निवेशक किसी स्टार्टअप की कीमत कैसे तय करते हैं? ध्यान से पढ़िए और अमल कीजिए..
ऐसे होता है किसी स्टार्टअप का मूल्यांकन....
किसी भी स्टार्टअप इवेंट या निवेशक पैनल में सबसे ज्यादा पूछा जाने वाला सवाल यही है कि कैसे निवेशक स्टार्टअप की कीमत तय करते हैं? जिसका दुर्भाग्यपूर्ण जवाब ये है कि ये कई चीज़ों पर निर्भर करता है। ऐसे में आखिर निवेशक किसी स्टार्टअप का मूल्यांकन कैसे करते हैं, बता रहे हैं टैक्स मंत्रा के संस्थापक आलोक पटनिया...
स्टार्टअप की कीमत तय करना उतना ही निराश करने वाला है, जितना इस सवाल का एक निश्चित जवाब तलाश करना। वास्तव में ये सापेक्षता विज्ञान है और इसका कोई एक जवाब तय नहीं है।
आपके स्टार्टअप की कीमत का सबसे बड़ा निर्धारक उद्योग का क्षेत्र और बाज़ार की ताकतें हैं। इसमें मांग और पूर्ति के बीच का संतुलन या असंतुलन, समयबद्धता और मौजूदा आकार, सौदे के लिए निवेशक के प्रीमियम भुगतान की इच्छा और पैसों के लिए उद्यमी की हताशा का स्तर शामिल हैं।
हालांकि, ये बातें शुरुआती स्तर के स्टार्टअप की कीमतें तय करने के लिए लागू होती हैं। हम कोशिश करेंगे और पोस्ट के बचे हिस्से में कीमतें तय करने की विधियों को विस्तार से समझेंगे, इस उम्मीद के साथ कि आपको कोशिश करने और अपने स्टार्टअप की कीमतें तय करने के बारे में जानकारी मिल सकेगी।
कुछ कीमतें तय करने की विधियां जिनके बारे में आपने सुना है, वो हैं...
1. डीसीएफ (डिस्काउंटेड कैश फ्लो)
2. बाज़ार और लेन-देन की तुलना
3. पूंजी आधारित मूल्यांकन जैसे कि किताबों या भुगतान की कीमत
जैसा कि पहले कहा जा चुका है, एक स्टार्टअप कंपनी की कीमत बड़े तौर पर जिस क्षेत्र में ये संचालित हो रही है, उसमें बाज़ार की ताकतों पर निर्भर करती है। ख़ास तौर पर, मौजूदा कीमतें आज बाज़ार की ताकत और भविष्य में क्या हो सकता है, इस धारणा पर निर्धारित होती हैं।
कैसे एक निवेशक तय करे कि मेरी कीमत आज अभी कितनी होनी चाहिए ?
एक बार फिर, बाहर निकलने के वक्त क्या कीमत होगी ये जानना या इसके बारे में एक अंदाज रखने का मतलब है कि एक निवेशक इसकी गणना कर सकता है कि उन्होंने जितना पैसा लगाया है, उसकी तुलना में उन्हें क्या मुनाफा मिलता है। या वैकल्पिक रूप में, उनके बाहर निकलने के दौरान ये कितने फीसदी होगा ( लगाया गया पैसा को कंपनी की बाद में होने वाली कीमत से भाग देकर मुनाफे का प्रतिशत निकाल सकते हैं)। हम आगे बढ़ें, इससे पहले एक छोटा-सा शब्दकोश:
प्री-मनी यानी...आपकी कंपनी की मौजूदा कीमत
पोस्ट-मनी यानी....निवेशक के पैसा लगाने के बाद कंपनी की कीमत
कैश ऑन कैश मल्टीपल यानी....एक्ज़िट के दौरान निवेशक को जितने गुना रकम लौटाई गई ( इसे निकालने के लिए, लौटाई गई कुल रकम को एक निवेशक कंपनी के पूरे जीवनचक्र में जितना पैसा लगाता है उससे भाग देकर निकाला जा सकता है)
उस वक्त कंपनी की कीमत लगाना जबकि उसकी कोई आमदनी या संपत्ति न हो
अगर स्टार्टअप कंपनी के पास कीमत लगाने के दौरान कोई आदमनी या संपत्ति नहीं है, तो कमाई और संपत्ति की पहचान निरर्थक हो जाती है, इसलिए सिर्फ बाजार के कंपनी के प्रति दृष्टिकोण का विकल्प रह जाता है। अकेलेपन में कोई व्यापार नहीं चलता। हर व्यापार के साथ ये संभावना होती है कि समान तरह का कोई और व्यापार भी चल रहा होगा। इसलिए, बाज़ार की कीमत जानना सबसे आदर्श तरीका है।
स्टार्टअप कंपनी की कीमत लगाने के लिए सार्थक सूचनाएं सभी जगह से जुटाने की कोशिश होनी चाहिए, ऐसी सूचनाएं नीचे लिखे स्रोतों से ली जा सकती हैं -
मार्केट सर्वे - कंपनी जिस क्षेत्र से संबंधित है, उसके बारे में हर तरह के सार्वजनिक आंकड़े जुटाकर
कंपनियों की तुलना से प्राप्त आंकड़े - उस इंडस्ट्री में शामिल कंपनियों की तुलना करके जुटाए गए आंकड़े
