सर्जरी की दुनिया का नया आयाम, डॉ मंजुला अनगानि
चिकित्सा के क्षेत्र में अपने योगदान के लिये पद्मश्री से सम्मानित हो चुकी हैं मंजुलापुरुषों के वर्चस्व वाली इनवेसिव सर्जरी के क्षेत्र को महिला चिकित्सकों के लिये अनुकूलित करने का जाता है श्रेयअबतक 10 हजार से भी अधिक लैप्रोस्कोपिक सर्जरी को सफलतापूर्वक दे चुकी हैं अंजाममहिलाओं की मदद के लिये सुयोशा और प्रत्यशा सपोर्ट नामक दो संगठनों का भी कर रही हैं संचालन
एक जानी-मानी स्त्री रोग विशेषज्ञ, लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के क्षेत्र में अग्रणी और पद्मश्री से सम्मानित डा. मंजुला अनगानि ने बहुत छोटी उम्र में ही ज्ञान की शक्ति को पहचानने के साथ ही उसे आत्मसात कर लिया था। अपने माता-पिता की चार संतानों में से एक डा. मंजुला स्वयं को पैदाइशी बागी मानती हैं। वे कहती हैं कि वे प्रारंभ से ही पढ़ाई-लिखाई के अलावा अन्य गतिविधियों में भी अच्छी थीं।
‘‘मैं एक टाॅमबाॅय जैसी थी,’’ मंजुला कहती हैं, ‘‘हमेशा लड़कों को प्रतिस्पर्धा के लिये चुनौती देने वाली, खेलने के लिये लड़ने वाली, पेड़ों पर चढ़ने वाली और अधिकतर समय बाहर खेले जाने वाले खेल खेलने वाली।’’ एक जिज्ञासु मस्तिष्क उन्हें चिकित्सा पद्धति की ओर खींच लाया। वे बताती हैं कि बचपन से ही वे यह सोचती थीं कि हम सोच कैसे पाते हैं, बोलने में कैसे सक्षम हो पाते हैं और ऐसे ही कई प्रश्न उनके मन-मस्तिष्क में दौड़ते रहते थे। वे बताती हैं कि उन्हें मालूम था कि उनकी इन जिज्ञासओं का जवाब सिर्फ चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में ही मिलेगा।
मंजुला कहती हैं, ‘‘जब भी मैं किताबों में चिकित्सा और विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेताओं के बारे में पढ़ती तो मेरा भी मन कुछ ऐसा नया करने की कोशिश करने का होता जिससे समाज का कुछ भला हो सके। उस समय मैं तय कर चुकी थी कि मुझे चिकित्सा के क्षेत्र में ही कुछ करना है।’’
ईएएमसीईटी में 58वीं रैंक पाने के बाद मंजुला ने गांधी मेडिकल काॅलेज में दाखिला ले लिया और पढ़ाई शुरू कर दी। उसी दौरान उन्हें अहसास हुआ कि उनकी रुचि शरीर रचना विज्ञान (एनाटाॅमी) में है और उन्होंने आगे चलकर एक सर्जन बनने की ठानी। हालांकि अपनी इंटर्नशिप समाप्त करते-करते मंजुला स्त्री रोग विशेज्ञता (गायनाॅकाॅलाॅजी) की तरफ आकर्षित हुईं। मंजुला कहती हैं, ‘‘मुझे महसूस हुआ कि एक महिला सर्जन बनकर मैं समाज के लिये कुछ खास नहीं कर पाऊंगी और अधिकतर या तो खाली बैठी रहूंगी या फिर दूसरे डाॅक्टरों द्वारा भेजे गए मरीजों पर निर्भर रहूंगी। इसकी अपेक्षा मुझे स्त्री रोग विशेषज्ञ बनकर अधिक मरीजों की सेवा करने का विकल्प बेहतर लगा।’’
मंजुला आगे कहती हैं कि उन्हें अपनी शैक्षणिक यात्रा के दौरान कुछ बेहतरीन प्रशिक्षक मिले जिन्होंने उन्हें एक मजबूत और ठोस आधार तैयार करने में मदद की। जल्द ही मंजुला ने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी और उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था और प्रबंधन पर अधिक ध्यान देने लगीं। इसी दौरान मंजुला ने परिणामों में सुधार लाने की मंशा से शल्य चिकित्सा (सर्जिकल) तकनीक को और निखारने की कोशिशों पर ध्यान देना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि कई महिलाओं को शल्य चिकित्सा के द्वारा गर्भाशय निकलवाना पड़ता है जिसे चिकित्सा की भाषा में हिस्ट्रेकटाॅमी कहा जाता है। उनका मानना था कि अधिकतर महिलाओं के मामले में यह सर्जरी जरूरी नहीं होती और उन्होंने इस अनावश्यक पीड़ा से महिलाओं को बचाने की कवायद शुरू कर दी।
