गोवा के गांव में पैडमैन का असर, महिलाएं बना रहीं इको फ्रेंडली सैनिटरी पैड
गोवा की महिलाएं बना रही हैं पर्यावरण के अनुकूल सैनिटरी पैड्स...
गोवा की राजधानी पणजी से 45 किलोमीटर दूर बीचोलिम तालुका में रहने वाली महिलाओं ने भी अरुणाचलम से प्रेरणा लेकर तीन साल पहले देवदार की लकड़ी से बायो डिग्रेडेबल सैनिटरी पैड बनाने का काम शुरू किया था...
इन पैड्स की खासियत यह है कि ये पर्यावरण के अनुकूल हैं। ये पैड बाजार में मौजूद अन्य सेनेटरी नैपकिन की तरह नहीं हैं। आमतौर पर बाजार में मिलने वाले पैड्स पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन यह सड़कर खाद बन जाते हैं और प्रदूषण नहीं फैलाते।
इन दिनों हर तरफ अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन की चर्चा हो रही हैं। बड़े शहरों के साथ ही छोटे कस्बों और गांवो में भी इसका असर देखने को मिल रहा है। यह फिल्म तमिलनाडु के अरुणाचलम मुरुगनाथम की जिंदगी पर आधारित है। मुरुगनाथन ने महिलाओं के लिए सस्ते सैनिटरी नैपकिन बनाने की मशीन के लिए काफी संघर्ष किया था। गोवा की राजधानी पणजी से 45 किलोमीटर दूर बीचोलिम तालुका में रहने वाली महिलाओं ने भी अरुणाचलम से प्रेरणा लेकर तीन साल पहले देवदार की लकड़ी से बायो डिग्रेडेबल सैनिटरी पैड बनाने का काम शुरू किया था। उन महिलाओं ने भी सिनेमाहॉल में जाकर पैडमैन फिल्म का आनंद लिया।
इन पैड्स की खासियत यह है कि ये पर्यावरण के अनुकूल हैं। ये पैड बाजार में मौजूद अन्य सेनेटरी नैपकिन की तरह नहीं हैं। आमतौर पर बाजार में मिलने वाले पैड्स पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन यह सड़कर खाद बन जाते हैं और प्रदूषण नहीं फैलाते। ये सैनिटरी पैड्स 'सखी' ब्रैंड के नाम से बनाए जाते हैं। इस ग्रुप की मुखिया प्रमुख जयश्री पवार ने बताया, 'फिल्म रिलीज होने के दूसरे दिन पूरे समूह ने बिचोलिम के सिनेमाघर में इसे देखा. मुरूगनाथन हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं और उनके जीवन को बड़े पर्दे पर देखना बहुत मजेदार था.' 'सखी' ब्रांड तीरथन इंटरप्राइज के नाम पर पंजीकृत है और इसका गेड ऑफिस बिचोलिम में है।
पवार ने बताया कि सभी महिलाएं ये फिल्म देखने के बाद काफी उत्साहित हैं। इन्हें काफी दिनों से पता था कि अरुणाचलम मुरुगनाथम के जीवन पर फिल्म बन रही है। मुरुगनाथम ने इन्हें पहले ही बता दिया था कि उनके जीवन पर अक्षय कुमार फिल्म बना रहे हैं। इस ग्रुप की शुरुआत पवार ने मुरुगनाथम से प्रेरणा लेकर की थी। उन्होंने बताया कि उनके एक दोस्त ने मुरुगनाथन से मिलवाया था। इसके बाद दस लोगों की मदद से उन्होंने सैनिटरी नैपकिन बनाने का काम शुरू किया। कोई बड़ा ब्रैंड न होने की वजह से दुकानदार इन्हें खरीदते नहीं थे। लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने संघर्ष किया और आज सखी ब्रैंड का पैड काफी प्रचलित हो गया है।
जयश्री ने बताया कि जब वे दुकानदार को पैड बेचने के लिए दुकानदारों से संपर्क किया तो उनका कहना था कि वे सिर्फ उन्हीं कंपनियों के पैड्स रखते हैं जिनके विज्ञापन टीवी पर आते हैं। इसके बाद पवार ने ऑनलाइन वेबसाइट के जरिए अपने प्रॉडक्ट्स बेचना शुरू किया। आज उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ चुकी है कि ये इंटरनैशनल ग्राहकों के बीच भी पहुंच चुके हैं। उन्होंने बताया कि ये पैड्स इस्तेमाल के बाद सिर्फ 8 दिनों में मिट्टी में अवशोषित हो जाते हैं। अभी इस टीम में चार मशीने हैं जिनसे हर रोज 100 पैड्स तैयार हो जाते हैं।
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