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साहिबाबाद की सुमन ने ज़रूरतमंद औरतों की मदद के लिए शुरू किया एक अनोखा बिज़नेस

मजबूर औरतों को मजबूत बना रही हैं साहिबाबाद की सुमन संथोलिया...

साहिबाबाद की सुमन ने ज़रूरतमंद औरतों की मदद के लिए शुरू किया एक अनोखा बिज़नेस

Monday June 26, 2017 , 5 min Read

जीवन में तमाम तरह की मुश्किलों पर पार पाते हुए लोग अपने सपनों की राह चुनते हैं। ऐसे में उन्हें अपने जीवन की कई आत्मीय और जरूरी चीजें छोड़नी पड़ती हैं तो कठिनाइयों की दुस्सह चढ़ाइयां भी चढ़नी पड़ती हैं। अपनी मेहनत और हुनर से कामयाबी की ऐसी ही संघर्ष गाथा लिखी है साहिबाबाद की सुमन संथोलिया ने।

सुमन संथोलिया, फोटो साभार: फेसबुक

सुमन संथोलिया, फोटो साभार: फेसबुक


साहिबाबाद की सुमन संथोलिया पर कवि केदारनाथ अग्रवाल के ये शब्द सार्थक बैठते हैं - जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है, तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है, जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है, जो रवि के रथ का घोड़ा है, वह जन मारे नहीं मरेगा, नहीं मरेगा।"

सुमन संथोलिया 'आकृति आर्ट क्रिएशन' की मदद से उन ज़रूरतमंद औरतों को रोज़गार दे रही हैं, जो थोड़े-थोड़े पैसों के लिए अपने पतियों पर निर्भर रहती थीं। बिज़नेस शुरू करने से पहले सुमन का उद्देश्य जितना अपने लिए या अपने बिज़नेस के लिए कुछ करने का था, उससे कहीं ज्यादा वो समाज की इन खास औरतों के लिए कुछ करना चाहती थीं। उन्होंने मोहल्ले-मोहल्ले गली-गली घूम कर उन औरतों को अपने बिज़नेस से जोड़ा है, जो या तो कपड़ों पर स्त्री करती थीं, या किसी के घर में झाड़ू पोंछे का काम करती थीं, या तो ड्राईवर की पत्नी थीं या फिर किसी के बच्चों को पार्क में खिलाने जाती थीं।

जीवन में तमाम तरह की मुश्किलों पर पार पाते हुए लोग अपने सपनों की राह चुनते हैं। ऐसे में उन्हें अपने जीवन की कई आत्मीय और जरूरी चीजें छोड़नी पड़ती हैं, तो कठिनाइयों की दुस्सह चढ़ाइयां भी चढ़नी पड़ती हैं। अपनी मेहनत और हुनर से कामयाबी की ऐसी ही संघर्ष गाथा लिखी है साहिबाबाद की सुमन संथोलिया ने। उन पर कवि केदारनाथ अग्रवाल के ये शब्द सार्थक बैठते हैं- 'जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है, तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है, जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है, जो रवि के रथ का घोड़ा है, वह जन मारे नहीं मरेगा, नहीं मरेगा।' 

सुमन के पति बीबी संथोलिया लोहे के कारोबारी हैं। आज सुमन की सफलताएं हमारे समय में बहुतों का प्रेरणा स्रोत बन रही हैं। यद्यपि वह कोलकाता के एक मारवाड़ी परिवार से हैं, लेकिन अपने कठोर जीवन को आसान बनाने के साथ ही सैकड़ों लोगों की भी रोजी-रोटी का आधार बना चुकी हैं। अपने इसी बूते उन्हें कई बार सम्मानित किया जा चुका है।

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दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दिक्षित के साथ सुमन संथोलिया

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शादी के बाद सुमन ने एक दिन अचानक कुछ कर दिखाने की ठानी। घर की नौकरानी को साथ लिया। काम-काज कोई और क्यों, हैंडीक्राफ्ट आइटम्स बनाने का विचार दिमाग पर सटीक बैठ गया।

