कैंसर से लड़ते हुए इस बच्चे ने 12वीं में हासिल किए 95% मार्क्स
दिल्ली पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले 19 साल के ऋषि की जिंदगी आसान नहीं रही है। ये संघर्ष 2014 में शुरू हुआ था, जब उन्हें बाएं घुटने में कैंसर का पता चला, जिसकी वजह से वे दसवीं की परीक्षा नहीं दे पाए थे।
सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन (CBSE) बोर्ड के रिज़ल्ट आ चुके हैं और उन सभी बच्चों के चेहरे पर मुस्कान छाई है, जिन्होंने एग्जाम में बेहतर किया और उनका रिजल्ट शानदार रहा। रिजल्ट के आते ही हमें ऐसी तमाम प्रेरणादायक कहानियां देखने और पढ़ने को मिलती हैं, जिनमें गरीब और अभावग्रस्त जिंदगी जीने वाले बच्चे काफी अच्छा प्रदर्शन करते हैं। ऐसी ही एक और प्रेरणादायक कहानी है रांची में रहने वाले तुषार ऋषि की, जिन्होंने कैंसर से जूझते हुए 12वीं की परीक्षा में 95 फीसदी अंक हासिल किए हैं...
तुषार ऋषि, फोटो साभार: youtubea12bc34de56fgmedium"/>
कैंसर की वजह से 19 वर्षीय तुषार ऋषि को हर तीन महीने पर चेकअप के लिए एम्स (AIIMS) जाना पड़ता है। इसके बावजूद वे बिना किसी कोचिंग के 95% अंकों से पास हुए हैं।
तुषार ऋषि ने इंग्लिश में 95, फिजिक्स में 95, मैथ में 93, कंप्यूटर में 89 और फाइन आर्ट में 100 नंबर प्राप्त किए हैं। ऋषि का मानना है कि लगातार नियमित रूप से पढ़ाई करने पर परीक्षा का बोझ धीरे-धीरे कम होता जाता है। वे कहते हैं, 'लगातार इलाज के बाद अब मैं पहले से बेहतर स्थिति में हूं, लेकिन फिर भी मुझे नियमित चेकअप के लिए हर 3-4 महीने पर AIIMS जाना पड़ता है, ताकि मुझे मेरी हेल्थ के अपडेट्स मिलते रहें।'
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दिल्ली पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले 19 साल के ऋषि की जिंदगी आसान नहीं रही है। ये संघर्ष 2014 में शुरू हुआ था, जब उन्हें बाएं घुटने में कैंसर का पता चला, जिसकी वजह से वे दसवीं की परीक्षा नहीं दे पाए थे। ऋषि कहते हैं, कि '10वीं के मॉक एग्जाम खत्म होने के बाद ही मुझे बोन कैंसर का पता चला था। उसके बाद लगभग 11 महीनों तक मुझे कीमोथेरेपी से गुजरना पड़ा। जाहिर सी बात है इससे मेरे अंदर काफी बदलाव आए, लेकिन मैंने खुद को अपनी पढ़ाई में व्यस्त रखा।' हालांकि कीमोथेरेपी के बाद वापस आने पर ऋषि ने अगले साल ही 2015 की 10वीं की परीक्षा में 10CGPA हासिल किए।
बाकी तमाम साइंस एस्ट्रीम के स्टूडेंट्स की तरह ऋषि भी इंजिनियरिंग नहीं करना चाहते। वे दिल्ली यूनिवर्सिटी से इंग्लिश या इकनॉमिक्स में ग्रेजुएशन करना चाहते हैं।
ऋषि की मां बिरला इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर हैं और उनके पिता राज्य के कृषि विभाग में काम करते हैं। ऋषि की मां ने कहा, 'वह पूरी तरह से स्कूल की पढ़ाई पर निर्भर रहा और उसे ट्यूशन की जरूरत नहीं पड़ी। मैं उसके प्रदर्शन से काफी खुश हूं। मैंने उसे कैंसर से लड़ते हुए देखा है और समझ सकती हूं कि ऐसी सफलता को हासिल करना कितना मुश्किल रहा होगा।'
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ऋषि ने अपने कैंसर से लड़ने के संघर्ष पर एक किताब भी लिखी है, 'The Patient Patient' जो कि काफी लोकप्रिय हो रही है। हालांकि ऋषि की कैंसर से लड़ाई जारी रहेगी, लेकिन उसका दुनिया की सबसे गंभीर बीमारी को मात देना और अपनी मेहनत से बड़ी सफलता हासिल करना हम सभी को प्रेरित करता रहेगा।