घाटी में कायम माहौल का सारांश है डीएसपी मुहम्मद अयूब पंडित की हत्या
अलगाव की आग में तप रही वादी-ए-कश्मीर ने रामदान के पवित्र महीने को फिर एक बार लहूलुहान कर दिया...
जामिया मस्जिद के बाहर शब-ए-कद्र की रात डीएसपी मुहम्मद अयूब पंडित की हत्या को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं। दिवंगत के परिजनों के अनुसार, अगर नाम के साथ पंडित नहीं जुड़ा होता तो शायद जान बच जाती। शहीद डीएसपी के रिश्तेदारों के मुताबिक, भीड़ ने मुहम्मद अयूब पर यह सोचकर हमला किया होगा कि वह कश्मीरी पंडित है, क्योंकि उसके पास जो विभागीय पहचान पत्र था, उस पर उसका नाम मुहम्मद अयूब पंडित के बजाय एमए पंडित लिखा हुआ था।
बांग्लादेश में रहकर पढ़ाई कर रही अयूब पंडित की बेटी सानिया परिवार के साथ ईद मनाने घर आई थी, लेकिन उसे अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होना पड़ा।
अलगाव की आग में तप रही वादी-ए-कश्मीर ने रामदान के पवित्र महीने को फिर एक बार लहूलुहान कर दिया। रात भर जाग कर मस्जिदों और दरगाहों में खुदा की इबादत कर गुनाहों से तौबा करने के दिन शब-ए-कद्र में खुदा के घर के बाहर अर्थात मस्जिद के बाहर भीड़ ने पत्थर मार-मार कर एक इंसान को कत्ल कर दिया। अयूब पंडित नाम का वह इंसान कश्मीरी था और जम्मू -कश्मीर पुलिस में डीएसपी के पद पर काबिज था। वजह और गुनाह तो अभी तक भीड़ ने बताया नहीं है किंतु चर्चा है कि भीड़ का यह कारनामा नियोजित था।
जामिया मस्जिद के बाहर शब-ए-कद्र की रात डीएसपी मुहम्मद अयूब पंडित की हत्या को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं। दिवंगत के परिजनों के अनुसार, अगर नाम के साथ पंडित नहीं जुड़ा होता तो शायद जान बच जाती। शहीद डीएसपी के रिश्तेदारों के मुताबिक, भीड़ ने मुहम्मद अयूब पर यह सोचकर हमला किया होगा कि वह कश्मीरी पंडित है, क्योंकि उसके पास जो विभागीय पहचान पत्र था, उस पर उसका नाम मुहम्मद अयूब पंडित के बजाय एमए पंडित लिखा हुआ था। कश्मीर घाटी में अधिसंख्य मुस्लिम आबादी मूल रूप से कश्मीरी पंडित समुदाय से जुड़ी है। यह लोग धर्मांतरण के बाद मुस्लिम बने हैं और कई लोग आज भी अपने मुस्लिम नाम के साथ अपने पुराने नाम जोड़ कर लिखते हैं। कश्मीरी पंडित समुदाय में पंडित नामक एक जात है और इस जात से मुस्लिम बने लोग अपने नाम के साथ पंडित लिखते हैं। गौरतलब है कि अक्सर जब कश्मीर में किसी जगह शरारती तत्व और हुर्रियत समर्थक पत्थरबाज किसी पुलिसकर्मी को पकड़ते हैं तो सबसे पहले वह उसका पहचानपत्र देखते हैं। मुहम्मद अयूब के पहचानपत्र पर एमए पंडित लिखा हुआ था और दूसरा वह डीएसपी था। इसलिए वहां मौजूद भीड़ को संदेह हुआ होगा कि वह वहां पत्थरबाजों की मुखबिरी करने आया है।