मंजुला कहती हैं, ‘‘जब मैंने शुरू ही किया था उस दौर में इनवेसिव सर्जरी प्रारंभिक अवस्था में थी और यह पूर्णतः पुरुषों के वर्चस्व वाला क्षेत्र था। इसमें प्रयोग किये जाने वाली समस्त तकनीकें पुरुष चिकित्सकों के लिये उपयुक्त थीं। उस समय ऐसी नई तकनीक खोजने की बेहद जरूरत थी जो श्रम दक्षता की दृष्टि से महिलाओं के लिये अधिक अनुकूल हो।’’
हालांकि उस समय अधिकतर अस्पताल उन्नत प्रौद्योगिकी में निवेश करने के लिये तत्पर नहीं थे और वे पुराने ढर्रे पर ही चलना पसंद कर रहे थे। एक तरफ जब दूसरे चिकित्सक सामग्री परिसंपत्तियों में निवेश कर रहे थे तब मंजुला ने चिकित्सा प्रौद्योगिकी में निवेश करते हुए तकनीक में सुधार लाने में मददगार महंगे उपकरणों को अपनाने का प्रयास किया।
मंजुला कहती हैं, ‘‘कई लोगों के लिये तो समझना ही बेहद मुश्किल था कि गायनाॅकाॅलाॅजी और प्रसूति विज्ञान प्रसव और हिस्ट्रेकटाॅमी से इतर भी कुछ और है। मुझे यह साबित करने के लिये कि महिलाओं के लिये नयूनतम इनवेसिव सर्जरी लंबे दौर की एक प्रक्रिया है काफी दृढ़ता, धैर्य और हठधर्मिता के साथ टिकना पड़ा।’’
वर्तमान परिदृश्य के बारे में उनका कहना है कि अब चीजें पहले के मुकाबले काफी अच्छे में बदल गई हैं। उनका कहना है कि रुग्णता ओर मृत्यु दर को सीमित करने के लिये न्यूनतम इनवेसिव सर्जरी वक्त की जरूरत थी। मंजुला आगे कहती हैं कि इस क्षेत्र में महारत हासिल करना उनके लिये सबसे बड़ी चुनौती थी।
लैप्रोस्कोपी के क्षेत्र में अपने योगदान के लिये प्रख्यात और सफलतापूर्वक 10 हजार से भी अधिक लैप्रोस्कोपिक सर्जरी करने वाली मंजुला को लगता है कि अब भी इस क्षेत्र में बहुत कुछ किये जाने की संभावना है। लैप्रोस्कोपी के दौरान सर्जरी के प्रारंभिक स्तर में एक बेहद खतरनाक और लगभग न दिखाई देने वाली प्रक्रिया करनी होती है जिसमें काफी बल का प्रयोग करना पड़ता है।
मंजुला कहती हैं, ‘‘हमनें एक संशोधित खुले द्वार वाली तकनीक का ईजाद किया जो बिना अधिक बल का प्रयोग किये सबसे आसान ओर सुरक्षित तकनीक होने के अलावा श्रम दक्षता की दृष्टि से सर्जरी करने वाले चिकित्सकों के लिये सबसे बेहतर थी। इसके अलावा हमने महिला सर्जनों के लिये एक इप्सिलेटरल सेकेंडरी पोर्ट तकनीक का प्रयोग शुरू किया।’’
मंजुला के अनुसार, रोगी की सुरक्षा और सर्जन की सुविधा, लेप्रोस्कोपी के दो महत्वपूर्ण नियम हैं ओर उन्होंने अपने काम को इन दोनों पर ही केंद्रित किया। वे कहती हैं कि उन्होंने आसंजन निकारक तकनीक जैसे निवारक पहलुओं को इस्तेमाल करना शुरू किया जिससे सर्जरी के बाद होने वाली जटिलताओं पर काबू पाने में बहुत मदद मिली। इस प्रक्रिया के सफल होने पर उन्होंने इसके प्रसार के लिये भी बहुत मेहनत की।
एक महिला होने के नाते अपने सामने आई चुनौतियों और लिंगभेद के बारे में बात करते हुए मंजुला कहती हैं, ‘‘किसी भी क्षेत्र में काम करते हुए एक महिला को पुरुषों के मुकाबले खुद को सिद्ध करने के लिये अधिक मेहनत करनी पड़ती है लेकिन फिर भी मुझे विश्वास है कि जीवन के प्रति हमारा रवैया हमारे जीवन की ऊँचाइयों को निधार्रित करता है। मुझे लगता है कि मैं अपने रवैये की वजह से ही सामने आए पूर्वग्रहों को पार पाने में सफल रही।’’
वे आगे कहती हैं कि नए विचारों का प्रसार करना हमेशा ही एक बड़ी चुनौती होता है क्योंकि हमारा समाज किसी भी प्रकार के बदलाव को अपनाने के लिये आसानी से तैयार नहीं होता है। वो कहती हैं कि खुद को असहाय महसूस करने की भावना सबसे कठिन परिस्थितियों में से एक होती है। मंजुला कहती हैं, ‘‘जब हमारा कोई रोगी बहुत नाजुक स्थिति में होता है और हमारे तमाम प्रयासों के बाद भी उनकी जान नहीं बचाई जा पाती है तो मैं खुद को बहुत असहाय महसूस करती हूँ।’’
