80 प्रति मिनट से कम रखें।
दिन में धीमी और लंबी सांस के 80 चक्र का अभ्यास करें।
खाली पेट शुगर 80 से कम रखें।
अपना ब्लड प्रेशर 80 से कम रखें।
पीएम 2.5 और पीएम 10 के 80 से ज़्यादा वायू प्रदूषण के स्तर वाले माहौल से दूर रहें।
बुरा कोलेस्ट्रोल 80 से कम रखें।
यदि आप इन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखते हैं, तो यकीनन दिल का कोई रोग आपको छू नहीं सकता, साथ ही खुद के साथ-साथ अपने बच्चों की जीवशैली और खानपान को भी सुधारने का काम करें। बज़ार में खानपान के ढेरों विकल्प और तरह-तरह के खेल-खिलौने मौजूद हैं, जो बच्चों को बीमारियों की खाई में ढकेल रहे हैं। इसलिए जो भी करें, सोच समझ कर करें।