बताया जा रहा है, कि अयूब ने अपनी सर्विस पिस्टल से फायरिंग करते हुए वहां से निकलने की कोशिश की। लेकिन कुछ भी देर में भीड़ उन पर हावी हो गई। उन्हें तब तक पीटा गया जब तक कि उनकी मौत नहीं हो गई। यह सब कुछ उस वक्त हो रहा था जब मीरवाइज मस्जिद के अंदर अल्लाह से माफ करने की दुआ मांग रहे थे। बांग्लादेश में रहकर पढ़ाई कर रही अयूब पंडित की बेटी सानिया परिवार के साथ ईद मनाने घर आई थी, लेकिन उसे अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होना पड़ा। डीएसपी अयूब की एक भतीजी को रोते हुए यह कहते सुना गया, हां, हम भारतीय हैं, हम भारतीय हैं। उन्होंने एक मासूम इंसान को मार डाला, हमारे मासूम अंकल को मार दिया। हत्या के बाद मातमपुर्सी के दौर ने अभी अपनी आधी दूरी भी तय नहीं की थी कि भारतीय गणराज्य के विरूद्ध लामबंद हमें चाहिये आजादी गिरोह की पूरी जमात मीरवाइज के समर्थन में मैदान में उतर आई। हालांकि डीएसपी अयूब की बर्बर हत्या की सभी ने निंदा करते हुये क्षोभ व्यक्त किया है।वारदात के वक्त डीएसपी के साथ मौजूद अन्य पुलिसवालों के मौके से भागने की रिपोर्ट्स पर, डीजीपी ने कहा कि मामले की जांच चल रही है।
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लेकिन, सवाल है कि जब वादी में लगातार बिगड़ रहे हालात में शरारती तत्व पुलिसकर्मियों को मौका मिलते ही पीट देते हैं। ऐसी स्थिति में अयूब को नौहट्टा स्थित जामिया मस्जिद में शब-ए-कद्र की रात, जब हजारों लोग जमा होते हैं, क्यों तैनात किया गया? उनके साथ अंगरक्षक क्यों नहीं थे? क्या वह मीरवाइज मौलवी उमर फारूक की सुरक्षा के लिए तैनात थे? अगर उनके साथ और भी सुरक्षाकर्मी थे तो उन्होंने उन्हें बचाया क्यों नहीं? अगर वह भीड़ से बचकर निकल गए थे तो उन्होंने वहीं पास में तैनात पुलिस व सीआरपीएफ के जवानों को क्यों नहीं बताया?
सवाल यह भी पैदा होता है, कि दिवंगत को जब वहां पकड़ा गया तो उन्होंने युवकों को क्यों नहीं बोला कि वह मीरवाइज की सुरक्षा के लिए आए हैं? उन्होंने क्यों नहीं मीरवाइज के पास ले जाने की बात की या उन्हें पकडऩे वाले क्यों उन्हें मस्जिद के भीतर लेकर नहीं गए? इन सवालों के जवाब तो सिर्फ उनके हत्यारे ही दे सकते हैं। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती कहती हैं कि डीएसपी वहां नमाज अदा करने गए थे और उन्होंने अपने अंगरक्षकों को यह कहकर घर भेजा था, कि यहां सभी उनके अपने ही हैं, क्योंकि वह खनयार में रहते थे, लेकिन पुलिस के आलाधिकारी कहते हैं कि वह वहां ड्यूटी पर थे। जामिया मस्जिद में अक्सर राज्य पुलिस के सुरक्षा विंग के अधिकारी और जवान तैनात रहते हैं। उन्हें पथराव के दौरान भी कोई नहीं छेड़ता। फिर डीएसपी के साथ ऐसा क्या हुआ?