भविष्य का झुकाव - भविष्य में कैश इनफ्लो और आउटफ्लो की उम्मीद, शुद्ध मुनाफा, संपत्ति-देनदारी की स्थिति अगले 5 सालों तक
यूं तो कई विधियां हैं, लेकिन मुख्य तौर पर ''सहज ज्ञान'' और मात्रात्मक विधियां अहम हैं। सहज बुद्धि का इस्तेमाल ज्यादा शुरुआती स्तर के सौदों में, जबकि कंपनी जैसे-जैसे बढ़ती है इसकी वित्त सूचनाओं के साथ मात्रात्मक विधियों का इस्तेमाल बढ़ता जाता है।
इंस्टिन्क्चुअल या सहज ज्ञान पर आधारित विधियां पूरी तरह मात्रात्मक विश्लेषण से रहित नहीं होती हैं, लेकिन ये विधि आमतौर पर निवेशक के क्षेत्र में अनुभव पर आधारित होती है, जैसे कि एक औसत सौदे की कीमत प्रवेश करने और बाहर निकलने के दौरान क्या हो सकती है। मात्रात्मक विधियां उतनी अलग नहीं हैं, लेकिन इनमें कंपनी से बाहर निकलने के संभावित मौकों से संबंधित ज्यादा आंकड़े (इनमें से कुछ वैल्यूएशन मेथड से सीमांकित होते हैं) शामिल होते हैं ।
इस तरह की गणनाओं में, बाजार और लेनदेन की तुलना करने की विधि पसंद की जाने वाली पद्धति है। जैसा कि मैंने जिक्र किया, इस पोस्ट का मकसद ये सब कैसे करें ये दिखाना नहीं है, बल्कि संक्षेप में, तुलना निवेशक को ये बताती है कि कैसे बाज़ार में दूसरी कंपनियों की कीमत कुछ आधारों (उदाहरण के लिए, आमदनी की कितने गुना या ईबीआईटीडीए, या दूसरी चीजें जैसे यूजर बेस आदि) पर लगाई जाती है, जो कि आपकी कंपनी की मौजूदा कीमत तय करने के लिए भी उदाहरण के तौर पर लागू किए जा सकते हैं।
निवेशकों को क्या आकर्षित करता है?
उत्साह या फुटेज – सबसे ज्यादा ज़रूरी घटक जो एक निवेशक ढूंढ़ता है, वो एक खिंचाव है। उनका कंपनी के बारे में नज़रिया इसको बढ़ावा देता है, भले ही दूसरी चीजें उद्यमी के पक्ष में न हों। एक कंपनी का सबसे बड़ा मकसद यूजर्स को हासिल करना है।
आमदनी – शुद्ध मुनाफा या फायदा भी एक अहम घटक है, जो कंपनी की कीमत लगाने को आसान बनाता है। ये काफी हद तक आमदनी पैदा करने के स्तर पर भी निर्भर करता है, जहां तक स्टार्टअप का सवाल है, ये कुछ समय के लिए कीमत लगाना कम कर सकता है। अगर उपभोक्ताओं/उपयोगकर्ताओं से ज्यादा कीमत वसूली जाती है तो विकास की गति धीमी हो जाती है जिससे आखिरकार लंबी अवधि में कम कमाई होती है, इसीलिए कीमत भी कम लगाई जाती है।
ये विरोधीभासी लगता है क्योंकि आमदनी होने का मतलब है कि स्टार्टअप पैसे कमाने के बिल्कुल करीब है। लेकिन सही अर्थों में, स्टार्टअप सिर्फ आमदनी पैदा करना ही नहीं है, बल्कि तेज़ी से आगे बढ़ना और पैसे बनाना है। अगर तेज़ी से विकास नहीं होता है, तो हम कुछ नया नहीं कर रहे हैं बल्कि एक पारंपरिक पैसे कमाने के व्यापार में ही लगे हैं।
संस्थापक की रूपरेखा – अगर फंड जुटाने की सभी रणनीति नाकाम हो जाती हैं, तब भी निवेशक सबसे ज्यादा जो देखते हैं, वो है उद्यमी का प्रोफाइल। अगर उद्यमी की साख अच्छी है तो कीमत अच्छी लगती है, इससे कोई मतलब नहीं होता कि उसकी अगली योजना क्या है। ऐसे उद्यमी जो पहले प्रोत्साहित किए जा चुके हैं या अपने व्यापार से बाहर निकल चुके हैं, उनकी वैल्यूएशन ज्यादा होती है। बड़े स्तर का प्रारूप और सही सहायता तंत्र के साथ ये उद्यमी अपनी व्यापार योजना को सफल उद्यम में बदल सकते हैं। और यही वजह है कि जब सभी घटक कमजोर पड़ते हैं तो निवेशक व्यक्ति की छवि पर भरोसा करते हैं।
निष्कर्ष
अंत में, किसी व्यापार की भाषा वित्त है, और जब स्टार्ट अप में मुश्किलें सामने आती हैं। व्यापार की कीमत लगाने की बात उसी वक्त सामने आती है और फंडिंग की ज़रूरत पड़ती है। फंडिंग पूरी तरह योजना पर आधारित है और निवेशक मुख्य रूप से स्थायित्व, टारगेट मार्केट के आकार और इसके विकास के साथ संस्थापक की विश्वसनीयता, साख और पृष्ठभूमि देखते हैं।