दिल्ली के डॉक्टरों का कारनामा, बच्चे को लौटाया ‘हाथ’
केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टरों ने एक असाधारण सर्जरी के माध्यम से एक 10 वर्षीय बच्चे की जिंदगी में उम्मीद की किरण को फिर से रौशन कर दिखाया। इस 10 वर्षीय बच्चे का नाम है वीरेंद्र, जो दक्षिणी दिल्ली के छत्तरपुर इलाके का रहने वाला है और एक दुर्घटना में बुरी तरह से जल जाने के बाद उसके दोनों हाथों के हिस्सों को काटना पड़ा।
डॉक्टरों ने पैरों के पंजों के ऊतकों की मदद से वीरेंद्र के दाहिने हाथ में उंगली और अंगूठे का प्रत्यारोपण किया। डॉक्टरों ने पंजों के ऊतकों से एक अंगूठे और एक उंगली को विकसित किया और वीरेंद्र के दाहिने हाथ में प्रत्यारोपित किया। इसके बाद धीरे-धीरे वीरेंद्र के इन अंगों में खून का प्रवाह शुरू हुआ।
एक दुर्घटना में वीरेंद्र का लगभग पूरा शरीर प्रभावित हुआ। जलने की वजह से वीरेंद्र की कलाई से नीचे का हाथ गैंगरीन से प्रभावित हो गया और दोनों हाथों के इस हिस्से को काटना पड़ा। वीरेंद्र के दाहिने हाथ की हथेली का थोड़ा सा हिस्सा सुरक्षित बचा, जिसमें यह प्रत्यारोणण किया गया।
केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टरों ने एक असाधारण सर्जरी के माध्यम से एक 10 वर्षीय बच्चे की जिंदगी में उम्मीद की किरण को फिर से रौशन कर दिखाया। इस 10 वर्षीय बच्चे का नाम है वीरेंद्र, जो दक्षिणी दिल्ली के छत्तरपुर इलाके का रहने वाला है और एक दुर्घटना में बुरी तरह से जल जाने के बाद उसके दोनों हाथों के हिस्सों को काटना पड़ा। डॉक्टरों ने पैरों के पंजों के ऊतकों की मदद से वीरेंद्र के दाहिने हाथ में उंगली और अंगूठे का प्रत्यारोपण किया।
डॉक्टरों ने पंजों के ऊतकों से एक अंगूठे और एक उंगली को विकसित किया और वीरेंद्र के दाहिने हाथ में प्रत्यारोपित किया। इसके बाद धीरे-धीरे वीरेंद्र के इन अंगों में खून का प्रवाह शुरू हुआ। दुर्घटना से पहले हर बच्चे की तरह वीरेंद्र भी स्वभाव से खुशमिजाज स्वभाव का था। दुर्घटना के वक्त वीरेंद्र स्कूल से लौटकर, एक घरेलू कार्यक्रम में जाने के लिए तैयार हो रहा था। दुर्घटना में वीरेंद्र का लगभग पूरा शरीर प्रभावित हुआ। जलने की वजह से वीरेंद्र की कलाई से नीचे का हाथ गैंगरीन से प्रभावित हो गया और दोनों हाथों के इस हिस्से को काटना पड़ा। वीरेंद्र के दाहिने हाथ की हथेली का थोड़ा सा हिस्सा सुरक्षित बचा, जिसमें यह प्रत्यारोणण किया गया।
वीरेंद्र के पिता बीरेंदर सिंह ने बताया कि वीरेंद्र पढ़ाई में काफी होशियार था और दुर्घटना के वक्त वह पहली कक्षा में पढ़ता था। दुर्घटना के बाद उसका जीवन इतना चुनौतीपूर्ण हो गया कि वह कोई भी काम करने में असक्षम हो गया।
वीरेंद्र का परिवार उसे एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल लेकर भटकता रहा। फिर से पढ़ाई शुरू करने और हाथ में पकड़ने की चाह वीरेंद्र के अंदर दिनरात उमड़ती थी। वीरेंद्र सिंह ने अपनी भावनाएं जाहिर करते हुए कहा कि वह भी यह चाहते थे कि उनका बच्चा एक बार फिर से कलम हाथ में पकड़ सके। वीरेंद्र के पिता ने बताया कि वह 7 महीने पहले ही वीरेंद्र को सफदरजंग अस्पताल लेकर आए थे। वीरेंद्र की हालत की ठीक से जांच करने के बाद डॉक्टरों ने इस प्रत्यारोपण की योजना बनाई। वीरेंद्र ने खुशी जताई कि सफल ऑपरेशन के बाद अब उनका बच्चा जल्द ही लिखने में फिर से सक्षम होगा। वीरेंद्र फिलहाल दक्षिणी दिल्ली के एक स्कूल में तीसरी कक्षा में पढ़ाई कर रहा है। इस तरह की दुर्घटना दोबारा न हो, इसके प्रति सावधानी बरतते हुए वीरेंद्र के पिता ने घर से सभी बिजली के उपकरणों को हटा दिया है।
सफदरजंग अस्पताल के बर्न ऐंड प्लास्टिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष (प्रफेसर) डॉ. आरपी नारायण के मुताबिक, मरीज वीरेंद्र अभी आगामी सात से आठ महीनों के लिए डॉक्टरों की नियमित निगरानी में रहेगा और उसकी फिजियोथेरेपी भी लगातार जारी रहेगी। डॉ. नारायण ने बताया कि सर्जरी से पहले डॉक्टरों ने वीरेंद्र की हालत का अच्छी तरह से अध्ययन किया था। मुख्य सर्जन डॉ. राकेश जैन ने बताया कि सर्जरी की सफलता के लिए बेहद खास निगरानी और विशेष तरह के ऐनस्थीसिया की जरूरत थी, ताकि खून के प्रवाह को सुनिश्चित किया जा सके। उनका कहना है कि यह सर्जरी बेहद पेचीदा और चुनौतीपूर्ण थी और अगर यह ऑपरेशन असफल हो जाता तो वीरेंद्र की हालत और भी बिगड़ सकती थी और वह ट्रॉमा में भी जा सकता था। इस प्रत्यारोपण के बाद डॉक्टरों का दावा है कि प्रत्यारोपण में पंजों के ऊतकों का इस्तेमाल करने का बावजूद भी कोई चिंता की बात नहीं है। डॉक्टरों का कहना है कि वीरेंद्र को चलने-फिरने में किसी तरह की दिक्कत नहीं पेश आएगी।
डॉक्टरों ने जानकारी दी कि इस सर्जरी में 10 घंटे का वक्त लगा। ऑपरेशन में हड्डियों को अपनी सटीक जगह पर बैठाया गया और फिर से खून के प्रवाह को सुनिश्चित किया गया।
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