घर बैठे स्वादिष्ट और पौष्टिक नाश्ता चाहिये तो ‘द ब्रेकफास्ट बाॅक्स’ है ना
पुणे में स्थापित यह फूडटेक स्टार्टअप स्थानीय लोगों को प्रतिदिन सुबह के वक्त उपलब्ध करवा रहा है भोजनअपने लिये नाश्ते की तलाश में भटकते चार लोगों ने इस समस्या का समाधान तलाशने के क्रम में की ‘द ब्रेकफास्ट बाॅक्स’ की स्थापनाहर रोज परोसे जाने वाले व्यंजनों का मेन्यू नया होता हैआने वाले कुछ वर्षों से पुणे के अलावा देश के 8 से 10 अन्य शहरों में विस्तार की है योजना
जय ओझा, अवनीश जयसवाल, मृगनयन कमथेकर और महर्षि उपाध्याय द्वारा शुरू किया गया ‘द ब्रेकफास्ट बाॅक्स’ (The Breakfast Box) अपने उपभोक्ताओं के दरवाजे तक दिन के उस सबसे महत्वपूर्ण और आवश्यक भोजन को पहुंचाने का काम करता है जिसे अक्सर हम अपनी बेहद व्यस्त दिनचर्या के चलते हम नाश्ते को तवज्जो नहीं दे पाते हैं या कहें कि कई बार तो भूल भी जाते हैं।
हालांकि इसे शुरू करना इस चौकड़ी के लिये इतना आसान नहीं रहा और इस विचार को अमली जामा पहनाने से पहले ये चारों मंथन के एक बेहद लंबे दौर से गुजरे। चारो क-फाउंडर्संस इस बात को बहुत अच्छी तरह से जानते थे कि वे एक ऐसी समस्या का सामधान पेश करने की दिशा में अपने कदम आगे बढ़ाने जा रहे हैं जिससे एक न एक दिन वे भी रूबरू हो चुके हैं। उनके जेहन में वे दिन ताजा थे जब वे भी अपने लिये स्वादिष्ट और पौष्टिक नाश्ते के विकल्पों की तलाश में कई जगह भटकते थे और अंत में उनके हाथ निराशा ही लगती थी।
विचार और स्थापना
महर्षि बताते हैं, ‘‘अपने घरों से दूर रहने के दौरान हम अक्सर अपने लिये पौष्टिक नाश्ता तलाशने के क्रम में काफी नरेशानियों का सामना करते थे और फिर भी हमें अपना मनपसंद नाश्ता नहीं मिल पाता था।’’ बस उसी दौरान इन्हें इस बात का अहसास हुआ कि अगर सबको दिन निकलते ही स्वादिष्ट और पौष्टिक नाश्ता उपलब्ध करवाना है तो उसके लिये इस खाने को लोगों के दरवाजे तक पहुंचाने के अलावा और कोई अन्य कारगर विकल्प मौजूद नहीं है। वे आगे कहते हैं, ‘‘हमनें सबसे पहले अपने साथ एक न्यूट्रिशनिस्ट (पोषण विशेषज्ञ) को जोड़ा जो हमें महीने के हर दिन बदलने वाला मेन्यू तैयार करने में सहयोग करता है।’’
'द ब्रेकफास्ट बाॅक्स' अपने क्लाइंट्स के लिये ऐसे व्यंजन पैक करवाकर होम डिलीवरी करता है जो पौष्टिक होने के साथ-साथ बेहद स्वादिष्ट भी होते हैं। अपने प्रारंभिक दिनों में इस टीम को अहसास हुआ कि लोग एक निश्चित दिन उनके उत्पाद चाहते हैं और उसके बाद ही उन्होंने खुले बाजार में अपने उत्पाद उतारने का फैसला किया।
स्थापना और विस्तार
इन्होंने पुणे में पहले महीने में लगभग 300 डिब्बों की डिलीवरी के साथ काम शुरू किया और अब चार महीने बाद ये औसतन 1200 से 1500 डिब्बे वितरित कर रहे हैं। महर्षि आगे कहते हैं कि इतने कम समय में ही पुणे के रहने वाले लोगों से मिल रही सकारात्मक प्रतिक्रियाओं और लगातार बढ़ रहे संपर्कों से प्रोत्साहित होकर इनका इरादा अब दूसरे अन्य शहरों में भी विस्तार करते हुए वहां भी अपनी शाखाएं खोलने का है।
