सपने देखिए, 'युक्ति' कीजिए, मंज़िल मिलेगी
‘अगर महिलाएँ अपराधबोध से मुक्त हो जाएँ तो सब कुछ पा सकती हैं,’-युक्ति मेहंदीरत्ता
युक्ति मेहंदीरत्ता के कई रूप हैं: एक उद्यमी, दो जुड़वा बच्चों की माँ, मॉडल या टीवी एंकर। लेकिन इन सभी रूपों में उन्हें सबसे संतुष्टिदायक और सार्थक रूप लगता है, अपने उद्यम के माध्यम से बच्चों के लिए कुछ करना। वे खुश हैं कि वही काम कर रही हैं, जो उनके दिल के करीब है और इस तरह बच्चों के जीवनों में थोड़ा-बहुत परिवर्तन लाने में कामयाब हो रही हैं।
उन्होंने 2008 में Mrs Gladrags जीता था-प्रतियोगिता में दूसरा पुरस्कार, जिसे वे महज संयोग बताती हैं। HerStory के साथ एक अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने अपने उद्यम और अपनी दूसरी बहुत सी सफलताओं के बारे में बताया और साथ ही यह भी कि आज भी महिलाएँ इतना पीछे क्यों हैं।
मैं जल्दी वयस्क हो गई
मेरे माता-पिता, दोनों ही नौकरी पेशा थे इसलिए उनके पास इसके सिवा कोई चारा नहीं था कि उनकी अनुपस्थिति में मुझे घर की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी सौंपते क्योंकि हम तीन बहनों में मैं सबसे बड़ी हूँ। मुझे आज भी याद है कि कैसे मैं स्कूल से आते ही एक स्टूल पर खड़े होकर गैस जलाती थी और बहनों और अपने लिए खाना गर्म करती थी और फिर घर के बाहरी दरवाज़े पर अंदर से ताला लगाती थी।
मैं शिकायत नहीं कर रही हूँ मगर अपने भीतर कहीं मुझे लगता है कि जीवन में बच्चों जैसा बालसुलभ व्यवहार मैं बहुत कम कर पाई। हालाँकि हम बचपन से ही हवाई जहाज़ से यात्रा करते थे लेकिन एक किशोर के रूप में जब पहली बार जहाज़ में बैठी तो मैंने इस तरह दिखाया जैसे मैं न जाने कितनी बार उसमें बैठ चुकी हूँ और इस तरह परिपक्व और शोभनीय दिखाई देने के चक्कर में अपनी भोलीभाली उत्तेजना का गला घोंट दिया। मुझे लगता है कि बचपन न जी पाने की कसक काफी हद तक बच्चों के लिए मेरे अंदर मौजूद आकर्षण का कारण बनी और आज जब भी बच्चों को अजीबोगरीब हरकतें करता देखती हूँ तो मैं खुशी और उत्साह से भर उठती हूँ।
आर्मी पब्लिक स्कूल से विज्ञान विषय के साथ अपनी स्कूली पढ़ाई समाप्त करने के बाद आगे पढ़ाई हेतु मुझे डॉक्टरी और इंजीनियरिंग के बीच चुनाव करना था। मैंने इंजीनियरिंग का चुनाव किया और कुछ बी-ग्रेड स्कूलों में दाखिला पाने में कामयाब हुई। मैं वहाँ नहीं पढ़ना चाहती थी लिहाजा बड़ी मुश्किल से अपने माता-पिता को अपने निर्णय पर सहमत करते हुए मैंने दूसरा सबसे अच्छा विकल्प चुना, अर्थात के एम सी, दिल्ली से गणित विषय में स्नातक की पढ़ाई करना।
फिर जब मैं एम बी ए करने दिल्ली से मुंबई आई और अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में मुझे जहाँ-तहाँ घूमना पड़ा, मैंने गलियों और फुटपाथों पर जीने के लिए संघर्ष करते, किसी तरह अपना अर्थहीन जीवन गुज़ारते बच्चों को देखा तो उनके प्रति मेरे मन में बसी कोमल भावनाएँ चिंता में बदल गईं।
Mrs Gladrags, 2008, दूसरा नंबर
