भारत में महिलाओं को रोज़गार के लिए और सुरक्षा देने की ज़रूरत-विश्व बैंक
पीटीआई
भारत में महिलाओं को रोजगार के मामले में कई तरह के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है और उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा देने के लिये कोई कानून नहीं है। यह बात विश्व बैंक की नई रपट में एशिया की इस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के बारे में कही गई है।
विश्व बैंक ने एक रपट में कहा कि भारत में महिलाओं के लिये नौकरी के मामले में कई तरह के प्रतिबंध हैं। महिलाओं को खनन या ऐसे क्षेत्र में रोजगार नहीं करने दिया जाता है जहां एक सीमा से अधिक वजन उठाना पड़ता है। वे शीशे की फैक्ट्री में भी काम नहीं कर सकतीं।
कानून के तहत महिलाओं के ऐसे रोजगार करने पर भी रोक है जिनमें जीवन, स्वास्थ्य या नैतिकता संबंधी खतरा हो। रिपोर्ट की मुख्य लेखिका ने हालांकि, इसकी एक वजह पुराने ब्रिटिश काल के कानून ज्यों के त्यों लागू रहना भी बताया है।
विश्वबैंक की इस रपट में कहा गया है कि वहां इसके अलावा सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं की सुरक्षा का कोई कानून नहीं है। हालांकि, दुनिया की 18 अन्य अर्थव्यवस्थाओं में यह कानून है।
विश्व बैंक ने ‘महिला, व्यवसाय और कानून 2016,’ नामक इस रिपोर्ट में कहा है कि पिछले दो साल में भारत ने रपट के दायरे में शामिल क्षेत्रों में से एक में सुधार किया है।
शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के निदेशक मंडल में कम से कम एक महिला सदस्य की नियुक्ति को अनिवार्य बनाने के साथ ही भारत ऐसा करने वाला इकलौता विकासशील देश बन गया है और विश्व के उन नौ देशों में शामिल हो गया है जिनमें कंपनियों के निदेशक मंडल में महिलाओं की मौजूदगी को अनिवार्य बनाया है।
रपट की प्रमुख लेखिका सारा इकबाल ने कहा ‘‘मैं भारत में रोजगार के मामले में कुछ प्रतिबंधों के मामले में कहना चाहूंगी कि इसका बड़ा स्रोत औपनिवेशिक दौर के कानून होना है। इसमें मेरा मतलब जैसे फैक्ट्री कानून जो ब्रिटिश दौर का है।’’ उन्होंने कहा ‘‘इसी तरह के कानून आपको पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में मिल जायेंगे और मूल रूप से ये इनमें ऐसे कामों को काफी सीमित कर दिया गया है जिन्हें महिलायें कर सकतीं हैं। यहां तक कि जमाइका में भी यही फैक्ट्री कानून है जिसमें हाल में उन्होंने दो साल पहले सुधार लाया है और उन्होंने कुछ रोजगारों और फैक्ट्रियों में महिलाओं के काम करने पर से पाबंदी हटाई है।’’