मुसहर बच्चों को शिक्षित करने के लिए बिहार की बेटी को मिला अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड
देश की बेटी...
बिहार के भोजपुर की रहने वाली छोटी कुमारी सिंह ने 17 साल की उम्र से ही अपने गांव रतन पुर में समाज के दबे-पिछड़े लोगों के बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया। वह अध्यात्मिक गुरु माता अमृतानंदमयी मठ के साथ जुड़ी हुई हैं।
छोटी वर्ष 1994 में शुरू हुआ यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की व्यक्ति हैं. पुरस्कार के रूप में 1000 डॉलर यानी लगभग 65,000 रुपये की रकम दी जाती है।
मुसहर समाज की हालत काफी बदतर है। इनमें से ज्यादातर परिवारों के पास न तो जमीन है और न ही रोजगार के साधन। सुविधा से विपन्न होने के कारण न तो बच्चों की देखभाल हो पाती है और न ही उनके पढ़ने का कोई बेहतर इंतजाम।
गांव में पिछड़े समाज के बच्चों को पढ़ाने बिहार की बेटी छोटी कुमारी सिंह को स्विट्सजरलैंड के वर्ल्ड समिट फाउंडेश ने सम्मानित किया है। 20 साल की छोटी कुमारी सिंह बिहार के भोजपुर जिले की रहने वाली हैं। छोटी तथाकथित भारतीय समाज के उच्च समाज से ताल्लुक रखती हैं। उन्होंने 17 साल की उम्र से ही अपने गांव रतन पुर में समाज के दबे-पिछड़े लोगों के बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया। वह अध्यात्मिक गुरु माता अमृतानंदमयी मठ के साथ जुड़ी हुई हैं। वह मुसहर समाज के बच्चों को शिक्षित करती हैं। बिहार में मुसहर समाज को सदियों से अछूत माना जाता रहा है। बिहार सरकार ने मुसहरों को महादलित श्रेणी के तहत वर्गीकृत किया है।
मुसहर समाज की हालत काफी बदतर है। इनमें से ज्यादातर परिवारों के पास न तो जमीन है और न ही रोजगार के साधन। सुविधा से विपन्न होने के कारण न तो बच्चों की देखभाल हो पाती है और न ही उनके पढ़ने का कोई बेहतर इंतजाम। सरकारी स्कूलों में भी पढ़ाई अच्छी नहीं होती है और वहां बच्चे केवल मिड डे मील के तहत मिलने वाले खाने के लिए जाते हैं। इस समाज की लड़कियों की शादी 10-12 साल में हो जाना काफी आम बात है। साफ-सफाई की हालत भी काफी बुरी होती है और कई बच्चे ऐसे होते हैं जो हफ्तों तक नहाते ही नहीं।
छोटी ने इन सब समस्याओं से लड़ रही हैं। इस काम के लिए तथाकथित उच्च समाज के लोगों ने उनका उपहास भी उड़ाया लेकिन वे अपने काम के लिए डटी रहीं। आज उनको मिले सम्मान ने साबित कर दिया है कि वे कितने भले काम के लिए लड़ रही हैं। छोटी ने 2014 में ही इन बच्चों को ट्यूशन देना शुरू कर दिया था। समिट फाउंडेशन द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक वह अपने घर में ही बच्चों को बुलाकर उन्हें पढ़ाती हैं। बच्चों में साफ-सफाई की आदत डालने के लिए वह अपनी सहेलियों के साथ इन्हें पास के नदी में ले जाती थीं जहां वे बच्चों को नहलाती थीं। उन्होंने बताया कि शुरू में तो ये काम काफी मुश्किल भरा रहा, लेकिन धीरे-धीरे बच्चों के अंदर ये आदत बन गई और वे खुद से साफ-सफाई के लिए सचेत हो गए।
छोटी वर्ष 1994 में शुरू हुआ यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की व्यक्ति हैं. पुरस्कार के रूप में 1000 डॉलर यानी लगभग 65,000 रुपये की रकम दी जाती है। अभी तक मुसहर समुदाय के 108 बच्चों को ट्युशन देने में कामयाब रही छोटी का कहना है कि ज्यादातर भूमिहीन श्रमिकों के रूप में काम करने वाले उसके गांव के मुसहर समुदाय के लोग बेहद गरीब हैं। उन्हें बच्चों की शिक्षा का महत्व समझाने और इसके लिए प्रेरित करने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी, क्योंकि समुदाय के ज्यादातर लोग अपने बच्चों को शिक्षा में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते।
छोटी ने कहा, मैं घरघर जाकर उनसे मुलाकात करती। बच्चों के माता पिता को समझाने की कोशिश करती थी. छोटी ने एक स्वयं सहायता समूह भी शुरू किया जिसमें इस समुदाय की हर महिला एक महीने में 20 रपये बचाकर घर-आधारित गतिविधियों को शुरू करने के लिए बैंक खाता में जमा करती है। माता अमृतानंदमयी मठ ने बिहार के पांच गांवों को अपनाया है जिनमें दो रतनपुर और हदियाबाद गांव में उक्त कार्यक्रम शुरू किया गया है। यह फाउंडेशन समाज में गरीबी खत्म करने, महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने और पर्यावरण के लिए काम करने वाली महिलाओं को सम्मानित करता है। इस फाउंडेशन की स्थापना 1994 में हुई थी। समिट ने अब तक 100 देशों की 432 महिलाओं को सम्मानित कर चुका है।
यह भी पढ़ें: किसान के बेटे ने बाइक के इंजन से बनाया मिनी एयरक्राफ्ट