सिर्फ़ दो सालों में 123 देशों तक पहुंचा, पुणे का यह स्टार्टअप
दो साल पहले शुरू हुआ पुणे का ये स्टार्टअप पहुंच चुका है 123 देशों तक...
स्मार्टफ़ोन पर चलने वाली दुनिया में, यूज़र्स चाहते हैं कि किसी भी स्टार्टअप की मोबाइल के स्तर पर मौजूदगी हो, ताकि वो उसके बारे में जान सकें। लेकिन ज़्यादातर पारंपरिक ऑफ़लाइन बिज़नेस या नए स्टार्टअप के पास अपना ऐप बनाने के लिए ज़रूरी संसाधन नहीं होते हैं।
अप्रैल 2016 में पुणे में शुरु हुआ स्टार्टअप ‘प्लोबल ऐप्स’ पारंपरिक बिज़नेस और बूटस्ट्रैप्ड स्टार्टअप्स की इसी समस्या को अपने डीआईवाय नेटिव ऐप डेवलपमेंट प्लैटफ़ॉर्म की मदद से हल करता है।
हम किसी भी कम्पनी की विश्वसनीयता पता लगाने के लिए क्या करते हैं? हम उसके मोबाइल ऐप या वेबसाइट पर जाते हैं, और ‘प्लोबल ऐप्स’ अपने डीआईवाय नेटिव ऐप डेवलपमेंट प्लैटफ़ॉर्म से इसी विश्वसनीयता को बनाने में कम्पनियों की मदद करते हैं। स्मार्टफ़ोन पर चलने वाली दुनिया में, यूज़र्स चाहते हैं कि किसी भी स्टार्टअप की मोबाइल के स्तर पर मौजूदगी हो, ताकि वो उसके बारे में जान सकें। लेकिन ज़्यादातर पारंपरिक ऑफ़लाइन बिज़नेस या नए स्टार्टअप के पास अपना ऐप बनाने के लिए ज़रूरी संसाधन नहीं होते हैं।
अप्रैल 2016 में पुणे में शुरु हुआ स्टार्टअप ‘प्लोबल ऐप्स’ पारंपरिक बिज़नेस और बूटस्ट्रैप्ड स्टार्टअप्स की इसी समस्या को अपने डीआईवाय नेटिव ऐप डेवलपमेंट प्लैटफ़ॉर्म की मदद से हल करता है। अतुल पोहरकर (30), एलियाजर मोतीलावाला (27) और अभिषेक जैन (28) का स्टार्टअप ‘प्लोबल ऐप्स’ एक तकनीकी प्लैटफ़ॉर्म है जो एसएमबी और अन्य कम्पनियों को मोबाइल बिज़नेस से जुड़ी सर्विस देता है। उनकी वेबसाइट यह दावा करती है कि कोई भी यूज़र उनके प्लैटफ़ॉर्म की मदद से 5 आसान स्टेप्स में दस मिनट के अंदर अपना ऐप बना सकता है। इसके लिए उसे अपने ऐप की कैटेगरी चुननी होगी, पसंद के फ़ीचर चुनने होंगे, कॉन्टेंट अपलोड करना होगा, और सबसे आख़िर में पैसे देकर ऐप को पब्लिश किया जा सकता है।
हाल ही में योरस्टोरी से बात करते हुए अतुल ने अपने स्टर्टअप की कहानी हमें सुनाई, उन्होंने बताया कि पिछले 12 महीनों में उनका प्लैटफ़ॉर्म तेज़ी से आगे बढ़ा है, जिसका राजस्व अब 500,000 अमेरिकी डॉलर है, इस रक़म का 96% हिस्सा अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से आता है। उनका लक्ष्य है कि इस वित्तिय वर्ष के आख़िर तक कम्पनी का राजस्व 1.2 मिलियन डॉलर तक पहुंच जाए। ‘प्लोबल ऐप्स’ ऐप इंटरैक्शन के मामले में 6 मिलियन का आंकड़ा पार कर चुका है और उसके ग्राहक 123 देशों में फैले हुए हैं।
