क्लाइमेट एक्शन के लिए इन 6 कारणों से बेहद खास रहेगा 2023
दुनिया धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से जीवाश्म ईंधन से दूर जा रही है. जब इतिहासकार पीछे मुड़कर देखेंगे, तो वे 2015 के पेरिस समझौते को प्रमुख धुरी बिंदु के रूप में पाएंगे.
बहुत से लोग वार्षिक संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता को एक रस्मअदायगी से ज्यादा कुछ नहीं मानते हैं, जिसमें केवल इसके क्रमिक परिवर्तन पर सिर्फ बात की जाती है. जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग इसे ‘फिजूल’’ बताती हैं – जहां बातचीत मुख्यत: अधूरी होती है और अक्सर जीवाश्म ईंधन उत्पादकों पर केंद्रित होती है, जो चाहते हैं कि दुनिया उनके मुख्य निर्यात को खरीदना जारी रखे
ज़रा गौर से देखिए. दुनिया धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से जीवाश्म ईंधन से दूर जा रही है. जब इतिहासकार पीछे मुड़कर देखेंगे, तो वे 2015 के पेरिस समझौते को प्रमुख धुरी बिंदु के रूप में पाएंगे.
इसने जलवायु कार्रवाई पर वैश्विक सहमति हासिल की और राष्ट्रों के लिए सदी के मध्य तक डीकार्बोनाइज करने का लक्ष्य निर्धारित किया.
हाल के वर्षों में, जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा की तरफ बढ़ने के विशाल कार्य को स्वच्छ ऊर्जा की लागत में गिरावट के साथ ही रूसी गैस का उपयोग समाप्त करने की आवश्यकता से बढ़ावा मिला है.
वैश्विक वार्ता की सफलता पर ध्यान केंद्रित करना ही अब मुख्य मुद्दा नहीं रह गया है. वास्तविक प्रगति देखने के लिए, चीन, जर्मनी और अमेरिका जैसे देशों की ओर देखें, जो स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश करने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहे हैं – न केवल दुनिया के लिए, बल्कि इसलिए कि पहले आगे बढ़ना उनके अपने हित में है.
पेरिस समझौता इतना महत्वपूर्ण क्यों है
संयुक्त राष्ट्र सीओपी जलवायु वार्ता में दशकों की कष्टप्रद बातचीत और कड़वी निराशा के बाद, 2015 का पेरिस समझौता एक बड़ी कूटनीतिक सफलता थी. दुर्लभ आम सहमति से हुए इस समझौते की विशाल वैधता है. वही इसे शक्तिशाली बनाता है. यह सभी देशों के अनुसरण के लिए मानक निर्धारित करता है.
तो इसने क्या किया?
इसने एक नया वैश्विक मानदंड पेश किया: नेट-जीरो हासिल करना. देश इस बात पर सहमत हुए कि दुनिया के ताप को ‘2 डिग्री से नीचे रखा जाए और तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाया जाए”.
वहां पहुंचने के लिए, दुनिया को सदी के मध्य तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करना होगा. सभी देशों को उत्सर्जन में कटौती करने और हर पांच साल में उन्हें मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित करने की आवश्यकता है.
2015 से, 100 से अधिक देशों ने शुद्ध शून्य हासिल करने का संकल्प लिया है. ये देश वैश्विक अर्थव्यवस्था के 90 प्रतिशत से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं.
पेरिस में और उसके बाद किए गए संकल्प तेजी से बदलाव लाने लगे हैं. पांच वर्षों से 2020 तक, वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा निवेश में 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 2020 के बाद से, विकास की गति काफी तेज होकर 12 प्रतिशत प्रति वर्ष हो गई है.
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) को अब उम्मीद है कि वैश्विक जीवाश्म ईंधन का उपयोग इस दशक में चरम पर होगा, जिसके बाद विश्व अर्थव्यवस्था अपरिवर्तनीय रूप से स्वच्छ ऊर्जा में बदलने लगेगी.
वर्तमान में, ऐसा लगता है कि संक्रमण पर्याप्त तेजी से नहीं हो रहा है. लेकिन ऐसा हो रहा है. और इससे कोई पीछे नहीं हट रहा है. यहां 2023 में देखने के लिए छह उत्साहजनक रुझान हैं.
1. जी7 अर्थव्यवस्थाएं बनाएंगी ‘जलवायु क्लब’
दिसंबर में, दुनिया के सबसे अमीर लोकतंत्रों के जी7 समूह ने ‘जलवायु क्लब’ बनाने पर सहमति व्यक्त की. नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री विलियम नॉर्डहॉस द्वारा परिकल्पित, क्लब एक ऐसी व्यवस्था है जहां देश जलवायु महत्वाकांक्षा के लिए सामान्य मानक विकसित करते हैं और क्लब के सदस्यों के बीच लाभ साझा करते हैं. क्लब सबसे पहले स्टीलमेकिंग जैसे उद्योगों के डीकार्बोनाइजेशन पर ध्यान केंद्रित करेगा.
