टेसला, स्काइप को फ़ंडिंग देने वाला शख़्स, बेंगलुरु के इस स्टार्टअप का हुआ मुरीद
ब्लोहॉर्न एक इंट्रा-सिटी लॉजिस्टिक्स कंपनी है, जो बिज़नेस वेंचर्स और आम लोगों को अपनी सुविधाएं मुहैया कराता है। ब्लोहॉर्न के प्लेटफ़ॉर्म पर मिनी-ट्रक मालिक और उपभोक्ता दोनों ही साथ आते हैं। यह एक तकनीक आधारित प्लेटफ़ॉर्म है, जिसकी मदद से मिनी-ट्रक मालिक भारत के तमाम शहरों तक अपनी ट्रांसपोर्ट सर्विस दे पाते हैं।
ब्लोहॉर्न के काम करने की प्रणाली कुछ वैसी ही है, जैसी ओला और ऊबर जैसी कैब सर्विसों की। ग्राहक की मांग के आधार पर ऑर्डर के लिए एक मिनी-ट्रक और ड्राइवर तय किया जाता है, जिसकी सारी जानकारी उपभोक्ता के पास पहुंच जाती है।
हर स्टार्टअप की सफलता की कहानी में एक टर्निंग पॉइंग का फ़ैक्टर ज़रूर होता है। आज हम बात करने जा रहे हैं, बेंगलुरु आधारित स्टार्टअप ब्लोहॉर्न की और उनकी कहानी के टर्निंग पॉइंट की। आपको बता दें कि ब्लोहॉर्न एक इंट्रा-सिटी लॉजिस्टिक्स कंपनी है, जो बिज़नेस वेंचर्स और आम लोगों को अपनी सुविधाएं मुहैया कराता है। ब्लोहॉर्न के प्लेटफ़ॉर्म पर मिनी-ट्रक मालिक और उपभोक्ता दोनों ही साथ आते हैं। यह एक तकनीक आधारित प्लेटफ़ॉर्म है, जिसकी मदद से मिनी-ट्रक मालिक भारत के तमाम शहरों तक अपनी ट्रांसपोर्ट सर्विस दे पाते हैं। सुविधाओं की फ़ेहरिस्त में सामान को चढ़ाना और उतारना भी शामिल है। 2017 में ड्रैपर असोसिएट्स के टिम ड्रैपर की ओर से ब्लोहॉर्न को वीसी लेवल फ़ंडिंग मिली और यही ब्लोहॉर्न के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ और इसके बाद कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आपको बता दें कि ड्रैपर पहले भी कई बड़ी कंपनियों जैसे कि स्काइप, टेसला और स्पेस एक्स में निवेश कर चुके हैं। यह पहली बार था, जब ड्रैपर ने किसी भारतीय कंपनी (ब्लोहॉर्न) में निवेश किया।
एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि ब्लोहॉर्न की टीम ने तय किया था कि जब तक कंपनी रेवेन्यू पैदा नहीं करने लगती, तब तक उसे बूटस्ट्रैप्ड फ़ंडिंग की मदद से ही आगे बढ़ाया जाएगा। ब्लोहॉर्न के को-फ़ाउंडर मिथुन श्रीवास्तव कहते हैं, "प्रोडक्ट पूरी तरह से तैयार होने के बाद हमने टिम से संपर्क किया और इस समय तक हमें रेवेन्यू मिलना भी शुरू हो गया था।"
ब्लोहॉर्न के काम करने की प्रणाली कुछ वैसी ही है, जैसी ओला और ऊबर जैसी कैब सर्विसों की। ग्राहक की मांग के आधार पर ऑर्डर के लिए एक मिनी-ट्रक और ड्राइवर तय किया जाता है, जिसकी सारी जानकारी उपभोक्ता के पास पहुंच जाती है। उपभोक्ता को कम से कम 30 मिनट पहले बुकिंग करनी होती है। आप आने वाली तारीख़ के लिए भी बुकिंग कर सकते हैं।
ब्लोहॉर्न भारत की पहली और एकमात्र फ़ुल-स्टैक लॉजिस्टिक्स कंपनी है। फ़ुल स्टैक यानी ब्लोहॉर्न के पास वेयरहाउस, ट्रांसपोर्टेशन और टेक-आधारित सिस्टम्स, सभी की उपलब्धता है। कंपनी के फ़ाउंडर्स मानते हैं कि यही उनकी सबसे बड़ी ख़ासियत है। ब्लोहॉर्न उपभोक्ताओं के सामान की रियल-टाइम ट्रैकिंग की सुविधा भी देता है।
मिथुन कहते हैं, "मुझे हमेशा से पता था कि ट्रक ड्राइवरों की कमी कोई समस्या नहीं है, बल्कि असल समस्या है, अच्छे लॉजिस्टिक्स प्लेटफ़ॉर्म का न होना। मिनी-ट्रकों का बाज़ारा काफ़ी असंगठित है। अगर यह मॉडल ऊबर और ओला जैसी सर्विसों के लिए काम कर सकता है, तो गुड्स ट्रांसपोर्ट के लिए क्यों नहीं।" मिथुन बताते हैं कि यह बात समझने के बाद उन्होंने विश्लेषण करना शुरू किया और मार्केट साइज़ को समझा। उन्हें यक़ीन हो गया कि इस क्षेत्र में संभावनाओं की कोई कमी नहीं है।
