'पाथेर पांचाली' बनाने के लिए सत्यजीत रे ने बेच दिए थे पत्नी के गहने
ऑस्कर पाने वाले इकलौते इंडियन फिल्ममेकर सत्यजीत रे की कहानी किसी परीकथा से कम नहीं है। आईये जानें आज उनके जन्मदिन पर उनसे जुड़ी कुछ दिल छू जाने वाली विशेष बातें।
सत्यजीत रे ने अपने करियर की शुरूआत वर्ष 1943 में ब्रिटिश एडवरटाइजमेंट कंपनी से बतौर ‘जूनियर विजुलायजर’ से की, जहां उन्हें 18 रूपये महीने बतौर पारिश्रमिक मिलते थे। इस बीच वे डी.के गुप्ता की पब्लिशिंग हाउस ‘सिगनेट प्रेस’ से जुड़ गये और बतौर कवर डिजाइनर काम करने लगे। बतौर डिजाइनर उन्होंने कई पुस्तको का डिजाइन तैयार किया, जिनमें जवाहर लाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ प्रमुख है।
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1955 में रिलीज़ फिल्म पाथेर पांचाली ने कोलकाता के सिनेमाघर में लगभग 13 सप्ताह हाउसफुल दिखाई गई। इस फिल्म को फ्रांस में प्रत्येक वर्ष होने वाली प्रतिष्ठित कांस फिल्म फेस्टिबल में ‘बेस्ट ह्यूमन डाक्यूमेंट’ का विशेष पुरस्कार भी दिया गया।
ऑस्कर पाने वाले इकलौते इंडियन फिल्ममेकर सत्यजीत रे की कहानी किसी परीकथा से कम नहीं है। सत्यजीत रे का जन्म कलकता में 2 मई 1921 को एक ऊंचे घराने में हुआ था। उनके दादा उपेन्द्र किशोर रे वैज्ञानिक थे और पिता सुकुमार रे लेखक थे। सत्यजीत रे ने अपनी स्नातक की पढ़ाई कलकता के मशहूर प्रेसीडेंसी कॉलेज से पूरी की। इसके बाद अपनी मां के कहने पर उन्होंने रवीन्द्र नाथ टैगौर के शांति निकेतन में दाखिला ले लिया, जहां उन्हें प्रकृति के करीब आने का मौका मिला। शांति निकेतन में करीब दो वर्ष रहने के बाद सत्यजीत रे वापस कोलकता आ गये। सत्यजीत रे ने अपने करियर की शुरूआत वर्ष 1943 में ब्रिटिश एडवरटाइजमेंट कंपनी से बतौर ‘जूनियर विजुलायजर’ से की जहां उन्हें 18 रूपये महीने बतौर पारिश्रमिक मिलते थे। इस बीच वे डी.के गुप्ता की पब्लिशिंग हाउस ‘सिगनेट प्रेस’ से जुड़ गये और बतौर कवर डिजाइनर काम करने लगे। बतौर डिजाइनर उन्होंने कई पुस्तको का डिजाइन तैयार किया, जिसमें जवाहर लाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ प्रमुख है।
इटालियन फिल्मकार वित्तोरियो डि सीका की फिल्म बाइसिकल थीव्स देखने के बाद रे ने तय किया था, कि वे फिल्मकार ही बनेंगे। फिल्म बनाने के लिए रे ने अपनी बीमा पॉलिसी, ग्रोमोफोन रिकॉर्ड्स और पत्नी विजया के जेवर तक बेच दिए थे।
अंग्रेजी फिल्म देखकर रे ने लिया था फिल्में बनाने का फैसला
1949 में सत्यजीत रे की मुलाकात फ्रांसीसी निर्देशक जीन रेनोइर से हुई जो उन दिनों अपनी फिल्म ‘द रिवर’ के लिए शूटिग लोकेशन की तलाश में कोलकाता आये थे। जीन रेनोर ने सत्यजीत रे की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें फिल्म निर्माण की सलाह दी। 1950 में सत्यजीत रे को अपनी कंपनी के काम के कारण लंदन जाने का मौका मिला जहां उन्होंने लगभग 99 अंग्रेजी फिल्में देख डालीं। इसी दौरान उन्हें एक अंग्रेजी फिल्म ‘बाइसाईकिल थीव्स’ देखने का मौका मिला। फिल्म की कहानी से सत्यजीत रे काफी प्रभावित हुये और उन्होंने फिल्मकार बनने का निश्चय कर लिया।