‘प्लोबल ऐप्स’ किसी भी बिज़नेस से अपने प्लैटफ़ॉर्म पर ऐप बनाने के लिए एक तय फ़ीस लेता है, और ऐप डेवलप होने के बाद ‘एपीके’ क्लाइंट को सौंप दिया जाता है। एपीके ऐंड्रॉयड पैकेज फ़ाइल होती है, जिसका इस्तेमाल ऐंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम ऐप को इंस्टॉल करने के लिए करते हैं। बी2बी मॉडल के अलावा उनके पास अपना ‘रीसेलर प्रोग्रैम’ भी है, जिससे ऐडवर्टाइज़िंग, डिजिटल मार्केटिंग, सोशल मीडिया एजेंसी, मोबाइल डेवलपमेंट कम्पीयां और वेबसाइटें अपने ग्राहकों के लिए, ऐंड्रॉयड और आईओएस पर चलने वाले पूरी तरह से नेटिव ऐप्स तैयार कर सकती हैं। ‘प्लोबल ऐप्स’ Shopify.com के ग्रहकों के लिए भी अपनी सेवाएं देता है, जो डीआईवाय वेबसाइट के बाज़ार में एक बड़ी कम्पनी है।
कोई व्यापारी जब अपने ई स्टोर के लिए ऐप बनाने का फ़ैसला करता है, तो वह शॉपीफाई के ऐप स्टोर पर जाकर ‘प्लोबल ऐप्स’ का सेल्स चैनल इंस्टॉल कर सकता है या फिर वेबसाइट पर जाकर अपने स्टोर का यूआरएल डाल सकता है। ऐसा करते ही व्यापारी सीधे ‘प्लोबल ऐप्स’ के डैशबोर्ड पर पहुँच जाता है, जहां उन्हें एक यूनीक कोड दिया जाता है, जिसकी मदद से वह अपने मोबाइल ऐप को किसी भी आईओएस या ऐंड्रॉयड प्लैटफ़ॉर्म पर देख सकता है। जिसके बाद ऐप को अपनी पसंद के हिसाब से कस्टमाइज़ करके पब्लिश किया जा सकता है।
‘प्लोबल ऐप्स’ का सबसे सस्ता प्लान 129 डॉलर का है, जिसमें यूज़र बेसिक फ़ीचर का इस्तेमाल कर सकता है। इसके अलावा 199 डॉलर का प्लान, ख़ासतौर पर उनके लिए बनाया गया है, जिनका ई कॉमर्स स्टोर पहले से काम कर रहा है। और 299 डॉलर के प्लान के साथ व्यापारी प्लैटफ़ॉर्म पर मौजूद ऐडवांस फ़ीचर्स का इस्तेमाल कर सकते हैं। हाल ही में, ‘प्लोबल ऐप्स’ की टीम ने पुणे के एंजल इंवेस्टर्स से 500,000 का निवेश उठाया है।
अतुल का मानना है कि ‘प्लोबल ऐप्स’ के आने के बाद अपने व्यापार के लिए मोबाइल ऐप बनाना, पहले के मुक़ाबले बेहद आसान हो गया है। पहले एक ऐप को बनाने में कई महीनों का समय लगता था, और इसके लिए हज़ारों डॉलर ख़र्च करने पड़ते थे। टेक्नॉलजी की दृष्टी से, ऐंड्रॉयड और आईओएस के लिए ऐप बनाने की प्रक्रिया को पूरी तरह ऑटोमेट करना, बेहद मुश्किल काम है। अतुल अपने स्टार्टअप के मार्गदर्शन के लिए, बिल गेट्स की उस बात को हमेशा याद रखते हैं, जिसमें वह कहते हैं “टेक्नॉलजी का विस्तार इस तरह से होना चाहिए, कि उसके होने की भनक भी ना लगे।"
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