Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

गोली मारो भूख को, आराम दो पेट को, खाओ “गोली वडा-पाव”

61 शहरों में 277 स्टोर45 करोड़ रुपये की सालाना आयहर दिन 70 हजार वडा-पाव की बिक्री

गोली मारो भूख को, आराम दो पेट को, खाओ “गोली वडा-पाव”

Thursday June 18, 2015 , 8 min Read

देशभक्ति का कोई पैमाना नहीं होता। तभी तो मुंबई के रहने वाले वेंकटेश अय्यर ने जब देखा कि वो अपनी दिनचर्या में जो भी चीजों का इस्तेमाल करते हैं वो विदेशी होती हैं। फिर चाहे वो कॉलगेट टूथपेस्ट हो, जिलेट का रेजर हो या फिर नहाने के लिए लक्स साबुन। इन रोजमर्रा की चीजों में कोई एक भी चीज उनको भारतीय नहीं दिखी। तब इस सहासी उद्यमी ने फैसला लिया कि वो ऐसा कुछ करेगा जिस पर हर भारतीय को गर्व होगा।

image


भारतीयता को ध्यान में रखते हुए वेंकटेश अय्यर ने “गोली वड़ा-पाव” की शुरूआत की। साल 2004 में मुंबई के पास कल्याण में उन्होने इसकी स्थापना की। वेंकटेश के इस काम में मदद की “गोली वड़ा-पाव” के सह-संस्थापक शिवादास मेनन ने। जो खुद खाने के बड़े शौकिन हैं। जिनको विश्वास था कि खाना उनको पहचान दिला सकता है। भारतीय फास्ट फूड के ढेरों विकल्प हैं लेकिन थोड़े से वक्त में इनको ज्यादा से ज्यादा बनाना एक मुश्किल काम था। तब इन लोगों ने मिलकर बड़ा-पाव का कारोबार शुरू करने का फैसला लिया जो लोगों को देने और खाने में आसान है। बेंकटेश के मुताबिक “आप 5 मिनट में 5 वड़ा-पाव बना सकते हैं जबकि मसाला दोसा इतनी जल्दी नहीं बन सकता और ये हाथों से खाया जा सकता है इसके लिए प्लेट, चम्मच और टेबल की जरूरत नहीं होती। इतना ही इसे कहीं भी खाया और ले जाया जा सकता है।” गोली वड़ा-पाव की प्रेरणा इन लोगों को मैकडॉनल्ड्स बर्गर से मिली क्योंकि इन दोनों में कई समानताएं हैं।

वेंकटेश और शिवादास ने अपने इस कारोबार की शुरूआत में अपनी पूंजी का इस्तेमाल किया। शुरूआत में उनको काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा जैसे बड़ा-पाव की बर्बादी, उसकी चोरी या फिर कुक के छोड़ जाने के बाद इस काम के बंद होने का खतरा। इन अनिश्चिताओं को देखते हुए वेंकटेश ने इसके समाधान की तलाश शुरू कर दी। तब इनके एक दोस्त ने मदद की जो एक अमेरीकी प्रोसेस्ड फूड़ कंपनी के कारोबार को भारत में देखता था। दोस्त की सलाह पर इन्होने वड़ापाव बनाने वाली एक मशीन देखी जो तय साइज और आकार के वड़ा पाव बनाती थी। “गोली वड़ा-पाव” के लिए एक तीर से कई निशाने लगाने जैसा था। इससे ना सिर्फ सामान की बर्बादी रूकी बल्कि चोरी या कुक के छोड़कर जाने की दिक्कत भी दूर हो गई।

आज गोली के वड़ा पाव की देश में ही नहीं विदेशों में खूब मांग है। यहां बने वड़ा पाव को विदेशों में भेजा जाता है जहां पर उनको सही तरीके से संभाल कर लोगों के लिए परोसा जाता है। तकनीक ने इनके इस मॉडल में काफी मदद की। तभी तो दिल्ली के जिस कारोबारी ने इन लोगों से फ्रेंचाइजी ली थी वो स्थानीय स्तर पर वड़ा पाव का निर्माण करा रहा था जिससे वड़ा पाव की कीमत में उतार चढ़ाव हो रहा था। इससे इन लोगों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। आज गोली वड़ा पाव 61 शहरों में 277 स्टोर चला रहा है। जबकि हल्दीराम और दूसरे फूड स्टोर की संख्या इससे काफी कम है। वेंकटेश के मुताबिक जहां ये लोग मशीन से ज्यादातर काम लेते हैं वहीं दूसरे स्टोर इंसानी मदद से काम कर रहे हैं।