मैं यह नहीं कहूँगी कि मेरा सपना पूरा हुआ क्योंकि मैंने ऐसा कोई सपना देखा ही नहीं था। यह पूरी तरह आकस्मिक था और महज संयोगवश मैंने वह मुकाम हासिल किया। हुआ यह कि एक इन-फ्लाइट पत्रिका से मेरे पति ने Mrs India का फॉर्म निकाला और हमने भरकर भेज दिया। पति का प्रोत्साहन न होता और मुंबई से दिल्ली की उस दो घंटे की उड़ान में मेरे पास कुछ और करने के लिए होता तो मैं इस मौके लाभ उठाने के बारे में सोचती ही नहीं। मेरे पास इत्तफाकन अपने कुछ फ़ोटो थे, मैंने यूँही फॉर्म भरकर, साथ में वही फोटो लगाकर भेज दिया और उसके बाद चीजें अपने आप होती चली गईं।
मैं कुछ सोच भी सकूँ, इससे पहले ही मैं मुंबई चली आई और Gladrags द्वारा आयोजित एक माह की कार्यशाला (वर्कशॉप) में शामिल हो गई, जिसमें उपस्थित रहना समापन (finale) से पहले की अनिवार्य पायदान माना जाता है। वहाँ जिन लोगों से मैं मिल सकी और जैसा समय वहाँ गुज़ारा, उसे देखते हुए वह एक माह मेरे लिए बहुत ही लाभदायक साबित हुआ। उस एक माह में मुझे कई तरह से अपनी क्षमता और ताकत को परखने का मौका मिला। अंतिम पाँच प्रत्याशियों के लिए संपन्न प्रश्नोत्तर वाले राउंड में मेरा सामना राष्ट्रीय स्तर की कई हस्तियों से युक्त जूरी से हुआ और उनके सामने पहुँचकर मुझे उस घिसे-पिटे कथन की सच्चाई पर पूरा विश्वास हो गया कि 'कुछ भी असंभव नहीं है'। हम खुद चीजों को संभव या असंभव बनाते हैं।
‘संकल्पित प्रदर्शन (Concept Exhibitions)’: एक उद्यम की स्थापना
इसी तरह उद्यमिता की शुरुआत भी लगभग अपने आप ही हो गई, जब मैंने ऊँचे वेतन वाली नौकरी छोड़कर खुद अपना व्यवसाय शुरू करने की ठानी। सिटी और बर्कले बैंक के साथ दस साल सफलता पूर्वक काम करने और उसमें तेज़ी से ऊंची पायदान पर पहुँचने के बाद भी मुझे वहाँ बहुत बंधा-बंधा सा लगता था और मैं अपने पर फैलाकर उड़ना चाहती थी। तो एक दिन अचानक मैंने बंधनमुक्त होने का विचार किया और इस्तीफा देकर स्वतंत्र हो गई। आगे क्या करना है, इसका निर्णय बहुत आसान था-निश्चित ही, बच्चों के लिए कुछ करना था।
बच्चों की ज़्यादातर प्रदर्शनियाँ सिर्फ शोरूमों और शॉपिंग माल का विस्तार भर होती हैं और उनमें चारों तरफ अपने-अपने चमकीले उत्पादों का प्रदर्शन करते व्यवसायी होते हैं और वही लिखने-पढ़ने की वस्तुएँ बेची जाती हैं। मैं इस प्रवृत्ति को बदलकर उसमें ताजगी लाना चाहती थी।
‘संकल्पित प्रदर्शनियाँ (Concept Exhibitions)’ योजनाबद्ध तरीके से प्रदर्शनियाँ आयोजित करने वाली कंपनी है, जिसका मुख्य फोकस भारतीय बच्चों के समग्र विकास और सार्थक उन्नति पर होता है। ‘संकल्पित प्रदर्शनियाँ (Concept Exhibitions)’ के दो अवयव हैं: ‘बच्चों का मेला (Kids Mela)’, जो एक प्रयोगात्मक उत्सव जैसा होता है और जिसके मंच का उपयोग करते हुए हम विभिन्न हस्तियों और कंपनियों को आमंत्रित करते हैं, जो बच्चों के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास को ध्यान में रखकर तैयार किए गए अपने नए और अनोखे उत्पादों का प्रदर्शन करते हैं। दूसरा है ‘C-Engage’, जिसे व्यापारिक घराने/ सी एस आर प्रायोजित करते हैं और जिसके ज़रिए हम बच्चों और उनके समाज के साथ लगातार संपर्क बनाए रखते हैं और उनसे चर्चा करके उनकी मदद करने का प्रयास करते हैं। व्यापारिक घरानों द्वारा किए जा रहे सकारात्मक सामाजिक हस्तक्षेप के नतीजों के विश्लेषण हेतु हम विश्लेषणात्मक रिपोर्टें और उनके मूल्यांकन हेतु प्रारूप (डिज़ाइन) भी तैयार करते हैं।
