बहरेपन का दंश झेल रहे कलाकारों को आत्मनिर्भर बना रही हैं स्मृति नागपाल
स्मृति नागपाल के दो बड़े भाई-बहनों की श्रवण शक्ति कमजोर थी। लेकिन इस बात ने उन तीनों को किसी अन्य परिवार की तरह एक दूसरे के लिए अपनी भावनाओं का इजहार करने और संवाद करने से नहीं रोका। स्मृति ने अपने भाई-बहनों की बातें समझने के लिए एक साइन भाषा सीखने का निर्णय लिया।
23 साल की उम्र में स्मृति 'अतुल्यकला' नाम की संस्था की संस्थापक सीईओ बन गईं। अतुल्यकला एक सामाजिक उद्यम है जो साझेदारी और रचनात्मक सहयोग के माध्यम से बहरे लोगों को सशक्त बनाने का काम करता है।
अतुल्यकला एक लाभप्रद सामाजिक उद्यम है जो बहरे कलाकारों के विकास, सीखने, साझा करने और सम्मान और गौरव के जीवन जीने के अवसर पैदा कर रहा है। वे श्रवण शक्ति में कमजोर कलाकारों के काम को ऑनलाइन और ऑफलाइन बेचते हैं।
कहा जाता है कि प्रेम की कोई भाषा नहीं होती है। स्मृति नागपाल के दो बड़े भाई-बहनों की श्रवण शक्ति कमजोर थी। लेकिन इस बात ने उन तीनों को किसी अन्य परिवार की तरह एक दूसरे के लिए अपनी भावनाओं का इजहार करने और संवाद करने से नहीं रोका। स्मृति ने अपने भाई-बहनों की बातें समझने के लिए एक साइन भाषा सीखने का निर्णय लिया। 23 साल की उम्र में स्मृति 'अतुल्यकला' नाम की संस्था की संस्थापक सीईओ बन गईं। अतुल्यकला एक सामाजिक उद्यम है जो साझेदारी और रचनात्मक सहयोग के माध्यम से बहरे लोगों को सशक्त बनाने का काम करता है। स्मृति को इस साल बीबीसी की 100 प्रेरक महिलाओं की सूची में भी शामिल किया गया है। स्मृति बताती हैं, मैं भाई-बहन मुझसे 10 साल बड़े हैं। उनके साथ संवाद करने का एकमात्र तरीका साइन-लैंग्वेज सीखना था जोकि बाद मेरी एक मातृभाषा बन गई। मेरे माता-पिता और मेरे भाई-बहनों के बीच यह भाषा एक पुल जैसे हो गई थी। मेरे परिवार के लिए मेरा ये भाषा सीखना बहुत महत्वपूर्ण हो गया था।
ये अनुमान लगाया गया है कि भारत में (19.14 करोड़ के बीच) लाखों लोगों की श्रवण शक्ति कमजोर कम है। दुनिया में हर पांच में से एक श्रवण शक्ति में कमजोर इंसान भारत में रहता है। इस हिसाब से हमारा देश बहरापन झेल रहे लोगों की सबसे बड़ी संख्या वाल देश बन गया। इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद इस विसंगति को झेल रहे लोगों के लिए खास सुविधाएं नहीं हैं। उन्हें दैनिक जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसमें भी मुख्य दिक्कत शिक्षा की कमी है। उनके लिए संवाद करने के लिए सिर्फ दो तरीके हैं, भाषा लिखना और साइन लैंग्वेज। ढांचे और नीतियों की कमी उनका सही तरीके से लिखना सीखना कठिन बना देती है।
कैसे और कब शुरू हुआ ये कारवां-
स्मृति इन दिक्कतों से हर रोज रूबरू होते अपने भाई-बहनों का दर्द देखती रहती थीं। जब वह 16 साल की हो गईं, तब उन्होंने नेशनल एसोसिएशन ऑफ डेफ (एनएडी) में वॉलियंटरिंग करनी शुरू कर दी थी। ये उनका तरीका था, समाज के लिए वापस कुछ करने का । कुछ सालों के बाद जब उन्होंने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक किया गया, तब एक टीवी चैनल में एक ऑडिशन के लिए कॉल आया। चैनल वालों को अपने समाचार कार्यक्रम के लिए साइन भाषा के लिए एक दुभाषिए की जरूरत थी और स्मृति उनकी पसंद थी। स्मृति पढ़ाई भी कर रही थीं, और दूरदर्शन नेटवर्क के लिए श्रणव इम्पेएड मॉर्निंग बुलेटिन भी करने लगीं।
इस नौकरी ने उनके लिए बहुत सारे अवसरों के लिए एक दरवाजा खोल दिया। जिसने उन्हें बहरापन झेल रहे समुदाय की समस्याओं को हल करने के लिए अपने जुनून को समझने का मौका दिया। अपने स्नातक स्तर की पढ़ाई के सात महीने बाद उन्होंने एक कहानी सुनी जिसके बाद उन्हें लगा कि अब तो कुछ करना चाहिए जिससे बहरे लोगों की समस्या और कम हो। स्मृति वो घटना याद करते हुए बताती हैं, मेरी मुलाकात एक वरिष्ठ कलाकार से हुई, जिन्होंने कला में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की थी। दुर्भाग्य से वह एक एनजीओ में मैनुअल काम कर रहे थे। उनकी प्रतिभा वहां पूरी तरह बर्बाद हो रही थी। मैं घर लौट आई और आते ही कुछ रिसर्च किया और मुझे पता था कि मुझे उन कलाकारों की मदद करना है, उनके बारे में कुछ तो करना है जो कम सुन पाते हैं। मैंने अपने दोस्त हर्षित के साथ 'अतुल्यकला' को शुरू करने का फैसला किया। वह कलाकार जिसे मैं एनजीओ में मिली थी वो भी हमारे इस प्रोजेक्ट में शामिल हो गए हैं।
कैसे काम करता है अतुल्यकला-
अतुल्यकला एक लाभप्रद सामाजिक उद्यम है जो बहरे कलाकारों के विकास, सीखने, साझा करने और सम्मान और गौरव के जीवन जीने के अवसर पैदा कर रहा है। वे श्रवण शक्ति में कमजोर कलाकारों के काम को ऑनलाइन और ऑफलाइन बेचते हैं और उससे लाभ कमाते हैं। लेकिन वे गर्व से अन्य गैर-सरकारी संगठनों से अंतर करते हुए बताते हैंं, उनकी रचनात्मकता को आमतौर पर एक कोठरी में रखा जाता है। हम उन्हें इस अलमारी से बाहर लाने और उनकी रचनात्मकता को फैलाने की स्वतंत्रता दे रहे हैं। और हम ऐसा करते हैं कि उनका नाम सामने रखकर। हम चाहते हैं कि बहरापन झेल रहे लोग हमारे ब्रांड की वजह से सशक्त हों। हम अपने ब्रांड के नाम को सशक्त बनाने के लिए बहरा कलाकारों को नियुक्त नहीं करना चाहते हैं। यही कारण है कि हर एक आर्टिस्टिक पीस पर उन लोगों के हस्ताक्षर होते हैं। हम चाहते हैं कि उन्हें यह महसूस हो कि वे अपने आप में कुछ पैदा कर रहे हैं, कुछ रच रहे हैं।
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