शुरूआत में इन लोगों को राजनीतिक विरोध का भी सामना करना पड़ा। इस कारण गोली वड़ा पाव की कई दुकानों को बंद करना पड़ा। इससे इन लोगों को काफी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा। तब लोगों ने भी मान लिया था कि गोली वड़ा पाव का अंत आ गया है। आर्थिक दिक्कतों के बीच लेहमन बदर्स इनकी मदद को आगे आए। क्योंकि तब कोई भी निवेशक उनकी मदद को आगे नहीं आया। मुश्किल वक्त में भी गोल वड़ा पाव मुस्करा कर चलता रहा और नाशिक में स्टोर खुलने के बाद पूरे देश में इसका जाल फैल गया। वेंकटेश बताते हैं कि “हमारे सामने कई चुनौतियां थी लेकिन जहां पर चुनौती नहीं होती वहां आपका कारोबार नहीं बढ़ सकता। सामान की बर्बादी हो या उसकी चोरी ये हमारे लिए चुनौती थी, कारोबार के लिए फंड जुटाना, रियल स्टेट जैसी कई दूसरी कई चुनौतियों के अलावा विपरीत राजनीतिक हालात में कारोबार को बढ़ाना जैसी कई समस्याएं थी। इन चीजों ने हमको मिटा दिया था जिस वजह से हमको मुंबई तक छोड़ना पड़ा लेकिन तब हमने नाशिक से अपना विकास शुरू किया। हालांकि हालात मुश्किल थे लेकिन कारोबार में ये सब होता ही है।

नाशिक से दोबारा अपना कारोबार शुरू करना इनके लिए किसी वरदान से कम नहीं था। यहां से इन लोगों ने अपना कारोबार ना सिर्फ नये सिरे से शुरू किया बल्कि उसके विस्तार को लेकर भी अपने कदम बढ़ाये। एक कंपनी के तौर पर इन लोगों ने पहले महाराष्ट्र फिर कर्नाटक पर ध्यान देना शुरू किया जिसके बाद इन लोगों ने चेन्नई, यूपी और दूसरे राज्यों में कदम रखे। गोली वड़ा पाव के इस वक्त महाराष्ट्र में 85, कर्नाटक में 100 स्टोर हैं जबकि कोलकाता, कोच्ची और गोरखपुर में इन लोगों ने हाल ही में अपना स्टोर शुरू किया है। आज गोली वड़ा पाव हर रोज 70 हजार से ज्यादा वड़ा पाव बेचता है। वेंकटेश के मुताबिक हाल ही में कोच्ची में शुरू हुए इनके स्टोर की प्रतिदिन की आमदनी 15 हजार रुपये है।

इन लोगों का कहना है कि ये उस बाजार में हैं जहां पर की भी प्रतियोगिता नहीं है। कोई भी बेंगलोर, औरंगाबाद या नागपुर में वड़ा पाव नहीं बेचता। इन लोगों ने खासतौर से उन शहरों की ओर रूख किया जहां पर लोगों ने वड़ा पाव के बारे में सिर्फ सुना था लेकिन कोई बेचता नहीं था। ये लोग अमेरिकियों की तरह हर काम स्वचालित तरीके से करते हैं साथ ही स्वच्छ दुकान पर इनका खास जोर रहता है। वेंकटेश के मुताबिक गोली वड़ा पाव का ये विस्तार अपने फ्रेंचाइजियों की मदद से किया है। उनके मुताबिक ये फ्रेंचाइजी ऐसे हैं जो पहले कभी इनके ग्राहक थे और इन लोगों ने नागपुर में गोली के वड़ा पाव का स्वाद लिया तो औरंगाबाद में अपना कारोबार शुरू किया तो किसी ने औरंगाबाद में गोली के वड़ा पाव खाये तो धुलिया में हमारी फ्रेंचाइजी ली। इस तरह एक के बाद एक कई लोग इनके साथ जुड़ते चले गए।

