17 साल की दो लड़कियों ने झुग्गियों में पानी के लिए किया 4 लाख का जुगाड़
एक वक्त था जब लोग इस कहावत का उदाहरण देते थे कि पैसे पानी की तरह मत बहाओ और अब इतना विकट समय आ गया है कि पानी को पैसे की तरह दांत से पकड़ कर खर्च करना पड़ रहा है। यही वजह है कि विश्व के कई देश गहरे जल संकट से जूझ रहे हैं, ऐसे में 17 साल की दो मेहनती लड़कियों ने झुग्गियों में पानी के लिए कर डाली 4 लाख रूपयों की व्यवस्था। आईये जानें कैसे किया इस नामुमकिन को मुमकिन...
भारत जैसे जलसंपन्न देश में भी अथाह दुरुपयोग से लोगों को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं हो पा रहा है। बड़े तो सुधरने वाले नहीं, ऐसे में बच्चों ने इस संकट से लड़ने के लिए कमर कस ली है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कई वंचित क्षेत्रों में सुरक्षित पीने के पानी की कमी को खत्म करने के लिए 17 वर्षीय दो लड़कियों ने दिल्ली और गुरुग्राम की झुग्गियों के आसपास और आसपास शुद्ध पेय जल देने के लिए एक पहल की है। श्री राम विद्यालय की मान्या कालरा और सना खरबंदा ने 6 महीने में केटो पर अपने क्राउड फंडिंग अभियान के माध्यम से 4 लाख रुपये की शानदार राशि जुगाड़ ली है।
एक वक्त था जब लोग इस कहावत का उदाहरण देते थे कि पैसे पानी की तरह मत बहाओ और अब इतना विकट समय आ गया है कि पानी को पैसे की तरह दांत से पकड़ कर खर्च करना पड़ रहा है। विश्व के कई देश गहरे जल संकट से जूझ रहे हैं। भारत जैसे जलसंपन्न देश में भी अथाह दुरुपयोग से लोगों को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं हो पा रहा है। बड़े तो सुधरने वाले नहीं, ऐसे में बच्चों ने इस संकट से लड़ने के लिए कमर कस ली है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कई वंचित क्षेत्रों में सुरक्षित पीने के पानी की कमी को खत्म करने के लिए 17 वर्षीय दो लड़कियों ने दिल्ली और गुरुग्राम की झुग्गियों के आसपास और आसपास शुद्ध पेय जल देने के लिए एक पहल की है। श्री राम विद्यालय की मान्या कालरा और सना खरबंदा ने 6 महीने में केटो पर अपने क्राउड फंडिंग अभियान के माध्यम से 4 लाख रुपये की शानदार राशि जुगाड़ ली है। 'एलिक्जर शुध पानी की शपथ' नाम के इस अभियान के तहत झुग्गियो़ में इलेक्ट्रिक वॉटर प्यूरिफ़ायर बांटने का काम किया गया। इन दोनों ने दिल्लीे और गुरुग्राम में विभिन्न झुग्गियों का दौरा किया। इन क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों के साथ बातचीत के बाद, उन्हें एहसास हुआ कि स्वच्छ पेयजल की अनुपलब्धता उनकी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक थी, जिनका वो हर रोज सामना करते हैं।
एशियन एज की खबर के मुताबिक, प्रारंभ में पायलट परियोजना के तहत चककरपुर गांव में 60 घरों का चयन किया गया। यहां अब तक इन दोनों ने झोपड़ियों में 220 से अधिक फिल्टर वितरित किए हैं। यहां के निवासियों के सामने कोई वैकल्पिक संसाधन नहीं छोड़ा गया था और उन्हें हर दिन गंदा पानी पीना पड़ता था। कभी-कभी यह स्पष्ट रूप से अशुद्ध दिखता था। गंदा और मटमैला। पानी उबालने के बाद भी, उन्हें यकीन नहीं था कि वह पीना सही रहेगा या नहीं। यह प्रमुख कारणों में से एक है कि बच्चों को बहुत आसानी से कई जलजनित रोगों को पकड़ लेते हैं।
उनकी इन तकलीफों को देखकर सना और मान्या ने निवासियों को पानी के लिए फिल्टर उपलब्ध कराने के विचार आया। उन्होंने टाटा केमिकल्स के साथ भागीदारी की और नॉन-इलेक्ट्रिक और किफायती, फिर भी प्रभावी टाटा स्काच क्रिस्टला प्लस फ़िल्टर चुना। हालांकि, एक फिल्टर की लागत, जिसमें दो साल तक सर्विसिंग शामिल है, 1,500 रुपये है। टाटा केमिकल्स ने एक सामाजिक कारण के लिए अपनी परियोजना के लिए एक वर्ष के लिए मुफ्त में प्यूरीफायर की सेवा का फैसला किया है। कंपनी फिल्टर के साथ एक अतिरिक्त बल्ब प्रदान करती है और उनके तकनीशियन साथ आते हैं झुग्गी क्षेत्रों के लिए फ़िल्टर की प्रक्रिया और बल्ब को बदलने की प्रक्रिया को समझाने के लिए।
अब लोग स्वच्छ पानी पीने कर खुश हैं। दोनों ही जुझारू लड़कियां अब धन जुटाने के लिए कॉरपोरेट क्षेत्र से संपर्क करने की योजना बना रही हैं। साथ ही झुग्गी निवासियों के सामने आने वाली कठिनाइयों के बारे में समाज में जागरूकता देने के लिए लघु फिल्म भी तैयार कर रही हैं।
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