3 करोड़ के घर में रहने वाली उर्वशी क्यों लगाती हैं सड़क पर ठेला
एक महिला जो गुरुग्राम में 3 करोड़ रुपये के घर में रहती हैं और एक एसयूवी की मालिक हैं। उन्होंने सड़क के किनारे ठेला लगाने से अपनी शुरुआत की थी। चिलचिलाती गर्मी और लगातार पसीने के बीच वो लगातार प्रयत्नरत रहीं औ उन्हें अपना व्यवसाय चलाने से किसी भी प्रकार की उलाहनाएं रोक नहीं सकीं। आज उनके पास न केवल एक फूड ट्रक है बल्कि गुड़गांव में रेस्टोरेंट भी चला रही हैं।
ये महिला हैं उर्वशी यादव। उर्वशी कहती हैं कि मेरे परिवार के लिए एक सुरक्षित भविष्य की जरूरत है। दरअसल उनके पति के साथ हुई एक दुर्घटना से अचानक उनके परिवार में कई बदलाव आ गए।
छह साल में उनके पति को डॉक्टरों ने दूसरी बार हिप रिप्लेसमेंट की जरूरत बताई। दुर्घटना के बाद उर्वशी अपने परिवार के लिए एक उदास भविष्य की आशंका में थी। उन्होंने आर्थिक रूप से समर्थन देने के लिए सारी जिम्मेदारी खुद पर ले ली।
एक महिला जो गुरुग्राम में 3 करोड़ रुपये के घर में रहती हैं और एक एसयूवी की मालिक हैं। उन्होंने सड़क के किनारे ठेला लगाने से अपनी शुरुआत की थी। चिलचिलाती गर्मी और लगातार पसीने के बीच वो लगातार प्रयत्नरत रहीं औ उन्हें अपना व्यवसाय चलाने से किसी भी प्रकार की उलाहनाएं रोक नहीं सकीं। आज उनके पास न केवल एक फूड ट्रक है बल्कि गुड़गांव में रेस्टोरेंट भी चला रही हैं। ये महिला हैं उर्वशी यादव। उर्वशी कहती हैं कि मेरे परिवार के लिए एक सुरक्षित भविष्य की जरूरत है। दरअसल उनके पति के साथ हुई एक दुर्घटना से अचानक उनके परिवार में कई बदलाव आ गए। छह साल में उनके पति को डॉक्टरों ने दूसरी बार हिप रिप्लेसमेंट की जरूरत बताई। दुर्घटना के बाद उर्वशी अपने परिवार के लिए एक उदास भविष्य की आशंका में थी। उन्होंने आर्थिक रूप से समर्थन देने के लिए सारी जिम्मेदारी खुद पर ले ली।
कैसे शुरू हुआ ये कारवां-
कुछ समय तक वह एक नर्सरी स्कूल शिक्षक के रूप में काम करके परिवार को चला रही थीं। लेकिन उन्हें लगा कि इस सैलरी से तो वो ज्यादा बचन नहीं कर पाएंगी तो उन्होंन अपना छोले-कुल्चे का ठेला लगाने का फैसला लिया। उर्वशी के मुताबिक, आज हम आर्थिक रूप से कमजोर नहीं हैं लेकिन मैं भविष्य के लिए जोखिम नहीं ले सकती। स्थिति खराब होने की प्रतीक्षा करने के बजाय, मैंने अभी से ही उसे संभालना शुरू कर दिया। चूंकि मैं खाना पकाने से प्यार करती हूं, इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न इसमें ही निवेश किया जाए।
उर्वशी के पति अमित यादव एक अग्रणी निर्माण कंपनी के साथ एक कार्यकारी अधिकारी के रूप में काम करते हैं और उनके ससुर एक सेवानिवृत्त भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर हैं। 31 मई 2016 को, अमित सेक्टर 17 ए में गिर पड़े। डॉक्टरों ने दिसंबर में उनके लिए सर्जरी की सलाह दी। दुर्घटना के एक दिन के बाद उर्वशी,ने सेक्टर 14 के बाजार में एक झील के पेड़ के नीचे अपना ठेला लगा डाला। 300 वर्ग यार्ड भूखंड पर फैले घर में अपने परिवार के साथ रहने वाली उर्वशी ने एचटी को बताया, मैं नहीं चाहती कि मेरे बच्चों को वित्तीय संकट की वजह से स्कूल बदलना पड़े। मैं प्रतिदिन 2500 रुपये और 3,000 रुपये के बीच कमाई कर लेती हूं। मैं अपनी आय से खुश हूं।
कठिन राह और कड़ी मशक्कत-
लेकिन उनकी ये सफलता बिना संघर्षों के नहीं आई है। उर्वशी एक स्नातक हैं और शुद्ध अंग्रेजी में बात करती हैं। अपने इस ठेले लगाने के निर्णय को लेकर उन्हे अपने परिवार से काफी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। वो कहते थे कि अपना स्टेटस तो देखो, तुम इतनी पढ़ी-लिखी, इतनी कुलीन, हाई स्टैंडर्ड वाली और तुम सड़क पर छोले कुल्चे बेचोगी! तुम जो ये व्यवसाय को शुरू करने के लिए सोच रही हो वो तुम्हारी स्थिति से मेल नहीं खाता।
उर्वशी के मुताबिक, यह वास्तव में मेरे जैसी महिला के लिए एक बड़ा बदलाव था। एक महिला जो हर समय एसी में रहती है, वो सड़क पर खाना बेचने के लिए निकली। और निश्चित रूप से ये मेरे परिवार के लिए आसान नहीं था कि महिंद्रा स्कॉर्पियो और हुंडई क्रेटा की मालकिन एक ठेला लगाती है। मेरे ससुर ने मेरे लिए एक दुकान खोलने को आर्थिक सहायता की पेशकश की थी लेकिन मैंने मदद लेने से इनकार कर दिया था। जब मैंने ये व्यवसाय शुरू किया था तो मेरे परिवार ने सोचा कि यह तीन दिनों से अधिक समय तक नहीं चल पाएगा। लेकिन डेढ़ महीने के अंदर ही मेरा ये स्टॉल इलाके में हिट हो गया था।
उर्वशी के सपनों ने उड़ान भरी और अब उनका ठेला एक रेस्टोरेंट के रूप में बदल चुका है। उन्होंने इसी ठेले से हुई कमाई के जरिए एक फूड ट्रक भी खरीद लिया। गुड़गांव में उनका रेस्टोरेंट भी चल रहा है। उन्होंने अपने मेन्यू का विस्तार करते हुए कई सारे नए आइटम्स भी उसमें जोड़ लिए हैं। उनके पास रेस्टोरेंट चलाने का लाइसेंस भी है। यह उनके लिए किसी जीत से कम नहीं है। उर्वशी ने खुद को साबित करने के साथ ही उन तमाम लोगों को सीख दे दी है जो किसी भी काम को छोटे या बड़े के रूप में देखते हैं।
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