कुर्सी छोड़ने पर बिहार के सीएम को पीएम की बधाई
बिहार में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया है। 26 जुलाई को लालू प्रसाद यादव से दोस्ती और फिर किनाराकशी की यह चरम परिणति सामने आ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा है कि ‘भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई में जुड़ने के लिए नीतीश कुमार जी को बहुत-बहुत बधाई। सवा सौ करोड़ नागरिक ईमानदारी का स्वागत और समर्थन कर रहे हैं।
इस 'इस्तीफे' को राजनीति के जानकार उनका मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं। इस्तीफे से पहले जेडीयू विधायक दल की बैठक हुई। वहां से उठकर मुख्यमंत्री सीधे राजभवन पहुंच गए। बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव के दिनों में दो धुरंधरों लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के बीच जब महागठबंधन हुआ था, उसके नतीजे सत्ता प्राप्ति की दृष्टि से भले अनुकूल रहे, लेकिन राजनीति विशारद उसी वक्त से अटकलें लगाने लगे थे कि यह रजामंदी आखिर कितने दिन तक सलामत रहेगी।
नीतीश इस्तीफा दे चुके हैं, कहा जा सकता है कि पांच साल की कौन कहे, ये तो सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने जैसी अनहोनी हो गई।
यह तो होना ही था। पिछले कुछ महीनों से, या कहिए राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा के बाद से बिहार की राजनीति में जिस तरह का भूचाल आया हुआ था, उसने 26 जुलाई आते-आते नाजुक मोड़ ले लिया और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी को अपने पद से इस्तीफा सौंप दिया। यद्यपि इस 'इस्तीफे' को राजनीति के जानकार उनका मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं। इस्तीफे से पहले जेडीयू विधायक दल की बैठक हुई। वहां से उठकर मुख्यमंत्री सीधे राजभवन पहुंच गए। बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव के दिनों में दो धुरंधरों लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के बीच जब महागठबंधन हुआ था, उसके नतीजे सत्ता प्राप्ति की दृष्टि से भले अनुकूल रहे, लेकिन राजनीति विशारद उसी वक्त से अटकलें लगाने लगे थे कि यह रजामंदी आखिर कितने दिन तक सलामत रहेगी।
नीतीश के इस्तीफे से पहले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद ने कहा था कि 'मुख्यमंत्री ने कभी उपमुख्यमंत्री (लालू-पुत्र) तेजस्वी प्रसाद का इस्तीफा नहीं मांगा। तेजस्वी इस्तीफा नहीं देंगे, यह राजद विधानमंडल की बैठक में तय हो चुका है। महागठबंधन में कोई टूट वाली बात नहीं है। मैं रोज नीतीश कुमार से बात करता हूं। हमने ही महागठबंधन और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया है और हम ही इसे ढाह देंगे। ऐसा कहीं होता है क्या? यह महागठबंधन पांच साल के लिए बना है।' अब, जबकि नीतीश इस्तीफा दे चुके हैं, कहा जा सकता है कि पांच साल की कौन कहे, ये तो सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने जैसी अनहोनी हो गई।
तिहाड़ जेल में सजा भोग रहे तथाकथित राजद नेता शहाबुद्दीन की जब कोर्ट से मिली रिहाई पर पूरे देश में हंगामा सा बरप उठा था, लालू भी दबी जुबान उसके पक्ष में बोले ही नहीं, अदालत के फैसले को मुहर मार-मारकर पक्का कर रहे थे, लेकिन हिंदुस्तान अखबार के रिपोर्टर की हत्या के बाद हवा ने कुछ ऐसा रुख लिया कि पूरा पासा ही पलट गया। शहाबुद्दीन को देश की सबसे बड़ी जेल में सींखचों के पीछे धकेल दिया गया। शहाबुद्दीन के पक्ष में लालू का बड़बोलापन उन दिनो नीतीश को तनिक नहीं रास आया था। देशभर से उन पर जनदबाव भी बढ़ता जा रहा था, सो उन्होंने घटनाक्रम की सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी थी। उस घटनाक्रम से भी लालू और नीतीश के बीच खटास बढ़ गई थी। दिन पर दिन रिश्ते नाजुक होते जा रहे थे। जब राष्ट्रपति चुनाव का वक्त आया तो राजद से गठबंधन और अपने ही राज्य से पहचानी जाने वाली पूर्व लोकसभा अध्यक्ष एवं राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मीरा कुमार का पक्ष लेने की बजाय नीतीश कुमार भाजपा के पक्ष में उठ खड़े हुए थे।
इस्तीफा देकर नीतीश कुमार ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। एक तो लालू के पुत्र-मोह से आने वाली अड़चनों से निजात, दूसरे केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार का अभयदान। आगे बिहार की राजनीति अभी और कई करवटें लेने वाली हैं। बस देखते जाइए, आगे-आगे होता है क्या!
दरअसल, गठबंधन की शुरुआत से ही लग रहा था कि मिलन बेमेल है। नीतीश पहले भाजपा के साथ रहे हैं। कयास लगाए जाने लगे थे कि सरकार के अंदर यदि लालू-पुत्र तेजस्वी प्रसाद अपनी वाली चलाने की कोशिश करेंगे तो नीतीश अवश्य अपनी राजनीति सलामत रखने के लिए कोई मजबूत बांह गह सकते हैं। कांग्रेस के हाथ से उनका काम चलने वाला नहीं है। गठबंधन के अंदर जैसे जैसे हालात संगीन होते गए, खटास बढ़ती गई, नीतीश अपने नए कदमों की राह तलाशने लगे। आज इस्तीफा देकर उन्होंने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। एक तो लालू के पुत्र-मोह से आने वाली अड़चनों से निजात, दूसरे केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार का अभयदान। आगे बिहार की राजनीति अभी और कई करवटें लेने वाली हैं। बस देखते जाइए, आगे-आगे होता है क्या! कयास तो यहां तक लगाए जा रहे हैं कि इस राज्य में भी सत्ता की चाबी भाजपा की झोली में गिर सकती है।
नीतीश कुमार ने इस्तीफे के कि उन्होंने जितना हो सका, गठबंधन धर्म का पालन किया लेकिन जिस तरह की चीजें उभर कर आईं, उसके बाद उनके लिए महागठबंधन में काम करना मुमकिन नहीं रहा। उन्होंने गठबंधन सहयोगी और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से कहा था कि तेजस्वी यादव पर लग रहे आरोपों के चलते आम जन में जो धारणा बन गई है, उस पर स्थिति साफ की जानी चाहिए, लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस माहौल में हमारे लिए काम करना मुश्किल हो गया था। ऐसे में उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और पद छोड़ने का फैसला किया। उनकी सरकार ने कार्यकाल का एक तिहाई तो अच्छे से ही पूरा किया है लेकिन अचानक परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया।’ भाजपा के साथ जाने की संभावना पर उनका कहना था, ‘जो भी बिहार के हित में होगा, करेंगे।’
भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि आगे क्या होगा, इसकी शुरुआत नीतीश कुमार को करनी है। वह लंबे समय तक उनके साथ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार के इस्तीफे पर उनको बधाई दी है। पीएम ने लिखा कि ‘भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई में जुड़ने के लिए नीतीश कुमार जी को बहुत-बहुत बधाई। सवा सौ करोड़ नागरिक ईमानदारी का स्वागत और समर्थन कर रहे हैं।’