2. ईयू में नए कार्बन कर पेश किए जाएंगे
यूरोपीय कंपनियों की कार्बन मूल्य के बिना देशों की कंपनियों के साथ कम प्रतिस्पर्धी बनने की समस्या से बचने के लिए, यूरोपीय संघ के राष्ट्र कार्बन कर लगाने के लिए दिसंबर में सहमत हुए.
इसका मतलब है कि बिना पर्याप्त कार्बन मूल्य वाले देशों से आयात पर कर लगेगा. इसका अर्थ यह भी है कि यूरोपीय कंपनियां कार्बन मूल्य से बचने के लिए अपतटीय उत्पादन नहीं कर सकतीं.
यह तो शुरूआत भर है, कनाडा जैसे अन्य अमीर देश भी इस दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं. समय के साथ, इन करों का सिलसिलेवार प्रभाव होगा, जो इन बाजारों में निर्यात पर निर्भर देशों को डीकार्बोनाइजेशन की ओर तेजी से बढ़ने के लिए मजबूर करेगा.
3. यूक्रेन युद्ध ने नवीनीकृत ऊर्जा को बढ़ावा दिया
जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, तो पश्चिमी देशों ने मास्को पर प्रतिबंध लगा दिए और रूसी गैस के आयात में कटौती कर दी. जीवाश्म ईंधन की कीमतों में उछाल आया. बुरी खबर है ना? इतनी जल्दी ऐसा न सोचें. आईईए का कहना है कि युद्ध ने वास्तव में स्वच्छ ऊर्जा को सुरक्षा का विषय बनाकर स्वच्छ ऊर्जा निवेश को बढ़ा दिया है.
पुतिन के आक्रमण के जवाब में, प्रमुख यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं ने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में वृद्धि की क्योंकि वे रूसी गैस पर निर्भरता समाप्त करने निकल पड़े. नवीनीकरण में तेजी के साथ, यूरोपीय संघ अब इस वर्ष के अंत में सीओपी28 जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले एक मजबूत 2030 उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित करने का इरादा रखता है.
4. स्वच्छ ऊर्जा में बदलाव का नेतृत्व के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे अमेरिका और चीन
जलवायु कार्रवाई के लिए सहयोग पर निर्भर होना जरूरी नहीं है. प्रतियोगिता एक उत्कृष्ट चालक भी है. पिछले साल, अमेरिका ने स्वच्छ ऊर्जा में 530 अरब डॉलर से अधिक का निवेश करने वाला कानून पारित किया.
अमेरिकी इतिहास में इस सबसे बड़े जलवायु व्यय का मकसद चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करना भी था, जो सौर पैनलों, बैटरी, पवन टर्बाइनों और इलेक्ट्रिक वाहनों के वैश्विक उत्पादन पर हावी है.
5. अमीर देश विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को कोयला छोड़ने के लिए भुगतान कर रहे
2021 में, अमीर देशों के एक समूह ने कोयले की ऊर्जा पर अपनी निर्भरता से हटने के लिए दक्षिण अफ्रीका को 12 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर देने की पेशकश की. पिछले साल बाली जी20 शिखर सम्मेलन में, अमीर देशों ने इंडोनेशिया को कोयले का इस्तेमाल बंद करने के लिए लगभग 30 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की पेशकश की, जबकि इसी तरह की पेशकश दिसंबर में वियतनाम को की गई थी. इस साल सभी की निगाहें भारत पर होंगी, उम्मीद है कि इसी तरह का पैकेज पेश किया जाएगा.
6. इच्छा के गठबंधन
सितंबर में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस नवंबर में औपचारिक सीओपी वार्ता से पहले एक संजीदा जलवायु महत्वाकांक्षा शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेंगे.
क्योंकि वह चाहते हैं कि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं इस दशक की तरह पहले ही उत्सर्जन में कटौती के लिए नई प्रतिबद्धताएं लाएं. उन्होंने घोषणा की कि इसमें, अपने वादों से पीछे हट जाने वालों, एक दूसरे पर दोषारोपण करने वालों और पिछली घोषणाओं को ही नये सिरे से पेश करने वालों के लिए कोई जगह नहीं होगी.
यह अपने आप में अकेला प्रयास नहीं है. संयुक्त राष्ट्र की औपचारिक वार्ताओं के साथ-साथ, हम इच्छुक लोगों के गठबंधन कहे जाने वाले समूहों की संख्या में वृद्धि देख रहे हैं.
इनमें पॉवरिंग पास्ट कोल एलायंस डिप्लोमैटिक एलायंस से लेकर ग्लोबल मीथेन प्लेज से लेकर जीवाश्म ईंधन अप्रसार संधि जैसे अधिक महत्वाकांक्षी प्रस्ताव शामिल हैं, जिन्हें पिछले साल वानुआतु और तुवालु द्वारा आगे बढ़ाया गया था.
इसलिए जब संयुक्त राष्ट्र की जलवायु वार्ता वैश्विक सहयोग की आधारशिला है, तो हम अतिरिक्त उपायों की श्रृंखला भी देख रहे हैं. इन प्रयासों से जलवायु कार्रवाई में तेजी लाने में मदद मिलेगी.
Edited by Vishal Jaiswal