राजधानी दिल्ली महानगर का हिस्सा बन चुके साहिबाबाद के इंडस्ट्रियल स्टेट में स्थित है सुमन संथोलिया का स्किल इंडिया ट्रेनिंग सेंटर। यहां तैयार होते हैं हैंडीक्राफ्ट भांति-भांति के सामान, जिनकी विदेशों तक डिमांड रहती है और ये सामान तैयार करने वाले कोई और नहीं, बल्कि उनमें ज्यादातर महिलाएं और दृष्टिहीन हैं। जैसा कि सुमन के मनोमस्तिष्क में भी शुरुआती दौर घूमा था, सचमुच कितना असहनीय हो जाता है, ऐसी स्थितियों में स्वयं के अकेला हो जाने का एहसास। तब ये सच्चाई बहुत ढांढस देती है कि कुछ भी सोच लें, मन को दुनिया और विचारों के तर्कों-कुतर्कों से समझा-बुझा लें, कह लें, सुन लें, जग में आए तो अकेले ही न और जाएंगे भी अकेले। फिर क्यों न अपने इस निठल्ले वक्त को किसी बेहतर अंजाम तक ले जाएं। हर किसी को जीवन इस तरह के अवसर बार-बार देता है। शादी के बाद एक दिन अचानक उन्होंने कुछ कर दिखाने की ठानी। घर की नौकरानी को साथ लिया। काम-काज कोई और क्यों, हैंडीक्राफ्ट आइटम्स बनाने का विचार दिमाग पर सटीक बैठ गया।

एक तो सुमन का संकल्प कठोर था, दूसरे उन्होंने अपने सहकर्मियों की टीम भी परंपरा से हटकर बनाई। उन्होंने सोचा कि उनकी तरह से तो तमाम महिलाओं का घरेलू वक्त बेकार जाया होता होगा, लेकिन उनमें भी इस मिशनरी जैसे काम के लिए गरीब-वंचित, मेहनतकश, श्रमिक परिवारों की महिलाओं को उन्होंने लक्ष्य किया।

एक बार शुरुआत कर देने के बाद ऐसे परिवारों की महिलाएं सीधे उनके संपर्क में आने लगीं। सुमन और उनकी शुरू की सहकर्मी उनको हैंडीक्रॉफ्ट के काम-काज में दक्ष करने लगीं। इस तरह एक-एक कर उन्होंने अपने साथ काम करने वाली दो-ढाई सौ औरतों को जोड़ लिया। इतना ही नहीं, उनकी फैक्ट्री में दस दृष्टिहीन कर्मी भी काम पर लगा लिए गए। इस तरह एक साथ इन सबकी रोजी-रोटी चल निकली।

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यह उद्यम शुरू करने से पहले सुमन संथोलिया ने यदा-कदा खुद को कदाचित कमजोर भले महसूस किया, लेकिन पराजित कदापि नहीं हुईं।

आज सुमन की फैक्ट्री में सजावट से लेकर मोमेंटो तक तरह-तरह के आइटम बनाए जाते हैं। यहां बनाए गए मोमेंटो विदेशों तक सप्लाई हो रहे हैं। यहीं पर तैयार की गई मेज राष्ट्रपति भवन तक पहुंच चुकी है। यहां के सजावटी सामानों की भारी डिमांड के पीछे इन आइटमों की खूबसूरती भी एक खास वजह है। यह उद्यम शुरू करने से पहले सुमन संथोलिया ने यदा-कदा खुद को कदाचित कमजोर भले महसूस किया, लेकिन पराजित कदापि नहीं। 

अपने अनुभवों से सहयोग लेकर, कि जीवन में हारना कभी नहीं है, हारने का अर्थ होगा मर जाना, उन्होंने जो ठान लिया, सो ठान लिया और आज इस मोकाम पर हैं कि पहले उन्हें दिल्ली सरकार की ओर से अवार्ड नवाजा गया, फिर उन्होंने नेशनल अवार्ड भी मिला।

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