कई जानलेवा हमलों के बाद भी नहीं हारे, रेड लाइट एरिया को साफ करने की कोशिश है जारी
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में 11 पीआईएल दाखिल...
मानव तस्करी से जुड़े डेढ़ हजार मामले लड़ रहे हैं...
कोर्ट के जरिये 500 दलालों की रूकवाई जमानत...
‘गुड़िया’ नाम की संस्था की 1993 में की स्थापना...
सभ्यता और संस्कृति का जितना तेजी से विकास हुआ है उतना ही उभार समाज में कई गलत चीज़ों का भी हुआ है। ऐसी चीज़ों का स्वरुप भले ही बदला है आकार बढ़ा है। देह व्यापार समाज की जड़ों में अब तक कायम है। समाज के इस बदनुमा दाग को दूर करने के लिए यूं तो कई संगठन काम कर रहे हैं, लेकिन वाराणसी के रहने वाले अजीत सिंह अपने संगठन ‘गुड़िया’ के जरिये अनूठे तरीके से रेड लाइट इलाके में काम कर रहे हैं। ये उनकी ही कोशिशों का नतीजा है कि आज इस इलाके में नाबालिग बच्चे देह व्यापार के धंधे में नहीं हैं। अपने ऊपर कई जानलेवा हमले झेल चुके अजीत मानव तस्करी से जुड़े करीब डेढ़ हजार से ज्यादा केस लड़ रहे हैं। इतना ही देह व्यापार के इस धंधे पर लगाम लगाने के लिए वो ना सिर्फ रेड लाइट इलाकों से जुड़ी प्रॉपर्टी को कोर्ट के जरिये सीज कराते हैं बल्कि ऐसे गलत कामों में लगे दलालों की वो कोर्ट से जमानत तक नहीं होने देते। यूपी के पूर्वांचल इलाके में काम कर रहे अजीत आज करीब 12 जिलों में काम कर रहे हैं।
अजीत के मुताबिक उन्होने देह व्यापार के इस धंधे से महिलाओं को निकालने की ना तो कहीं से कोई ट्रेनिंग ली और ना कोई पढ़ाई की। वो तो बस एक दिन हिम्मत बटोर वाराणसी के रेड लाइट इलाके में पहुंच गये। योर स्टोरी को बताते हैं
“जिंदगी में मैंने पहली बार ऐसी जगह देखी जहां पर लोग खुलेआम नीलाम हो रहे थे और उनको कोई रोकने-टोकने वाला तक नहीं था।”
इसके बाद अजीत वहां जाते और एक पेड़ के नीचे बैठ वहां मौजूद छोटे छोटे बच्चों को इकट्ठा कर हर दिन 2 घंटे पढ़ाने का काम करने लगे। ये बात वहां पर मौजूद रेड लाइट इलाके वालों को नागवार लगी तो उन्होने अजीत को परेशान करना शुरू कर दिया। लेकिन उन्होने हिम्मत नहीं हारी और बच्चों को पढ़ाने का काम जारी रखा। इस तरह उन्होने करीब 5-7 साल तक बच्चों को पढ़ाने का काम जारी रखा। तब इनको एक बात समझ में आई की जिन बच्चों को वो पढ़ा रहे हैं वो लौट कर उसी माहौल में जा रहे हैं इसलिए सिर्फ पढ़ाने से ये बदलाव नहीं आने वाला।
तब इन्होंने फैसला लिया कि उनको रेड लाइट इलाके के मालिकों, देह व्यापार में लिप्त महिलाओं के दलालों से सीधी लड़ाई लड़नी होगी। इसके लिए उन्होंने मदद ली कानून की। इसके अलावा इस काम में जहां पर पुलिस की ढिलाई नजर आई उसे उन्होंने उजागर किया। अजीत ने रेड लाइट इलाके में आने वाली नई लड़कियों को बचाने के लिए मदद ली बीएचयू और दूसरे कॉलेज के छात्रों की। जिनके साथ मिलकर वो ऐसे रेड लाइट इलाके में जाते जहां पर लड़कियों को जबरदस्ती इस पेशे में धकेलने की कोशिश होती थी। वो बताते हैं कि साल 2005 में ही उन्होने लोगों की मदद से बंगाल और नेपाल से लाई गई करीब 50 लड़कियों को इस गर्त में जाने से बचाया। इसके अलावा अजीत ने रेड लाइट इलाके में रहने वाली महिलाओं पर नजर रखनी शुरू कर दी जो अपनी बेटी को जबरदस्ती या दबाव में आकर इस धंधे में धकेलना चाहती थी।