यह कुल घटनाक्रम समूची घाटी में कायम माहौल के सारांश को व्यक्त करता है। कश्मीरी भीड़ ने पत्थरबाजी कर हत्या करने के नये हुनर का कामयाब प्रदर्शन कर भविष्य के लिये अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। शायद अब दिल्ली और देश के तमाम वैचारिक एवं शैक्षणिक प्रतिष्ठानों में बैठे बुद्धजीवियों को मेजर गोगई के प्रयोग की व्यवहारिकता और प्रासांगिकता समझ में आ रही होगी। खैर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि डीएसपी अयूब का फोटो खींचना भी उनकी मौत की वजह बना। दरअसल भीड़ में कुछ लोग ऐसे भी शामिल थे जिन्हें अपना चेहरा सामने आने पर पकड़े जाने का खौफ था या फिर मस्जिद के भीतर बैठे कुछ लोग ये नहीं चाहते थे कि उनसे मिलने-जुलने आए खास लोगों के फोटो सामने आए। डीएसपी अयूब की हत्या को सिर्फ और सिर्फ अचानक भीड़ का हमला कह कर खत्म नहीं किया जा सकता है। भीड़ के हाथ में हमले का हथियार देने वालों का भी हिसाब होना चाहिये। सोचने वाली बात ये है कि घाटी का युवा किस जेहाद के आगोश में सेना और पुलिस को निशाना बना रहा है। हर जुमे की नमाज के बाद सड़कों पर सेना पर पत्थर फेंकती भीड़, पाकिस्तान के नारे लगाता हुजूम और भारत के खिलाफ आग उगलते पोस्टर कब तक सेना और पुलिस के धैर्य का इम्तिहान लेते रहेंगे?
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सुरक्षा बलों पर बढ़े हमले
हाल के दिनों में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की घटनाएं काफी बढ़ गई हैं। अब अक्सर आतंकियों द्वारा सुरक्षा बलों पर हमला करने, पुलिस कर्मियों के हथियार लूट लेने या अन्य वारदात करने की खबरें आ रही हैं। खासकर आतंकियों के सुरक्षा बलों पर हमले बढ़े हैं। इस महीने सुरक्षा बलों पर आतंकी हमलों की कई दुखद घटनाएं देखी गईं। 03 जून को सेना का काफिला जम्मू से श्रीनगर की ओर जा रहे थे, तभी जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर काजीगुंड के पास आतंकियों ने उन पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। इसके बाद 05 जून को तड़के सुबह बांदीपुरा में सीआरपीएफ के कैंप पर चार फिदायीन आतंकियों ने हमला कर दिया था जिन्हें सीआरपीएफ के जवानों ने एनकाउंटर में मार गिराया।
16 जून को उत्तरी कश्मीर के अनंतनाग में पुलिस दल पर घात लगाकर किए गए आतंकी हमले में एक एसएचओ फिरोज अहमद डार समेत छह पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। लश्कर-ए-तैयबा के खूंखार आतंकियों ने पुलिसकर्मियों के चेहरे पर भी गोलियां मारीं और उनके हथियार छीनकर फरार हो गए। दरअसल इस हत्या के पीछे बताया जाता है कि सुरक्षा बलों ने दक्षिण कश्मीर के बिजबहेड़ा इलाके में लश्कर कमांडर मट्टू समेत 3 आतंकवादियों को एक मुठभेड़ में मार गिराया था। हाल के दिनों में जम्मू कश्मीर में आतंकी घुसपैठ और हमले की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हुई है।
पिछले साल हिज्बुल आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद से कश्मीर वादी सुलग रही है। उसके बाद से उरी के सेना कैंप पर हमला सबसे बड़ी आतंकी वारदात थी। 12 फरवरी को कुलगाम में हुई मुठभेड़ में 4 आतंकी मारे गए, 2 नागरिक और सैनिक भी शहीद हुये। मुठभेड़ के दौरान स्थानीय लोगों से हुई झड़पों में 24 लोग घायल। 14 फरवरी को उत्तरी कश्मीर में 2 बड़े एनकाउंटर, 4 आतंकी मारे गए, 4 सैनिक भी शहीद, मरने वाले आतंकियों में लश्कर के 2 बड़े कमांडर शामिल। 23 फरवरी को शोपियां जिले में आतंकियों ने सुरक्षाबलों पर हमला बोला, मुठभेड़ में 3 जवान शहीद, 1 महिला नागरिक की मौत। 4 मार्च को शोपियां में 12 आतंकियों की टीम ने एक पुलिसवाले के घर में की तोडफ़ोड़।