वे कहते हैं, ‘‘हाल के दिनों में कुछ निजी निवेशकों और स्थानीय व्यवसाईयों ने हमारे इस उद्यम में निवेश करने और हमारा सहभागी बनने में दिलचस्पी दिखाई है। लेकिन हम अपने लिये मुख्यतः ऐसे सहयोगियों की तलाश में हैं जो हमारे इस विचार और समूह की दृष्टि के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकें। हमारा ध्यान सिर्फ प्रोफिट बढ़ाने पर ही केंद्रित नहीं है।’’
चुनौतियां
महर्षि बताते हैं कि अपने इस काम के लिये उपयुक्त लोगों को भर्ती करना सबसे बड़ी चुनौती रहा है। इन्होंने सबसे पहले एक घरेलू रसोईये के साथ काम करना प्रारंभ किया लेकिन इनके द्वारा परोसे जाने वाले भोजन और व्यंजनों के बारे में लेशमात्र भी समझ और जानकारी नहीं थी। ऐसे में जय इनकी मदद के लिये सामने आए और इन्हें इनकी पसंद का खाना पकाने के प्रारूप का पालन करने में मदद की।
अपने उत्पाद की बढ़ती हुई आवश्यकताओं की पूर्ति करने के उद्देश्य से इस टीम को वितरण के लिये कुछ लोगों को अंशकालिक यानि पार्ट-टाइम आधार पर अपने साथ जोड़ना पड़ा क्योंकि ये सुबह 7 बजे से लेकर सुबह 11 बजे तक खाना उपलब्ध करवाते हैं। कुछ समय के बाद ही इन्हें एक अच्छे शेफ का साथ मिल गया जिसनें बहुत जल्द एक हेड शेफ और दो सहायकों की छोटी सी किचन टीम खड़ी कर दी।
महर्षि कहते हैं, ‘‘वर्तमान मे हम जिस भी मुकाम पर है वह अपने दम पर हैं और हम पूरी तरह से स्ववित्तपोषित हैं। स्थापना के चार महीनों के भीतर ही हम अपनी परिचालन की लागत निकालने में कामयाब रहे हैं। हमारे साथ हाथ मिलाने के इरादे से बीते दिनों में कुछ निवेशकों ने हमसे संपर्क किया है और हम उनसे वार्ताओं के दौर में हैं।’’
इस टीम का इरादा आने वाले चार महीनों में पुणे के निवासियों को पौष्टिक नाश्ता उपलब्ध करवाने के बाद आने वाले दो से तीन वर्षों से भीतर आठ अन्य शहरों में अपना विस्तार करने का है।
याॅरस्टोरी का निष्कर्ष
50 बिलियन डाॅलर का बाजार होने के चलते फूडटेक के क्षेत्र में कई मी-टू कंपनियां संचालित हो रही हैं। फूडपांडा और टाइनीआऊल के बुरे दौर के चलते कई निवेशक पशोपेश में हैं और उन्हें लग रहा है कि इस व्यापार का संचालन इतना आसान नहीं है और यह बहुत अधिक पूंजी-प्रधान है। यही वजह है कि इसमें कदम रखने वाले प्रत्येक खिलाड़ी के लिये सफलता की राह इतनी आसान नहीं है। अगर आप सिर्फ अप्रैल के महीने में ही इस क्षेत्र में हुए निवेश पर नजर डालें तो कुल मिलाकर 7 सौदों में 74 मिलियन अमरीकी डाॅलर की एक भरी-भरकम राशि का निवेश हुआ है। यह रकम अगस्त के महीने में घटकर सिर्फ 19 मिलियन डाॅलर पर आकर सिमट गई। सितंबर का महीना आते-आते यह संख्या घटकर कुल दो सौदों पर आकर टिक गई।
भरपूर निवेश के बावजूद कई विशेषज्ञों का मानना है कि अधिकतर स्टार्टअप बहुत अधिक छूट और कूपनिंग के चक्कर में पड़ गए। इसके अलावा फूडटेक के क्षेत्र में उपभोक्ता को अपनी ओर आकर्षित करते हुए उसे अपना उत्पाद खरीदने के लिये राजी करना एक बहुत महंगा सौदा है। सूत्रों का दावा है कि फूडपांडा जैसे दिग्गज फूड आॅर्डरिंग मंच एक उपभोक्ता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिये 400 से 500 रुपये तक खर्च कर देते हैं।