अजीत ने देखा कि इस तरह ज्यादा वक्त तक काम नहीं किया जा सकता। तब उन्होने फैसला लिया वो कानूनी रूप से कोठे मालिकों और दलालों पर दबाव बनायेंगे। इसके बाद इन्होने वाराणसी के कई कोठे सीज़ करवाये। बल्कि इस काम से जुड़े लोगों की जमानत रोकने के लिए ये अपनी लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक ले गये। जहां पर इस काम में सुप्रीम कोर्ट ने भी मदद की और कहा कि ऐसे लोगों की बेल नहीं होनी चाहिए। यही वजह है कि अब तक ये करीब 500 ऐसे लोगों की जमानत खारिज करवा चुके हैं जो देह व्यापार से जुड़े हैं। इसके अलावा इन्होने गवाहों की सुरक्षा पर भी खास ध्यान दिया, ताकि लड़कियां बेखौफ होकर अपने साथ हो रहे जुल्म को बयां कर सके। इन्होने 108 ऐसी लड़कियों की अलग अलग जगहों पर छुपाया जो किसी मामले में अहम गवाह थी और उन पर हमले का डर था। बाद में इन लड़कियों की गवाही के कारण देह व्यापार से जुड़े लोगों को जेल की हवा तक खानी पड़ी। अजीत का कहना है
“हम रास्ता खोज रहे थे ऐसी लड़कियों को बचाने के लिए, इसके लिए हम ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते थे। इसलिए हमने ना सिर्फ अवैध रूप से चल रहे रेड लाइट इलाके को सील करवाया बल्कि आरोपियों की बेल तक रूकवाने का काम किया। साथ ही कोशिश की गवाहों की सुरक्षा की।”
अजीत यहीं नहीं रूके उन्होंने ऐसे मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में अब तक 11 पीआईएल दाखिल की हैं। अपनी एक पीआईएल में इन्होने कोर्ट को बताया है कि सरकारी आंकड़ों के अलावा करीब 12 लाख नाबालिग लड़कियां विभिन्न रेड लाइट इलाके में कैद हैं। आज अजीत मानव तस्करी को लेकर विभिन्न अदालतों में चल रहे करीब डेढ़ हजार मामलों का अकेले सामना कर रहे हैं। हालांकि अजीत ने अपनी संस्था गुड़िया की शुरूआत साल 1993 में की लेकिन वो इससे पहले से ही इस काम को कर रहे हैं। देह व्यापार की रोकथाम के लिए क्राई ने इनको फैलोशिप भी दी। उनके काम के तरीके को समझने के लिए अमेरिकन कांग्रेस के कई सदस्य बनारस के रेड लाइट एरिया का दौरा भी कर चुके हैं। जहां पर इन्होने बताया कि कैसे उन्होने इस इलाके को नाबालिग बच्चों से मुक्त रेड लाइट एरिया बनाया। जबकि कुछ साल पहले तक इस इलाके में बड़ी संख्या में नाबालिग लड़कियां देह व्यापार के धंधे में शामिल थीं। अब इनकी कोशिश रहती है कि जो लड़कियां इस धंधे में फंस गई हैं उनको कैसे बाहर निकाला जाये।
आज ‘गुडिया’ के तहत रेड लाइट एरिया में ना सिर्फ पढ़ाई का काम चल रहा है बल्कि यहां के बच्चों को वोकेशनल ट्रेनिंग भी दी जा रही है। इसके तहत कंम्प्यूटर कोर्स, फैशन डिजाइनिंग, ब्यूटिशन का कोर्स सिखाये जाते हैं। इसके अलावा ये लोग नर्सिंग का भी कोर्स करवाते हैं। ये सब काम मुफ्त में कराया जाता है। ये जिन बच्चों को पढ़ाते हैं उनको ये ना सिर्फ सरकारी स्कूलों में दाखिला कराते हैं बल्कि उनकी फीस से लेकर किताबों तक का खर्चा ये उठाते हैं। ये अब तक दो हजार से ज्यादा बच्चों का भविष्य संवार चुके हैं। यहां के कई बच्चों ने अपनी दुकान खोल ली है या फिर दूसरों की दुकानों में काम कर रहे हैं। अजीत की कोशिशों के कारण वेश्यावृति के कारोबार से अब तक डेढ़ हजार से ज्यादा लड़कियों को बचाया जा चुका है। संगठित जुर्म के खिलाफ बेखौफ होकर लड़ाई लड़ रहे अजित पर कई बार जानलेवा हमले भी हो चुके हैं लेकिन इन सब से बेपरवाह अजित आज भी रेड लाइट इलाके में जहां लड़कियों को इस अंधेरी दुनिया से बचा रहे हैं वहीं जो लोग ये जुर्म कर रहे हैं उनको कोर्ट के जरिये सजा दिलाने काम कर रहे हैं।
बेवसाइट : www.guriafreedomnow.com