अथाह सृजन के दो बड़े नाम रामदरश मिश्र और इस्मत चुगताई
साहित्य किसी भी भाषा-बोली का हो, मनुष्यों की दुनिया की विरासत होता है। आज ऐसे ही दो शब्द-साधकों का जन्मदिन है, हिंदी के वरिष्ठ कवि-कथाकार डॉ. रामदरश मिश्र और उर्दू की जानी-मानी लेखिका इस्मत चुग़ताई।
लेखिका इस्मत चुग़ताई की बहुचर्चित कहानी 'लिहाफ' पर लाहौर हाईकोर्ट में मुकदमा चला, लेकिन वह बाद में खारिज कर दिया गया। डॉ. रामदरश मिश्र के एक दर्जन से अधिक उपन्यास, इतने ही कहानी संग्रह, दस से अधिक कविता संग्रह, तीन गजल संग्रह, सात से अधिक संस्मरण, लगभग चार निबंध संग्रह और एक पुस्तक आत्मकथा केंद्रित प्रकाशित हो चुकी है।
'जब मैं जाड़ों में लिहाफ ओढ़ती हूँ तो पास की दीवार पर उसकी परछाई हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है। और एकदम से मेरा दिमाग बीती हुई दुनिया के पर्दों में दौड़ने-भागने लगता है। न जाने क्या कुछ याद आने लगता है। बेगम जान का लिहाफ़ अब तक मेरे ज़हन में गर्म लोहे के दाग की तरह महफूज है। न जाने उनकी ज़िन्दगी कहाँ से शुरू होती है? वह बावजूद नई रूई के लिहाफ के, पड़ी सर्दी में अकड़ा करतीं। हर करवट पर लिहाफ़ नईं-नईं सूरतें बनाकर दीवार पर साया डालता। मगर कोई भी साया ऐसा न था जो उन्हें ज़िन्दा रखने लिए काफी हो। उस वक्त मैं काफ़ी छोटी थी और बेगम जान पर फिदा। वह मुझे बहुत प्यार करती थीं। इत्तेफाक से अम्माँ आगरे गईं। उन्हें मालूम था कि अकेले घर में भाइयों से मार-कुटाई होगी, मारी-मारी फिरूँगी, इसलिए वह हफ्ता-भर के लिए बेगम जान के पास छोड़ गईं। मैं भी खुश और बेगम जान भी खुश। सवाल यह उठा कि मैं सोऊँ कहाँ? ''बेगम जान!'' मैंने डरी हुई आवाज़ निकाली। हाथी हिलना बन्द हो गया। लिहाफ नीचे दब गया।... लिहाफ़ फिर उमँडना शुरू हुआ। मैंने बहुतेरा चाहा कि चुपकी पड़ी रहूँ, मगर उस लिहाफ़ ने तो ऐसी अजीब-अजीब शक्लें बनानी शुरू कीं कि मैं लरज गई। 'आ न अम्माँ!' मैं हिम्मत करके गुनगुनायी, मगर वहाँ कुछ सुनवाई न हुई और लिहाफ मेरे दिमाग में घुसकर फूलना शुरू हुआ। मैंने डरते-डरते पलंग के दूसरी तरफ पैर उतारे और टटोलकर बिजली का बटन दबाया। हाथी ने लिहाफ के नीचे एक कलाबाज़ी लगायी और पिचक गया। कलाबाज़ी लगाने मे लिहाफ़ का कोना फुट-भर उठा, अल्लाह! मैं गड़ाप से अपने बिछौने में!'
ये शब्द हैं इस्मत चुगताई की चर्चित विवादित कहानी 'लिहाफ' के। 'लिहाफ' को जिसने भी पढ़ा, उसका मुरीद हो गया। इस कहानी में उन्होंने महिलाओं के बीच समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया था। उस जमाने में किसी महिला के लिए ऐसी कहानी लिखना दुस्साहस था। उस कहानी पर लाहौर हाईकोर्ट में उनपर मुक़दमा चला। जो बाद में ख़ारिज हो गया।
इस्मत चुग़ताई को ‘इस्मत आपा’ के नाम से भी जाना जाता है। वे उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और सर्वप्रमुख लेखिका थीं, जिन्होंने महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया। उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबक़े की दबी-कुचली, सकुचाई और कुम्हलाई लेकिन जवान होती लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी सच्चाई से बयान किया। उनका जन्म पन्द्रह अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ। उनकी वसीयत के अनुसार मुंबई के चन्दनबाड़ी में उन्हें अग्नि को समर्पित किया गया। उनकी पहली कहानी 'गेन्दा' का प्रकाशन 1949 में उस दौर की उर्दू साहित्य की सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक पत्रिका ‘साक़ी’ में हुआ और पहला उपन्यास 'ज़िद्दी' 1941 में प्रकाशित हुआ। उन्होंने अनेक चलचित्रों की पटकथा लिखी और जुगनू में अभिनय भी किया।
इस्मत की पहली फिल्म 'छेड़-छाड़' 1943 में आई थी। वे कुल 13 फिल्मों से जुड़ी रहीं। उनकी आख़िरी फ़िल्म 'गर्म हवा' (1973) को कई पुरस्कार मिले।
साहित्य अकादमी से सम्मानित हिंदी के उम्रदराज साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र जितने समर्थ कवि हैं, उतने ही लोकप्रिय उपन्यासकार और कहानीकार भी। उन्होंने नयी कहानी के समय में लिखना शुरू किया था और सचेतन कहानी, जनवादी कहानी, सक्रिय कहानी के दौर में भी खूब सक्रिय रहे, लेकिन उन्हें आंदोलनों की तासीर रास नहीं आई।
डॉ. रामदरश मिश्र ने अनवरत लेखन कर हिंदी साहित्य को अपार भंडार दिया है। उनकी मुख्य कृतियाँ हैं- पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, बीच का समय, सूखता हुआ तालाब, अपने लोग, रात का सफर, आकाश की छत, आदिम राग, बिना दरवाजे का मकान, दूसरा घर, थकी हुई सुबह, बीस बरस आदि (उपन्यास)। उनके कहानी संग्रह हैं- खाली घर, एक वह, दिनचर्या, सर्पदंश, वसंत का एक दिन, अपने लिए, आज का दिन भी, फिर कब आएँगे?, एक कहानी लगातार, विदूषक, दिन के साथ, विरासत। उनकी कविताओं के भी दस से अधिक संग्रह पथ के गीत, बैरंग-बेनाम चिट्ठियाँ, पक गई है धूप आदि नामों से प्रकाशित हो चुके हैँ। इसके अलावा तीन गजल संग्रह, सात से अधिक संस्मरण, लगभग चार निबंध संग्रह और एक आत्मकथा केंद्रित।