Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में कुपोषण को मात देती दुमदुमा परियोजना

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में कुपोषण को मात देती दुमदुमा परियोजना

Saturday December 08, 2018 , 5 min Read

मौजूदा समय में कुपोषण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये चिंता का विषय बन गया है। यहां तक की विश्व बैंक ने इसकी तुलना 'ब्लैक डेथ' नामक महामारी से की है, जिसने 18वीं सदीं में यूरोप की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को निगल लिया था।

image


एक हजार से भी अधिक बच्चों को अत्यधिक गंभीर कुपोषण (एसएएम) की यूची से बाहर लाया गया है। इसके अलावा दुमदुमा परियोजना द्वारा पोषाहार पुर्नवास केंद्रों के पास भेजे गए 380 गंभीर एसएएम बच्चों पर एचित ध्यान भी दिया जा रहा है।

सितंबर 2017 में लॉन्च की गई दुमदुमा परियोजना ने कुपोषण को 4.04 प्रतिशत तक कम करने में मदद की है जिसके चलते बीते 10 महीनों में करीब 928 बच्चों की जान बचाई जा सकी है। मौजूदा समय में कुपोषण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये चिंता का विषय बन गया है। यहां तक की विश्व बैंक ने इसकी तुलना 'ब्लैक डेथ' नामक महामारी से की है, जिसने 18वीं सदीं में यूरोप की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को निगल लिया था।

कुपोषण वास्तव में घरेलू खाद्य असुरक्षा का सीधा परिणाम है। सामान्य रूप में खाद्य सुरक्षा का अर्थ है ‘सब तक खाद्य की पहुंच, हर समय खाद्य की पहुंच और सक्रिय और स्वस्थ्य जीवन के लिए पर्याप्त खाद्य।’ जब इनमें से एक या सारे घटक कम हो जाते हैं तो परिवार खाद्य असुरक्षा में डूब जाते है। कुपोषण मुख्यतः बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करता हैं। यह जन्म या उससे भी पहले शुरू होता है और 6 महीने से 3 वर्ष की अवधि में तीव्रता से बढ़ता है। इसके परिणाम स्वरूप बृद्धिबाधिता, मृत्यु, कम दक्षता और 15 पाइंट तक आईक्यू का नुकसान होता है।

छत्तीसगढ़ के दूरस्थ जिले दंतेवाड़ा में करीब 40 प्रतिशत बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं। बेहद घने जंगलों से घिरा क्षेत्र होने के चलते भारत के इस क्षेत्र का विकास बेहद टेढ़ी खीर है क्योंकि पहले तो इस क्षेत्र तक पहुंच बेहद सीमित है और इसके अलावा यह इलाका बेहद ऊबड़-खाबड़ है। इस क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी देखभाल को लेकर फैली उदासीनता और जागरुकता की कमी कुपोषण की विभीषिका को और अधिक भयंकर रूप देती है और किसी भी सरकारी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिहाज से यह सबसे कठिन क्षेत्रों में से एक है।

इसी चुनौती का सामना करने के उद्देश्य से इस क्षेत्र में सितंबर 2017 में 'बहु-हितधारक और बहु-लक्ष्य दृष्टिकोण' वाली 'दुमदुमा परियोजना' को एक मिशन की तरह लागू किया गया। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र के नेताओं, सरकारी अधिकारियों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और स्थानीय निवासियों को जोड़कर इस मुद्दे पर पूरी तरह विकेन्द्रीकृत दृष्टिकोण तैयार करना है।

दुमदुमा परियोजना है क्या?

ऑफलाइन डाटा की नामौजूदगी के चलते दुमदुमा परियोजना पूरी तरह से तकनीक आधारित मंच पर संचालित होती है। यह जिले के 1,057 आंगनबाड़ी केंद्रों पर पंजीकृत करीब 23,000 बच्चों के वजन और लंबाई को ट्रैक करती है। हालांकि यह परियोजना महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (डब्लूसीडी) के आधीन आती है फिर भी इस परियोजना को शिक्षा, कृषि, बागवानी, स्वास्थ्य, आयुष और पशु चिकित्सा सहित विभिन्न विभागों द्वारा वित्त पोषित किया जाता है।

एक तरफ जहां जिले के सभी 124 ग्राम पंचायतों में पीआरआई अगुवा तमाम भागीदारी योजना और जागरूकता कार्यक्रमों में शामिल रहते हैं, फिर भी आंगनबाड़ी और इनके आंगनबाड़ी कार्यकर्ता इसमें एक बेहद महती भूमिका निभाते हैं।

स्थानीय निवासी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ आंगनबाड़ी केंद्रों में मिलते हैं और इन कुपोषित बच्चों के दैनिक आहार यानी रोजमर्रा के खाने-पीने में फलों और सब्जियों को शामिल करने में सहायता करने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सुधारों की निगरानी और देखरेख भी करते हैं जबकि डब्लूसीडी हर पखवाड़े प्रगति की समीक्षा करते हैं और जिलाधिकारी साप्ताहिक प्रगति पर नजर रखते हैं।

सभी पंजीकृत बच्चों का एक दुमदुमा कार्ड तैयार किया जाता है जिसमें प्रत्येक की लंबाई, वजन और एमयूएसी (मध्य-ऊपरी बांह की परिधि) का डाटा दर्ज किया जाता है और इन कार्डों को आंगनबाड़ी केंद्रों पर रखा जाता है जो बिल्कुल बारीकी ने निगरानी रखने में मददगार साबित होता है।

कुपोषण का मुकाबला

दुमदुमा परियोजना में सभी बच्चों का 100 प्रतिशत कृमिहरण (पेट के कीड़ों को समाप्त करना) और टाकाकरण सम्मिलित है और इसके तहत नियमित स्वास्थ्य की भी जांच की जाती है। शुरुआत से अबतक दुमदुमा परियोजना ने कुपोषण को 4.04 प्रतिशत तक कम करने में मदद की है जिसके चलते बीते 10 महीनों में करीब 928 बच्चों की जान बचाई जा सकी है।

एक हजार से भी अधिक बच्चों को अत्यधिक गंभीर कुपोषण (एसएएम) की यूची से बाहर लाया गया है। इसके अलावा दुमदुमा परियोजना द्वारा पोषाहार पुर्नवास केंद्रों के पास भेजे गए 380 गंभीर एसएएम बच्चों पर एचित ध्यान भी दिया जा रहा है।

कुपोषण से जुड़े मुद्दों को हल करने के अलावा इस परियोजना के तहत आधारभूत मुद्दों पर भी ध्यान देते हुए उन्हें हल किया गया। इसके नतीजतन नवंबर 2017 के बाद से आंगनवाड़ी केंद्रों में 88 शौचालयों का निर्माण करने के अलावा 31 केंद्रों में पेयजल की सुविधाएं प्रदान की गईं और 11 केंद्रों में अतिरिक्त सौर और ग्रिड विद्युतीकरण भी किया गया। इस परियोजना ने न सिर्फ इन बच्चों के जीवन का स्तर सुधारने में ही मदद की है बल्कि कुपोषण और खाने की कमी जैसे मुद्दों को भी प्रशासन के सामने सफलतापूर्वक लाया है जिससे इस क्षेत्र की पोषण संबंधी प्रोफाइल को सुधारने में काफी मदद मिली है।

यह भी पढ़ें: देशभर के शिक्षकों के लिए मिसाल है यह टीचर, वीडियो से समझाती हैं बच्चों को