कंपनी के को-फ़ाउंडर्स मिथुन और निखिल की पढ़ाई साथ ही हुई है और वे दोनों एक-दूसरे को 2001 से जानते हैं। निखिल ने नॉर्थ कैरोलाइना स्टेट यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री ली है, जबकि मिथुन ने कैंब्रिज जज बिज़नेस स्कूल से बिज़नेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। यूएस में ब्लोहॉर्न की पिचिंग से पहले मिथुन ने निखिल से संपर्क किया और निखिल के खाते में कंपनी के तकनीकी कामों की पूरी देख-रेख का जिम्मा आया। मिथुन बताते हैं कि उन्हें लॉजिस्टिक्स की समझ थी और निखिल तकनीकी क्षेत्र में माहिर थे और इसलिए ही उनके ज़हन में आया कि साथ मिलकर काम किया जाए और संभावनाओं से भरे इस बाज़ार में सफलता के झंडे गाड़े जाएं।
मिथुन ने बताया कि शुरूआत में कंपनी के लिए कुछ खास मार्केटिंग बजट निर्धारित नहीं था और इस वजह से ब्रैंडिंग के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। फ़ेसबुक पर कुछ ग्रुप्स होते हैं, जहां पर लोग घर या अपार्टमेंट शिफ़्ट करने या ऐसे ही अन्य कामों के संबंध में बातचीत करते हैं। ब्लोहॉर्न ने अपने प्रमोशन और लोगों तक अपना नाम पहुंचाने के लिए इन फ़ेसबुक ग्रुप्स का ही सहारा लिया।
शुरूआत में मिथुन मानते थे कि कंपनियों के बजाय आम लोगों के बीच उनकी सुविधाओं की ज़्यादा मांग होगी। लेकिन कुछ समय बाद ही उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि उपभोक्ताओं के इस वर्ग से मिलने वाला बिज़नेस काफ़ी नहीं होगा और उनकी कंपनियों को बिज़नेस वेंचर्स को भी क्लाइंट्स बनाना ही होगा। इस वर्ग से मिलने वाला मुनाफ़ा भी अधिक होता है। मिथुन ने बताया कि पिछले एक साल से कंपनी बिज़नेस वेंचर्स के कस्टमर सेगमेंट पर अधिक ध्यान दे रही है। मिथुन ने अपनी कंपनी के प्रतियोगियों की बात करते हुए पॉर्टर और गोगोवैन जैसी कंपनियों के नाम गिनाए।
2014 में बेंगलुरु से शुरू हुई ब्लोहॉर्न फ़िलहाल चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई और दिल्ली एनसीआर में भी ऑपरेशन्स चला रही है। फ़िलहाल ब्लोहॉर्न के पास भारत के 5 शहरों में 120 कर्मचारियों का नेटवर्क है। मिथुन ने बताया कि उनके क्लाइंट्स में फ़्लिपकार्ट, ऐमज़ॉन और अर्बन लैडर जैसे कई बड़े नाम शामिल हैं। कंपनी को 2017 में सीरीज़-ए फ़ंडिंग मिली। आईडीजी वेंचर्स इंडिया, द माइकल ऐंड सुज़ैन डेल फ़ाउंडेशन, ड्रैपर असोसिएट्स और यूनिटस सीड फ़ंड ने ब्लोहॉर्न में निवेश किया है।
2017 में फ़रवरी से दिसंबर के बीच ब्लोहॉर्न के रेवेन्यू में तीन गुना बढ़ोतरी हुई। दिसंबर 2014 में कंपनी ने सीड फ़ंडिंग के तौर पर 3 लाख डॉलर जुटाए थे और इसके बाद सीरीज़-ए फ़ंडिंग में कंपनी ने निवेश के तौर पर 4 मिलियन डॉलर हासिल किए।
ब्लोहॉर्न ऊबर के 'ऊबर आइस क्रीम' और वन प्लस मोबाइल कंपनी के 'वन आवर ऑर फ़्री' कैंपेन से भी जुड़ चुका है और इन दोनों ही अनुभवों को मिथुन काफ़ी ख़ास मानते हैं। मिथुन शुरूआती ग़लतियां याद करते हुए बताते हैं कि 2014 में जब कंपनी सीड फ़ंडिंग की तलाश में थी, तब कंपनी के पास बड़ा मौका था, लेकिन कंपनी सिर्फ़ एक साल तक का वर्किंग कैपिटल ही फ़ंडिंग के तौर पर हासिल कर पाई। मिथुन कहते हैं कि इस वजह से ही कंपनी को एक साल तक सिर्फ़ ऑपरेशन्स जारी रखने पर फ़ोकस करना पड़ा और पैसे की कमी की वजह से काम को बढ़ाने के बारे में कंपनी सोच ही नहीं पाई। साथ ही, मिथुन इसे एक तरह से अच्छा सबक भी मानते हैं क्योंकि ब्लोहॉर्न की टीम को कम पैसों में अपने ऑपरेशन्स मैनेज करने की अच्छी सीख मिली।
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