गोली वड़ा पाव की अगली रणनीति व्यस्त और महंगे बाजार के आसपास स्टोर खोलने की है, क्योंकि इन जगहों पर ज्यादा भीड़ होती है। हर शहर में भीड़ भाड़ वाली कोई ना कोई खास जगह होती है जो शहर का केंद्र भी होता है। अब इन लोगों की नजर ऐसी जगहों पर है जहां काफी सारे लोग आते जाते हों क्योंकि इन लोगों की कोशिश वड़ा पाव को शहर के कल्चर से जोड़ने की है। फिर चाहे वो जगह किसी के घर के बाहर हो, ऑफिस हो या फिर कोई कॉलेज। राजमार्गों और मॉल्स में मौजूद स्टोरों में ज्यादातर लोग 3 से 4 महीने में एक दो बार ही जाते हैं जहां पर वड़ा पाव उनकी आदत में शामिल नहीं हो सकता। जबकि इनकी कोशिश वड़ा पाव को लोगों की आदत में शामिल कर अपने ब्रांड को स्थापित करना है।

वेंकटेश अय्यर और शिवादास मेनन

वेंकटेश अय्यर और शिवादास मेनन


गोली वड़ा पाव अब कई तरह के तजुर्बे भी कर रहा है। जैसे इन लोगों ने साबुदाना वड़ा, पालक मक्कई वड़ा और मसाला वड़ा बनाना शुरू कर दिया है। साबुदाना बड़ा ने गोली के विस्तार में काफी अहम रोल निभाया है क्योंकि जब 5-6 साल पहले महाराष्ट्र के भीतरी शहरों में इन लोगों ने अपना कारोबार फैलाना शुरू किया तो उस वक्त सावन का महीना चल रहा था और ज्यादारतर लोग उपवास में रहकर इसको खूब खाते थे। जिससे इसकी डिमांड खूब बढ़ी। आज भी साबुदाना बड़ा ना सिरफ महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों में खूब बिकता है बल्कि इंदौर और भोपाल जैसे शहरों में भी इसकी खूब मांग है। तो पालक मक्कई बड़ा बेंगलौर में काफी प्रसिद्ध है वहीं मसाला बड़ा की मांग उत्तर भारत में काफी है।

गोली ने अपने कारोबार को विस्तार देने के लिए दूसरे उपायों पर भी काम करना शुरू कर दिया है। गोली ने “डब्बा” नाम से एक कॉम्बो मील शुरू किया है। खासतौर से उन लोगों को ध्यान में रखते हुए जो कॉलेज के छात्र हैं या फिर ऑफिस में पार्टी करने वाले लोग। इस डब्बा में वड़ा पाव के साथ आलू चस्का और ब्राउनी भी मीठे के तौर पर होती हैं। अब इनकी योजना फैमली पैक लाने की है जिसमें एक डिब्बे में बीस बड़ा पाव होंगे। डब्बा के कारोबार से इन लोगों की आय बढ़ी है जिसे इन लोगों ने छह महीने पहले शुरू किया था।

गोली का कारोबार फायदे में चल रहा है और हल साल इसकी आय 45 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। इन लोगों का दावा है कि देश में ही नहीं विदेशों से भी काफी डिमांड आ रही है। जैसे दुबई, यूएई, यूके, लेकिन इन लोगों कहना है कि अभी इन लोगों ने देश में ही काफी कुछ करना है। वेंकटेश का कहना है कि “जब सबवे, मैकडॉनल्ड्स देश भर में 8 से 10 हजार स्टोर खोल सकते हैं तो हम लोग कम से कम 5 हजार स्टोर तो खोल ही सकते हैं। अगर हम अगले 5 सालों में एक हजार नये स्टोर खोल पाते हैं तो हम काफी लोगों तक अपनी पहुंच बनाने में सफल होंगे। भारत में मौकों की भरमार है।” इन लोगों का मानना है कि गोली के अलावा और भी कई भारतीय खाने हैं जो एक ब्रांड बन सकते हैं लेकिन इनमें जरूरत है तकनीक की। ताकि खाने की बर्बादी, चोरी को रोकने का अलावा उसका स्तर बरकरार रखा जा सके। वेंकटेश के मुताबिक “भारतीय खानों की कहानी तो अभी शुरू भी नहीं हुई है हम भले ही इसमें अग्रणी हैं लेकिन हम चाहते हैं कि इस क्षेत्र में और लोग भी उतरें क्योंकि भारत में खाने के क्षेत्र में बेहिसाब मौके हैं।“