शुरुआती ऊँच-नीच
‘बच्चों का मेला (Kids Mela)’ को सिर्फ शॉपिंग माल के विस्तार के स्वरुप से दूर रखते हुए उसे बच्चों के समग्र विकास संबंधी उत्पादों के प्रदर्शन का मंच बनाए रखने के मेरे अथक प्रयासों के बावजूद आज भी लोग उसकी तुलना आम बच्चों के मेलों से करते हैं और इसलिए प्रायोजक जुटाने और हमारी परियोजना में निवेश हेतु व्यापारिक घरानों को आकर्षित करने के काम में यही सबसे बड़ा व्यवधान बना हुआ है। लेकिन मैं अपने इरादे पर डटी हुई हूँ क्योंकि मेरा विश्वास है कि किसी न किसी दिन कुछ लोग हमारी परियोजना के प्रति अपने संशयात्मक दृष्टिकोण से उबरेंगे और आने वाली नस्लों के विकास और उनकी तरक्की के लिए हमारे साथ कंधा से कंधा मिलाकर काम करेंगे।
अपने उद्यम को एक स्वीकार योग्य आकार देते हुए मुझे बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। एक समय मैं ऐसे बिन्दु पर पहुँच चुकी थी कि मैंने अपने सभी करीबी संबंधियों और महत्वपूर्ण मिलने-जुलने वालों को आजमाने की कोशिश की। उनमें से कुछ लोगों ने मुझसे पलटकर कहा कि मैंने गलत रास्ता चुना और अब पछताने के सिवा कोई चारा नहीं है, कि मैंने ऐसा काम शुरू करके अपने आपको जोखिम में डाल दिया है, जिसे आजमाने की कोशिश भी किसी ने नहीं की थी। मुझे कठिन आर्थिक तंगी का सामना भी करना पड़ा और आखिर अपने माता-पिता के पास आर्थिक मदद की गुहार लगानी पड़ी।
“ऐसी स्थिति में समस्या विकट रूप ले चुकी थी लेकिन किसी तरह मेरे स्वत्व पर कोई आँच नहीं आ पाई और मन की शांति बनी रही। जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ तो आश्चर्य होता है कि पैसे की ऐसी तंगी और कहीं से किसी मदद या आश्वासन के बगैर इतनी कठिन परिस्थिति से बचकर मैं कैसे निकल पाई। मुझे लगता है, ऐसे क्षण ही आपके संयम की परीक्षा लेते हैं और दर्शाते हैं कि आपको अपने आप पर कितना भरोसा है और आप अपने काम के प्रति कितने उत्साही और प्रतिबद्ध हैं।”
व्यक्ति एक:रूप अनेक
‘संकल्पित प्रदर्शनियाँ (Concept Exhibitions)’ के अलावा एक व्यक्ति की हैसियत से मैं कुछ दूसरे काम भी करती हूँ। मैं Aquakraft नामक कंपनी में मुख्य कार्यकारी अधिकारी हूँ, जहाँ मेरा काम कंपनी को व्यापार-विकास और ग्राहक-संपर्क संबंधी सलाह देना है। यह कंपनी ग्रामीण और वंचित समुदायों के बीच पीने का पानी, जिसके लिए वे गांवों में पानी की मशीने (वॉटर एटीएम) भी स्थापित करते हैं, और संडास उपलब्ध कराने का काम करती है ।
कभी कभी मैं टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों और समारोहों में उदघोषक (एंकरिंग) का काम भी करती हूँ। इससे लोगों से मिलने-जुलने की मेरी इच्छा भी पूरी होती है और समाज के उन प्रभावशाली लोगों से मेरा संपर्क भी हो जाता है, जो मेरे मूल काम, यानी ‘संकल्पित प्रदर्शनियाँ (Concept Exhibitions)’ के लिए प्रायोजक जुटाने में सहयोग कर सकते हैं।
क्या महिलाएँ सब कुछ कर सकती है?