तीन साल में बनकर तैयार हुई थी पाथेर पांचाली
सत्यजीत रे बंग्ला साहित्यकार विभूति भूषण बंधोपाध्याय के उपन्यास ‘विलडंगसरोमन’ से काफी प्रभावित थे और उन्होंने उनके इस उपन्यास पर ‘पाथेर पांचाली’ नाम से फिल्म बनाने का फैसला लिया। पाथेर पांचाली को बनाने में लगभग तीन साल लग गये। सत्यजीत रे की पहली फिल्म थी पाथेर पांचाली। इस फिल्म को बनाने के लिए रे ने अपनी पत्नी के गहने और ग्रामोफोन के रिकॉर्डस बेच दिए थे। फिल्म अपनी कहानी, अभिनय और पंडित रविशंकर के थीम म्यूज़िक से गहरे प्रभावित करती है। ये फिल्म बचपन, गांव का सुविधाओं के बिना जीवन, जिंदगी और मौत के बीच बेहतर जीवन की उम्मीद को बताती है।
इस तरह बनी थी पाथेर पांचाली
1. बांग्ला लेखक विभूतिभूषण बंदोपाध्याय की विधवा ने सत्यजीत रे को उपन्यास पर फिल्म बनाने की अनुमति दी थी।
2. सिग्नेट प्रेस के मालिक डी के गुप्ता ने रे को सुझाव दिया था कि इस उपन्यास पर ग्रेट फिल्म बन सकती है जिसके इलेस्ट्रेशंस रे कर रहे थे।
3. इटालियन फिल्मकार वित्तोरियो डि सीका की फिल्म बाइसिकल थीव्स देखने के बाद रे ने तय किया था कि वे फिल्मकार ही बनेंगे।
4. पाथेर पांचाली स्क्रिप्ट नहीं लिखी गई थी। रे ने इसके लिए कुछ नोट्स लिए थे और ड्रॉइंग्स की थी।
5. 27 अक्टूबर 1952 को फिल्म की शूटिंग कलकत्ता के पास एक गांव बोराल में शुरू हुई।
6. निर्माताओं ने इस फिल्म के लिए फाइनेंस करने से मना कर दिया था।
7. फिल्म बनाने के लिए रे ने अपनी बीमा पॉलिसी, ग्रोमोफोन रिकॉर्ड्स और पत्नी विजया के जेवर बेच दिए थे।
8. बंगाल सरकार ने इस फिल्म के लिए रे को लोन दिया था।
9. सिनेमैटोग्राफर सुब्रत मित्रा ने इस फिल्म की सिनेमैटोग्राफी करने के पहले कोई भी मूवी कैमरा ऑपरेट नहीं किया था।
1955 में रिलीज़ फिल्म पाथेर पांचाली ने कोलकाता के सिनेमाघर में लगभग 13 सप्ताह हाउसफुल दिखाई गई। इस फिल्म को फ्रांस में प्रत्येक वर्ष होने वाली प्रतिष्ठित कांस फिल्म फेस्टिबल में ‘बेस्ट ह्यूमन डाक्यूमेंट’ का विशेष पुरस्कार भी दिया गया।
1962 में सत्यजीत रे अपने दादा की पत्रिका ‘संदेश’ की एक बार फिर से स्थापना की। सत्यजीत रे की पहली रंगीन फिल्म ‘महानगर’1963 में प्रदर्शित हुई। कम लोगों को पता होगा कि जया भादुड़ी ने इसी फिल्म से अपने सिने कैरियर की शुरूआत की थी।
तीन बार के 'ऑल टाइम डायरेक्टर' के विजेता