इसके अलावा मंजुला ने सामंथा और शशि मंदा के सहयोग से सुयोशा और प्रत्यशा सपोर्ट नामक संगठनों की भी स्थापना की है। उन्होंने इन संगठनों की स्थापना महिलाओं में स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता लाने के उद्देश्य के अलावा स्त्रीरोग निवारक स्वास्थ्य के लिये की है। साथ ही वे इन संगठनों की मदद से नवजात शिशुओं की रुग्णता और मृत्युदर कम करने के लिये कुद अतिरिक्त वित्तीय सहायता भी करती हैं।
मंजुला के अनुसार दुर्भाग्य से भारतीय महिलाएं अपने स्वास्थ्य और शरीर को अधिक प्राथमिकता नहीं देती हैं। मंजुला कहती हैं, ‘‘भारतीय महिलाएं अपने स्वास्थ्य को कम प्राथमिकता देते हुए अपने परिवार को स्वास्थ्य को लेकर अधिक चिंतित रहती हैं। उन्हें यह समझने की जरूरत है कि वे परिवार की व्यवस्था का एक मुख्य आधार हैं और अगर वे ही स्वस्थ नहीं होंगी तो पूरी व्यवस्था ही अस्वस्थ हो जाएगी। वे हमारे पास तबआती हैं जब उनके सभी घरेलू उपचार खत्म हो जाते हैं और तब हम उनका अंतिम सहारा होते हैं।’’
अधिकतर महिलाओं को होने वाले स्त्रीरोगों और विकारों को सिर्फ थोड़ी सी जागरुकता के द्वारा रोका या नियंत्रित किया जा सकता है। वे बताती हैंः
- महिलाओं में गुर्दे की विफलता का सबसे आम कारण आवर्तक मूत्र संक्रमण है और इससे बचने के कुछ सरल उपाय हैं। पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें, मंत्र के वेग को जबरदस्ती रोकें नहीं और न जबरदस्ती पेशाब करें और यौन क्रिया से पहले और बाद में मूत्र करने जानेे से परहेज करें।
- डाॅक्टर की सलाह के अनुसार टीके लगवाएं जैसे गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर और गांठों से बचने के लिये एचपीवी का टीका अवश्य लगवाएं।
- अनचाहे गर्भधारण और गर्भपात से बचने के लिए एक उचित और कम खुराक वाले गर्भ निरोधकों का प्रयोग करें।
- यौन संक्रमित रोगों से बचाव के लिये गर्भनिरोधकों का प्रयोग करें।
- नियमित रूप से स्त्रीरोग विशेषज्ञ से अपनी जांच करवाएं।
- मैमोग्राम्स, टीएसएच, अल्ट्रासाउंड, अस्थि खनिज घनत्व सलाह के अनुसार करवाते रहें ताकि स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी परेशानी को समय से ही चिन्हित किया जा सके और प्रारंभिक सतर पर ही उसे कैंसर इत्यादि में परिवर्तित होने सक रोका जा सके।
- जैसे लोहा ही लोहे को काटने के काम आता है वैसे ही हाॅर्मोनल असंतुलन को हाॅर्मोन के द्वारा ही दूर किया जा सकता है। इसलिये हाॅर्मोन को लेकर अपने अंदर पल रहे डर को किनारे रखते हुए डाॅक्टर की देखरेख में भविष्य की जटिलताओं से बचने के लिये उचित मात्रा में उनका उपयोग करें।
- अपना ईलाज स्वयं करने के स्थान पर या गूगल पर सर्च करके दवाएं लेने के स्थान पर प्रशिक्षित डाॅक्टर की सलाह लेने के आदत डालें।
अपने जीवन की प्रेरणा के बारे में बात करते हुए मंजुला कहती हैं कि उनके माता-पिता, शिक्षकों और यहां तक कि उनके मरीजों ने भी उन्हें इस क्षेत्र में प्रगति करने के लिये प्रेरित करने का काम किया है। वे आगे कहती हैं कि उनके जीवन में तीन बातें सही मायनों में यादगार रही हैं। जब उन्होंने तमाम बाधाओं के बावजूद माँ बनने का फैसला किया, अपने अस्पताल को मरीजों की देखभाल करने वाले अस्पताल से न्यूनतम इनवेसिव सर्जरी करने वाले अस्पताल का स्वरूप देने में और उच्च जोखिम वाली प्रसूति करने और शिक्षण।
अंत में मंजुला कहती हैं, ‘‘मैं वास्तव में बहुत भाग्यशाली हूँ कि मेरा विवाह एक ऐसे परिवार में हुआ जो मेरे हर फैसले में मेरे साथ खड़े रहे और हमेशा मेरा समर्थन किया। मेरे पति कोल्लि सुरेश और अभी पढ़ाइ्र कर रही मेरी बेटी श्रुजिता ने हमेशा मेरे व्यस्त कार्यक्रम के अनुसार खुद को समायोजित किया है। मैं इससे अधिक और कुछ नहीं मांग सकती थी।’’