जंगली फलों और सब्जियों से हो रही करोड़ों की कमाई
जहां ज्यादातर लोगों के लिए जंगल सिर्फ जानवरों के ठिकाने और पिकनिक एरिया की तरह होते हैं, अब ऐसे इलाके मुफ्त के फल और सब्जियों की उपज से भारी कमाई के स्रोत बन रहे हैं। दुनिया के कई देशों में तो बाकायदा कारपोरेट कंपनियां इस काम में उतर चुकी हैं। इस अथाह मुनाफे पर कई टीमें रिसर्च कर बाजार की भी टोह ले रही हैं।
इन दिनों इस जंगली उपज को खरीदने, बेचने के काम में अनेक परिवार और कंपनियां भी जुट गई हैं। जंगलों से मिलने वाले ऑर्गेनिक फलों की आसपास में ही प्रोसेसिंग हो रही है। बेरी को सुखा कर उसका पाउडर बनाया जा रहा है। जंगल में मंगल मनाने की कोशिशें तो रंग ला ही रही हैं।
जंगल के बीच बसे अपने गाँव में बहराइच (उ.प्र.) के द्वारिका प्रसाद सिर्फ दस बिस्वा खेत में एक संस्था की मदद से फल और सब्जियों की फसल लहलहाकर घर चलाने भर मुनाफा कमा रहे हैं। अकेले केले की बिक्री से ही वह सवा लाख रुपए कमा चुके हैं। उनकी साठ साल की उम्र उन्ही जंगलों में बीती है। जंगली बीहड़ में सब्जी का बिजनेस अच्छा मुनाफा दे रहा है। अब तो उन्होंने पिपरमेंट पिराई का प्लांट भी लगवा लिया है। इसी तरह रोपड़ (पंजाब) के गुरदीत सिंह 68 वर्ष की उम्र में जंगल से सटे अपने गांव रसीदपुर की साढ़े चार एकड़ जमीन में सब्जियों और फलों के उत्पादन का नया कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। डेढ़ दशक पहले अरब देशों से वर्ष 1999 में भारत लौटकर उन्होंने जंगल की पांच एकड़ जमीन खरीदी।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की पंत्रिका 'चंगी खेती' से आधुनिक कृषि के हुनर सीखे और परम्परागत फसलों के बजाय किन्नों का बाग और दशहरी कलमी आम की खेती करने लगे। अब तो शिमला मिर्च, धनिया, खीरा, टमाटर, करेला, फूल गोभी, बेबीकॉर्न, बैंगन, लहसुन आदि की खेती से जंगल में मंगल मना रहे हैं। फलों, सब्जियों की ग्रेडिंग, पैकेजिंग कर घर-घर बेचते हैं। उन्हें थोक बाजार से पचास प्रतिशत तक अधिक कमाई हो रही है। ये तो रही खेती की बात। जंगल में स्वतः उगे फलों और सब्जियों से भी दुनिया में लोग अच्छी कमाई कर रहे हैं।
जंगली फल और सब्जियों से करोड़ों, अरबों की कमाई होना अचरज की बात है लेकिन यह सच है। फिनलैंड, स्पेन, सर्बिया आदि के जंगलों में मशरूम और बेरी की स्वतः भारी उपज होती है। पैसे भले ही पेड़ों पर न लगते हों लेकिन पेड़-पौधों पर लगने वाली चीजें बेरी, मशरूम, बादाम की बिक्री यूरोप में सालाना ढाई अरब यूरो से ज्यादा तक पहुंच चुकी है। अब तो इस जंगली उपज पर फिनलैंड के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के रिसर्चरों की भी नजर पड़ गई है। वे पता लगा रहे हैं कि कौन से जंगल में क्या और कितना उपज रहा है। उन्होंने इसके लिए एक खास सिस्टम भी तैयार कर लिया है।
फॉरेस्ट रिसर्च इस्टीट्यूट की टीम इस जंगली उपज के लिए बाज़ार की उपलब्धता पर भी काम कर रही है। खासकर मशरूम और बेरी की उपज बढ़ाने के लिए जंगल की देखभाल भी होने लगी है। इन दिनों इस जंगली उपज को खरीदने, बेचने के काम में अनेक परिवार और कंपनियां भी जुट गई हैं। जंगलों से मिलने वाले ऑर्गेनिक फलों की आसपास में ही प्रोसेसिंग हो रही है। बेरी को सुखा कर उसका पाउडर बनाया जा रहा है। जंगल में मंगल मनाने की कोशिशें तो रंग ला ही रही हैं। तमाम लोग अपने घरों में ही जंगल का लुत्फ उठा रहे हैं। घर हरा-भरा और ताजा फल-सब्जियों की मुफ्त उपज से घरेलू खर्चों की भी भरपाई। राजधानी दिल्ली का एक ऐसा ही घर मिसाल बन गया है।
दिल्ली के कमल मित्तल शहर के बीचोंबीच अपनी बिल्डिंग में जंगल उगा रहे हैं। उनके इस शौक पर फिदा माइक्रोसॉफ्ट, सैमसंग और एमेजॉन जैसी कंपनियां उनकी किरायेदार बन चुकी हैं। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से स्नातक और अल गोर क्लाइमेट रियलिटी प्रोजेक्ट में ट्रस्टी मित्तल ने दिल्ली में अपने घर में एक ऐसा ऑफिस बनाया है, जहां की हवा की गुणवत्ता स्विट्जरलैंड के आल्प्स पर्वतों पर मिलने वाली हवा जैसी है। बाहर से यह ऑफिस किसी आम मॉडर्न ऑफिस ब्लॉक की तरह नजर आता है लेकिन दफ्तर के भीतर एक पूरा वर्चुअल जंगल है।
ऑफिस के कमरों और गलियारों में करीब सात हजार पौधे लहरा रहे हैं। उनके अगल-बगल लताएं झूल रही हैं। मित्तल का कहना है कि उनके दिमाग में इस क्लीन ऑफिस प्रोजेक्ट का ख्याल वर्षों पहले आया था। दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के चलते डॉक्टरों ने उनकी तबीयत को देखते हुए उन्हें शहर से बाहर जाने को कहा था लेकिन उन्होंने डॉक्टरों की बात नहीं मानी और अपने लिए समाधान ढूंढने पर काम करने लगे। आज सरकार ने उनकी बिल्डिंग को शहर की सबसे सेहतमंद ठिकाना मान लिया है। जो लोग यहां काम करते हैं, उनके खून में ऑक्सीजन की मात्रा सही होती है, साथ ही मस्तिष्क में ताजगी और दमा जैसी बीमारियों से भी राहत।
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