मूलतः महिलाएँ एक साथ कई काम करने के लिए पैदा नहीं हुई हैं। वास्तविक दुनिया का अनुभव और वे परिस्थितियाँ, जिनसे वे तालमेल बिठा पाती हैं, उन्हें एक साथ कई काम करने योग्य बनाती हैं और मैं बताना चाहूंगी कि यह कतई आसान काम नहीं होता। मेरा विवाह ऐसे व्यक्ति से हुआ, जिससे मैं प्रेम करती थी और जिसका लालन-पालन ऐसे घर में हुआ, जहाँ एक ही अभिभावक काम में व्यस्त होता था। इसलिए मुझे परिवार और पति का पूरा-पूरा सहयोग और अपने काम में व्यस्त रह सकने योग्य अनुकूल वातावरण प्राप्त हुआ, इसके बावजूद ऐसे भी मौके आए, जब मुझे प्रमाणित करना पड़ा और वचनबद्ध होना पड़ा कि मेरे काम और व्यावसायिक महत्वाकांक्षाओं के मुक़ाबले मेरा परिवार ही मेरी पहली प्राथमिकता होगा।
कई मौके आए, जब मुझे महसूस हुआ कि मैं एक बुरी माँ हूँ, जो अपने बच्चों को बड़ा होने के लिए किसी नौकरानी (या वैसी ही किसी महिला) के भरोसे छोड़ जाती है। जब कि मैं पूरी शिद्दत के साथ मानती हूँ कि एक माँ और पत्नी के रूप में अपने परिवार की देखभाल करना और परिवार के सदस्यों के सुख-दुख का खयाल रखना मेरा कर्तव्य है, फिर भी एक महिला और एक व्यक्ति के नाते मैं अपने लिए भी उतनी ही जिम्मेदार हूँ। मुझे लगता है कि अगर हमारे माता-पिता हमें अच्छी से अच्छी शिक्षा देने के उद्देश्य से जीवन भर काम करते रहे तो हमें उस ज्ञान, शिक्षा और विवेक का उपयोग अपने हित में और जितना संभव हो, समाज की भलाई के लिए भी करना चाहिए।
लक्ष्य पर नज़र:सपनों का पीछा
मेरे खयाल से महिलाओं का जीवन बहुत सी अपेक्षाओं के दबाव में रहता है, जिनमें से ज़्यादातर अपेक्षाएँ उनकी खुद की निर्मित होती हैं। हर महिला की कहानी अलग होती है और उसके जीवन में आने वाले लोग और परिस्थितियाँ भी अलग होती हैं लेकिन दूसरों के लिए जीना सबके लिए एक सा होता है, पहले माँ-बाप के लिए फिर पति और बच्चों के लिए-जैसे सबके माथे पर लिखी लकीरें एक सी हों, डीएनए एक ही हो। अपने बारे में सोचना भी सबसे बड़ी खुदगर्ज़ी माना जाता है, जैसे कोई भयानक पाप!
यह दुर्भाग्य की बात है कि कभी-कभी, हर तरफ से सहायता और समर्थन के बावजूद हम अपने सपनों को यथार्थ में बदलने में नाकाम रह जाती हैं क्योंकि हमने अपने आपको सपने देखने की इजाज़त ही नहीं दी होती। मैं समझती हूँ कि महिलाओं को चाहिए कि हर समय अच्छी माँ, पत्नी या बहू होने का प्रमाण देने की ज़िम्मेदारी के अनावश्यक बोझ को उतार फेंकें क्योंकि अगर हम अपने भीतर बसी उत्कट अभिलाषाओं को व्यक्त कर सकें और उन्हें पूरा करने के लिए जी जान से जुट जाएँ तो वह आवेग स्वाभाविक और प्रामाणिक रूप से हमारे करीबी रिश्तेदारों के बीच भी बह निकलेगा। और तब किसी तरह का दिखावा या ढोंग नहीं होगा और हम अपना जीवन वास्तविक रूप से जी पाएँगी।
तो सपने देखते रहिए, तब तक, जब तक सपने सच नहीं हो जाते!