'पाथेर पांचाली' के बाद सत्यजीत रे ने फिल्म ‘अपराजितो’ का निर्माण किया। इस फिल्म में युवा अप्पू की महत्वाकांक्षा और उसे प्यार करने वाली एक मां की भावना को दिखाया गया है। फिल्म जब प्रदर्शित हुई तो इसे सभी ने पसंद किया। मशहूर समीक्षक मृणाल सेन और ऋतिविक घटक ने इसे पाथेर पांचाली से बेहतर माना। फिल्म वीनस फेस्टिबल में गोल्डेन लॉयन अवार्ड से सम्मानित की गई। 1962 में सत्यजीत रे अपने दादा की पत्रिका ‘संदेश’ की एक बार फिर से स्थापना की। सत्यजीत रे की पहली रंगीन फिल्म ‘महानगर’1963 में प्रदर्शित हुई। कम लोगों को पता होगा कि जया भादुड़ी ने इसी फिल्म से अपने सिने कैरियर की शुरूआत की थी। 1966 में सत्यजीत रे की एक और सुपरहिट फिल्म ‘नायक’ प्रदर्शित हुई। फिल्म में उत्तम कुमार ने अरिन्दम मुखर्जी नामक नायक की भूमिका निभाई। बहुत लोगों का मानना था कि फिल्म की कहानी अभिनेता उत्तम कुमार की जीवनी पर आधारित थी। फिल्म ने सफलता के नये कीर्तिमान स्थापित किये।
1969 में अपने दादा की रचित लघु कथा पर सत्यजीत रे ने गूपी गायन बाघा बायन का निर्माण किया। 1977 में सत्यजीत रे के सिने करियर की पहली हिंदी फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ प्रदर्शित हुई। संजीव कुमार, सईद जाफरी और अमजद खान की मुख्य भूमिका वाली ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही, लेकिन समीक्षको के बीच ये काफी सराही गई। 1978 में बर्लिन फिल्म फेस्टिबल की संचालक समिति ने सत्यजीत रे को विश्व के तीन में से एक ऑल टाइम डायरेक्टर के रूप में सम्मानित किया।
रे ने सिर्फ एक हिंदी फिल्म बनाई
मार्टिन स्कॉर्सोजी उन्हें कुरोसोवा और बर्गमेन के बराबर रखते हैं। टैगोर के शिष्य रहे सत्यजीत रे एक फिल्म डायरेक्टर होने के साथ-साथ कैलिग्राफर और म्यूजिक कंपोजर भी थे। एकमात्र हिंदी फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ बनाने वाले रे को ऑस्कर अकादमी ने लाइफटाइम अचीवमेंट से सम्मानित किया।
अभिनेत्री-फिल्मकार अपर्णा सेन के मुताबिक, सत्यजीत रे का अपनी फिल्मों में मौत के दृश्यों को दिखाने के मामले में कोई जवाब नहीं था।
मौत के सीन फिल्माने में रे थे उस्ताद
अभिनेत्री-फिल्मकार अपर्णा सेन के मुताबिक, सत्यजीत रे का अपनी फिल्मों में मौत के दृश्यों को दिखाने के मामले में कोई जवाब नहीं था। रे को भारतीय सिनेमा में मौत के दृश्य दिखाने में उस्ताद कहा जा सकता है। वे अपनी जानी पहचानी साधारण शैली में इन दृश्यों को पेश करते थे। पाथेर पंचाली में इंदिरा ठाकरन की मौत, अपराजितो में हरिहर एवं सरबाजया की मौत, अपुर संसार में अपर्णा की मौत, जलसाघर में बिश्वम्भर रॉय की मौत हमेशा याद आएगी। रे की फिल्मों में पाथेर पंचाली की दुर्गा की मौत सबसे नाटकीय थी।
पता नहीं था आस्कर इतना भारी होता है
अपनी मौत के बारे में सत्यजीत रे कहते थे, कि वे इसकी परवाह नहीं करते। उन्हें जब ऑस्कर मिला तो वे बिस्तर से उठने की हालत में नहीं थे। ट्रॉफी लेने के बाद अपने डॉक्टर से बोले, 'पता नहीं था कि ये इतना भारी होता है।' उन्हें भारत रत्न भी मिला था। इस पर रे ने सिर्फ इतनी प्रतिक्रिया दी, 'अवॉर्ड्स का सीजन चल रहा है।'