मुझे भी लगता है कि पैसा कम मिलता है-राजन
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने आज कहा कि सार्वजनिक :पीएसयू: बैंकों में निचले स्तर पर वेतनमान ‘अधिक’ है लेकिन शीर्ष कार्यकारियों को ‘कम वेतन’ मिलता है। एक तरह से मजाकिया लहजे में राजन ने कहा कि उन्हें तो खुद ‘ कम पैसा मिलता है।’ राजन ने सार्वजनिक बैंकों के शीर्ष पदों पर प्रतिभाओं को आकषिर्त करने में आ रही दिक्कतों को रेखांकित करते हुए यह बात कही।
वे यहां बैंकिंग सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा,‘सार्वजनिक क्षेत्र की सभी इकाइयों में एक समस्या यह भी है कि आप निचले स्तर पर अधिक वेतन (ओवरपे) देते हैं जबकि शीर्ष पर कम वेतन (अंडर पे) देते है। यह सही है कि आपको लगता है कि आप व्यापक जनहित में काम कर रहे हैं, लेकिन इससे शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करना मुश्किल हो जाता है।’ राजन ने मजाकिया लहजे में कहा,‘ मुझे भी लगता है कि पैसा कम मिलता है।’ उल्लेखनीय है कि राजन का आरबीआई गवर्नर के रूप में मौजूदा कार्यकाल चार सितंबर को समाप्त हो रहा है।
रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार राजन का कुल मासिक वेतन भुगतान जुलाई 2015 में 1,98,700 रुपये रहा।
वित्तीय संस्थानों की सालाना रपटों के अनुसार सार्वजनिक व निजी बैंकों के शीर्ष अधिकारियों के वेतनमान में भारी अंतर है। एसबीआई की चेयरपर्सन अरंधति भट्टाचार्य को 2015-16 में केवल 31.1 लाख रुपये वेतन मिला जबकि निजी बैंक एचडीएफसी बैंक के प्रबंध निदेशक आदित्य पुरी का वेतनमान इसी अवधि में तीन गुना अधिक 9.7 करोड़ रुपये रहा।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर सरकारी, नियामकीय निगरानी कम करने पर ज़ोर
रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में शीर्ष पदों पर नियुक्ति के मामले में सरकार की भूमिका को धीरे धीरे समाप्त करने पर जोर दिया है। राजन ने बैंकों के संचालन संबंधी सभी बड़े निर्णय लेने के मामले में बैंकों के निदेशक मंडल को पूरी छूट दिये जाने का सुझाव दिया है। राजन ने कहा है कि बैंक निदेशक मंडल को निर्णय लेने के मामले में विभिन्न पक्षों को संतुष्ठ करने का दबाव नहीं होना चाहिये।
रिजर्व बैंक के निर्वतमान गवर्नर ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर सरकार और रिजर्व बैंक सहित विभिन्न नियामकीय एजेंसियों का पहरा कम करने का सुझाव देते हुये इन बैंकों के निदेशक मंडल से केन्द्रीय बैंक के प्रतिनिधि को भी वापस लेने को कहा है।
राजन ने कहा, ‘‘आज कई तरह की एजेंसियां और सरकारी विभाग बैंकों के कामकाज पर नजर रखती है। संसद, वित्तीय सेवाओं का विभाग, बैंक बोर्ड ब्यूरो, बैंकों का बोर्ड, सतर्कता एजेंसियां, रिजर्व बैंक और कई अन्य नियामक एजेंसियां -- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कामकाज की निगरानी करती हैं। राजन ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि इतनी सारी एजेंसियों को संतुष्ठ करने के साथ साथ यह काफी आश्चर्यजनक है कि बैंक प्रबंधन को अपने बैंक के प्रबंधन का भी समय मिल जाता है।
गवर्नर ने विभिन्न एजेंसियों और विभागों के कामकाज और अधिकारक्षेत्र में दोहराव नहीं होना चाहिये। उन्होंने कहा कि कैग और सीवीसी जैसी एजेंसियों को असाधारण परिस्थितियों में ही बैंकों के मामले में शामिल किया जाना चाहिये। इन एजेंसियों को तभी बैंकों के मामले में कदम रखना चाहिये जब कोई अपराध अथवा जुर्म हुआ है लेकिन ऐसे मामले जहां व्यावसायिक तौर पर वैध तरीके से लिये फैसले गलत पड़ जाते हैं उन मामलों में इन एजेंसियों को शामिल करना ठीक नहीं। -पीटीआई